शरद जोशी के पंच -11
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1. इस देश में समझदारी के कदम उठाने के लिए व्यवस्था दुर्घटना का इंतज़ार करती है।
2. पर्यावरण-पर्यावरण रोने से पर्यावरण ठीक नहीं होगा। गैस-गैस चिल्लाने से गैसें कम नहीं होंगी। सत्ता के बाप में हिम्मत नहीं कि वह कोई कारख़ाना एक जगह से दूसरी जगह हटा सके, सिफ़ारिशों पर अमल करा सके, कड़ा कदम उठा सके, जो कारख़ानेदार की मंशा के विपरीत हो। आजकल उद्योगों की लल्लो-चप्पो करने के दिन हैं।
4. विकास के काम अड़ंगे डालना राष्ट्रीयता के विरुद्ध है। अत: देश का प्रमुख नारा हुआ 'ठेकेदारों को कमाने दो, गरीबों का हित उसी में है।
5. सारे आचारों में भ्रष्टाचार इस देश में सबसे सुरक्षित है। वह दुबककर काम करने के बाद सीना उठाकर चलता है।
6. भ्रष्टाचार हमारे यहाँ एक सम्मानित आधार है। काफ़ी लोग उसे व्यवहार मानते हैं। ऊपरी कमाई करना व्यावहारिकता मानी जाती है। भ्रष्ट व्यक्ति की प्रशंसा में कहा जाता है कि आदमी प्रैक्टिकल है।
7. भ्रष्टाचार इस देश में उल्टी गंगा है। वह समुद्र से पानी बटोरकर हिमालय तक पहुँचाती है। एक इंस्पेक्टर जब सौ रुपए लेता है तो वह शान से कहता है,मैं अकेला नही खाता। ऊपर वालों को भी खिलाना होता है।
8. भ्रष्टाचार निजी कौशल पर आधारित एक सामुदायिक कर्म है।
9. इस देश में भ्रष्टाचार छत पर चढ़कर वायलिन बजाता है। लोग उसकी लय से मोहित रहते हैं। उसे दाद देते हैं।
10. भ्रष्टाचार एक पत्थर है। दिन-रात यह देश उस पत्थर को हाथ में ले सिर पर ठोंकता रहता है और दर्द से कराहता-अफ़सोस करता रहता है। तो आप उसका क्या कर पाए? धीरे-धीरे यह दर्द मीठी गुदगुदी बन गया है। हम इसे रोकने में अपने को कहीं से असमर्थ पाते हैं।
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