कल ट्रेन में बैठ गए। ट्रेन चल दी। स्टेशन पर उद्घोषणा हो रही थी -'लखनऊ से चलकर जबलपुर जाने वाली गाड़ी.......' हम इतना ही सुने और फट से सोचे कहीं गलत गाड़ी में तो नहीं बैठ गए। बगल वाले से कन्फर्म किया तब चैन की सांस टाइप लिए।
हमारी प्रतिक्रिया आज के आपाधापी वाले समय की हमारी मन:स्थिति की परिचायक है। ट्रेन में बैठने के पहले हम पता कर लिए कि 'चित्रकूट एक्सप्रेस' ही है। कोच भी देखकर ही बैठे। लेकिन बाहर कोई घोषणा सुनकर सबसे पहले यही सोचे कि कहीं गलत गाड़ी में तो नहीँ बैठ गए। भयंकर आत्म-अविश्वास के समय से गुजर रहे हैं हम लोग।
टीटी आया। टिकट पूछकर चला गया। बगल के एक बच्चे को सीट के लिए दूसरे डब्बे में आने को बोला। बच्चे ने हमसे पूछा - 'मैं यहाँ नीचे चादर बिछाकर सो जाऊँ तो आपको कोई एतराज न हो तो।' हमने सोचा और कहा-'हमको क्या एतराज होगा। सो जाना।'
बात होने लगी बच्चे से तो पता चला विलासपुर से लखनऊ इम्तहान देने आया था। स्टॉफ सेलेक्शन बोर्ड का। इंजीनियरिंग किया है 2014 में घासीदास विश्वविद्यालय में। कुछ दिन नौकरी भी की पूना की एक फर्म में। 15000/- महीना मिलते थे। छोड़कर चला आया। अभी 11-12 वीं के बच्चों को गणित और फिजिक्स की कोचिंग पढ़ाते हैं। 8000/- प्रति बच्चा प्रति वर्ष की डर से। दूसरी कोचिंग का रेट 12000/- है। नई खोली तो कम रेट पर।
हमने पूछा-' इंजीनियरिंग करने के बाद स्टॉफ की नौकरी का इम्तहान देने गए थे। एमटेक करते। इंजीनियरिंग सर्विस का इम्तहान देते।' बोला-' एम करने के लिए इम्तहान दिए थे। गेट में 20000 से ऊपर रैंक आया। इंजीनियरिंग सर्विस के लिए कोचिंग करेंगे तब देंगे इम्तहान।
कोचिंग लगता है अपने देश में स्कूल/कालेज से ज्यादा जरूरी हो गया है। लगता है स्कूल में कुछ पढ़ाया ही नहीं जा रहा। बड़ी बात नहीं कि कल को कोई कहे सब स्कूल बन्द कर दो। सिर्फ कोचिंग से काम चलाओ।
वैसे एक तरह से यह हो भी रहा है। 'फिटजी' जैसे कोचिंग संस्थान अब स्कूलों में पढ़ाने लगे हैं। कम्पटीशन के विषय पढ़ाते हैं वे। स्कूल की फ़ीस से अलग उसके लिए फ़ीस लेते हैं। स्कूल भी उन बच्चों को सौंप देते है कोचिंग के हाथों- 'लो तुम भी कमाओ इनसे। हम अपनी फ़ीस तो वसूल चुके इनसे।'
बालक जिस विश्वविद्यालय ( घासीदास विश्वविद्यालय) में पढ़ा वहां याद आया कि बीएचयू के हमारे गुरु जी जे पी द्विवेदी के गुरु जी पी सी उपाध्याय रिटायरमेंट के बाद गए थे। बीएचयू में बहुत अच्छे अध्यापकों में उनका नाम था। हमारा एम टेक का काम उन्होंने ही कराया था। स्प्रिंगबैक एक्शन और फाइनाइट एलिमेंट मेथड।
बालक से पूछा तो उसने बताया–'वो एम टेक के बच्चों को पढ़ाते थे। सुना है सख्त बहुत थे। अब चले गए। उनका टर्म पूरा हो गया।'
बच्चे से और बात हुई तो पता चला कि मुजफ्फरपुर, बिहार का रहने वाला है। पिता जब वह एक साल का था तब नहीं रहे। उनकी जगह बहन को नौकरी मिली। माँ को पेंशन। आर्थक संघर्ष तो नहीं झेलने पड़े पर पिता की कमी तो महसूस होती ही रही।
इंटर के बाद बच्चे ने आकाश कोचिंग की। AIEEE के स्कोर के आधार पर यहां सरकारी कालेज में एडमिशन लिया। पढ़ने के दौरान भी 11-12 वीं के बच्चों को कोचिंग पढ़ाते रहे। 10000/- महीना कमाते थे। इससे अभ्यास भी बना रहा 11-12 के बच्चों को पढ़ाने का। उसी अभ्यास के चलते आज कोचिंग पढ़ा रहे हैं 11-12 के बच्चों को।
हम खाना खाने बैठे। उसको पूछा तो उसने कहा कि उसने स्टेशन पर खा लिया था। खाने के बाद टिफिन में मिठाई दिखी। खुद खाई, उसको भी दी। उसने ले ली। खाने लगा। हमने कहा-' इतना इश्तहार पढ़ते हो जगह, जगह कि अनजान लोगों का दिया न खाएं फिर भी तुम हमारी दी हुई मिठाई खाने लगे।' पहले तो वह थोड़ा सहमा पर जब हमने कहा ऐसे ही मजे ले रहे तो सहज होकर बोला-' बातचीत से अंदाज तो हो जाता है कि कौन कैसा है।' हमने फिर एक और पीस था मिठाई का वो आधा खुद खाया, आधा उसको खिलाया।
बिहार चुनाव के बारे में बात हुई तो बताया -'नितीश कुमार काम बहुत किया था। पर ढाई साल ने फिर पीछे चला गया बिहार। पहले दौर में तो लगता था आगे रहेगा नितीश कुमार। रिजर्वेशन वाला बयान से लगता है नुकसान हुआ होगा बीजेपी को। देखिये क्या होता है आगे। पर जो भी जिताएगा वो क्लीन स्वीप होगा।'
सुबह जब आँख खुली तो बच्चा उतर गया था। कटनी उतरना था उसको। वहां से विलासपुर जाना था।
हम भी आगे जबलपुर उतरे। गाडी समय पर ही थी।
कमरे पर आकर चाय पीते हुए पोस्ट लिख रहे। बाहर धूप निकली है। सूरज भाई का जलवा शानदार पसरा है। दूर सड़क पर गाड़ियां फर्राटे से आ–जा रहीं हैं। टिक-टिक करती घड़ी बता रही है दफ्तर भी जाना है बाबू।
हम जाते तैयार होने। आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो।
हमारे कमरे का दरवाजा, बरामदा, बगीचा और सड़क उस जगह से ऐसे दिखे जहां बैठकर हम पोस्ट लिख रहे।
हमारी प्रतिक्रिया आज के आपाधापी वाले समय की हमारी मन:स्थिति की परिचायक है। ट्रेन में बैठने के पहले हम पता कर लिए कि 'चित्रकूट एक्सप्रेस' ही है। कोच भी देखकर ही बैठे। लेकिन बाहर कोई घोषणा सुनकर सबसे पहले यही सोचे कि कहीं गलत गाड़ी में तो नहीँ बैठ गए। भयंकर आत्म-अविश्वास के समय से गुजर रहे हैं हम लोग।
टीटी आया। टिकट पूछकर चला गया। बगल के एक बच्चे को सीट के लिए दूसरे डब्बे में आने को बोला। बच्चे ने हमसे पूछा - 'मैं यहाँ नीचे चादर बिछाकर सो जाऊँ तो आपको कोई एतराज न हो तो।' हमने सोचा और कहा-'हमको क्या एतराज होगा। सो जाना।'
बात होने लगी बच्चे से तो पता चला विलासपुर से लखनऊ इम्तहान देने आया था। स्टॉफ सेलेक्शन बोर्ड का। इंजीनियरिंग किया है 2014 में घासीदास विश्वविद्यालय में। कुछ दिन नौकरी भी की पूना की एक फर्म में। 15000/- महीना मिलते थे। छोड़कर चला आया। अभी 11-12 वीं के बच्चों को गणित और फिजिक्स की कोचिंग पढ़ाते हैं। 8000/- प्रति बच्चा प्रति वर्ष की डर से। दूसरी कोचिंग का रेट 12000/- है। नई खोली तो कम रेट पर।
हमने पूछा-' इंजीनियरिंग करने के बाद स्टॉफ की नौकरी का इम्तहान देने गए थे। एमटेक करते। इंजीनियरिंग सर्विस का इम्तहान देते।' बोला-' एम करने के लिए इम्तहान दिए थे। गेट में 20000 से ऊपर रैंक आया। इंजीनियरिंग सर्विस के लिए कोचिंग करेंगे तब देंगे इम्तहान।
कोचिंग लगता है अपने देश में स्कूल/कालेज से ज्यादा जरूरी हो गया है। लगता है स्कूल में कुछ पढ़ाया ही नहीं जा रहा। बड़ी बात नहीं कि कल को कोई कहे सब स्कूल बन्द कर दो। सिर्फ कोचिंग से काम चलाओ।
वैसे एक तरह से यह हो भी रहा है। 'फिटजी' जैसे कोचिंग संस्थान अब स्कूलों में पढ़ाने लगे हैं। कम्पटीशन के विषय पढ़ाते हैं वे। स्कूल की फ़ीस से अलग उसके लिए फ़ीस लेते हैं। स्कूल भी उन बच्चों को सौंप देते है कोचिंग के हाथों- 'लो तुम भी कमाओ इनसे। हम अपनी फ़ीस तो वसूल चुके इनसे।'
बालक जिस विश्वविद्यालय ( घासीदास विश्वविद्यालय) में पढ़ा वहां याद आया कि बीएचयू के हमारे गुरु जी जे पी द्विवेदी के गुरु जी पी सी उपाध्याय रिटायरमेंट के बाद गए थे। बीएचयू में बहुत अच्छे अध्यापकों में उनका नाम था। हमारा एम टेक का काम उन्होंने ही कराया था। स्प्रिंगबैक एक्शन और फाइनाइट एलिमेंट मेथड।
बालक से पूछा तो उसने बताया–'वो एम टेक के बच्चों को पढ़ाते थे। सुना है सख्त बहुत थे। अब चले गए। उनका टर्म पूरा हो गया।'
बच्चे से और बात हुई तो पता चला कि मुजफ्फरपुर, बिहार का रहने वाला है। पिता जब वह एक साल का था तब नहीं रहे। उनकी जगह बहन को नौकरी मिली। माँ को पेंशन। आर्थक संघर्ष तो नहीं झेलने पड़े पर पिता की कमी तो महसूस होती ही रही।
इंटर के बाद बच्चे ने आकाश कोचिंग की। AIEEE के स्कोर के आधार पर यहां सरकारी कालेज में एडमिशन लिया। पढ़ने के दौरान भी 11-12 वीं के बच्चों को कोचिंग पढ़ाते रहे। 10000/- महीना कमाते थे। इससे अभ्यास भी बना रहा 11-12 के बच्चों को पढ़ाने का। उसी अभ्यास के चलते आज कोचिंग पढ़ा रहे हैं 11-12 के बच्चों को।
हम खाना खाने बैठे। उसको पूछा तो उसने कहा कि उसने स्टेशन पर खा लिया था। खाने के बाद टिफिन में मिठाई दिखी। खुद खाई, उसको भी दी। उसने ले ली। खाने लगा। हमने कहा-' इतना इश्तहार पढ़ते हो जगह, जगह कि अनजान लोगों का दिया न खाएं फिर भी तुम हमारी दी हुई मिठाई खाने लगे।' पहले तो वह थोड़ा सहमा पर जब हमने कहा ऐसे ही मजे ले रहे तो सहज होकर बोला-' बातचीत से अंदाज तो हो जाता है कि कौन कैसा है।' हमने फिर एक और पीस था मिठाई का वो आधा खुद खाया, आधा उसको खिलाया।
बिहार चुनाव के बारे में बात हुई तो बताया -'नितीश कुमार काम बहुत किया था। पर ढाई साल ने फिर पीछे चला गया बिहार। पहले दौर में तो लगता था आगे रहेगा नितीश कुमार। रिजर्वेशन वाला बयान से लगता है नुकसान हुआ होगा बीजेपी को। देखिये क्या होता है आगे। पर जो भी जिताएगा वो क्लीन स्वीप होगा।'
सुबह जब आँख खुली तो बच्चा उतर गया था। कटनी उतरना था उसको। वहां से विलासपुर जाना था।
हम भी आगे जबलपुर उतरे। गाडी समय पर ही थी।
कमरे पर आकर चाय पीते हुए पोस्ट लिख रहे। बाहर धूप निकली है। सूरज भाई का जलवा शानदार पसरा है। दूर सड़क पर गाड़ियां फर्राटे से आ–जा रहीं हैं। टिक-टिक करती घड़ी बता रही है दफ्तर भी जाना है बाबू।
हम जाते तैयार होने। आपका दिन शुभ हो। मंगलमय हो।
हमारे कमरे का दरवाजा, बरामदा, बगीचा और सड़क उस जगह से ऐसे दिखे जहां बैठकर हम पोस्ट लिख रहे।
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