पुराना साल पतली गली से फूट रहा था। नये ने उसको पीछे से पकड़ किया
। पुराना बोला-चढ्ढी छोड़ बेटा, चढ्ढी से क्या फूल खिलायेगा ? हमको क्या
मोंगली समझ रखा है? कोई फोटू खींच लेगा तो अपन दोनों धरे जायेंगे स्टिंग
आपरेशन में। समलैंगिकता का मामला भी बन सकता है। कोई भरोसा नहीं मीडिया
वालों का। ये ब्लागर भी लिखेंगे फिर हमारे -तुम्हारे सम्बन्धों पर। किसी की
चढ्ढी पीछे से नहीं खींचनी चाहिये।
नया बोला हमें यहां किसके भरोसे छोड़ के जा रहे हो,बुजुर्गवार? हमें तो
अभी पैदा होने में भी देर है। हम कोई अभिमन्यु तो हैं नहीं कि बाप ने पेट
में ही कोचिंग दे दी हो। कुछ बताते जाओ मालिक इस दुनिया के लटके-झटके ताकि
हम भी सुकून से अपना टाइम पास कर सकें।
पुराना बोला -बेटा किसी के सिखाये पर मत चल। आंखे खुलने पर अपनी नजरों
से दुनिया देखना । मस्त रहना । सब सीख जायेगा। सब समय कट जायेगा। ज्यादा
बोर होना तो ब्लाग बांचने-लिखने लगना सब समय कट जायेगा। बोरियत का सारा
आसमान फट जायेगा।
ब्लाग का मान सुनते ही नया चौंका। विस्तार से पूछा-पुछौव्वल की। कैसे
लिखते हैं , कौन लिखता है। कौतूहल का मारा वो बेचारा फुरसतिया का ब्लाग
बांचने लगा। उसमें न लाने क्या-क्या ऊटपटांग मगर मजेदार हेंहेंहें टाइप
टिप्पणियों से युक्त अल्लम-गल्लम सा लिखा था। वह डूबा ऐसा कि फिर डूबता चला
गया। नये साल के आगमन पर पिछले साल का लेखा-जोखा भी था।
जैसा कि होता है जब नया नेट पर लगा था तो उसे खराब-सराब साइटों से बचाने
के लिये पुराना भी भिड़ गया नेट पर। हम भी कनखियों से देखते भये कि
चंगू-मंगू क्या बांच रहे हैं। जितना हम पढ़ पाये वैसा यहां बताया जा रहा
है। बाकी का मन हो तो खुदै बांचि लेव चिट्ठा सबरे।
सुनामी बनाम स्वामी
पिछला साल बड़ा बुरा बीता। मैं हैदराबाद गया था । जैसे ही वहां से वापस
हुआ, सुनामी तूफान ने तहलका मचाया। मैं सुनामी से बच गया सुनामी मुझसे।
लेकिन तब तक स्वामी की चपेट में आ चुका था। स्वामी हमारा ब्लाग के बहाने
ब्लागिंग के अखाड़े में उतर चुके थे। अंदाज एकदम
मलंगोंवाले थे:-
दुनिया के जिस हिस्से में मै रहता हूं वहां ब्लोगिन्ग को हस्तमैथून के
बराबर रखते हैं और चेट फ़ोरम हरम क पर्याय है. हरम मैं सब नंगे होते है हमने
भी करी फोनेटिक नंगई!
स्वामी का हमें अभी तक चेहरा नहीं दिखा। लेकिन जिन लोगों ने भी देखा होगा
वे कहते जरूर होंगे कि बालक बड़ा ‘क्यूट’ है। हम तो स्वामीजी को सांड़ों
में निहार लेते हैं। सांड़ स्वामीजी का प्रिय पात्र है। हम किसी भी सांड़
को देखते हैं तो मेरा प्रेम स्वामीजी पर उमड़ आता है।हर सांड़ हमें बड़ा
क्यूट नजर आता है।
मिर्ची लगी तो मेरी भैंस को डंडा क्यों मारा?
अतुल ने साल की शुरुआत गरमागरम की। वो मारा गुस्से का गुम्मा कि पागलों ने खिड़कियां बंद कर लीं।
तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं लिखकर अतुल ने सारे हिंदी चिट्ठाकारों को हिलाकर परेशान कर दिया। इसके कुछ मजेदार असर हुये।
चिट्ठाचर्चा शुरू हुआ। नयी योजनाओं की सुगबुगाहट हुयी।
मजे की बात है कि अतुल साल के शुरुआत में उखड़े थे। अब साल के आखिर में
जब दुनिया अपना हिसाब-किताब संभालती है तो ये महाराज न जाने किस प्रोजेक्ट
में जुट गये। लोगों को मासिक समस्यायें होती हैं,अतुल की लगता है वार्षिक
है। संयोग यह भी कि अतुल के कथाकार पिताजी जब दुबारा कानपुर में लिखना शुरु
कर रहे हैं तब बालक लिखना स्थगित करके स्वामियों से फोन पर गप्पे लड़ाते
पाये गये। अतुल अभी रणछोड़दास बने हैं। लेकिन अतुल से हमें शिकायत है कि
अतुल ने भैंस कथा स्थगित कर रखी है।
पहली ब्लागजीन-निरंतर
बड़े गाजे-बाजे के साथ निकली हमारे ब्लागजगत की पत्रिका निरंतर। हम खुश
कि हम पहले हैं। पहलौटी के बच्चों की तरह दुलार-प्यार से इसे पाला-पोसा
गया। लेकिन ६ महीने में यह पत्रिका स्थगित हो गई। हम मजूरों की तरह इसे
निकालने में लगे रहे। न पाठक मिले न समुचित वाह-वाही खुराक। लिहाजा हम
पत्रिका के साथ बैठ गये। यह एक झटका था जिसे हम लगता नहीं कि अभी भी उबरे
हैं। कारण क्या रहे यह तो अलग-अलग सोच का विषय है। लेकिन जितना समय लग रहा
था शायद उतना ‘रिटर्न’ नहीं मिला। लेकिन कुछ बेहतरीन लेख,रचनायें निरंतर के
कारण सामने आये,खासकर तकनीकी लेख। पानी की समस्या वाले अंक पर बहुत मेहनत
की थी देबाशीष ने लेकिन हिंदी ब्लागर्स तक ने उसकी अपेक्षित तारीफ नहीं की।
इसके पहले वर्डप्रेस,टैगिंग वाले लेख लोगों ने पढ़कर पचा लिये। हिंदी का
पाठक मुझे लगता है मुंहचुप्पा होता है। अपनी मूल्यवान सलाह खर्च नहीं करना
चाहता।आड़े वक्त के लिये बचाकर रखना चाहता है।
ब्लागनाग,शंखनाद,आर्तनाद
बड़े हल्ले-गुल्ले के साथ ब्लागनाद का शुभारम्भ हुआ। बाद में भी बहुत
हल्ला-गुल्ला हुआ। जीतेन्दर के संयोजन में अतुल-स्वामी जुगलबंदी हुई।
बढ़िया ले दे हुई लेकिन बाद में समुचित घी न मिलने के कारण जुगलबंदी की आग
बुझ गई। ये अफसोस है कि ब्लागनाद की केवल पंकज ,विजय ठाकुर तथा जीतेंद्र की
एक-एक आवाज के अलावा बाकी का मजा मैं न ले पाया। अभी क्या हाल हैं इस नाद
के यह भी नहीं पता।
हिंदिनी ने हाय राम बड़ा दुख दीना
हम अच्छे खासे ब्लागर के मैदान में उछल-कूद कर रहे थे कि स्वामी ने हमें
फुसला कर हिंदिनी के अखाड़े में उतार दिया। बहाने से पूछा कि कैसी है
हिंदिनी । हम किसी स्त्रीलिंग को खराब कैसे बताते? सो कह बैठे अच्छी हैं।
बस ये बोलो ये तो आपकी हैं। इसके बाद से किसी भी स्त्रीलिंग पदार्थ को हम
बड़ा घबराते हुये अच्छा बताते हैं इस डर से कि कहीं अगला यह न कह दे आपकी
ही है। हम जबतक समझ पायें कि माजरा क्या है तबतक हम लिखने लगे । शुरू में
सोचा था कुछ लेख इधर लिखेंगे कुछ उधर लेकिन दोहरापन बहुत दिन चल नहीं पाय।
जीतेन्दर का शरीर वैसे भी काफी फूला है इस घटना के बाद कुछ दिन मुंह भी
फूला रहा। कहते थे- तुमने हमें धोखा दिया कि हमारी साईट पर नहीं लिखा और एक
अज्ञात नामधारी बालक के साथ अड्डेबाजी कर रहे हो। वो तो कहो कि रविरतलामी
भी साथ में थे वर्ना …। वैसे यह सच है कि पुराने
फुरसतिया पर हमने अपना सारा पुराना स्टाक निकाल दिया था। इधर आने के बाद कुछ नये लेख लिखे गये। कितने बढ़िया-खराब थे ये पाठक जाने।
ब्लागमंडल पर महिलामंडल
ब्लागमंडल बहुत दिनों तक सूना-सूना पुरुष व्यायामशाला सा बना रहा। एक
अदद महिला की कमी पूरी करने ले लिये जीतू पहलवान ने एक बार पेशकश भी कि वो
खुद महिला के नाम से लिखने लगें। लेकिन उनको छल-छद्म के पाप से बचा लिया
तथा एक के बाद एक दनादन महिला ब्लागर आती गयीं तथा कुछ लिखकर जाती गयीं।
पूर्णिमा वर्मन,रति सक्सेना,दीपा जोशी,प्रत्यक्षा,सारिका सक्सेना,मानोसी
चटर्जी,जया झा, शालिनी नारंग ने। शालिनी नारंग को छोड़कर ज्यादातर कविता ही
लिखती हैं। प्रत्यक्षा ,मानोसी कुछ उकसाने पर गद्य के मैदान में उतरी भी
तो टाइपिंग की मेहनत से घबराकर वापस
कविता कानन में लौट
गईं। मजे की बात है कि जब लगभग आधा दर्जन पुरुष ब्लागर मिलकर एक पत्रिका
आधा साल नहीं चला पाये तब यह देखकर आश्चर्य होता है कि पूर्णिमा वर्मन,रति
सक्सेना
तथा सारिका सक्सेना नियमित पत्रिका निकाल रही हैं। फिलहाल तो
प्रत्यक्षा,मानोसी,सारिका,शालिनी नारंग का ही लेखन नियमित चल रहा है। आगे
आशा है इसमें और तेजी आयेगी।
बढ़ते ब्लागर तथा शानदार शतक
पिछले साल इस समय लगभग तीस ब्लागर थे मैदान में। लगभग दस सक्रिय,बीस
निष्क्रिय। फिलहाल यह संख्या १५० के आसपास पहुंचने वाली है। लेकिन सक्रिय
चिट्ठाकार २०-२५ ही हैं। नियमित लिखने वाले तो और भी कम। कुछ लोगों ने
अपना परिचय देकर ब्लाग बंद कर दिया। कुछ ने फोटो लगाकर। कुछ ने अपनी पूंछ
ही लगा रखी है हिलती ही नहीं। चिट्ठाकार बढ़ने से नये चिट्ठाकारों को उतना
गर्मजोश स्वागत सत्कार नहीं मिल पा रहा है जो हमें मिला। हमें याद है
चिट्ठाविश्व के बायें कोने पर हम बहुत दिन लटके रहे नये हस्ताक्षर के रूप
में। पहले स्वागत टिप्पणियों के हमले काफी होते थे अब गर्मजोशी में कमी आई
है। नये ब्लागर के ब्लाग पर टिप्पणी बहुत जरूरी काम है जिसमें साल के
बीतते-बीतते कंजूसी आती गयी है।
अचार की रेसिपी से विकलांग यौनजीवन तक
स्वामीजी ने किसी पोस्ट पर कमेंट करते हुये कहा था कि वे नेट को तब सही
मायने में सफल मानेंगे जब माताजी अचार की रेसिपी अपनी बहू को नेट के माध्यम
से बता सकेंगी। इस लिहाज से बीते साल में विषय वैविध्य बहुत बढ़ा है। नये
साथी ब्लागर तमाम नये-नये विषयों को छू-छेड़ रहे हैं। सुनील दीपक,देश
दुनिया , स्वामीजी, रविरतलामी, जीतेन्दर,दिल्ली ब्लाग,खाली-पीली लाल्टू आदि
साथी ब्लागर नये-नये रूप में विचार रख रहे हैं। रजनीश मंगला हिंदी के
प्रचार में लगे हैं। कविताओं में लक्ष्मीगुप्त के अंदाज,अनूप भार्गव की
ज्यामिति ने नये मजे दिये हैं। नीरज त्रिपाठी इतनी बढ़िया कवितायें लिखते
हैं लेकिन अपना ब्लाग बनाने में पता नहीं क्यों आलस्य करते
हैं।प्रत्यक्षा,मानसी,सारिका की कविताओं पर लोगों को आगे कविता छांटने का
कितना सा मौका मिलता है! मानसी ने ज्योतिष के साथ-साथ कनाडा आने से रोकने
का भी कितना अच्छा इंतजाम किया है। प्रत्यक्षा ने खिंचाई यज्ञ शुरू किया था
लेकिन आलस्य के राक्षस ने सारा मामला बिगाड़ दिया।यह बेहद अफसोस की बात है
कि इस आलस्य के वायरस से ठेलुहा,देबाशीष तथा अब पंकज,रमन व अतुल के बक्से
भी प्रभावित हुये हैं। अवस्थी के आलस्य की बात क्या कहें! लेकिन देबाशीष
,अतुल से यही कहना है भइया लोग आपकी पहचान लिखने से है। कम्प्यूटर के
जानकार आपके जैसे ३६५ होंगे लेकिन लिखने का जो आप लोगों का फ्लेवर है वह
शायद कम कम्प्यूटर के जानकार होंगे। साइड बिजनेस के चक्कर में मुख्य काम मत
छोड़ो। गांगुली मत बनो भइया लोग। बैटिंग (लेखन)बालिंग (टिप्पणी) करते रहो
महाराज। मिर्ची सेठ आपसे भी यही गुजारिश है। रमन तो खैर सुना है पढ़ाई में
व्यस्त हैं।
अपनापे की मिसाइलें
समय के साथ चिट्ठाकारों के आपसी सम्बन्ध बने हैं। लोग वाया भाईसाहब
भाभियों से बतियाये। बच्चों को अच्छा बताकर बाप की खिंचाई किये। नये-नये
अंदाज में लोगों के दिलों में घुसपैठ की तथा जमके बैठ गये। गुस्सा,नखरे भी
बहुत हुये,जारी हैं लेकिन मिर्ची की कड़वाहट नहीं आई। यह हिंदी ब्लागमंडल
की उपलब्धि है। मेरे ब्लाग में सबसे अधिक २४२ हिट्स का रिकार्ड उस दिन का
है जिस दिन देबाशीष का परिचय लिखा था। जीतू,प्रत्यक्षा,राजेश के परिचय के
दिन भी हिट्स बहुत हुये। इसके लगता है लोग साथी ब्लागर के बारे में जानने
के उत्सकु रहते हैं।
आशीष की शादी की चिंता सामूहिक होगयी है। काश कोई कुंवारी कन्या ब्लागर
होती तो हम दोनों के गाडफादर बन कर गठबंधन करा देते। दोनों एक दूसरे के
ब्लाग पर टिप्पणी करते किसी के भरोसे तो न रहते। बाद में मानसी से कुंडली
मिलवा देते। प्रत्यक्षा हायकू स्वागतगीत लिख देतीं। हम शब्दांजलि में
सारिका के सहयोग से दोनों का साक्षात्कार छाप देते-आप लोगोंको पहली बार
शादी करके कैसा लग रहा है?
आशा है यह आपसी सम्बंध कि बने रहेंगे तथा नये साथी लोग भी परिवार में जुड़ते चले जायेंगे।
एक अदद टिप्पणी का सवाल है मालिक
टिप्पणी किसी भी ब्लागपोस्ट का प्राणतत्व होता है। हालांकि मुझे इसकी
कमी नहीं खलती लेकिन यह सच है कि लोग टिप्पणी की आशा में उसी तरह अपने
ब्लाग को निहारते रहते हैं जैसे चातक स्वाति नक्षत्र की बूंद के लिये ताकता
रहता है। बिना टिप्पणी के जो ब्लाग होते हैं उनको कमजोर या दुर्बल वर्ग की
विकास योजनाओं की तर्ज पर टिपियाते रहना चाहिये । ब्लाग समाज के विकास के
लिये यह बहुत आवश्यक है।
आशीष श्रीवास्तव की कुछ पोस्ट बहुत अच्छीं थी खासतौर पर अमेरिकी
नागरिकों की मनोवृत्ति वाली लेकिन उसे उतनी तवज्जो नहीं मिली जितने की वह
हकदार थी। देश दुनिया की तमाम पोस्ट भी इसी तरह अनदेखी सी चली जाती है।
सुनील दीपक के लेख,फोटो जितने सामयिक होते हैं लोग उतना टिप्पणी नहीं करते।
टिप्पणी का अंदाज भी मजेदार रहता है। कालीचरण कहते हैं हम नहीं
सुधरेंगे-टिप्पणी अंग्रेजी में ही करेंगे। जीतू की तारीफके अंदाज से हम
सुनकर बता सकते हैं कि ये जीतू ही लिखे हैं।
राजेश ने पिछली मुलाकात में जो टिप्पणियां लिखने की सोची थीं वे सारी बताईं
।सुनकर हमारी हालत सोचनीय हो गयी कि यह बालक इतना सोचता रहा इतने दिन।
टिप्पणी त्वरित,स्वत:स्फूर्त हो वही मजेदार होती है।
इतना सारा पढ़ते-पढ़ते नया साल ऊंघने लगा। पुराने ने उसे झकझोर के
जगाया-बेटा अभी साल पड़ा है सोने को। अपना चार्ज तो ले लो तब सोओ। तुम तो
सिपाहियों की तरह ड्यूटी ज्वाइन करते ही सो रहे हो।
नया साल बोला साहब आप जा रहे हो । कुछ उपदेश वगैरह भी देते जाओ । ऐसे
खाली मुंह बिना भाषण दिये जा रहे हो तो कैसे मन लगेगा आपका हमारा। पुराने
साल ने गला खखारकर वर्षों पुराना दोहा थमा दिया:-
सूर समर करनी करहिं,कहि न जनावहिं आप,
विद्यमान रन पायके कायर करहिं प्रलाप।
नये-पुराने साल अपने-अपने चार्ज का लेन-देन करने लगे। फिजा में
हैप्पी न्यू ईअर के कैसेटों का हल्ला गूंजने लगा था।
हैप्पी न्यू ईअर के कोलाहल से मुकाबले के लिये
यह देश है वीर जवानों का ,अलबेलों का मस्तानों का की आवाजें भी लंगोट कसकर मैदान में आ गयी।हमें लगा कि
आशीष श्रीवास्तव की शादी की नेट प्रैक्टिस चल रही है-आखिर बकरे की मां कब तक खैर मनायेगी?
मेरी पसंद
यह भी दिन बीत गया।
पता नहीं जीवन का यह घड़ा
एक बूंद भरा कि एक बूंद रीत गया।
उठा कहीं,गिरा कहीं,पाया कुछ खो दिया
बँधा कहीं,खुला कहीं,हँसा कहीं ,रो दिया
पता नहीं इन घड़ियों का हिया
आँसू बन ढलका या कुल का बन गीत गया।
इस तट लगने वाले और कहीं जा लगे
किसके ये टूटे जलयान यहाँ आ लगे
पता नहीं बहता तट आज का
तोड़ गया प्रीति या जोड़ नये मीत गया।
एक लहर और इसी धारा में बह गयी
एक आस यों ही बंसी डाले रह गयी
पता नहीं दोनों के मौन में
कौन कहाँ हार गया,कौन कहाँ जीत गया।
-रामदरश मिश्र
तारीफ़ चाहे किसी की भी हो, लेकिन हम सभी का सर गर्व से ऊँचा हुआ है।एक बात तो है ही, दैनिक जागरण की पहुँच बहुत बड़े हिन्दी भाषी क्षेत्र मे हैं। मुझे अचानक भारत जाना पड़ा तो कई लोगों ने मुझे इस छपे लेख के बारे मे बताया। कुछ ऐसे लोगों ने भी जो कम्प्यूटर प्रयोग नही करते,लेकिन लेखन/पाठन के शौकीन है।
तभी मैने अनूप भाई से निवेदन किया था लेख को स्कैन करके चिपकाओ, देखें तो सही, क्या लिखा है।
मै आज भी कहता हूँ,भविष्य हिन्दी ब्लॉगिंग का है, समय आयेगा जब हर हिन्दीभाषी विचारशील व्यक्ति अपने विचारों की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के लिये ब्लॉगिंग का प्रयोग करेगा। ये क्रान्ति जितनी जल्दी आ सके उतना अच्छा है।