Saturday, October 10, 2015

साइकिल की परछाई और काला धन

अनन्य -सुमन
आज सुबह साईकल चलाने नहीं गए। स्टार्टअप में ही फंस गए। मन कुछ ऐसे ही उखड़ा रहा जैसे किसी जनप्रतिनिधि का मन अपने भाषण में कोई बेवकूफी बोलने से रह जाने पर उखड़ा रहता होगा।


यह अपने उखड़े मूड वाली बात हमने ऐसे ही लिखी। इसको उतनी ही गम्भीरता से लिया जाए जितना हमारी बाकि बातों को लिया जाता है। कहना हम जनप्रतिनिधि के भाषण में बेवकूफी वाली बात ही चाहते थे। आप भी समझ ही गए होंगे फिर भी हमने सोचा आपको बता भी दें। वैसे ही जैसे भले लोग बताकर मजाक करते हैं न-ऐसे ही मजाक कर रहे थे, बुरा मत मानना।  

वैसे भी हम साइकिल चलाते हैं तो दोस्त लोग घराने के सवाल करते हैं। कोई कहता है कि हम जब लोगों से बात ही करते रहते हैं तो साइकिल कब चलाते होंगे? कोई पूछता है कि हम साइकिल चलाते हुए लिखते हैं या फिर खड़े होकर। इसी तरह की और बातें। साइकिल का ये होता है जब तक निकलते नहीं तब तक लगता है आज छोड़ा जाये। पर जब निकल लेते हैं तब लगता है फालतू में देर की। बढ़िया हवा, खूबसूरत नजारा और न जाने क्या-क्या।

तो शाम को निकले आठ बजे। वैसे भले न निकलते लेकिन फल लेने जाना था इसलिए निकलना पड़ा। फल इसलिए कि स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की आड़ में हमने पिछले दो दिन से रात का खाना बन्द कर दिया। फलाहारी हो गए। दो ही दिन हुए हैं यह त्याग किये हुए लेकिन हमने लोगों को बताया ऐसे है गोया सालों से शाम को फलाहार ही करते आ रहे हैं।

बचपन से फल के नाम पर मौसमी फलों आम,अमरुद.तरबूज,खरबूजा खाने के बाद ही खाये थे हमने इसके पहले। व्रत कभी कोई रहे नहीं। ऐसे में रोज शाम को खाने के नाम पर सिर्फ फल खाने की सोचना और उस पर अमल भी करने की बात अटपटी सी लगती है। कुछ ऐसा ही जैसे कोई कहे कि अब से आर टी ओ दफ्तर में लोगों के लाइसेंस बिना दलाली के बनेंगे।

बहरहाल शाम को स्टार्ट किये साइकिल और निकल लिए व्हीकल मोड़ की तरफ। पुलिया के पास एक आदमी ने हमको नमस्ते की।हमने भी बिना पहचाने नमस्ते कर दिया। हम नमस्ते बोलने वाले एक दूसरे के विपरीत दिशाओं में चले गए। हमारे मुंह से निकले नमस्ते क्या पता पुलिया पर बैठे गपिया रहे हों।

सड़क पर साइकिल चलाते हुए अपनी परछाई दिखी। खुद की डेढ़ गुनी काली परछाई देखकर ऐसा ही लगा जैसा समाज में सफेद धन को लगता होगा जब वह अपने से कई गुना होते काले धन को देखता होगा।
सड़क पर लोग टहल रहे थे। पर आहिस्ता-आहिस्ता। एक महिला इतने धीरे-धीरे टहल रही थी जितने आराम से जयमाल के लिए वधुएँ वर की तरफ जाती हैं।

सामने से जो भी गाड़ी आती उसकी रौशनी हमें तो दूर से ही नजर आ जाती पर लगता है गाड़ी वाला हमको हमारे एक दम पास आकर देखता होगा।देखने के बाद भुनभुनाते हुए ब्रेक लगाता होगा।

सड़क किनारे चाट और अंडे की दुकाने ठेलों पर गुलजार थीं। चुटुर-पुटुर सामान वाली दुकानों पर भी चहल-पहल थी। खरामा-खरामा चलते हुए व्हीकल मोड़ पर पहुंचे। एक किलो पपीता,आधा दर्जन सेव,आधा दर्जन केला तौलवा लिया। कुल 90 रूपये खर्च हुए। दो समय के खाने का फल था इतना। मतलब 45/- एक बार का खर्च।

मेस में खाना 50/-रूपये पड़ता है। हम दो दिन के दस रूपये बचाकर खुश हुये लेकिन जल्दी ही इस खुशी पर हमारी ही नजर लग गयी जब मैंने वहां एक पैकेट में अनार के दाने देख लिए। 20/- का पड़ा पैकेट। मतलब जितनी बचत की सोच रहे थे उतने ही पैसे ज्यादा ठुक गए। इसीलिए कहा गया है कि अपनी खुशी ज्यादा जाहिर नहीं करनी चाहिए।

लौटे तो पालीथीन में लगभग दो किलो फल अपनी ऊँगली पर लटकाये रहे। कुछ देर बाद ऊँगली तक गयी तो उसने जिमेदारी अंगूठे पर दाल थी। एक ऊँगली/अंगूठे पर लटकी फल धारण किये पालीथींन साइकिल के चलने के साथ ऐसे हिल रही थी जैसे किसी मन्दिर में लटकता कोई घण्टा जिसे अभी ही कोई बजाकर गया है।

लौटते में परछाई दोगुनी लम्बी हो गयी थी। जाते समय जो परछाई बगल में चल रही थी वह अब हमारे सामने हो गयी थी। जैसे काला धन अब राजनीति और समाज के क्रिया कलापों में आगे-आगे चलता है वैसे ही हमारी काली परछाई हमारे हैंडल के आगे चल रही थी।

कमरे पर लौटकर टीवी खोला तो खबर आ रही थी कि दिल्ली सत्कार के बर्खास्त मंत्री अतीक आलम खान बता रहे थे कि वे राजनीतिक साजिश का शिकार हुए हैं। हम रामेन्द्र त्रिपाठी की कविता याद कर रहे हैं:

राजनीति की मण्डी बड़ी नशीली है
इस मण्डी ने सारी मदिरा पी ली है।

अब इतना लिखने के बाद कुछ और रह नहीं जाता सिवाय यह कहने के कि अब इसके बाद फल खाने जा रहे हैं। आपको खाना है तो आप भी आ जाइये।

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