घर का सामान आमतौर पर हम ही लाते हैं। बाज़ार पास है। टहलते हुए चले जाते हैं। ले आते हैं। काफ़ी सामान कैंटीन से भी आ जाता है। जो सामान यहाँ नही मिलता उसके लिए मॉल चले जाते हैं। घर का सामान आनलाइन नहीं ही मंगाते हैं।
दो दिन पहले चना और कुछ और सामान लाना था। हमने जाने में कुछ देर की। तब तक बेटे का फ़ोन आ गया। बातचीत में उसको पता चला कि ये सामान लाना है तो उसने कहा -'अभी आर्डर कर देते हैं। दस मिनट में आ जाएगा।'
खाने-पीने का सामान, केक वग़ैरह बच्चे पहले भी मंगाते रहे हैं आनलाइन आर्डर करके। लेकिन दाल-चना परचून की दुकान वाली चीजें नहीं मंगाई गयीं थी अब तक।
बच्चे ने सामान आर्डर कर दिया। 'ब्लिंकइट' एप से। लिंक हमको दे दिया। बताया दस मिनट में आ जाएगा सामान। दस मिनट में सामान घर आ जाना एप के नाम को ही सार्थक करता लगा। 'ब्लिंकइट' मतलब -पलक झपकते।
दस मिनट से कुछ पहले ही डिलीवरी बालक का फ़ोन आ गया। वह मेरे घर से क़रीब दो किलोमीटर दूर था। फ़ोन किया तो मैंने उसको रास्ता बताया। वह आया तो मैंने उससे पूछा -' पता तो यहाँ का दिया था। दो किलोमीटर दूर कैसे पहुँच गए?'
बालक ने बताया कि लोकेशन वहीं की दिखा रहा था। इसीलिए वहाँ पहुँच गए।
बालक से ब्लिंकइट के काम करने के तरीक़े के बारे में पूछा तो पता चला -'पास ही आवास-विकास में बड़ा स्टोर है। आर्डर मिलते ही डिलीवरी बालक सामान लेकर लपकते हैं पहुँचाने के लिए। दस मिनट में डिलीवर हो जाता है। दस मिनट में नहीं डिलीवर होता है सामान तो कारण बताना पड़ता है।
बालक की मोटरसाइकिल पर ढेर धूल जमी थी। हमने कहा -'साफ़ रखा करो।' तो बोला बालक -'समय ही नहीं मिलता।'
समय न मिलने की कहानी बताते हुए बोला बालक -'काम बहुत करना पड़ता है। सुबह से शाम तक डिलिवेरी करते हैं। कम्पनी वाले पैसा बचाने के लिए लड़के कम रखते हैं।
सामान देकर बालक चला गया। हमको एक नई सामान सेवा की जानकारी हुई।
शाम को एक और सामान का आर्डर किया बेटे ने। सुबह यह रह गया था। सामान देने के लिए आया बालक फिर दो किलोमीटर दूर था। पता यहाँ का था लेकिन लोकेशन दो किलोमीटर दूर की। डिलीवरी बालक ने कहा -'लोकेशन यहाँ की ही है। आपके घर कैसे आएँ?'
हमने रास्ता समझाया। लेकिन बालक अपनी परेशानी बताता रहा। उसकी समस्या यह भी थी या सही समझे तो यह ही थी कि दो किलोमीटर अतिरिक्त चलने में हुए तेल का भुगतान कौन करेगा?
हमने कहा -'आ जाओ। देख लेंगे।'
बालक आया। सामान लेने के बाद हमने पूछा -'पता तो यहीं का है। तुम क्या वहाँ डिलीवर कर देते जहां लोकेशन के हिसाब पहुँचे थे ?'
उसने कहा -'आपकी बात सही है लेकिन हमको भुगतान लोकेशन के हिसाब से होता है। लोकेशन से अलग डिलीवरी करने पर तेल का पैसा अपने पास से लगता है। '
पता चला कि बेटे ने चूँकि बाहर से आर्डर किया था सामान इसलिए लोकेशन और पते में अंतर था। अगर हम करते घर से आर्डर तो लोकेशन और पता एक रहता।
बेटे ने चार सौ किलोमीटर दूर से किया था आर्डर। चार सौ किलोमीटर दूर से आर्डर करने पर लोकेशन और पते में दो किलोमीटर का अंतर आया। मतलब ब्लिंकइट एप में 0.5% की शुद्धता से दूरी का हिसाब करता है।
बालक ने बताया कि वह यह काम करते हुए पढ़ाई भी करता है। कुछ कंपटीशन की तैयारी भी कर रहा है। उसकी बहन भी नर्सिंग का कोर्स कर रही है। दोनों साथ रहते हैं। संघर्ष है लेकिन मेहनत जारी है।
आर्डर के हिसाब से एक डिलिवरी के लिए बालक को तीस रुपए मिलने थे। हमने आपने वायदे के मुताबिक़ उसे दे दिए। वह चला गया।
बालक के जाने के बाद हम काफ़ी देर से इस बारे में सोचते रहे कि आज हर काम के लिए सेवाएँ उपलब्ध हैं। आप पैसा खर्च कीजिए हर सुविधा आपके पास हाज़िर है। पैसे के ज़ोर पर लोग अपनी सरकार तक बनवा ले रहे हैं। एक से एक बदमाश लोग मसीहा बने बैठे हैं इधर-उधर के पैसे के बल पर।
लेकिन वो लोग क्या करें जिनके पास पैसे नहीं हैं? जिनके लिए ज़िंदगी जीना ही मुहाल है वे कौन सी सेवा लें? काश कोई ऐसा एप होता जो लोगों की न्यूनतम ज़रूरतों का इंतज़ाम करने में सहायक होता।
लेकिन हमारे सिर्फ़ सोचने से क्या होता है ? दुनिया तो अपने चलन के हिसाब चलती है।
वाकई दुनिया अपने चलन के हिसाब से चलती है मगर सोचने मे क्या बुराई है -क्या पता कभी सोच पर स्वरस्वती सवार हो जाएँ
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