रिक्शे पर बंधी यह बल्ली देखकर बजरंगबली की शान में गाया जाने वाला भजन याद आ गया-
बजरंगबली मेरी नाव चली,
जरा बल्ली दया की लगा देना।
पुलिया पर बैठे बीड़ी पीते रिक्शे वाले भाईजी ने बताया की बल्ली 400/-की पड़ी। 450/- मांग रहा था और ये 350/- दे रहे थे। आखिर में बात चार सौ पर टूटी। घर के लिए ले जा रहे हैं। नाम केशरी है। बता रहे थे कि फैक्ट्री में भी काम किया है छह सात साल ठेकेदार के साथ। पास में ही रहते हैं।
पुलिया से मेस आते हुए सोच रहा था कि हमें तो पता ही नहीं था कि बल्ली कितने की आती है। बहुतों को नहीं पता होता। सबको सब कुछ पता होना जरूरी भी तो नहीं।
क्या पता अच्छे दिन का भी मामला ऐसा ही हो। बहुतों को पता ही न हो कि किधर से आये किधर फूट लिए।
बजरंगबली मेरी नाव चली,
जरा बल्ली दया की लगा देना।
पुलिया पर बैठे बीड़ी पीते रिक्शे वाले भाईजी ने बताया की बल्ली 400/-की पड़ी। 450/- मांग रहा था और ये 350/- दे रहे थे। आखिर में बात चार सौ पर टूटी। घर के लिए ले जा रहे हैं। नाम केशरी है। बता रहे थे कि फैक्ट्री में भी काम किया है छह सात साल ठेकेदार के साथ। पास में ही रहते हैं।
पुलिया से मेस आते हुए सोच रहा था कि हमें तो पता ही नहीं था कि बल्ली कितने की आती है। बहुतों को नहीं पता होता। सबको सब कुछ पता होना जरूरी भी तो नहीं।
क्या पता अच्छे दिन का भी मामला ऐसा ही हो। बहुतों को पता ही न हो कि किधर से आये किधर फूट लिए।
- Neeraj Goswamy हमारे यहाँ कहते हैं " जरा बल्ली की कृपा लगा देना " निर्मल बाबा वाली कृपा नहीं बल्ली की कृपा
No comments:
Post a Comment