इलाहाबाद आये आज। पहुंचते ही सोचा संगम चला जाये देखने। सिविल चौराहे पर
रिक्शे लिए मिले संजय। पूछा तो बोले-100 रूपये किराया होई। हम बोले-चलो।
रिक्शा चला और संजय की कहानी भी। रात को रिक्शा लेकर निकले थे। कमाई सुबह तक कुल 60 रुपया। रिक्शे का किराया है 40 रुपया। मतलब कुल कमाई 20 रुपया। उसमें भी बोले-'भूख लगी रहे तौ दुइ दर्जन केला लिया। 30 रूपया के।खूब खायन। पेट ऐंठ गवा। फिर एक गैया बुलायेन। बाकी बचे छह केला वहिका खवा दीन।"
आठवीं पास संजय के एक लड़का (बड़ा)और दो लडकिया हैं। तीसरा बच्चा लड़की के बाद आपरेशन करा दिया पत्नी का। इसके पहले इसलिए नहीं कराया था कि उनकी इच्छा थी कि एक लरिका और हो जाए ताकि कुल दो लड़के हो जाएँ। नहीं हुआ तो आपरेशन करा दिया पत्नी का।
शादी का किस्सा रोचक बताया संजय ने। बड़े भाई की शादी तय हुई थी। लेकिन बारात के पहले भैया -"हम लड़की द्याखब। बिना देखे शादी न करब।देखि के करि दिहिन लड़की भैया। बोले-लड़की करिया है हम शादी न करब।"
जब फेल कर दिया बड़े भाई ने लड़की को और शादी से मना कर दिया तो लड़की के पिता लड़के माँ के पास आये और बोले-' हमारे घर तौ सब रिश्तेदार आ गए हैं। अब शादी मना कर दिहिस लड़का तौ एक लरिका तौ देंय का परी हमरी बिटिया ते बियाह के खातिर।'
अम्मा बोलीं-' ठीक बात। हमहूँ तौ देखि लेई कि हमार पतोहू कैसि उजरि साँवरि है। हम लरिका देब तुमका। फिर अपनी माँ के कहने पर संजय ने शादी की। बड़े भाई की शादी फिर छह साल बाद हुई।
इस बात को तुम्हारी पत्नी कभी कहती होंगीं कि तुम्हारे भाई ने उनको रिजेक्ट कर दिया। इस पर बोले संजय-"मन माँ भले होय मुला कहिन नहीं आज तक।"
भाभी के बारे में बोले-"रंग भले उनका साफ होय मुला देखें माँ हमार दुल्हिन ज्यादा खूबसूरत है।"
सास-बहू सम्बन्ध पर बोले-"खटर-पटर भले होय दूनो जनन माँ मुला कौन अपशब्द नाय कहि सकत केहू का।"
रिक्शा चलाने के अलावा संजय ग्लास फैक्ट्री में भी काम करते हैं। आंध्र प्रदेश के ओंगल में जाते हैं। पहले इलाहाबाद की त्रिवेनी ग्लास फैक्ट्री में काम करते थे। वह अब बन्द हो गयी। वहां कभी चोट लगती है तो ठेकेदार इलाज नहीं करवाता। फिर ऐसे में चले आते हैं इलाहाबाद। 9000/- बंधी तनख्वाह मिलती है।वो अच्छा काम है।
लड़का पढ़ने में मन नहीं लगाता। लौंडहई में पढ़ाई छोड़ दी। ट्रैक्टर चलाने लगा। पान मसाला खाने लगा। हाथ से बेहाथ हो गया। विकास नाम बताया लड़के का।
हमारा कहने का मन हुआ-"सब नाम का चक्कर है। जित्ते भी विकास नाम के हैं सब हाथ से निकल रहे हैं आजकल।"
बेटे का एक किस्सा बताते हुए बताया -" एक दिन लड़का ट्रैक्टर चला रहा था। सामने मोटरसाईकल आ गयी। उसको बचाने के चक्कर में ब्रेक मार दिया। पलट गया। नीचे गिरा ट्रैक्टर सहित।" इसके बाद बोले-" उ हमका फोन किहिस। घर माँ नाय बताइस।हम सुना तौ जिउ धकक् ते हुईगा। हम रिसिया गयेन। आंसू आयगे। हम बोले -बेटा घरै जाव।हम फौरन आयति हन। " वो घर गवा। तीन दिन बाद हम पहुंचेन तौ द्याखा इलाज जौन वो करवाइस रहे वहिते कौनौ फायदा नाय भवा। लै गयेन दूसर डाक्टर के पास। 35000 लाग के इलाज मा तब ठीक भवा।"
बाद में अपने साथ ले गए संजय अपने बेटे को। वहां मसाला मिलता नहीं था। आदत छूट गयी।
संजय बोले-"अपनी बेटियों को भी बहुत प्यार करते हैं। छोटी वाली को रोज एक रुपया देते हैं। वो गुल्लक में जमा करती है। जो चीज खुद खाते हैं। घर वालों के लिए भी ले जाते हैं। "
माँ-बाप का बहुत आदर करते हैं संजय। बोले-"उनके ही नाम ते चारि आदमी दुआरे आवत हैं। आजौ जौ उई हमका मारि देंय तौ हम चुप्पे मार खा लेब। पलट के जबाब नाय देब।"
संजय के पिता ट्रक चलाते थे। लेकिन लड़कों से बोले ट्रक मत चलाना। बहुत कठिन काम है। जब संजय की शादी हुई तब वे बारात के अगले दिन पहुंचे। बोले -'शादी तुम लोग तय करो।खर्च हम करब जो होई।'
लौटने तक एक घण्टे हमारा इंतजार करते रहे संजय। एक जगह रेड लाइट पर रुके। कोई सिपाही नहीं था। बगल का रिक्शा वाला बोला- 'निकल जाव कौन देखि रहा है।' इस पर संजय बोले-'देखि तौ कौनो नाई रहा। मुला कहे के खातिर क़ानून तोरा जाए।'
होटल पर विदा होते समय हमने किसी बात पर कहा-अरे तुम्हारी उम्र 32 साल है। अभी तो सौ साल की उमर तक पहुंचना है। बोले-'अरे बाबू जी आजकल आदमी 35-40 माँ लुढ़क जात है। 100 साल तौ बहुत बड़ी बात।'
हमने कहा अरे ऐसा न कहो। खूब जीना है अभी तुमको।
इसके बाद चले गए संजय । रिक्शे पर पैडल मारते हुए। हम चले आये होटल।
रिक्शा चला और संजय की कहानी भी। रात को रिक्शा लेकर निकले थे। कमाई सुबह तक कुल 60 रुपया। रिक्शे का किराया है 40 रुपया। मतलब कुल कमाई 20 रुपया। उसमें भी बोले-'भूख लगी रहे तौ दुइ दर्जन केला लिया। 30 रूपया के।खूब खायन। पेट ऐंठ गवा। फिर एक गैया बुलायेन। बाकी बचे छह केला वहिका खवा दीन।"
आठवीं पास संजय के एक लड़का (बड़ा)और दो लडकिया हैं। तीसरा बच्चा लड़की के बाद आपरेशन करा दिया पत्नी का। इसके पहले इसलिए नहीं कराया था कि उनकी इच्छा थी कि एक लरिका और हो जाए ताकि कुल दो लड़के हो जाएँ। नहीं हुआ तो आपरेशन करा दिया पत्नी का।
शादी का किस्सा रोचक बताया संजय ने। बड़े भाई की शादी तय हुई थी। लेकिन बारात के पहले भैया -"हम लड़की द्याखब। बिना देखे शादी न करब।देखि के करि दिहिन लड़की भैया। बोले-लड़की करिया है हम शादी न करब।"
जब फेल कर दिया बड़े भाई ने लड़की को और शादी से मना कर दिया तो लड़की के पिता लड़के माँ के पास आये और बोले-' हमारे घर तौ सब रिश्तेदार आ गए हैं। अब शादी मना कर दिहिस लड़का तौ एक लरिका तौ देंय का परी हमरी बिटिया ते बियाह के खातिर।'
अम्मा बोलीं-' ठीक बात। हमहूँ तौ देखि लेई कि हमार पतोहू कैसि उजरि साँवरि है। हम लरिका देब तुमका। फिर अपनी माँ के कहने पर संजय ने शादी की। बड़े भाई की शादी फिर छह साल बाद हुई।
इस बात को तुम्हारी पत्नी कभी कहती होंगीं कि तुम्हारे भाई ने उनको रिजेक्ट कर दिया। इस पर बोले संजय-"मन माँ भले होय मुला कहिन नहीं आज तक।"
भाभी के बारे में बोले-"रंग भले उनका साफ होय मुला देखें माँ हमार दुल्हिन ज्यादा खूबसूरत है।"
सास-बहू सम्बन्ध पर बोले-"खटर-पटर भले होय दूनो जनन माँ मुला कौन अपशब्द नाय कहि सकत केहू का।"
रिक्शा चलाने के अलावा संजय ग्लास फैक्ट्री में भी काम करते हैं। आंध्र प्रदेश के ओंगल में जाते हैं। पहले इलाहाबाद की त्रिवेनी ग्लास फैक्ट्री में काम करते थे। वह अब बन्द हो गयी। वहां कभी चोट लगती है तो ठेकेदार इलाज नहीं करवाता। फिर ऐसे में चले आते हैं इलाहाबाद। 9000/- बंधी तनख्वाह मिलती है।वो अच्छा काम है।
लड़का पढ़ने में मन नहीं लगाता। लौंडहई में पढ़ाई छोड़ दी। ट्रैक्टर चलाने लगा। पान मसाला खाने लगा। हाथ से बेहाथ हो गया। विकास नाम बताया लड़के का।
हमारा कहने का मन हुआ-"सब नाम का चक्कर है। जित्ते भी विकास नाम के हैं सब हाथ से निकल रहे हैं आजकल।"
बेटे का एक किस्सा बताते हुए बताया -" एक दिन लड़का ट्रैक्टर चला रहा था। सामने मोटरसाईकल आ गयी। उसको बचाने के चक्कर में ब्रेक मार दिया। पलट गया। नीचे गिरा ट्रैक्टर सहित।" इसके बाद बोले-" उ हमका फोन किहिस। घर माँ नाय बताइस।हम सुना तौ जिउ धकक् ते हुईगा। हम रिसिया गयेन। आंसू आयगे। हम बोले -बेटा घरै जाव।हम फौरन आयति हन। " वो घर गवा। तीन दिन बाद हम पहुंचेन तौ द्याखा इलाज जौन वो करवाइस रहे वहिते कौनौ फायदा नाय भवा। लै गयेन दूसर डाक्टर के पास। 35000 लाग के इलाज मा तब ठीक भवा।"
बाद में अपने साथ ले गए संजय अपने बेटे को। वहां मसाला मिलता नहीं था। आदत छूट गयी।
संजय बोले-"अपनी बेटियों को भी बहुत प्यार करते हैं। छोटी वाली को रोज एक रुपया देते हैं। वो गुल्लक में जमा करती है। जो चीज खुद खाते हैं। घर वालों के लिए भी ले जाते हैं। "
माँ-बाप का बहुत आदर करते हैं संजय। बोले-"उनके ही नाम ते चारि आदमी दुआरे आवत हैं। आजौ जौ उई हमका मारि देंय तौ हम चुप्पे मार खा लेब। पलट के जबाब नाय देब।"
संजय के पिता ट्रक चलाते थे। लेकिन लड़कों से बोले ट्रक मत चलाना। बहुत कठिन काम है। जब संजय की शादी हुई तब वे बारात के अगले दिन पहुंचे। बोले -'शादी तुम लोग तय करो।खर्च हम करब जो होई।'
लौटने तक एक घण्टे हमारा इंतजार करते रहे संजय। एक जगह रेड लाइट पर रुके। कोई सिपाही नहीं था। बगल का रिक्शा वाला बोला- 'निकल जाव कौन देखि रहा है।' इस पर संजय बोले-'देखि तौ कौनो नाई रहा। मुला कहे के खातिर क़ानून तोरा जाए।'
होटल पर विदा होते समय हमने किसी बात पर कहा-अरे तुम्हारी उम्र 32 साल है। अभी तो सौ साल की उमर तक पहुंचना है। बोले-'अरे बाबू जी आजकल आदमी 35-40 माँ लुढ़क जात है। 100 साल तौ बहुत बड़ी बात।'
हमने कहा अरे ऐसा न कहो। खूब जीना है अभी तुमको।
इसके बाद चले गए संजय । रिक्शे पर पैडल मारते हुए। हम चले आये होटल।
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