रात देर से सोये सो सुबह उठते-उठते साढे 6 बज गये। निकले टहलने तो देखा सूरज भाई आसमान पर चमक रहे थे। मन किया कहें कि भाईजी कभी-कभी तो छुट्टी मार लिया करो। लेकिन फ़िर नहीं बोले। काम में जुटा हुये आदमी को काम से अलग रहने की सलाह दो बड़ी तेज भन्नाता है। अब गर्मी वैसे ही भयंकर पड़ रही है। ऐसे में सूरज भाई अगर और भन्ना गये तो समझ सकते हैं क्या हाल होंगे?
एक आदमी गन्ने का रस पेरने के बाद बचे हुये छिलकों को बटोरकर बोरे में भर रहा था। शायद ईंधन के रूप में जलाने के लिये। गन्ने के ये सूखा छिलके फ़ौरन सुलगते होंगे। वैसे भी रसहीन और सूखा आदमी हो या कूड़ा, सुलगता बहुत जल्दी है।
सड़के के नीचे एक सुअर की पीठ पर एक कौआ लम्बवत बैठा था। कौआ सूअर की पीठ को सिंहासन बनाये इधर-उधर चोंच घुमाते हुये प्रकृति का नजारा देख रहा था। सुअर पीठ पर सवार कौवे की गतिविधियों से उदासीन इधर-उधर मुंह मार रहा था।
व्हीकल मोड़ से जीसीएफ़ के लिये मुडे तो देखा एक भाईजी सड़क किनारे पेड़ से गिरी लकडियां बीनकर साइकिल के कैरियर पर बांध रहे थे। नेपाली मूल के रमेश की पैदाइश जबलपुर की ही है। उमर 61 वीं लग गयी है।एक जगह सिक्योरिटी गार्ड का काम करते हैं। 4500/- महीने के मिलते हैं। शाम 6 से सुबह 6 की ड्यूटी बजाकर घर लौट रहे थे। रोज की तरह ईंधन के लिये लकड़ी बीनते हुये।
दो बच्चे हैं रमेश के। दसवीं और बाहरवीं में पढ़ते हैं। खुद पढ़ नहीं पाये लेकिन बच्चों को पढ़ाने में कोई कमी नहीं। खर्च बस चल जाता है। मकान खुद का है। बोले-"बस चल जाता है। जितनी आमदनी उतने में पार हो जाता है महीना। जुआ, तासपत्ती खेलते नहीं, दारू पीते नहीं, औरतबाजी भी नहीं। इस सबमें पैसा खर्चा होता है। बस गुजर हो जाती है किसी तरह। "
नेपाल में रिश्तेदार हैं। चाचा, ताऊ और अन्य भी। लेकिन न् तो वे इनसे मिलते हैं न वे इनसे। भूकम्प के समय जाने का बहुत मन था नेपाल लेकिन 20000 रुपये चाहिये किराये के लिये। फ़िर चीजें भी मंहगी हो गयी नेपाल में। यहां चाय 5 रुपये में मिल जाती है। वहां 10/15 की है।
घर में गैस भी है लेकिन मंहगी पड़ती है इसलिये लकड़ी भी जलाते हैं। गैस कम जलाते हैं। गैस सब्सिडी खतम करने को उतावले लोगों तक यह सूचना पहुंचेगी भी तो क्या होगा? निर्णयवीरों के लिये आदमी और संसाधन महज एक आंकड़ा होता है।
महज 4500/- रुपये पाने वाले रमेश से जितनी बार मैंने आमदनी के मसले की बात करके सवाल किया उन्होंने यही कहा बस कि चल जाती है गाड़ी। किसी से कोई शिकायत नहीं।
जीसीएफ़ में घनश्याम दास से मिलने गये। कल रिटायर हुये। रात को रिटायरमेंट की पार्टी में बुलाया था लोगों को। घर के बगल में टेंट अभी भी लगा था। घर के बाहर रखे घडों में पानी भरकर बाहर टहल रहे थे। रिटायरमेंट के बाद के जीवन की शुभकामनायें थमाकर हम आगे बढ़ लिये।
आगे आज दीपक गुप्ता से मिलना हुआ। दीपक हमारे ही कालेज में पढे हैं। एक साल बाद आये हमसे वहां। फ़िर आर्डेनेन्स फ़ैक्ट्री में भी हमारे पीछे चले आये। हम अपर महाप्रबंधक हुये तो देखा देखी अभी हाल ही में दीपक भी अपर महाप्रबंधक हो लिये। हमारे विभाग के बेहतरीन अधिकारियों में हैं दीपक। स्माल आर्मस उत्पादन में एक्स्पर्ट हैं। पिछले हफ़्ते ही जीसीएफ़ आये तबादले पर। स्माल आर्मस का एक्सपर्ट गन बनाने के काम में जुटेगा।
हम जब साइकिल से 1983 में भारत दर्शन के लिये निकले थे तो इलाहाबाद के बाद हमारा पहला पड़ाव बनारस था। दीपक का घर वहीं था। दीपक के पापा श्री ब्रज किशोर बीएचयू आई टी के मेकेनिकल विभाग में प्रोफ़ेसर थे। आज भी 79 साल की उमर में अमेरेट्स प्रोफ़ेसर हैं। स्पेशल क्लासेस लेते हैं। लेक्चर, लैब आदि।
करीब 13 साल पहले दीपक की पहली पत्नी का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया। दो छोटे बच्चे थे। पत्नी की बीमारी के दौरान बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी निभाने लग थे दीपक। कुछ लोगों ने दुबारा शादी के सलाह दी। कुछ ने एतराज। दुबारा विवाह करें या न करें इस पर विचार करते हुये एक रिश्ता पता चला। लड़की के पति और बच्चे एक सड़क दुर्घटना में नहीं रहे थे। लड़की भी दो साल के इलाज के बाद चरने फ़िरने लायक हो सकी। फ़िर भी एक पैर सीधा ही रहता है। घुटना मुड़ता नहीं। पति के निधन के 7 साल बाद दीपक से शादी की बात चली।
रिश्ते पर कोई निर्णय लेने के लिये दीपक अपने दोनों बच्चों के साथ अपनी सम्भावित पत्नी बबिता से मिलने गये। चारों ने मिलकर दोनों की शादी की बात पक्की की। नक्की की। दो जिन्दगियां जो ठहर सी गयी थीं वे फ़िर से स्पन्दित हुयीं और गतिमान भी। आगरे के ग्रैंड होटल में हुई इस शादी का मैं भी गवाह बना।
दीपक के दोनों बच्चे अब इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हैं। बिटिया आकांक्षा 6 वीं में पढ़ती है। उसको स्केचिंग और पेंटिग का शौक है। जल्दी ही शायद यहां पोस्ट भी करें।
आज सालों बाद दीपक और बबिता को देखकर बहुत खुशी हुई। उनकी शादी के बाद पहली मुलाकात थी। अब तो अक्सर होगी। शहर जाते रास्ते में ही पड़ता है घर।बबिता ने चाय खूब अच्छी बनाई। फ़िर आम का पना भी। बेल भी खूब सारे लगे हैं दीपक के घर में। आम का पना पीते हुये बतियाते हुये हम बातचीत में इतना मशगूल हुये कि ध्यान ही नहीं रहा कि जो ग्लास हम मेज पर धर रहे हैं वहां मेज नहीं हवा थी। ग्लास हवा में रखा तो वह नीचे आकर जमीन से आ मिला। नतीजा ग्लास के कई टुकड़े हो गये। अब और कितने ग्लास और कम टूटेगे दीपक के यह आने वाला समय बतायेगा।
लौटकर आये तो पोस्ट टाइप करके फ़ेसबुक पर अपलोड करने की कोशिश की। लेकिन फ़ेसबुक ने मना कर दिया। कोई लफ़ड़ा रहा होगा। मजबूरन दुबारा टाइप करना पड़ी।
बहरहाल यह सब तो चलता है। आप मजे की कीजिये आराम से। इतवार मुबारक हो आपको।
एक आदमी गन्ने का रस पेरने के बाद बचे हुये छिलकों को बटोरकर बोरे में भर रहा था। शायद ईंधन के रूप में जलाने के लिये। गन्ने के ये सूखा छिलके फ़ौरन सुलगते होंगे। वैसे भी रसहीन और सूखा आदमी हो या कूड़ा, सुलगता बहुत जल्दी है।
सड़के के नीचे एक सुअर की पीठ पर एक कौआ लम्बवत बैठा था। कौआ सूअर की पीठ को सिंहासन बनाये इधर-उधर चोंच घुमाते हुये प्रकृति का नजारा देख रहा था। सुअर पीठ पर सवार कौवे की गतिविधियों से उदासीन इधर-उधर मुंह मार रहा था।
व्हीकल मोड़ से जीसीएफ़ के लिये मुडे तो देखा एक भाईजी सड़क किनारे पेड़ से गिरी लकडियां बीनकर साइकिल के कैरियर पर बांध रहे थे। नेपाली मूल के रमेश की पैदाइश जबलपुर की ही है। उमर 61 वीं लग गयी है।एक जगह सिक्योरिटी गार्ड का काम करते हैं। 4500/- महीने के मिलते हैं। शाम 6 से सुबह 6 की ड्यूटी बजाकर घर लौट रहे थे। रोज की तरह ईंधन के लिये लकड़ी बीनते हुये।
दो बच्चे हैं रमेश के। दसवीं और बाहरवीं में पढ़ते हैं। खुद पढ़ नहीं पाये लेकिन बच्चों को पढ़ाने में कोई कमी नहीं। खर्च बस चल जाता है। मकान खुद का है। बोले-"बस चल जाता है। जितनी आमदनी उतने में पार हो जाता है महीना। जुआ, तासपत्ती खेलते नहीं, दारू पीते नहीं, औरतबाजी भी नहीं। इस सबमें पैसा खर्चा होता है। बस गुजर हो जाती है किसी तरह। "
नेपाल में रिश्तेदार हैं। चाचा, ताऊ और अन्य भी। लेकिन न् तो वे इनसे मिलते हैं न वे इनसे। भूकम्प के समय जाने का बहुत मन था नेपाल लेकिन 20000 रुपये चाहिये किराये के लिये। फ़िर चीजें भी मंहगी हो गयी नेपाल में। यहां चाय 5 रुपये में मिल जाती है। वहां 10/15 की है।
घर में गैस भी है लेकिन मंहगी पड़ती है इसलिये लकड़ी भी जलाते हैं। गैस कम जलाते हैं। गैस सब्सिडी खतम करने को उतावले लोगों तक यह सूचना पहुंचेगी भी तो क्या होगा? निर्णयवीरों के लिये आदमी और संसाधन महज एक आंकड़ा होता है।
जीसीएफ़ में घनश्याम दास से मिलने गये। कल रिटायर हुये। रात को रिटायरमेंट की पार्टी में बुलाया था लोगों को। घर के बगल में टेंट अभी भी लगा था। घर के बाहर रखे घडों में पानी भरकर बाहर टहल रहे थे। रिटायरमेंट के बाद के जीवन की शुभकामनायें थमाकर हम आगे बढ़ लिये।
आगे आज दीपक गुप्ता से मिलना हुआ। दीपक हमारे ही कालेज में पढे हैं। एक साल बाद आये हमसे वहां। फ़िर आर्डेनेन्स फ़ैक्ट्री में भी हमारे पीछे चले आये। हम अपर महाप्रबंधक हुये तो देखा देखी अभी हाल ही में दीपक भी अपर महाप्रबंधक हो लिये। हमारे विभाग के बेहतरीन अधिकारियों में हैं दीपक। स्माल आर्मस उत्पादन में एक्स्पर्ट हैं। पिछले हफ़्ते ही जीसीएफ़ आये तबादले पर। स्माल आर्मस का एक्सपर्ट गन बनाने के काम में जुटेगा।
हम जब साइकिल से 1983 में भारत दर्शन के लिये निकले थे तो इलाहाबाद के बाद हमारा पहला पड़ाव बनारस था। दीपक का घर वहीं था। दीपक के पापा श्री ब्रज किशोर बीएचयू आई टी के मेकेनिकल विभाग में प्रोफ़ेसर थे। आज भी 79 साल की उमर में अमेरेट्स प्रोफ़ेसर हैं। स्पेशल क्लासेस लेते हैं। लेक्चर, लैब आदि।
करीब 13 साल पहले दीपक की पहली पत्नी का लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया। दो छोटे बच्चे थे। पत्नी की बीमारी के दौरान बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी निभाने लग थे दीपक। कुछ लोगों ने दुबारा शादी के सलाह दी। कुछ ने एतराज। दुबारा विवाह करें या न करें इस पर विचार करते हुये एक रिश्ता पता चला। लड़की के पति और बच्चे एक सड़क दुर्घटना में नहीं रहे थे। लड़की भी दो साल के इलाज के बाद चरने फ़िरने लायक हो सकी। फ़िर भी एक पैर सीधा ही रहता है। घुटना मुड़ता नहीं। पति के निधन के 7 साल बाद दीपक से शादी की बात चली।
रिश्ते पर कोई निर्णय लेने के लिये दीपक अपने दोनों बच्चों के साथ अपनी सम्भावित पत्नी बबिता से मिलने गये। चारों ने मिलकर दोनों की शादी की बात पक्की की। नक्की की। दो जिन्दगियां जो ठहर सी गयी थीं वे फ़िर से स्पन्दित हुयीं और गतिमान भी। आगरे के ग्रैंड होटल में हुई इस शादी का मैं भी गवाह बना।
दीपक के दोनों बच्चे अब इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हैं। बिटिया आकांक्षा 6 वीं में पढ़ती है। उसको स्केचिंग और पेंटिग का शौक है। जल्दी ही शायद यहां पोस्ट भी करें।
आज सालों बाद दीपक और बबिता को देखकर बहुत खुशी हुई। उनकी शादी के बाद पहली मुलाकात थी। अब तो अक्सर होगी। शहर जाते रास्ते में ही पड़ता है घर।बबिता ने चाय खूब अच्छी बनाई। फ़िर आम का पना भी। बेल भी खूब सारे लगे हैं दीपक के घर में। आम का पना पीते हुये बतियाते हुये हम बातचीत में इतना मशगूल हुये कि ध्यान ही नहीं रहा कि जो ग्लास हम मेज पर धर रहे हैं वहां मेज नहीं हवा थी। ग्लास हवा में रखा तो वह नीचे आकर जमीन से आ मिला। नतीजा ग्लास के कई टुकड़े हो गये। अब और कितने ग्लास और कम टूटेगे दीपक के यह आने वाला समय बतायेगा।
लौटकर आये तो पोस्ट टाइप करके फ़ेसबुक पर अपलोड करने की कोशिश की। लेकिन फ़ेसबुक ने मना कर दिया। कोई लफ़ड़ा रहा होगा। मजबूरन दुबारा टाइप करना पड़ी।
बहरहाल यह सब तो चलता है। आप मजे की कीजिये आराम से। इतवार मुबारक हो आपको।