अंकुश महोबिया पुलिया पर |
4 में जब पढ़ते थे तो रिछाई में रहते थे पिता। रिछाई के स्कूल में ही पढ़ते थे अंकुश। फिर कंचनपुर रहने लगे। स्कूल रिछाई में ही रहा। आने-जाने में परेशानी थी। भटक भी जाते थे कभी-कभी। इसीलिये पढ़ाई छूट गयी। कुछ भी पढ़ नहीं पाता बच्चा।
पढ़ाई छूटने के बाद एक साल मोबाईल की दुकान में काम किया अंकुश ने। मोबाईल पर गेम खेलने का शौक था। जो मोबाइल बनने आते उनके ऐसे ही बटन दबाते रहते। दूकान वाला दस रूपये रोज देता था घर आने-जाने के लिए। वह भी बचा लेते थे अंकुश।
एक साल बाद एक चने की दुकान में नौकरी की। छह साल की। चार महीने पहले छोड़ी नौकरी तब साढ़े चार हजार महीने के मिलते थे। जो पैसे मिलते थे वो घर में दे देते थे। बचत की ।
नौकरी छोड़ने का कारण यह कि पैर में दर्द रहने लगा। घुटने के साथ पेट भी दर्द करता है। कोई इलाज नहीं कराया पर कहते हैं-वात है। हमने पूछा कि इलाज क्यों नहीं कराया? इस पर बोले-'ऐसे ही नहीं कराया।लगा कि अपने आप ठीक हो जायेगा।'
ईंधन के लिए लकड़ी बटोर कर लौटती महिला |
अंकुश का छोटा भाई 9 साल का है। बहन 2 साल की। हमने उससे पूछा कि तुमको पढ़ाई करनी चाहिए थी। छोड़ क्यों दी? इस पर वह बोला-हमारा बाप तो पढ़ा लिखा है। लेकिन उसको मजदूर का ही काम मिला। मतलब कहने का कि क्या फायदा पढाई का।
पिता सुशील महोबिया के लिए नाराजगी का भाव भी। बार-बार बाप कहते हुए बात की पिता के बारे में।बोला-जब हमको पढाना चाहिए था तब बाप ने पढ़ाया नहीं। 150 रूपये रोज कमाता है। 90 की दारु पी जाता है। फिर घर का खर्च कैसे चलता है? पूछने पर बोला अंकुश-चल जाता है।ईंधन के लिए लकड़ी बटोर कर लौटती महिला
महोबिया किसलिए लिखते हैं ? क्या महोबे के रहने वाले हैं पिता? पूछने पर बोला-पता नहीं। पर यह पता है की नानी के पापा के पापा महोबे के रहने वाले थे।
घर में किसी से पटती नहीं अंकुश की सिवाय दादी के। इसलिए कि -'हमसे कोई कुछ कहता है तो हम फौरन पलट के जबाब दे देते हैं।किसी से दबते नहीं'। बताया अंकुश ने।
हाथ में एक चटकी स्क्रीन वाला छोटा स्मार्टफोन था बालक के। बताया कि यह उसके छोटे भाई का है। हमने पूछा-पटती नहीं किसी से तो भाई का मोबाईल लिए कैसे घूम रहे? इस पर बोला-'ऐसे ही दे दिया उसने। कुछ देर के लिए।'
आगे क्या करोगे पूछने पर बोला -'अब पढ़ेंगे। पिता रोज शाम को पढ़ाता है।अब ठीक से बात करते पापा। दारु कम कर दी है। हमने भी पहले जो मसाला खाते थे वह छोड़ दिया है। अब केवल सुपाड़ी खाते हैं। अगले साल आठवीं में एडमिशन लेंगे।'
डॉ शुक्ल का पता देकर हम चले आये। अंकुश बोला-'कल शाम को जाएंगे पापा के साथ। अगर वो राजी हुए। अभी तो मामा के घर जाएंगे।'
अंकुश से बात करने के दौरान कई महिलाएं सर पर लकड़ियाँ लादे हुए पुलिया के पास से गुजरीं। सुबह से दोपहर तक ईंधन के लिए लकड़ी बटोरकर वे घर लौट रहीं थी।
मैं 'पुलिया पर दुनिया' देखते हुए मेस चला आया।
#पुलिया
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