Tuesday, October 27, 2015

धूल का कोई आशियाना नहीं होता

आज बहुत दिन बाद साईकल छुई। गद्दी पर हाथ फटकारा तो धूल झटका खाकर नीचे गिर गई। बाकी की धूल को कपडे से झाड़कर पोंछा गया। साईकल की धूल झाड़ने वाले कपड़े से चपक गयी। धूल बेचारी भी क्या करे। उसका अपना कोई आशियाना तो होता नहीं। जो भी उसके पास आता है उससे चिपक जाती है।

सड़क पर एक आदमी धीरे-धीरे चला जा रहा था। पायजामा और कमीज ऐसे पहने हुए था वह कि अगर सर पर अंगौछा न बांधे होता तो लगता कि बेलनाकार कपड़े पहने कोई आदमी सड़क पर चला जा रहा है।

हनुमान मंदिर के पास एक आदमी लोहे की जाली के अंदर हाथ डाल कर कुछ बीनने की कोशिश कर रहा था। पता किया तो जाली के अंदर के आंवले के पेड़ से गिरे आवंले बटोर रहा था। एक आंवला उसके हाथ में था। मैंने दूर पड़ा एक आंवला उसको दिखाया। वह बोला-' वो तो हम भी देख चुके हैं। लेकिन वो दूर है। हाथ वहां तक नहीँ पहुंचता।' हम लकड़ी की सहायता से आंवला बटोरने की राय उछलकर आगे निकल लिए।

राय से याद आया हमारे E Swami ने अपने एक लेख में कुछ यों लिखा था-" जन्नतनशीं दादाजी कहते थे - "दुनिया में दो किस्म के लोग होते हैं - रायचंद और करमचंद - करमचंद बनना और करमचंदो से मित्रता रखना! " (http://eswami.blogspot.in/2005/03/blog-post.html ) रायचन्द माने सिर्फ राय देने वाले, करमचन्द माने कर्मवीर। दुनिया में बहुतायत राय देने वालों की है पर जलवा करमचंदों का ही होता है।

हनुमान मन्दिर में घण्टा बज रहा था। आरती हो रही थी। आज मंगलवार होने के चलते भिखारियों की संख्या आम दिनों से बढ़ी हुई थी।जो लोग आ गए थे वे मन्दिर की तरफ सर झुकाये हुए हनुमान जी की तरफ हाथ जोड़े बैठे थे। बाद में देखा वे सभी जुड़े हाथ महिलाओं के थे। एक पुरुष भिखारी सड़क की तरफ मुंह किये आते-जाते लोगों को देख रहा था। कुछ और मांगने वाले लपकते हुए आते दिखे। उनको देखकर लगा जैसे ड्यूटी जाने में देर होने पर कोई कर्मचारी गेट बन्द होने के पहले लपककर फैक्ट्री के अंदर हो जाना चाहता है।


एक महिला सर पर करवाचौथ की पूजा के लिए करवा और सींके सर पर लादे हुए कंचनपुर की तरफ जाते हुए दिखी। आगे वह पुलिया पर बैठकर आराम करेगी। फिर कंचनपुर जायेगी।

गेट नंबर एक के सामने की दो चाय की दुकानों में से एक खुली नहीं थी। वही ज्यादा चलती थी। पूछने पर एक ने बताया कि उसके कारीगर भाग गए हैं क्योंकि वह पैसा कम देता है। फिर दूसरी दूकान वाले बच्चे से पूछा तो उसने बताया कि कारीगर कुछ दिन के लिए छुट्टी पर गए है। एक ही घटना पर दो बयान। किसको सही माना जाए।

चाय की दूकान वाला बच्चा हमको देखकर चाय बनाने लगा। इस बीच Devanshu ने अमेरिका से फेसबुक पर नमस्ते की और बताया कि वो शाम की चाय पी रहे हैं। हमने वहीँ से खड़े-खड़े होटल सोनम का फोटो पठा दिया यह बताने के लिए कि हम भी सुबह की चाय पीने के लिए दूकान पर खड़े हैं। अमेरिका में कद्दूकेंद्रित त्यौहार हैलोवीन की तैयारी चल रही है। उसके बारे में बताया देवांशु ने कि कैसे मनाने की सोच रहे हैं वो हैलोवीन।

हमको दुकान का फोटो लेते देख चाय की दूकान पर काम करता बच्चा बोला-'हमको भी व्हाट्सऐप पर भेजना।' फिर उसने बताया कि सुबह 4 बजे आ जाता है दूकान। अपनी टिफिन सर्विस के बारे में बताया कि कोयलारी( शराब के ठेके पर काम करने वालों) वाले 22 लोगों का ठेका मिला है टिफिन सर्विस का। जिसको शराब का ठेका मिला है उसने बुलाये हैं बाहर से काम करने वाले। घर से बाहर आये वे लोग खाने के लिए टिफिन सेवा पर ही निर्भर हैं।

चाय बनने के समय का उपयोग करने के लिए एक पेड़ के नीचे इकट्ठा बुजुर्गों की बातचीत सुनने लगे खड़े होकर। वे सब हाल में सम्पन्न रामलीला की बातें कर रहे थे और बता रहे थे कि जीएम वगैरह रामलीला में सपरिवार आये।


एक आदमी मेलों के झूलों के बारे में बता रहा था। बोला--'एक वो झूला चलता है न जिसमें पहले एक तरफ जाता है झूला और फिर झटके से दूसरी तरफ तरफ। 'झटकौवा झूला'। उसको झूलते समय लगता था कि बांह न उखड़ जाए।' किसी ने बोला उसने रेलवाला झूला झुलाया बच्चों को तो किसी ने अजगर वाले झूले की बात की। एक ने पेड़ों पर पड़े झूलों के झूलने के दिन भी याद किये।

बाद में उनमें से एक से बात हुयी। रामनामी दुपट्टा ओढ़े हुए। खमरिया से रिटायर छूटे 2013 में। शारदा नगर में खुद का मकान बनवाया है दुमंजिला। कम से कम 30 लाख कीमत होगी आज के समय। फिलिंग सेक्शन में काम करते थे। दो साल उमर ज्यादा लिखी थी इसलिए पहले रिटायर हो गए। ठीक लिखी होती तो 2 साल और नौकरी करते। लेकिन हमें कोई दुःख नहीं। आराम से रहते हैं। मजे हैं।

हमें लगा बताओ इनके दो साल कम हो गए नौकरी के फिर भी ये कहते हैं इनको कोई दुःख नहीं। वहीं अपने पूर्व सेनाध्यक्ष के एक साल कम होने पर ही दुनिया भर में हल्ला मचा दिया था। फिर लगा - 'नौकरी पेशा आदमी के साल की कीमत पद के हिसाब से होती है।'

इस बीच चाय बन गयी थी। पता नहीँ क्यों उसने चाय बिना दूध की नीबू वाली बना दी। हमने कहा -' ई कौन बोला बनाने को? दूध वाली पिलाओ।' उसने फ़ौरन दूसरी चाय चढ़ा दी। बिना दूध वाली एक ग्राहक ने लपक ली।
एक आदमी चुपचाप वहां खड़ा चाय पी रहा था। खूब सफेद दाढ़ी। पता चला कि रांझी से आते हैं मंदिर तक पैदल। इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान की दुकान है। 'कौशल इलेक्ट्रॉनिक्स'। फरीदकोट से आये थे जबलपुर। फिर यहीँ बस गए।

हमने अपने 1989 के पुराने टेपरिकार्डर की रिपेयरिंग के बारे में पूछा। मेरे पास कई कैसेट हैं कविताओं के जो कि टेपरिकार्डर खराब होने के चलते नहीं सुन पाते। उन्होंने कहा-'दिखायेगा। कोशिश करेंगे ठीक करने की।'
बदलती तकनीक के साइड इफेक्ट हैं यह। बहुत कुछ जो पुरानी तकनीक के सहारे संरक्षित रखते हैं आप वह तकनीक बदलने के साथ खो जाता है। ब्लॉग और सोशल मीडिया पर पुराने अनगिनत बेहतरीन ऑडियो अब सुन नहीं सकते क्योंकि जिन जुगाड़ों का उपयोग करके वे अपलोड किये गए थे वे अब हवा हो गए। कबाड़खाना ब्लॉग पर कई ऑडियो हैं ऐसे। Pramod जी के कई अद्भुत ऑडियो हैं ऐसे जो बदलती तकनीक के साथ उड़ गए। पता नहीं दोबारा उनको सुन पाएंगे कि नहीं। मेरे कई फोटो भी ब्लागपोस्टस से गायब हैं इसी तरह।

हवा कम थी साइकिल में बहुत दिन खड़ी रहने के चलते। हवा भरवाने की सोचकर ही इधर की तरफ आये थे। पर वह दिखा नहीं। उसके बगल में दूध बेचने वाले ने बताया कि उसका कुछ तय नहीं कब आये। दूध वाला तीन कनस्तर में दूध लिए खड़ा था। एक का दूध यहां बेचने के बाद बाकी दो कनस्तर क्वार्टरों में बेचेगा।
चाय पीकर हम लौट लिए। रास्ते में और महिलाएं मिलीं जो सर पर टोकरी में करवा रखे बेचने जा रही थीं। मन्दिर के बाहर भिखारी और भक्त बढ़ गए थे। भिखारियों के मुंह अब सड़क की तरफ थे। हनुमान जी की तरफ पीठ किये भीख मांगने में तल्लीन थे वे लोग। उन्हीं के बगल में दो महिलाएं अपनी टोकरी जमीन पर रखे आपस में बतियाती हुई सुस्ता रहीं थीं। सूरज भाई उनके चेहरों का अपनी किरणों से अलंकरण करते हुए अपनी सुबह की शुरुआत कर रहे थे।

सुबह हो गयी है। आपका दिन मंगलमय हो। शुभ हो।

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