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हैप्पी फ़्रेण्डशिप दिन - पंकज बाजपेयी |
आज इतवार का दिन ! मित्रता दिवस साथ में। मतलब सोने में सुहागा! कुछ लोगों के लिए यही करेला ऊपर से नीम चढ़ा लगा होगा।
सबेरे से सोशल मीडिया पर मित्रता दिवस के संदेश दंगाईयों की भीड में कट्टे की तरह या फ़िर नेताओं की सभा में जुमलों की तरह लहराने लगे। जिधर देखो उधर मित्र भाव।
वैसे तो बजरिये फ़ेसबुक अपन के हज्जारो मित्र/सहेलियां हैं लेकिन ऐसे मित्र कम ही होंगे जो मिलने का इंतजार करें। हमारे पंकज भाई शायद ऐसे अकेले दोस्त होंगे जो रोज डेली हमारा इंतजार करते होंगे। पिछले कई इतवार मुलाकात हुई नहीं। आज सोचा मिला जाये।
घर से निकले तो सड़क पर एक कुत्ता लेटा दिखा। ऐसे जैसे अपने घर के आंगन में लेटा हो। उसकी नींद में खलल डाले बिना हम आगे निकल गये। तिवारी स्वीट्स हाउस से पंकज भाई के लिये जलेबी, दही,समोसे लिये। मन किया अपन भी भोग लगा लें। लेकिन फ़िर सोचा लौटकर तसल्ली से खायेंगे।
सुबह के समय सड़क साफ़ थी। मने भीड़ नहीं थी। कुछ ही देर में पंकज भाई के पास पहुंच गये। देखते ही लपककर आये और शिकायत की- ’दो महीने आये नहीं। हम इंतजार करते थे।’
बहुत दिन बाद आने का बहाना व्यस्तता बताकर हाल-चाल पूछा। पंकज बाजपेयी ने अपडेट दिया:
-रजोल गुंडा है। उसको पकड़वाना है।
-कोहली दाउद का आदमी है। बच्चे चुराता है।
-बुआ जी को सब खबर रहती है। उनसे मिल लो।
- गाड़ी बढिया वाली ले लो। टॉप क्लास की। ये पुरानी हो गयी। हम दिला देंगे नयी गाड़ी बढिया।
और भी कई बातों के अलावा मिठाई वाले की शिकायत कि वो मिठाई देता नहीं। हमने पूछा -क्या खाओगे?
बोले - दूध की बरफी।
१०० ग्राम दूध की बर्फ़ी दिलाई। लेकर झोले में धर ली। बोले- ’बाद में खायेंगे।’
हमने कहा - हमको नहीं खिलाओगे?
बोले- ’इससे नहीं खिलायेंगे। इसको हम शाम तक खायेंगे।’
इसके बाद छांटकर सबसे बड़ा वाला बिस्कुट का पैकेट लिया। फ़िर मामा की दुकान से चाय। इसके बाद हमारी लाई हुई दही, जलेबी, समोसा कब्जे में लेकर धर लिये।
चलते समय दस रुपये खर्चे के मांगे। हमने दे दिये। बोले -’जल्दी आया करो।’
हमने कहा - ’आयेंगे लेकिन तुम इत्ती मिठाई क्यों खाते हो? बहुत मिठाई प्रेमी हो।’
हंसने लगे। साथ की जलेबी की तरफ़ इशारा करते हुये बोले -’इसमें माल है।’
हमने फ़्रेंडशिप डे की बधाई दी। हाथ मिलाया। उन्होंने पांव छूने वाले मुद्रा में हाथ बढाया। बोले - ’तुम भाई हो। किसी बात की चिन्ता न करना। हम सबको देख लेंगे।’
फ़्रेंडशिप का फ़ीता काटकर हम वापस लौटे। बरस्ते चमनगंज, परेड, कोतवाली। रास्ते में तमाम लोग सड़क किनारे ऊंधते हुये दिखे। एक जगह रिक्शेवाला अपने रिक्शे पर बैठा सुबह का अखबार बांच रहा था। कोतवाली के पास चाय की दुकान पर चाय पी।वहीं दो आदमी आपस में बीड़ी सुलगाते हुये एक दूसरे के बहुत नजदीक आये और बीड़ी सुलग जाने पर अलग थोड़ा दूर हो गये।
बीड़ी लोगों को पास लाने , जोड़े का बहुत उत्तम साधन है। बीड़ी पीते लोग बिना किसी बहस के आपस में जुड़ जाते हैं। उनके बीच बीड़ीचारा बहुत तेजी से पनप जाता है। बड़ी बात नहीं कि इस बीड़ीचारे की भावना का उपयोग राजनीतिक पार्टियां चुनाव के समय करने लगें। साथ मिलकर बीड़ी पीने लगें।
सामने से एक प्यारा , मासूम सा बच्चा बस्ता टांगे अपने से बतियाता सा चला जा रहा था। उसकी मासूमियत से खुद से बतियाती सी मुद्रा देखकर अपने बच्चे याद आ गये। वे भी कभी ऐसे ही किसी ख्यालों में गुम खुद से बतियाते सड़क पर आते जाते गुजरे होंगे।
वहीं दो महिलायें एक दूसरे का हाथ कसकर थामे तेजी से चली जा रही थीं। ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेगें वाली मुद्रा में थमा हाथ सड़क पार करते हुये और कस गया। सामने से आते ट्रक को देख दोनों भागती हुई सड़क पार करके फ़िर मुस्कराते हुये दुलकी चाल से चलते हुयी चली गयीं।
एक जगह पेड़ की डाल पर बच्चियां झूला झूल रहीं थीं। धोती को झूले की रस्सी की तरह फ़ंसा कर झूलती हुई। कुछ देर में वही रस्सी खुल गयी और झूले के पाटे की तरह फ़ैल गयी। बच्चियां मजे से झूलने का मजा लेती रहीं।
एक ठेले के नीचे दो बकरियां सहमी सी मुद्रा में बैठी पगुरा रहीं थीं। उनके सहमने का कारण शायद राजस्थान आई बकरी से सामूहिक दुष्कर्म की खबर रही होगी। शायद उनकी बिरादरी में चर्चा भी हुई हो। क्या पता - ’आजकल जमाना बड़ा खराब है’ कहते हुये बकरियों ने गाना भी मिमियाया हो:
दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा,
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा।
इसी तरह के नजारे देखते हुये वापस लौटे। लौटने तक आधा मित्रता दिवस निपट गया था। बाकी का भी बस निपटा ही समझा जाये।
आपको मित्रता दिवस की शुभकामनायें।
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