आज ये भाई मिले पुलिया पर। उमर बताई 85 साल। फैक्ट्री में जो सामान डिलीवर करने ट्रक वाले आते हैं उनका सामान उतरवाने में सहायता कर देते हैं।कुछ पैसा कमा लेते हैं उसी में।आज कुछ लकड़ी भी मिली उनको ट्रक वालों से।साथ की प्लास्टिक की बोरी में लकड़ी रखी थीं।
बगल में बैठे भाई बकरी वाले हैं। दो दिन पहले बकरी चराते मिले थे। आज बकरियां सर्वहारा पुलिया के पीछे थीं।
- अरुण अरोड़ा भाई उनके दिन नहीं फिरते ..ते सन्तोशी जीव है ...रुखा सूखा खाई के ठंडा पानी पीव ......वाले
- Kajal Kumar बकौल गांधी जी के, बकरी का दूध पीने से दिमाग़ बहुत तेज़ हो जाता है, देख लीजिएगा, ये बकरी वाले भाई जी बहुत जल्दी ही तरक्की के कदम बुर्जुआ पुलिया की ओर बढ़ाते मिलेंगे...बोरी वाले बाबा जी का 85 साल की उमर तक कुछ नहीं हुआ तो अब कुछ नहीं हो सकता (और फिर इनके पास तो बकरी भी नहीं है.)
- Rk Nigam अच्छे दिन ?????????????????? कब तक गायेंगे ... जिनके आने थे आ गये । बतौर शत्रुघ्न सिन्हा... खामोश !
- Krishn Adhar अव लगता है आप की कट्टा और कुर्सी वाली सव वातें इन लोगों को वता देनी पड़ें गी ।आप की असलियत जानते ही यह सव कन्नी काट जायें गे,यह लोग केवल विरादरी वालों से खुलकर मिलते हैं ,गैर विरादरी वालों को खतरनाक मानते हैं पता नहीं किस कानून में फांस दें।
- अरुण अरोड़ा रोजाना की आपकी घूरती निगाहों से पुलिया का पलस्तर उधड़ने लगा है .....अब इस पर रहम कर अपनी खोजी आखो को किसी दुसरे स्थान की और घुमाए ...कही एसा ना हो बेचारे सालो से इस पर बैठने वाले ..किसी दिन इसका वजूद ही ढूंढते रह जाए ...
- Alok Puranik जीवन ही पुलिया है, जन्म से मौत के बीच का माध्यम-पुलिया। इस पार से उस पार जाना है। पुलिया पर सुस्ताना है, अकेले नहीं है यह सफर, पुलिया पर और भी हों। पुलिया पर औरों को भी बैठना है। तुझे हे प्राणी, सह-बैठकों से साथ बैठना है। यूं ही जिंदगी कट जानी है, पुलिया क्या समझो जिंदगानी है। जो पुलिया को समझ गया, समझो जिंदगी समझ गया। जो पुलिया ना समझा, समझो जिंदगी की पुलिया से सूखा ही गुजर गया। पुलिया एक दर्शन है-बाबा अनूपानंद की पुस्तक-पुलिया प्रसाद खंड दो, पेज नंबर छत्तीस से लिया गया उद्धरण।
- Dhirendra Pandey आप ये देखिये कि तमाम लोग कितने मामूली काम करके कमा खा रहे हैं सरकारें लाखो करोड़ो की बात राजकोषीय घाटा सब्सिडी टैक्स छूट स्टेमुलस पॅकेज और न जाने क्या क्या बातें करती है इन जैसो के लिये क्या ??
- सलिल वर्मा ई पुलिया तो बुझाता है अच्छा दिन का एतना बड़ा प्रचारक बन गया है कि कहीं पन्दरह अगस्त को झण्डा फहराने का कार्जक्रम एहीं करने का घोसना न हो जाए!
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