Wednesday, May 13, 2015

जो रस भरा सो झरा


सुबह उठे तो बगीचे में पक्षी हल्ला मचा रहे थे। भाईसाहब दूसरी चाय पी रहे थे।अब सबके लिए फिर से आई है चाय। लान में चाय पीते हुए पोस्ट लिखी जा रही है। हवा गाल, बाल सहलाती हुई कह रही मेरे बारे में भी लिख देना कुछ।

हम पूछते हैं-'क्या लिखें? सुहानी कि मस्तानी? '

'कुछ भी लिखो। तुम्हारी मर्जी'- कहते हुए हवा इठलाती चली गयी। पेड़ पौधों पत्तियों को सहलाती। दुलराती। हमको अपनी तरफ देखते देखा तो पूछा--'लिखा कुछ अभी तक या नहीं।'

कल ग्वारीघाट गए। शाम की आरती देखी। नाव पर बैठकर नर्मदा की लहरों को महसूस किया। पानी 8-10 फीट गहरा है।भेड़ाघाट में 300 फीट तक था पानी। कुछ किलोमीटर की दूरी पर नदी की चौड़ाई के हिसाब से पानी की गहराई बदलती गयी।
कल ये किताबें खरीदी गयीं:
1. सौंदर्य की नदी नर्मदा
2.अमृतस्य नर्मदा
3.तीरे तीरे नर्मदा
4. सफर एक डोंगी में डगमग
5. नर्मदा की धारा से

पहली 3 किताबें अमृतलाल वेगड़ जी की हैं। उन्होंने दो बार नर्मदा परिक्रमा की। पहली बार अकेले। दूसरी बार पत्नी के साथ। फिर नर्मदा की सहायक नदियों के किनारे चले। आखिरी यात्रा तब की जब वे 75 पार थे।पहली दो किताबों में नर्मदा परिक्रमा और तीसरी में सहायक नदियों की यात्रा का वर्णन है। शान्ति निकेतन में नन्दलाल वसु के शिष्य रहे वेगड़ जी की लिखी ये पुस्तकें अद्भुत यात्रा संस्मरण हैं।

वेगड़ जी ने ये यात्राएं सरकारी नौकरी करते हुए ने की।टुकड़ों टुकड़ों में छुट्टियां लेते हुए। जब मौका मिला निकल लिए। नर्मदा किनारे यात्रा करते। सौंदर्य निहारते। चित्र बनाते।

'मध्यप्रदेश हिंदी ग्रन्थ अकादमी भोपाल' से 70 रूपये की एक किताब के हिसाब से नर्मदा यात्रा की ये किताबें 210 रूपये में मिलीं।

'डगमग डोंगी पर सफ़र' राकेश तिवारी की नाव से गंगा यात्रा की दास्तान है। 30 साल पहले की यात्रा की नाविकी की कहानी अब प्रकाशित हुई है। सार्थक प्रकाशन से। 200 रूपये दाम हैं किताब के। 5 वीं किताब में नर्मदा नदी को तैरकर यात्रा के किस्से हैं।


यह इसलिए लिख रहा कि जब से मैं जबलपुर आया हूँ तो नर्मदा परिक्रमा की तर्ज पर नर्मदा के किनारे किनारे साइकिल से यात्रा करने की सोचता रहा हूँ। निकलना नहीं हो पाया लेकिन इरादा अभी मुल्तवी नहीं हुआ। जबकि हमारे से इस बारे में सुन सुनकर दोस्त लोग कार से नर्मदा परिक्रमा कर आये।

जबलपुर से खम्भात की खाड़ी जहां नर्मदा समुद्र में विसर्जित होती हैं करीब 1500 किमी है। साइकिल से चलें तो 15 दिन लगेंगे यात्रा में। कुछ दिन और रख लें तो 20-25 दिन में पहुंच जाएंगे। मन बहुत है लेकिन बस बात आगे बढ़ नहीं रही। इधर उधर के झमेलों में फंसे हैं। भाईसाहब कहते हैं-'कार से चलो तो हम चलें। साइकिल से बाद में जाना।'

आप चलोगे साईकिल से नर्मदा यात्रा में? या फिर कार से मन है?

दीदी महुये के पेड़ से टपका महुआ लाकर देती हैं। हम पहली बार टपका हुआ खाते हैं।महुआ से रस निकल रहा है। सरस महुआ। रस है तभी टपका।रस से भरा तो टपक गया। जिसमें अभी रस नहीं आया होगा वह पेड़ पर ही होगा अभी। महुए जमीन पर रखते ही चीटियों को खबर हो गयी। वे आ गयीं वहां और महुए का रस पीने लगीं।

प्रकृति के बहाने कविता की बात चली तो दीदी आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की 'कविता क्या है?' का जिक्र करने लगीं-

'सहृदय कवि प्रकृति के सम विषम रूप दोनों से समान भाव से प्रेम करता है। जो प्रकृति के केवल  सुकुमार, कोमल और मृदुल रूप का चित्रण करता है वह विषयी या भोगलिप्सु होता है।'

आसपास मनोरम प्रकृति है। यह प्रकृति का सम रूप है।कल फिर भूकम्प आया था। यह प्रकृति का विषम रूप है। प्रकृति के इस विषम रूप पर क्या कविता लिखी जाये? सबकी सलामती की दुआ ही कर सकते हैं।
चाय एक बार से आई है। चाय पीते हुए पोस्ट कर रहें इसे। आप तक भी खुशबू पहुंच रही होगी चाय की और रस से भरे तुरन्त टपके महुए की भी। है न? बताओ कैसी लगी?

No comments:

Post a Comment