'काग के भाग कहा कहिये
हरि हाथ सो लै गयो माखन रोटी।'
अभी सुबह-सुबह घर के पिछवाड़े कौओं को फुदकते हुए देखा तो यह गीत याद आया।
हरि हाथ सो लै गयो माखन रोटी।'
अभी सुबह-सुबह घर के पिछवाड़े कौओं को फुदकते हुए देखा तो यह गीत याद आया।
लगता है जिस समय यह गीत लिखा गया होगा उस समय चुनाव का मौसम रहा होगा। हरि
चुनाव लड़ रहे होंगे।
कौवे वोटर रहे होंगे। हरि ने चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले ही प्रतिनिधि कौवों को बुलाकर अपने हाथ से माखन और रोटी दी होगी। इसका सीधा प्रसारण करते हुए हरि के प्रिय मुंहलगे चैनल ने कहा होगा- 'कौवे के भाग्य कितने अच्छे हैं जो स्वयं हरि के हाथ से मक्खन और रोटी पाई है उसने।'
हरि के समय माखन रोटी से शुरू हुई प्रथा आदमियों तक आते-आते स्कूटी, साइकिल, लैपटाप, मोबाइल और टेलीविजन तक पहुँच गयी है। बीच में चावल-दाल भी बंटे। लेकिन अब चलन मोबाइल और इलेक्ट्रानिक सामान का बढ़ा है। कारण यह कि चावल दाल किसान उगाता है। वह चन्दा नहीँ दे सकता। जबकि मोबाइल और टेलीविजन वाले चन्दा दे सकते हैं। जो सामान बेचने वाला ज्यादा चन्दा दे सकता है चुनाव में वही देने की घोषणा हो जाती है।
जनता के पैसे से जनता की सेवा करने वाले जनता को मुफ़्त में देने वाले सामान की घोषणा करते हैं। चुनाव में जीत जाने के बाद सब्सिडी घटाने की बात होती है। छोड़ने की अपील भी। मल्लब जो चुनाव जीतने पर देने की घोषणा हुई उसको ब्याज सहित वापस करने की बात। आपका पैसा आपकी ही जेब से लेकर आपको ही मंगता बनाने की बाजीगरी है आजके लोकतंत्र के चुनाव।
ये यह सब फालतू का बात सुबह-सुबह लेकर हम कहाँ बैठ गए। गुडमार्निंग हो गयी। उठिए आपको बढ़िया चाय पिलाते हैं।
कौवे वोटर रहे होंगे। हरि ने चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले ही प्रतिनिधि कौवों को बुलाकर अपने हाथ से माखन और रोटी दी होगी। इसका सीधा प्रसारण करते हुए हरि के प्रिय मुंहलगे चैनल ने कहा होगा- 'कौवे के भाग्य कितने अच्छे हैं जो स्वयं हरि के हाथ से मक्खन और रोटी पाई है उसने।'
हरि के समय माखन रोटी से शुरू हुई प्रथा आदमियों तक आते-आते स्कूटी, साइकिल, लैपटाप, मोबाइल और टेलीविजन तक पहुँच गयी है। बीच में चावल-दाल भी बंटे। लेकिन अब चलन मोबाइल और इलेक्ट्रानिक सामान का बढ़ा है। कारण यह कि चावल दाल किसान उगाता है। वह चन्दा नहीँ दे सकता। जबकि मोबाइल और टेलीविजन वाले चन्दा दे सकते हैं। जो सामान बेचने वाला ज्यादा चन्दा दे सकता है चुनाव में वही देने की घोषणा हो जाती है।
जनता के पैसे से जनता की सेवा करने वाले जनता को मुफ़्त में देने वाले सामान की घोषणा करते हैं। चुनाव में जीत जाने के बाद सब्सिडी घटाने की बात होती है। छोड़ने की अपील भी। मल्लब जो चुनाव जीतने पर देने की घोषणा हुई उसको ब्याज सहित वापस करने की बात। आपका पैसा आपकी ही जेब से लेकर आपको ही मंगता बनाने की बाजीगरी है आजके लोकतंत्र के चुनाव।
ये यह सब फालतू का बात सुबह-सुबह लेकर हम कहाँ बैठ गए। गुडमार्निंग हो गयी। उठिए आपको बढ़िया चाय पिलाते हैं।
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