ट्रेन
चल दी। स्टेशन को खरामा खरामा चलते हुए पार किया। स्टेशन के बाहर पुल के
नीचे कई परिवार डेरा डाले हैं। कुछ महिलायें आपस में एक दूसरे के जुएँ बीन
रहीं हैं। सड़क पर एक लड़का हाथ छोड़ कर लहराता हुआ साइकिल चला रहा है।
निश्चिंत।साइकिल सवार लडके की बेपरवाही देखकर लगता है मानो कोई युवा
मुख्यमंत्री अपना सूबा चला रहा हो।
आगे बीच सड़क पर कुछ बच्चे किक्रेट खेल रहे हैं। रेल की पटरी पर एक आदमी पगड़ी बांधे ऐसे बैठा है जैसे कभी तख्ते ताउस पर शाहजहाँ बैठते होंगे। ट्रेन उसको सलामी देते हुए उसके सामने से गुजर गयी। बुजुर्गवार ने सर को हल्का सा हिलाते हुए ट्रेन की सलामी क़ुबूल की।
एक लड़का ट्रेन की पटरियों के किनारे सीमेंट की बीम पर अधलेटा सा है। गाडी को अपनी निगाहों के सामने से गुजरता देखता हुआ। गाडी ने उसको भी बाय सा किया और आगे निकल ली। सफर के राहगीर को न जाने कितने निठल्लों को सलाम ठोकना पड़ता है।
ट्रेन के डिब्बे में लिखा है -"महिलाओं से छेड़खानी दंडनीय अपराध हैं।" शायद इस चेतावनी के चलते ही ट्रेन में कोई छेड़खानी नहीं हुई कल। मैंने यह भी सोचा कि बलात्कार और उसके बाद हत्या को भी अपने यहाँ दंडनीय अपराध क्यों नहीं घोषित कर देते। तब शायद जगह-जगह बलात्कार की होती घटनाओं में कमी आये। लेकिन फिर यह भी सोचा कि यह तो दिमाग में लिखा जाएगा तब लागू होगा। अब लोगों के दिमाग में लिखना तो किसी पार्टी के घोषणापत्र में है नहीं। फिर कैसे होगा?
ट्रेन शहर के बाहर नदी को पार करते हुए आगे बढ़ रही है। नदी में पानी कम है। लेकिन पानी है यही क्या कम है।बकौल दुष्यंत कुमार:
नाव जर्जर ही सही
लहरों से टकराती तो है।
आगे बीच सड़क पर कुछ बच्चे किक्रेट खेल रहे हैं। रेल की पटरी पर एक आदमी पगड़ी बांधे ऐसे बैठा है जैसे कभी तख्ते ताउस पर शाहजहाँ बैठते होंगे। ट्रेन उसको सलामी देते हुए उसके सामने से गुजर गयी। बुजुर्गवार ने सर को हल्का सा हिलाते हुए ट्रेन की सलामी क़ुबूल की।
एक लड़का ट्रेन की पटरियों के किनारे सीमेंट की बीम पर अधलेटा सा है। गाडी को अपनी निगाहों के सामने से गुजरता देखता हुआ। गाडी ने उसको भी बाय सा किया और आगे निकल ली। सफर के राहगीर को न जाने कितने निठल्लों को सलाम ठोकना पड़ता है।
ट्रेन के डिब्बे में लिखा है -"महिलाओं से छेड़खानी दंडनीय अपराध हैं।" शायद इस चेतावनी के चलते ही ट्रेन में कोई छेड़खानी नहीं हुई कल। मैंने यह भी सोचा कि बलात्कार और उसके बाद हत्या को भी अपने यहाँ दंडनीय अपराध क्यों नहीं घोषित कर देते। तब शायद जगह-जगह बलात्कार की होती घटनाओं में कमी आये। लेकिन फिर यह भी सोचा कि यह तो दिमाग में लिखा जाएगा तब लागू होगा। अब लोगों के दिमाग में लिखना तो किसी पार्टी के घोषणापत्र में है नहीं। फिर कैसे होगा?
ट्रेन शहर के बाहर नदी को पार करते हुए आगे बढ़ रही है। नदी में पानी कम है। लेकिन पानी है यही क्या कम है।बकौल दुष्यंत कुमार:
नाव जर्जर ही सही
लहरों से टकराती तो है।
- Lata R. Ojha Pranaam bhai ji..sach kahaa aapne logon ke dimaag mein likhne se hi laagu hoga..aur kathortam dand hi aisa kar sakta hai.. hai n ?
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