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सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना
By फ़ुरसतिया on November 26, 2007
हमारी माताजी तो अक्सर कोई न कोई गीत गुनगुनाया करती हैं। बहुत दिन पहले उनके द्वारा गाई एक लोरी रिकार्ड की थी। आज उसे खोज रहा था लेकिन सोचा कि इसकी वीडिओ रिकार्डिंग क्यों न की जाये। बस फिर क्या, हमारे छोटे सुपुत्र के हाथ में मोबाइल था और धूप में बैठी कुछ काट रही अम्मा की रिकार्डिंग शुरू हो गयी। स्वामीजी को दिखाई तो बोले हिल रही है। लेकिन बच्चा रिकार्डिंग होने के नाते इत्ता तो चलेगा।
अम्मा ने अकसर अपने भैया के गीत गुननुनाती हैं। एक फ़ेफ़ड़ा काफ़ी समय पहले टी.बी. से खराब हो गया था। पिछले साल पैरालिसिस का हमला झेला। आजकल सांस के तकलीफ़ है। आंख का आपरेशन अभी पिछले महीन करवाया। हर दूसरे दिन कहती हैं -अनूप, अभै रोशनी सही नहीं है। हम कहते हैं -अइहै ,तुम तो परेशान हो बिना मतलब अम्मा!
उन्होंने अपने बच्चों से एक-एक अक्षर मिलाकर पढ़ना सीखा। अब रोज अखबार और रामायण पढ़ती हैं और अनगिनत चौपाइयां उनको याद हैं। कहावतें, मुहावरे भी तमाम उनकी जवान पर रहते हैं।
कुछ दिन पहले उनकी एक तमन्ना पूरी हुयी कि उनका बैंक में अकाउन्ट हो। इसके लिये उन्होंने अपना दस्तखत करना सीखा। हम कहते हैं -अम्मा तुम बहुत चालू हॊ । हमसे पैसा लेके बैंक में डाल देती हो और कभी निकालती नहीं हो। कुछ दिन पहले तक नियमित हमसे बैंक में पैसा डलवाती रहीं। अब बैंक दूर हो जाने के कारण क्रम टूट सा गया है। गाहे-बगाहे हमें उलाहना भी देती हैं- तुमने बैंक में पैसा नहीं जमा करवाये। बहुत उधार चढ़ गया है जी हमारे ऊपर।
एक दिन हम कोई सामान खोज रहे थे। मिला नहीं। अम्मा न जाने कहां से खोज लायीं। कहते हुये- हमका ऐसा-वैसा न समझो हम बड़े काम की चीज।
टीवी की शौकीन हैं। हर माह बच्चों की पढ़ाई के चलते यह तय होता है कि टीवी का ये आखिरी महीना है। इसके बाद टीवी बंद। लेकिन न जाने कितने आखिरी महीने आकर चले गये और टीवी दर्शन चालू आहे।
तमाम अभावों में पाल-पोस कर बड़ा किया हम भाइयों और एक अकेली बहन को अम्मा नें। वे रहती हमारे साथ हैं लेकिन ,सहज-स्वाभाविक मां के दिल की तरह ,चिन्ता के तार बाकी सबसे जुड़े रहते हैं। कन्हैयालाल बाजपेयी की कविता है न!
बातें न जाने कित्ती हैं। लेकिन फिर कभी। फिलहाल तो अभी आप ये हिलता हुआ वीडियो देखिये और लोरी सुनिये- सपनों की डोर पड़ी पलकों का पालना।
सूचना:दो साल पहले इसे रिकार्ड किया था। इस बीच जिस सेवा से यह रिकार्ड किया था वह कामर्शियल हो गयी और यह वीडियो दिखना बंद हो गया। तब आज 22.11.09 को फ़िर इसे रिकार्ड किया और यू ट्यूब पर अपलोड किया।
https://www.youtube.com/watch?v=2lN5qRNaOMU
सो जा मेरी रानी मेरा कहना न टालना।
पलको की ओट तोहे निंदिया पुकारे,
देख रहे राह तेरी चन्दा सितारे,
भोली-भाली बतियों का जादू न डालना,
सो जा मेरी रानी मेरी कहना न टालना।
जल्दी जो सोये और जल्दी जो जागे,
जीवन की तौड़ पर सत्य रहे आगे,
प्यारे है बच्चा मोहे कहना जो माने
जुग-जुग जीवे झूले सोने का पालना।
सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना,
सो जा मेरी रानी मेरा कहना न टालना।
रचनाकार -अज्ञात
अम्मा ने अकसर अपने भैया के गीत गुननुनाती हैं। एक फ़ेफ़ड़ा काफ़ी समय पहले टी.बी. से खराब हो गया था। पिछले साल पैरालिसिस का हमला झेला। आजकल सांस के तकलीफ़ है। आंख का आपरेशन अभी पिछले महीन करवाया। हर दूसरे दिन कहती हैं -अनूप, अभै रोशनी सही नहीं है। हम कहते हैं -अइहै ,तुम तो परेशान हो बिना मतलब अम्मा!
हमारे घर में सबसे ज्यादा ‘अवधिंग्लिस’ अगर कोई बोलता है तो वो हमारा अम्मा हैं। टेंशन न लेव, प्रोग्रामै नहीं पता चलत आय, उई लेफ़्फ़्राइट कई के चले गये।
नयी चीजों को ग्रहण करने का उत्साह उनमें जबरदस्त है। हमारे घर में सबसे ज्यादा ‘अवधिंग्लिस’ अगर कोई बोलता है तो वो हमारा अम्मा हैं। टेंशन न लेव, प्रोग्रामै नहीं पता चलत आय, उई लेफ़्फ़्राइट कई के चले गये। उन्होंने अपने बच्चों से एक-एक अक्षर मिलाकर पढ़ना सीखा। अब रोज अखबार और रामायण पढ़ती हैं और अनगिनत चौपाइयां उनको याद हैं। कहावतें, मुहावरे भी तमाम उनकी जवान पर रहते हैं।
कुछ दिन पहले उनकी एक तमन्ना पूरी हुयी कि उनका बैंक में अकाउन्ट हो। इसके लिये उन्होंने अपना दस्तखत करना सीखा। हम कहते हैं -अम्मा तुम बहुत चालू हॊ । हमसे पैसा लेके बैंक में डाल देती हो और कभी निकालती नहीं हो। कुछ दिन पहले तक नियमित हमसे बैंक में पैसा डलवाती रहीं। अब बैंक दूर हो जाने के कारण क्रम टूट सा गया है। गाहे-बगाहे हमें उलाहना भी देती हैं- तुमने बैंक में पैसा नहीं जमा करवाये। बहुत उधार चढ़ गया है जी हमारे ऊपर।
खासकर छोटा वाला उनका खासा दुलारा है। इस दुलार के चलते वह चटर-पटर खाता है, पटर-पटर बोलता है टुकुर-टुकुर टीवी देखता है और मौका मिलते ही सट्ट से खेलने निकल जाता है।
हमारे बच्चे , खासकर छोटा वाला उनका खासा दुलारा है। इस दुलार के चलते वह चटर-पटर खाता है, पटर-पटर बोलता है टुकुर-टुकुर टीवी देखता है और मौका मिलते ही सट्ट से खेलने निकल जाता है। हम अक्सर उलाहना भी देते हैं- अम्मा तुम्हारे लड़के तो जो बनने थे बन गये अच्छे खराब। अब हमारे लड़कों को काहे बरबाद करने पर तुली हो। हंसने और खींझने के अलावा उनके पास और कोई जबाब नहीं होता क्योंकि वे हमारे भी तो कुछ लगते हैं जबाब मान्य नहीं होता है। वो तो हैं ही। कभी-कभी ये जरूर चल जाता है -अच्छा, चलो तुम बहुत बकबास न करो। कभी-कभी बहुत दिन हो जाते हैं कायदे से अम्मा से बतियाये हुए। चलते-चलते गुदगुदी कर देना, गाल नोच लेना और उठा के इधर-उधर बैठा देना चलता रहता है।
कभी-कभी बहुत दिन हो जाते हैं कायदे से अम्मा से बतियाये हुए। चलते-चलते गुदगुदी कर देना, गाल नोच लेना और उठा के इधर-उधर बैठा देना चलता रहता है। समय के साथ , तमाम बीमारियों के चलते, अपने अशक्त होने की बात उनको कष्ट कर लगती है। पहले वे हमारे यहां की सबसे एक्टिव सदस्य थीं। इधर उनको काम करने की सख्त मनाही है लेकिन जरा सा ठीक होते ही अपनी तानाशाही फिरंट में शुरू हो जाती हैं। आज ही बड़े धांसू लड्डू बनाये। सुबह से शाम तक लगी रहीं। धूप में बैठी वे बादाम छील रहीं थीं जब यह रिकार्डिंग की गयी।एक दिन हम कोई सामान खोज रहे थे। मिला नहीं। अम्मा न जाने कहां से खोज लायीं। कहते हुये- हमका ऐसा-वैसा न समझो हम बड़े काम की चीज।
टीवी की शौकीन हैं। हर माह बच्चों की पढ़ाई के चलते यह तय होता है कि टीवी का ये आखिरी महीना है। इसके बाद टीवी बंद। लेकिन न जाने कितने आखिरी महीने आकर चले गये और टीवी दर्शन चालू आहे।
तमाम अभावों में पाल-पोस कर बड़ा किया हम भाइयों और एक अकेली बहन को अम्मा नें। वे रहती हमारे साथ हैं लेकिन ,सहज-स्वाभाविक मां के दिल की तरह ,चिन्ता के तार बाकी सबसे जुड़े रहते हैं। कन्हैयालाल बाजपेयी की कविता है न!
संबध सभी ने तोड़ लिये,जित्ता हमारी तरफ़दारी करके हमारा पक्ष वे लेती हैं उससे ज्यादा चूना वे हमारी तमाम बचपन की चुगलियां कर-करके लगा देती हैं। अनूप ये नहीं करते थे, वो करते थे। ऐसे करते थे, वैसे नहीं कर पाते थे। एक बात का फ़ैसला अभी तक होना बाकी है। उनकी बहूरिया अभी तक यह मानने को राजी नहीं थी कि हम बचपन में लकड़ी के चूल्हें में घर का खाना बनाया करते थे। जब अम्मा गांव में रहतीं थी। लेकिन पिछले कुछ दिन से जब से हम बच्चों के लिये सबेरे का नास्ता बनाने लगे हैं कभी-कभी तो कुछ-कुछ मानने का मन बन गया है उनका भी। जीत आखिर सत्य की होनी है।
चिंता ने कभी नहीं तोड़े,
सब हाथ जोड़े कर चले गये,
पीड़ा ने हाथ नहीं जोड़े।
बातें न जाने कित्ती हैं। लेकिन फिर कभी। फिलहाल तो अभी आप ये हिलता हुआ वीडियो देखिये और लोरी सुनिये- सपनों की डोर पड़ी पलकों का पालना।
सूचना:दो साल पहले इसे रिकार्ड किया था। इस बीच जिस सेवा से यह रिकार्ड किया था वह कामर्शियल हो गयी और यह वीडियो दिखना बंद हो गया। तब आज 22.11.09 को फ़िर इसे रिकार्ड किया और यू ट्यूब पर अपलोड किया।
https://www.youtube.com/watch?v=2lN5qRNaOMU
सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना
सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना
सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालनासो जा मेरी रानी मेरा कहना न टालना।
पलको की ओट तोहे निंदिया पुकारे,
देख रहे राह तेरी चन्दा सितारे,
भोली-भाली बतियों का जादू न डालना,
सो जा मेरी रानी मेरी कहना न टालना।
जल्दी जो सोये और जल्दी जो जागे,
जीवन की तौड़ पर सत्य रहे आगे,
प्यारे है बच्चा मोहे कहना जो माने
जुग-जुग जीवे झूले सोने का पालना।
सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना,
सो जा मेरी रानी मेरा कहना न टालना।
रचनाकार -अज्ञात
Posted in पाडकास्टिंग, बस यूं ही | 47 Responses
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keep it up.
thanks for writing such words for mother.
Mauj aa gayee
” अम्मा जी का किस्सा ” पढकर हमेँ इतनी प्रसन्नता हुई है कि क्या बतायेँ !!
- आदरणीय हमारी अम्मा जी को पा लागीँ कहना — हमेशा वे आपकी इसी तरहा अच्छी खबर लेती रहे यही श्री कृष्न से मेरी प्रार्थना है -
- और लोरी सुनकर असीम आनँद आया – सो, धन्यवाद !
अगर अम्मजी के हाथ से बने लड्डू खाने का सौभाग्य मिले तब तो जीवन धन्य हो जायेगा
अनूप जी , आप सच मेँ बढिया – ब्लोगिये हो — लिखते रहियेगा -
स स्नेह,
-लावण्या
हमने ये भी देख लिया, आजी की याद आ गयी हमे तो
और यह सवेरे सवा चार बजे लिख रहा हूं तो अम्मा मेरे कमरे में आकर चाय और उलाहना दे कर गयी हैं – रतिया के नींद आवथ कि इंही में मूड़ी गड़ाये रहथ्य।
ये अम्मा लोग ईश्वर का नायाब क्रीयेशन हैं।
आपने अपनी अम्माजी के बारेमें लिख कर मेरे कई तार झन्कृत कर दिये। उन्हे मेरी सादर पैलगी।
फ़िलहाल रात भर से सोया नही!! और “सुबह-सुबह डिब्बे में सर लगा दिया” ( जैसा कि मेरी मां अभी मुझे कहकर गई)
सो ये मस्त लोरी सुनकर शायद मुझे नींद आ जाए! अपन चले सोने!!
अगली दफा रेकॉर्डिंग के समय फोन को (या कैमरे को)किसी स्थिर वस्तु जैसे कि कुर्सी की पुश्त पर टिका कर रखेंगे तो फिल्म हिलेगी नहीं.
पर ऐसा क्यों होता है कि सभी मांएं मूल को खेंचकर रखती हैं और ब्याज को बड़ी ढील देकर रखती हैं .
उनकी ‘अवधींग्लिश’ को सुनने और विवेचित करने का मन है . बच्चों को लगा दीजिए उनके मुंह से सुने ऐसे मुहावरे नोट करने के लिए जो सामान्यतः सुनने में नहीं आते,पुस्तकों में नहीं ही मिलते हैं . यह बड़ा काम होगा .
ज्ञान जी ने बहुत सही लिखा है कि “ये अम्मा लोग ईश्वर का नायाब क्रीयेशन हैं।” कहते हैं ईश्वर हर जगह नहीं हो सकता इसलिए उसने मां को सिरजा .
बेहतरीन पोस्ट . आभार !
आपने तो नहीं बताया फिर भी हमने काहे जिया सुन लिया। बड़ा आश्चर्य हुआ। एक तो अम्माजी की सुरीली आवाज और दूसरे पूरा गाना बिना अटके गाना ( याद रखना)
हमारी तरफ से भी चरण स्पर्श कहियेगा..
बहुत ही बढ़िया लगी आज की पोस्ट. धन्यवाद
सुख की छाया तू दुःख के जंगल में… सी। तो देखिये ना बरबस ही हम जैसे नाकारा लोग भी आपके चिट्ठे की तरफ खिंचे चले आये माँ की लोरी की चाह में…..! इस उमर में भी कितनी मधुरता है माता जी की आवाज़ में और लयबद्धता भी! मेरा प्रणाम!
सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना
सो जा मेरी रानी मेरा कहना न टालना।
माताजी की लोरी सुनकर ना जाने क्यों, मुझे अपनी माँ की याद आ गयी। बहुत सौभाग्यशाली होते है वो लोग जिन पर माँ का साया रहता है।
एक सुन्दर लोरी के लिए हमारी तरफ़ से माताजी को बहुत बहुत धन्यवाद।
बहुत मीठी और प्यारी सी लगी उन की लोरी ।
आलोक जी सच कहते है मां का साया सर पर बना रहे तो जिन्दगी आसान हो जाती है। माता जी को मेरा सादर प्रणाम्।
पढ़ कर अपनी भी बहुत सी यादें ताजा हो गयीं।
शायद सारी मांये ऐसी ही होती हैं। इनका होना ही हमें शक्तिशाली बनाता है, जीना सिखाता है।
माता जी को प्रणाम।
लेकिन जिक्र जब माँ को हो तो चोरों की तरह निकलना मुश्किल होता है । नतीजा आपके सामने है ।
आप अपनी तारीफ से घबराते हैं लेकिन अब जब लिख ही रहा हूँ तो ये भी कह दूँ कि हिन्दी ब्लाग लेखन मे आपका वही स्थान है जो कि हिन्दी के शुरूआती दौर मे हिन्दी को एक मान्य रुप मे लाने मे भारतेन्दु जी का या उसके बाद हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का रहा है।
चार साल कानपुर मे रहा। 12 सालों बाद आज जब कनपुरिया पुट लिये जो आपकी हिन्दी पढता हूँ तो कल्याण्पुर से परेड / बड़ा चौराहा तक कि बस और विक्रम मे किये ठेलम-ठाल दिन याद आते हैं । हम तो कहिते हैं कि अनुप भाई बस अईसे ही लिखते रहो ।
आपके उपर एक छोटा सा पीस लिखने की इच्छा बहुत दिनो से है अपने सिंगापुर मे बसे बिहारी -झारखण्डी हिन्दी प्रेमियों के लिये । आप इजाजत दें तो कुछ बात बने ।
Aapki likhawat to dil to chhooo gayi..Sudeep ne hamein yeh link bheja aur kaha ki ise zaroor padhna.
Padha to gala bilkul bhar aaya… Aise hee likhte rahiye aur haemin apne watan (aur usse zaroori apni bhasha) ki yaad dilate rahiye
Bye
Sanjeev
कन्हैया लाल जी की कविता के तो क्या कहने ..
संबध सभी ने तोड़ लिये,
चिंता ने कभी नहीं तोड़े,
सब हाथ जोड़े कर चले गये,
पीड़ा ने हाथ नहीं जोड़े।
Rekha Srivastava की हालिया प्रविष्टी..मुलाकात – सुधा भार्गव जी से!
दिनेशराय द्विवेदी की हालिया प्रविष्टी..राज्य सेवक के लिए एक पत्नी के रहते दूसरा विवाह करना दुराचरण है जिस के लिए सेवाच्युति का दंड दिया जा सकता है