ये भाई साहब घर से काम पर निकले हैं। रास्ते में पुलिया दिखी तो टिफिन पुलिया पर धरकर थोड़ा सुस्ताने लगे। सुस्ताने के बाद अंगड़ाई लेने लगे तो मुझे दिनकर जी की कविता की पंक्तियाँ याद आ गई :
ले अंगडाई उठ हिले धरा
करके विराट स्वर में निनाद।
- Satish Saxena .
इस पुलिया पर, बैठके जो सुस्तायेंगे !
कसम राम की अच्छे दिन आ जायेंगे ! - कट्टा कानपुरी असली वाले - महेंद्र मिश्र हा हा पता करिये कहीं आपकी फैक्टरी का कोई कामचोर वंदा पुलिया पे आराम तो नहीं फरमा रहा है
- Rajnish Kumar Mishra Sir ji ek baar 1997 main Pragati maiddan main Garment Fair ke Doran pulia par sitting kar ke lunch kiye the.........
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