Tuesday, May 19, 2015

आलराउंडर ड्राइवर की प्याऊ

सबेरे के 5 बजकर 26 मिनट हुए थे जब मेस का गेट खोलकर पैडल पर पैर धरे। दस मिनट में व्हीकल मोड़ पहुंच गए। तीन किमी दूर। मतलब 18 किमी प्रति घण्टा। 

सूरज भाई अभी दिखे नहीं। मन तो किया हाजिरी रजिस्टर में लेट लगा दें लेकिन फिर छोड़ दिया। पूरब में सूरज के आगमन के पहले की लालिमा  पसरी हुई थी। मानों दिशाओं ने सूरज की अगवानी में 'लाल कालीन' बिछा रखी हो।

जीसीएफ मोड़ पर चाय की दूकान चालू हो गयी थी। लेकिन मन किया आज स्टेशन तक चला जाए। आगे बढ़ गए। 

जीसीएफ मेन गेट के पास एक आदमी अपने घर के बाहर के घड़ों में पानी भर रहे थे। गर्मी के मौसम में आम लोगों के पीने के लिए। फैक्ट्री से पचास कदम की  दूरी पर घर है घनश्याम दास का। एम टी में काम करते हैं।
घनश्याम दास को लोगों के लिए पानी भरते देखकर कानपुर में  थाना बजरिया के पास गर्मी के मौसम में प्याऊ चलाने वाले बुजुर्ग याद आये।हम अपने दोस्त अजय तिवारी के साथ स्कूल से लौटते समय वहां पानी पीते। इसके पहले दूसरी पट्टी पर स्थित सुरसा की मूर्ति की नाक में ऊँगली करते। अब सोचते हैं तो यह बेवकूफी लगती है। बचपन की बेवकूफी।

चढ़ाई पर सोचा कि उतर जाएं। पैदल चलें। लेकिन नहीं उतरे। चढ़ने के बाद ढाल में उतरने का मजा -'क्या कहने।अद्भुत, अनिर्वचनीय।' 

स्टेशन के पास एक आदमी फुटपाथ पर सोया हुआ था। सर पर टोपी रखे हुए। वो शेर याद आया:
सो जाते हैं फुटपाथ पर अखबार बिछाकर
मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते।
लेटे हुए इंसान तो अखबार भी नहीं बिछाये हुए था। अखबार मिला आगे चाय की दूकान पर।'दबंग दुनिया'। अखबार के पहले पेज पर 'हिट एन्ड रन' की एक खबर थी। एक नौजवान ने की गाड़ी से चार लोग मारे गए। एक लड़की हमेशा के लिए अपाहिज। चालक को भी मामूली चोटें आईं।

अख़बार में एक खबर यह भी थी कि एक गेंहूँ खरीद केंद्र पर एक कर्मचारी को प्रति कुंतल गेंहूँ की खरीद के लिए 15 रूपये लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया। 157 किलो के लिए लिपिक ने 2350 रूपये घूस की मांग की थी (रूपये शायद 'घूस डिस्काउंट' रहा हो)।

अखबार की दूसरी खबर खेल के पन्ने पर थी। युवराज सिंह ने आईपीएल में जितने रन बनाये उसके हिसाब से एक रन की कीमत 6 लाख से भी ज्यादा रही। मतलब जितनी कीमत युवराज सिंह के एक रन की है उतने में 275 राज्य कर्मचारी पकड़े जा सकते हैं।

चाय की गुमटी पर कोई बेंच नहीं थी। पूछा तो उसने बताया की नगर निगम वाले आते हैं तो मुश्किल होती है कि चाय की गुमटी संभालें या बेंच या ड्रम या फिर कुर्सी। चाय की दुकान पर एक मंहगा कुत्ता अपने मालिक के साथ टहलने आया था। अचानक वह  मेरी साइकिल सूंघने लगा। फिर पास खड़ा एक टेम्पो सूंघा और उसके अगले पहिये के पास की जमीन अपनी टांग उठाकर सींच दी। 

लौटते हुए देखा कि एक घर की चहारदीवारी पर चढ़ा एक आदमी उस घर के अंदर खड़े पेड़ से फूल और बेलपत्ती तोड़ रहा था। हमने पूछा तो बोला- 'बेलपत्ती तोड़ रहें हैं। पूजा के लिए। आपको भी चाहिये क्या?'

जीसीएफ के पास पहुंचे तो घनश्याम दास सड़क पर खड़े दातुन कर रहे थे।बत्तीसी सलामत है। बताया उनके बाप-दादे सब जीसीएफ में काम करते रहे। अभी भी 5 चाचा ,भाई ,भतीजे लगे हैं। इसी महीने उनकी भी पेंशन है। हर गाड़ी हाँक लेते हैं। एक साँस में कई अफसरों के नाम उछाल दिए जिनकी गाड़ीचला चुके हैं। 

पानी दिन में तीन बार भरते हैं। तमाम लोग आते हैं पीने। 60 साल से इस घर में रह रहे हैं। हमने पूछा -'कहां रहोगे रिटायरमेंट के बाद । कोई घर बनाया क्या?' इस पर बताया कि कोई घर नहीं बनाया। चार शादियां (लड़की,बहन,लड़के ) कीं। उसी में सब पैसे खर्च हो गए। लेकिन घर की चिंता नहीँ। कुछ न कुछ जुगाड़ हो जायेगा। 

परसाई जी की बात फिर याद आई-'इस देश की आधी ताकत लड़कियों की शादी में जा रही है।'

व्हीकल मोड़ तक पहुंचते हुए साढ़े छह बज गए थे। अगले आठ मिनट में मेस में दाखिल हुए। मतलब इस्पीड 22.50 किमी प्रति घंटे। आते जाते का औसत निकाला जाए तो 20 किमी प्रति घण्टा हुआ। मतलब अगर पांच छह घण्टे रोज चलाऐं साईकिल तो रोज 100 किमी सड़क नाप सकते हैं। मतलब अगर जबलपुर से चलें तो नर्मदा किनारे किनारे चलते हुए 15-20 दिन में खम्भात की खाड़ी तक पहुंच जाएंगे। चलेगा कोई साथ में?

फ़िलहाल तो इसे पोस्ट करते हैं। इसके बाद दफ्तर के लिए तैयार हुआ जाए। 

आपका दिन मंगलमय हो। शुभ हो।

2 comments:

  1. बहुत बढ़िया :)

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  2. बढ़िया :)

    साइकिल से हम चलेंगे। लेकिन पहले छुट्टी और कब जैसे सवाल का जवाब ढूँढना पड़ेगा :)

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