सबेरे फिर पुलिया पर जाना हुआ। रामफल यादव फलों को एक चद्दर से ढंके पुलिया पर तैनात मिले। जैसे कोई भी विकास चाहने वाली सरकार विदेशी पूंजी के लिए अपना पूरा बाजार खोल देती है वैसे ही उन्होंने हमको देखकर फल से चद्दर हटा दी। सब फल मुक्त हो गये।
रामफल फिर से अपने बचपने में लौट गए। बताने लगे:
"पांच साल के थे जब घर से आये। पचास साल हो गये। जवाहरलाल प्रधानमन्त्री थे। प्रतापगढ़ आते थे तो हम सब बच्चे भागे देखने जाते थे। दो बैलों की जोड़ी पर मोहर लगती थी। उनका महल है इलाहाबाद में। इंदिरागांधी आई थीं यहाँ। हम ठेला लगाते थे। सरदार इंस्पेक्टर मुंह में सीटी बजाता आगे-आगे चल रहा था।नौकरी लगते-लगते रह गयी हमारी। हमने कार्ड फाड़ के फेंक दिया फिर।"
रामफल ऊँचा सुनते हैं। कुछ भी पूछो बताते वही हैं जो समझते हैं। पचास साल पहले की यादें बार-बार दोहराते हैं। हर बात को हांक के पचास साल पहले ले जाते हैं। अतीत तमाम लोगों के लिए इतनी खूबसूरत आरामगाह होती है कि उनको वहीं सुकून मिलता है।
- Skdubey Dubey MAYE GAB 7 YEAR KE THE ,TAB ARMAPORE ESTATE KE H/T QUATER KI PULIA PER BAITHE MAINE KE POLICE KE SATH EK KALI CAR NIKALKAR NAY QT SHIV MANDIR SE PASS KAR RUKI.HAM DO LOG DAUDKAR DHEKHA KI Dr RAJEDRA PRASAD BAITHE HAI.AUR EK 1 GHANTE CHALEGAYE.LAGBHAG YEAR 1954 YA 1955 THA
- Manjeet Arora Do do Variety ke aam ek hi thela par dekh kar bahut sukhad anubhuti ho rahi hai.Kaash humari oopn party bhi inse kuch seekh lein.
- Lata R. Ojha behad saraahneey post hai bhai..aur sabse sundar baat jo aapne antim pankti mein kahi... Ateet tamaam logon ke liye itni sundar aaraamgaah hoti hai ki unko wahin sukoon milta hai..Waah!
- Krishn Adhar याद, वड़ी कहानी का एक भाग होता है जिसकी स्क्रिप्ट राइटर,हीरो तथा दर्शक हम ही होते हैं,क्या इतनी भूमिकाओं मे एक साथ होना आनन्ददायक नहीं।
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