Friday, August 31, 2018

’सूरज की मिस्ड कॉल’ को सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय पुरस्कार

कोई भी स्वचालित वैकल्पिक पाठ उपलब्ध नहीं है.
सूरज की मिस्ड कॉल

आज शाम को हम दफ़्तर से घर के लिये निकलने वाले थे कि हमारे हमनाम Anoop Mani Tripathi का संदेशा व्हाट्सएप पर मिला। पहले हम सोचे घर जाकर देखेंगे लेकिन फ़िर मन किया देखकर चलें। संदेश उप्र हिंदी संस्थान द्वारा जारी पुरस्कारों की सूची थी। हमने सोचा हमको काहे भेजा भाई जी ने! फ़िर उत्सुकतावश देखा तो एक जगह ’अनूप शुक्ल’ का नाम था। हम सोचे होंगे कोई हमारे नामराशि। अनूप नाम वाले वैसे भी जलवे दिखाते रहते हैं। लेकिन फ़िर बगल में किताब का नाम देखा तो दिखा - ’सूरज की मिस्ड कॉल।’ हम थोड़ा चौकन्ने हो गये।
ऊपर देखा तो इनाम राशि थी ७५०००/- हमें लगा मौज ली जा रही है। लेकिन फ़िर जब देखा तो लगा नहीं ये तो सही में इनाम की घोषणा है हमारे नाम से। ’सूरज की मिस्ड कॉल ’ को यात्रा/ रेखाचित्र / डायरी वर्ग में सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय पुरस्कार मिला। सभी पुरस्कारों की सूची का लिंक यह रहा : https://satyodaya.com/…/lucknow-live/hindi-institute-awards/
मजेदार अनुभव रहा यह। सूरज भाई अभी अमेरिका में चमक रहे होंगे। सुबह मिलेंगे तो बतायेंगे उनको भी। खुश हो जायेंगे। पक्का कहेंगे - ’यार, मजा आ गया। चाय पिलाओ इसी बात पर। किरणें भी खिलखिलाते हुये मजे लेते हुये कहेंगी- आपको इनाम मिल गया। ताज्जुब है, मतलब बधाई हो। किरणें कब बदमाश थोडी हैं।"
किताब आनलाइन http://rujhaanpublications.com/ से प्राप्त कर सकते हैं। किंडल का लिंक नीचे कमेंट बक्से में दिया है।
मजाक-मजाक में मिले इस इनाम के पीछे हमारे तमाम वे पाठक हैं जो हमारी सूरज भाई से जुड़ी पोस्ट्स बांचते रहे और हमारी सच्ची-झूठी तारीफ़ करते हुये हमको लिखने के लिये उकसाते रहे। अपने सभी प्यारे पाठक मित्रों-सहेलियों का आभार।


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Thursday, August 30, 2018

स्टेटस लिंचिंग



चित्र में ये शामिल हो सकता है: साइकिल
साइकिल की फोटो बड़े बेटे ने भेजी। अमेरिका से। इससे वह दफ्तर जाता है आजकल। 

दस स्टेटस लिखने की सोची सुबह से। सब अपलोड होने के पहले फूट लिए। बोले - 'हम न जाएंगे टाइम लाइन पर। लोग हमको कूट डालेंगे। ' स्टेटस लिंचिंग' चल रही है आजकल सोशल मीडिया में। हमारी जान को खतरा है। हम न जाते टाइमलाइन पर कुर्बान होने।'
हमने सबको हड़का दिया -'दफा हो जाओ मेरी निगाह के सामने से। मुंह मत दिखाना हमको। दफ्तर जाना है।'
सारे स्टेटस डरपोक बहादुर की तरह खिलखिल करके हंस रहे हैं। नठिया, हरजाई, मौसमी, बरसाती बदमाश कहीं के।
लौटकर निपटते सबसे। अभी जरा दफ्तर हो आएं।
साइकिल की फोटो बड़े बेटे ने भेजी। अमेरिका से। इससे वह दफ्तर जाता है आजकल। 

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Thursday, August 16, 2018

नानक दुखिया सब संसार

पेड़ से अलग हुआ पेड़ धूप में आराम करता हुआ

कल झंडा फहराते हुए घर लौटे। रास्ते में एक पेड़ दिखा। धूप में आराम सा करता हुआ। उसकी भी छुट्टी रही होगी। हवा में टांग फैलाकर अलसाया पेड़।

हमको पेड़ अलसाया, सोता और आराम करता दिखा। किसी को पेड़ से अलग हुआ पेड़ दिखेगा। अलग मतलब बड़े पेड़ की पार्टी छोड़कर छोटा पेड़ बना। अलग हुआ पेड़ अलफ़ नँगा पसरा था जैसे समुद्र तटों पर सैलानी धूप स्नान करते हैं। सैलानी तो फिर भी एकाध कपड़े पहने रहते हैं, पेड़ तो एकदम मुक्त अर्थव्यवस्था की तर्ज पर पूरा दिगम्बर। कोई कहेगा, बेहया है, बेशर्म है। दूसरे कहेंगे बोल्ड है, ब्यूटीफुल है। आप क्या कहते ?

सड़क और फुटपाथ से उतर कर दो रिक्शेवाले अपने रिक्शे में बैठे बतिया रहे थे। आम तौर पर स्कूली बच्चों को लाने का काम करते हैं। आज उनकी छुट्टी तो इनकी भी । बतिया रहे है तसल्ली से।

चित्र में ये शामिल हो सकता है: लोग बैठ रहे हैं, बाहर और प्रकृति
फुरसत से गप्पाष्टक
हमने पूछा आज छुट्टी तो रिक्शा लिया क्यों? किराया बेकार में दोगे। बोले -'आज किराया नहीं पड़ता।

आसपास के जिलों के रहने वाले रिक्शेवाले पता नहीं क्या बतिया रहे होंगे। गुफ्तगू का विषय क्या होगा हम कल्पना नहीं कर सकते। उन्होंने लालकिले का भाषण सुना नहीं होगा, चुनाव चर्चा भी नहीं करते लगे, अंतरिक्ष मे जाने का भी कोई प्लान नहीं दिखा उनके चेहरे पर। पता नहीं क्या कुछ बतिया रहे होंगे लेकिन उनकी तसल्ली देखकर बड़ा सुकून लगा। बिना किसी शिकायती अंदाज में तसल्ली से किसी को बतियाते देखना भी सुकून देह है।

वहीं फुटपाथ पर पानी का पाउच हाथ में लिए एक और आदमी दिखा। अपनी मर्जी से ही उसने देश के हाल पर कमेंट्री शुरू कर दी। लब्बोलुआब यह कि सब अमीर लोग खुश हो रहे हैं, गरीब पिट रहे हैं। कोई किसी की चिंता नहीं करता, सब अपना पेट भरने में लगे हैं।

'नानक दुखिया सब संसार' कहते हुए बोले --'किसी के सामने अपना दुखड़ा नहीं रोना। सबके पास अपने रोने हैं। तुम नौ आने का दुख सुनाओगे अगला बारह आने का पेल देगा। उसके दुख की बाढ़ में तुम्हारा दुख बह जाएगा। इसलिए अपने में मस्त रहो।
चित्र में ये शामिल हो सकता है: एक या अधिक लोग, वृक्ष, बाहर और प्रकृति
नानक दुखिया सब संसार
बतियाने पर पता चला कि वो ज्ञानी बुजुर्ग ओएफसी से 2012 में रिटायर हैं। सेल मशीन में थे। गोला छीलते थे। शाम को लौट कर अपनी पान की दुकान चलाते थे। आज भी बैठते हैं पर शाम को। साहू पान भंडार ।
हमने उस समय के अधिकारियों के नाम लेते हुए पूछा सुशील ठाकुर जी को जानते हो? ए एन श्रीवास्तव को जानते हो?
बोले - ठाकुर साहब को कौन नहीं जानता। वो तो अब रिटायर हो गए। श्रीवास्तव साहब भी बहुत बढिया अफसर था। हमारे लिए रेस्ट रूम बनवाया। खूब काम किया, करवाया।
सुशील ठाकुर जी हमारे पहले बॉस थे। अकेले ऐसे अधिकारी जिनकी मेहनत के चलते हम उनका अदब करने के साथ डरते भी थे। 
ए एन हमारे साथ के हैं। आजकल अंबाझरी में हैं। डिपार्टमेंट के सबसे कुशल अधिकारियों में से एक।
हमने बताया - हम भी वहीं थे। आजकल ओपीएफ में हैं।
हमारा हाथ जबरन अपने सर पर धरकर आशीर्वाद ले लिए।
उसी समय हमने ए एन से बात की। बताया कि उनके फैन सड़क पर, फुटपाथ पर मिले। संयोग यह भी कि आज ही सुबह सुबह ठाकुर साहब ने हमारी पुरानी पोस्ट्स पढ़ने के बाद हमको फोन किया यह कहते हुये-- 'तुम्हारी पोस्ट पढ़ने में मजा बहुत आता है। रिटायरमेंट के बाद पढ़ते हुए समय बढिया कटता है।'
आगे हीर पैलेस के सामने झंडे बिक रहे थे। टीवी पर स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम आ रहे थे।

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Sunday, August 12, 2018

संपन्न होते देश की बढ़ती गरीबी

फुटपाथ पर देश का बचपन
सबेरे सड़क दर्शन को निकले। सड़क पर एक कुत्ता टहलता दिखा। टहलता कम घिसटता ज्यादा। आगे के दो पैर इंजन की तरह चलते। पीछे के पैर डब्बे की तर्ज पर घिसटते हुए।
आगे के पैर सीधे जा रहे थे। पीछे के पैर दाईं तरफ घिसटते हुए। आगे के पैरों की दिशा से समकोण बनाते हुए। परिणामी दिशा कहीं बीच की होगी लेकिन अंततः कुत्ता सीधे ही बढ़ रहा था। शायद किसी स्कूटर, मोटरसाइकिल ने ठोंक दिया होगा। कमर की हड्डी बोल गई होगी। किसी समर्थ घर में होता तो जानवरों के डॉक्टरों को दिखाया जाता। न्युरो इलाज होता। लेकिन सड़क के कुत्ते को यह कहां नसीब।
सामने से एक बच्चा बारिश से बचने के लिए थर्मोकोल का बक्सा ओढ़े चला जा रहा था। पूरी मुंडी बक्से के अंदर घुसी हुई। पहले बारिश से बचने के लिए लोग बोरा ओढ़ते दिखते थे। लेकिन वह भीगने के बाद भारी हो जाता होगा।
सड़क किनारे काली बरसातियों की तंबू नुमा झोपड़ियां बनी हुई है। लोग उनमें शरण लिए हुए सो रहे हैं। पालिथिन ने प्रदूषण बहुत मचाया है लेकिन पालीथिन 'गरीब मित्र' मने 'पुअर फ्रेंडली' है। सस्ती और टिकाऊ। जहाँ जगह दिखी, जमा दिया घर।
एक चाय की दुकान पर रुके। चाय पी। लोग ठेलिया के आसपास जमे, चौपाल लगाए चाय पी रहे थे। सड़क पर उकडू बैठे चाय पीते।
सामने फुटपाथ पर एक बच्ची कांच के ग्लास में चाय पीती दिखी। उससे बतियाये। आरती नाम है बच्ची का। मां-बाप कबाड़ बीनते-बेचते हैं।
हमने पूछा -'पढ़ने जाती हो?'
बोली -'नहीं।'
हमने पूछा -' क्यों?'
यहाँ पुलिस वाले रोज-रोज झोपड़ी तोड़ देते हैं। सब सामान उठा कर ले जाना होता है। ठेलिये पर ले जाते हैं। कुछ दिन बाद फिर आ जाते हैं। कुछ दिन बाद फिर आ जाते हैं। जगह तय नहीं इसलिए स्कूल नहीं जाती।
बगल की झोपड़ी में दो बच्चियां एक खटिया में गुड़ी-मुड़ी हुई सो रहीं थी। उनमें से एक स्कूल जाती हैं। दूसरी नहीं जाती। अपने देश का बहुत बड़ा हिस्सा इसी तरह जिंदगी जीता है। रोज उजड़ता-रोज बसता। इस हिस्से के लिए अनगिनत योजनाएं बनती हैं लेकिन वे सब की सब भटके हुए ड्रोन की तरह इन तक पहुंचने के पहले ही फुस्स हो जाती हैं।
हम इन जैसे बच्चों के पढाई के इंतजाम के बारे में सोचते हैं। संवेदना प्रकट करके जिम्मेदारी के पूरा होने का एहसास कर लेते हैं। आज भी यही किया। बहुत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के बावजूद इस मामले में दिन पर दिन गरीब होते जा रहे हैं।
बच्ची की झोपड़ी के पास से नाली बहती है। संभ्रांत इलाके के पास होने के नाते उसमें बदबू और गैस नहीं बनती। लकड़ियां बीनकर खाना बनाता है परिवार। हमारे देखते ही लड़की चाय का खाली ग्लास लेकर उठकर बगल की झोपड़ी के लोगों से मिलने चली जाती है।
हम लौट आते हैं।
गंगा दर्शन बहुत दिन से नहीं हुए। आज देखने गए तो गंगा खूब पानीदार हो गयी हैं। गर्मी में सुस्त सी बहती, दुबली पतली गंगा अब खूब 'जल स्वस्थ' हो गयी हैं। दोनों किनारों तक विस्तार। पानी में तमाम कूड़ा-कचरा भी है। अचानक अमीर/ताकतवर हुये आदमी के पास दांए-बायें से भी संपत्ति/ताकत आती है उसी तरह अचानक बढ़ी हुई नदी में कूड़ा-कचरा भी आता है। ताकत के साथ नदी की तेजी भी बढ़ गयी है। बहुत तेजी से बह रही है। किसी की परवाह किये बिना।
सूरज भाई अभी दिखे नहीं हैं। दिखेंगे कुछ देर में। लेकिन दिन तो शुरू ही हो चुका है।

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Sunday, August 05, 2018

मित्रता दिवस पर मित्र से मुलाकात

चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, बाहर और क्लोज़अप
हैप्पी फ़्रेण्डशिप दिन - पंकज बाजपेयी
आज इतवार का दिन ! मित्रता दिवस साथ में। मतलब सोने में सुहागा! कुछ लोगों के लिए यही करेला ऊपर से नीम चढ़ा लगा होगा।

सबेरे से सोशल मीडिया पर मित्रता दिवस के संदेश दंगाईयों की भीड में कट्टे की तरह या फ़िर नेताओं की सभा में जुमलों की तरह लहराने लगे। जिधर देखो उधर मित्र भाव।

वैसे तो बजरिये फ़ेसबुक अपन के हज्जारो मित्र/सहेलियां हैं लेकिन ऐसे मित्र कम ही होंगे जो मिलने का इंतजार करें। हमारे पंकज भाई शायद ऐसे अकेले दोस्त होंगे जो रोज डेली हमारा इंतजार करते होंगे। पिछले कई इतवार मुलाकात हुई नहीं। आज सोचा मिला जाये।
घर से निकले तो सड़क पर एक कुत्ता लेटा दिखा। ऐसे जैसे अपने घर के आंगन में लेटा हो। उसकी नींद में खलल डाले बिना हम आगे निकल गये। तिवारी स्वीट्स हाउस से पंकज भाई के लिये जलेबी, दही,समोसे लिये। मन किया अपन भी भोग लगा लें। लेकिन फ़िर सोचा लौटकर तसल्ली से खायेंगे।
सुबह के समय सड़क साफ़ थी। मने भीड़ नहीं थी। कुछ ही देर में पंकज भाई के पास पहुंच गये। देखते ही लपककर आये और शिकायत की- ’दो महीने आये नहीं। हम इंतजार करते थे।’
बहुत दिन बाद आने का बहाना व्यस्तता बताकर हाल-चाल पूछा। पंकज बाजपेयी ने अपडेट दिया:
-रजोल गुंडा है। उसको पकड़वाना है।
-कोहली दाउद का आदमी है। बच्चे चुराता है।
-बुआ जी को सब खबर रहती है। उनसे मिल लो।
- गाड़ी बढिया वाली ले लो। टॉप क्लास की। ये पुरानी हो गयी। हम दिला देंगे नयी गाड़ी बढिया।
और भी कई बातों के अलावा मिठाई वाले की शिकायत कि वो मिठाई देता नहीं। हमने पूछा -क्या खाओगे?
बोले - दूध की बरफी।
१०० ग्राम दूध की बर्फ़ी दिलाई। लेकर झोले में धर ली। बोले- ’बाद में खायेंगे।’
हमने कहा - हमको नहीं खिलाओगे?
बोले- ’इससे नहीं खिलायेंगे। इसको हम शाम तक खायेंगे।’
इसके बाद छांटकर सबसे बड़ा वाला बिस्कुट का पैकेट लिया। फ़िर मामा की दुकान से चाय। इसके बाद हमारी लाई हुई दही, जलेबी, समोसा कब्जे में लेकर धर लिये।
चलते समय दस रुपये खर्चे के मांगे। हमने दे दिये। बोले -’जल्दी आया करो।’
हमने कहा - ’आयेंगे लेकिन तुम इत्ती मिठाई क्यों खाते हो? बहुत मिठाई प्रेमी हो।’
हंसने लगे। साथ की जलेबी की तरफ़ इशारा करते हुये बोले -’इसमें माल है।’
हमने फ़्रेंडशिप डे की बधाई दी। हाथ मिलाया। उन्होंने पांव छूने वाले मुद्रा में हाथ बढाया। बोले - ’तुम भाई हो। किसी बात की चिन्ता न करना। हम सबको देख लेंगे।’
फ़्रेंडशिप का फ़ीता काटकर हम वापस लौटे। बरस्ते चमनगंज, परेड, कोतवाली। रास्ते में तमाम लोग सड़क किनारे ऊंधते हुये दिखे। एक जगह रिक्शेवाला अपने रिक्शे पर बैठा सुबह का अखबार बांच रहा था। कोतवाली के पास चाय की दुकान पर चाय पी।वहीं दो आदमी आपस में बीड़ी सुलगाते हुये एक दूसरे के बहुत नजदीक आये और बीड़ी सुलग जाने पर अलग थोड़ा दूर हो गये।
बीड़ी लोगों को पास लाने , जोड़े का बहुत उत्तम साधन है। बीड़ी पीते लोग बिना किसी बहस के आपस में जुड़ जाते हैं। उनके बीच बीड़ीचारा बहुत तेजी से पनप जाता है। बड़ी बात नहीं कि इस बीड़ीचारे की भावना का उपयोग राजनीतिक पार्टियां चुनाव के समय करने लगें। साथ मिलकर बीड़ी पीने लगें।
सामने से एक प्यारा , मासूम सा बच्चा बस्ता टांगे अपने से बतियाता सा चला जा रहा था। उसकी मासूमियत से खुद से बतियाती सी मुद्रा देखकर अपने बच्चे याद आ गये। वे भी कभी ऐसे ही किसी ख्यालों में गुम खुद से बतियाते सड़क पर आते जाते गुजरे होंगे।
वहीं दो महिलायें एक दूसरे का हाथ कसकर थामे तेजी से चली जा रही थीं। ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेगें वाली मुद्रा में थमा हाथ सड़क पार करते हुये और कस गया। सामने से आते ट्रक को देख दोनों भागती हुई सड़क पार करके फ़िर मुस्कराते हुये दुलकी चाल से चलते हुयी चली गयीं।
एक जगह पेड़ की डाल पर बच्चियां झूला झूल रहीं थीं। धोती को झूले की रस्सी की तरह फ़ंसा कर झूलती हुई। कुछ देर में वही रस्सी खुल गयी और झूले के पाटे की तरह फ़ैल गयी। बच्चियां मजे से झूलने का मजा लेती रहीं।
एक ठेले के नीचे दो बकरियां सहमी सी मुद्रा में बैठी पगुरा रहीं थीं। उनके सहमने का कारण शायद राजस्थान आई बकरी से सामूहिक दुष्कर्म की खबर रही होगी। शायद उनकी बिरादरी में चर्चा भी हुई हो। क्या पता - ’आजकल जमाना बड़ा खराब है’ कहते हुये बकरियों ने गाना भी मिमियाया हो:
दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा,
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा।
इसी तरह के नजारे देखते हुये वापस लौटे। लौटने तक आधा मित्रता दिवस निपट गया था। बाकी का भी बस निपटा ही समझा जाये।
आपको मित्रता दिवस की शुभकामनायें।

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