Thursday, October 15, 2015

क्या करें आदत पड़ गयी है


'अंशिका अपने पापा की मम्मी की मम्मी (परनानी) के साथ।'आज सुबह जरा जल्दी ही निकल लिए। गाड़ी कंचनपुर की तरफ मुड़ी आज। पटेल अपनी चाय की दुकान पर लकड़ियाँ चीर रहे थे। आगे दो महिलाएं बहुत आहिस्ते आहिस्ते टहल रहीं थीं। मृदु मन्द-मन्द मन्थर मन्थर टाइप।

रामफल यादव की पत्नी घर के बाहर कुर्सी डाले बैठी थी। तबियत बोली ठीक है। चार बजे उठ जाती हैं। बैठी रहती हैं। समय और वो दोनों एक दूसरे को काटते हैं। बता रहीं थीं कि उनका बेटा गुड्डू फल लाया है बेचने के लिए कल।

आगे पूजा पंडाल में देवी का वाहन अकेले बैठा था। रात को खूब भीड़ रही होगी। सुबह सन्नाटा।

आज भी अंशिका अपनी परनानी के साथ दिखी।बुजुर्गा ने बताया कि उनकी बिटिया के बेटे की बिटिया है अंशिका। हमने दुबारा कन्फर्म किया यह बात। बोली जल्दी शादी हो गयी सबकी इसलिए ऐसा। खुद की उम्र बताई पचासेक करीब। गड्ड-मड्ड हिसाब। मायका है मैहर में। लड़का जो था खत्म हो गया। बहू है उसके तीन बच्चे हैं। हमने पूछा -लड़का खत्म हुआ जल्दी तो बहू की शादी कर देती। बोली- 'उसकी बेटियां हैं। एक इत्ती बड़ी। दूसरी इत्ती बड़ी।'

अंशिका से नमस्ते करवाया। फिर बोली -'चलो जल्दी खाना बनाना है।'


चौराहे पर चाय की दुकान पर दो पुलिस वाले रात की ड्यूटी करके वापस लौटते हुए चाय पी रहे थे। शुक्लजी थे उनमें एक। सीहोरा के रहने वाले। पूर्वज मगहर से आये थे। रात ड्यूटी लगी थी नाके पर। नो इंट्री पर। शहर में देवी जागरण आदि के चलते बड़ी गाड़ियां 2 बजे तक छोड़ी जाती हैं। वैसे 12 के बाद छोड़ देते हैं।

शुकुल जी ने चाय के बाद मसाला मुखस्थ किया। मुंह के जबड़े वाले हिस्से पर लगता है उनका नियंत्रण कम हो गया है। अपने आप हिलने लगता है। ज्यादा हिलने पर मेहनत करके जबड़े पर नियंत्रण कर ले रहे थे।कुछ ऐसे ही जैसे विभिन्न पार्टियों के छुटभैये अपनी मर्जी से बयान जारी करते रहते हैं। हल्ला मचने पर बड़ा नेता उसका खण्डन करता है।

पान मसाला के लिए टोंका तो बोले -अब आदत पड़ गयी है। कल को कोई अपने समाज से पूछे अगर कि तुम्हारे यहां भ्रष्टाचार, हरामखोरी और चिरकुटई क्यों है तो क्या पता अपना समाज दांत चियारते हुए कह दे -क्या करें आदत पड़ गयी है।

चौराहे पर एक आदमी सर झुकाये अख़बार पढ़ रहा था। दूसरी तरफ एक आदमी टेलीफोन जंक्शन बॉक्स के आसन पर बैठा चाय पीते हुए दो बालकों को कुछ सिखा रहा था।

चाय वाले को चाय के लिए 10 रूपये दिए तो उसने 5 रूपये लौटाए नहीं। जमा कर लिए। फुटकर नहीं थे उसके पास।
 

आगे सड़क पर जोशी जी मिले। हमारे यहां से ही रिटायर्ड अधिकारी। आधारताल में रहते हैं। कृषि विश्वविद्यालय टहलने आते हैं। हमको साईकिल पर देखकर ताज्जुब किया। हमने उनके ताज्जुब को खत्म करने के बाद उनको भी साइकिल खरीदने का सुझाव दे दिया। घुटने के लिहाज से फायदेमंद बताया। बड़ी बात नहीं कुछ दिन में जोशी जी साईकिल सवारी करते मिलें।

जोशी जी बात करते हुए देखता एक बुजुर्ग हाथ में डंडा पकड़े बहुत आहिस्ते से चलते हुए आ रहे थे। बायां पैर आगे करते। धरते। फिर वह शायद दांये पैर से कहता होगा -आ जा भाई आ। जब दांया पैर आगे आ जाता तो बांया पैर उसको छोड़कर आगे बढ़ता और फिर कहता होगा -आ जा भाई आ।

बुजुर्ग अचानक रुक गए। सड़क किनारे धोती टटोलते हुए खड़े हो गए। छोटी वाली शंका का समाधान किया।

फिर आगे बढ़े। उनके चेहरे पर शंका समाधान के बाद का आनन्द भी जुड़ गया था। उन बुजुर्गवार को देखकर मुझे कथाकार हृदयेश जी के उपन्यास 'चार दरवेश' की याद आई जिसमें चार बुजुर्गों की कहानी है। उनमें से एक बुजुर्ग की शिकायत थी कि उनको पेशाब करने में दिक्कत होती थी।

एक जगह लिखा था -'यह आम रास्ता नहीं हैं।' लोग धड़ल्ले से उस रास्ते पर आ जा रहे थे।

सूरज भाई एकदम लाल गोले सरीखे दिख रहे थे। जैसे किसी ने कम्पास से गोला खींचा हो आसमान के माथे पर और फिर उसमें लाल रंग भर दिया हो। आसमान में माथे पर टिकुली से सजे हुए थे सूरज भाई। चिड़ियाँ ऊपर उड़ती हुई उनको ऊपर से देखते हुए चहचहा रहीं थीं।

कृषि विश्वविद्यालय के आगे दोनों तरफ खेत थे। खेतों पर खड़ी फसलें कोहरे की चादर ओढ़े सो रहीं थी। सूरज की किरणें चादर घसीटकर फसलों को जगाने की कोशिश सी कर रहीं थीं। खेत की फसलें फिर से कोहरे की चादर लपेट ले रहीं थीं।

फसल वही होती है लेकिन कोहरा रोज नया आता होगा। किसी बाली को कोहरे के किसी टुकड़े से लगाव हो जाता होगा। उससे बिछुड़ने पर वह दिन भर गुमसुम रहती होगी। कोई कहता होगा उसको पाला मार गया। लेकिन क्या पता वह कोहरे के टुकड़े के वियोग में उदास हुई हो। क्या पता बालियां कोहरे के विदा होने पर गाती हों:
अभी न जाओ छोड़ कर
कि दिल अभी भरा नहीं।
होने को तो यह भी हो सकता है कि कोहरे के टुकड़े फसल से विदा होते हुए गाना गाते हुए फूटते हों:
हमें तो लूट लिया मिलके हुस्न वालों
गोरे-गोरे गालों ने,काले-काले बालों ने।
आगे रास्ते पर एक मन्दिर ( अवैध ही होगा ) सड़क पर नया बना था। एक दूध वाला वहां रूककर मन्दिर की मूरत को वाई-फाई प्रणाम कर रहा था। पूजारी उसके और उसकी मोटर साइकिल के टीका लगा था। दूध वाला उसको कुछ दक्षिणा दे रहा था। एक अवैध निर्माण का बजरिये धार्मिक श्रद्धा वैधानिकरण हो रहा था। आगे एक मजार भी बनी थी। उसका भी ऐसा ही हुआ होगा।

एक आदमी सड़क किनारे खड़े हुए सूरज की तरफ देखते हुए कसरत कर था । वह अपने हाथ इतनी तेजी से हिला रहा था मानो अपने कन्धे से हाथ उखाड़कर सूरज की तरफ फेंकते हुए कहने ही वाला है-कैच इट।

लौटते में बच्चे स्कूल जाते हुए मिले। दो बच्चे कल के मैच के बारे में बात कर रहे। मेस के पास दो बच्चियां साइकिल पर जा रहीं थी। उनके बीच में एक लड़का मोटर सायकिल पर उनसे बात करता हुआ जा रहा था। बच्ची उससे कह रही थी--'अच्छा वो तो मेरे चाचू हैं। उन्होंने मुझे कुछ बताया नहीं इस बारे में।'

अब बताओ भला चाचू अपनी भतीजियों को इस बारे में बताने लगे तब तो हो गया। बच्ची और बच्चे आगे चले गए। हम मेस की तरफ मुड़ गए। कमरे पर आये। अपनी एक कविता अपनी आवाज में पोस्ट की जिसे मैंने कल रिकार्ड किया था। फिर पोस्ट लिखने बैठे।

अब आप मजे कीजिये। अच्छे से रहिये। कितना भी व्यस्त रहें मौका निकाल कर मुस्कराइए जरूर। थोड़ा मेरे हिस्से का भी मुस्करा लीजियेगा। ठीक न! चलिए दिन आपका चकाचक बीते। मस्त । बिंदास|


No comments:

Post a Comment