"मार्जिन में रहना, मार्जिन में रखना, मार्जिन से डरना और मार्जिन में पिटना हमारी मजबूरी है।" -शान्तिलाल जैन
शान्तिलाल जैन जी के तीसरे व्यंग्य संग्रह ’मार्जिन में पिटता आदमी’ के लेख की ये पंक्तियां देश की आबादी के बड़े हिस्से की कहानी कहता है जो पूरी दुनिया पर भी लागू होता है। इसी लेख का एक और अंश देखा जाये:
"मार्जिन में रहने वाले आदमी और मेनपार्ट में रहने वाले आदमी में एक चीज कॉमन होती है- भूख। मार्जिन के आदमी की भूख रोटी खाने से शांत हो जाती है। मेन-पार्ट का आदमी कुछ भी खा ले-पेट नहीं भर पाता उसका। वो नदी, नाले, पर्वत, तालाब, जंगल, खदानें, चारा, स्पेक्ट्र्म तक सब कुछ खा कर भी अतृप्त रहता है।"
"मार्जिन में पिटता आदमी" के पहले ’कबीर और अफ़सर’ तथा ’ ना आना इस देश’ व्यंग्य संग्रह प्रकाशित ।
शान्तिलाल जी के बारे में पहली बार हमने जबलपुर में रहने के दौरान सुना था। खूब तारीफ़ें सुनी थी। लेकिन उनके लेख पढने से वंचित रहे। आलस्य के चलते किताबें मंगा ही नहीं पाये। पिछले दिनों फ़िर किसी बात पर जिक्र आया तो मैंने उनकी किताबों के बारे में जानकारी की। इस पर शांतिलाल जी ने हमारा पता पूछकर जून के आखिरी हफ़्ते में किताब भेज दी मुझे। किताब मुझे जिस दिन मिली उसी दिन आधी बांच ली। लेख-दर-लेख पंच के नीचे पेंसिलिया भी लिये। सोचा बाकी आधी पढकर इसके पंच सबको पढवायेंगे। लेकिन आज के पहले तक ’बाकी आधी’ पढने का मौका टलता रहा।
इस बीच शान्तिलाल जी को इस वर्ष के ’ज्ञान चतुर्वेदी सम्मान’ मिलने की घोषणा हुई। इसमें शान्तिलाल जी के बेहतरीन लेखन के साथ हमको अपनी किताब भेजने के पुण्य भी जुड़े होंगे ऐसा सोचने में कोई बुराई नहीं।
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कल सम्मान समारोह है भोपाल में। अपन के भी जाने की योजना है। पिछली बार जब गये थे भोपाल तो शान्तिलाल जी से मिलना नहीं हुआ था, हमारे रहने, खाने की शानदार व्यवस्था करने के बाद उनको काम से शहर से बाहर जाना पड़ा था।
आज सुबह जल्ली उठे तो ’मार्जिन में पिटता आदमी’ का बाकी बचा हिस्सा हुआ बांचा। यह बांचना उसी तरह रहा जैसे इम्तहान के पहली रात को कोर्स पूरा किया जाता है और जरूरी समझे जाने वाले अंश की पुर्जियां बनाई जाती हैं। तो साहब शान्तिलाल जी के लेखन के बारे में विस्तार से फ़िर कभी। फ़िलहाल उनको दूसरे ज्ञान चतुर्वेदी सम्मान की बधाई देते हुए उनके व्यंग्य संग्रह ’मार्जिन में पिटता आदमी’ के कुछ पंच यहां पेश हैं।
1. इस देश में सरकारी महकमें का चपरासी कुबेर का नाती होता है।
2. दलदल भ्रष्टाचार का नहीं होता। गरीबी का होता है।
3. यहां भ्रष्टाचारियों का कभी कुछ नहीं बिगड़ता। कुछ लोग जो भ्रष्टाचार के शीशमहल में घुस नहीं पाते वे ही कानून के पत्थर हाथ में लेकर डराते रहते हैं। पत्थर मारने का साहस नहीं है उनमें।
4. गाड़ी अच्छी कंडीशन में हो तो उसका एकाध पार्ट मारकर जुगाड़ का पार्ट लगा भी दिया तो मालिक को पता नहीं चलता। इतनी बेईमानी गैरेज के धंधे में बेईमानी नहीं मानी जाती।
5. पढे-लिखों की मुसीबत है साहब, लाइन भी नहीं तोड़ सकते। सिस्टम ही ऐसा है, पढा-लिखा आदमी हर जगह पिट रहा है।
6. हिंदी फ़िल्मों में नायक का दिल बड़ा कमजोर होता है, जरा सी ठेस लगी और दारू पीने लगता है।
7. निलंबित होना हमारे देश में राष्ट्रीय गर्व का विषय जो ठहरा। जो जितनी ज्यादा बार निलम्बित वो उतना ही सम्मानित, प्रभावी, रखूददार और मालदार।
8. सरकार के अपने ही तीर होते हैं और अपने ही निशाने भी। सुपारी ली है उन्होंने कारपोरेट्स से, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से , विदेशी निवेशकों से, अंकल सैम से, खनिज माफ़ियाओं से।
9. ग्लोबल पार्टियों का एक बाजार है जो तरुणाई के समय, संयम और सेहत के साथ खेल रहा है। तरुणाई ग्लोबल पटिये की गिरफ़्त में है और ग्लोबल पटिया बाजार के।
10. उनके लाकर्स सबसे ज्यादा सोना उगलते हैं जो सोना नहीं खरीदने की अपील करते हैं।
11. सुधारों की बात से ही आम आदमी डरने लगता है, किसान आत्महत्या करने लगते हैं, मजदूर पलायन करने लगते हैं,गृहणियां हताश होने लगती हैं, बेबस माता-पिता बच्चे बेचने लगते हैं। लोकतंत्र के प्रति अविश्वास का माहौल बनने लगता है। ऐसे सुधारों से तो बिगाड़ भला।
12. राजा और चापलूसों का संबंध दीपक और बाती की तरह होता है। बिना बातियों के दीपक जला नहीं करते। बिना चापलूसों के राजा राजा नहीं कहलाता।
13. शुभ मुहूर्त में खरीदी गयीं कारें पंचर नहीं होती। उनके चालान नहीं बना करते। वे एक्सीडेंट प्रूफ़ होती हैं। एवरेज ज्यादा देती हैं। रि-सेल में फ़ायदा दे जाती हैं।
14. तू सोया रहा और पूरा का पूरा बाजार तेरे घर में घुस आया। साथ में जेब से माल निकालने का मूहूर्त भी लाया है। क्या ढूंढ रहा है तू रे जातक।
15. पटवारी इस देश का सबसे ताकतवर अफ़सर होता है। खसरे में से नाम काट दे तो जमीन खिसक जाती है।
16. वैसे भी हम सबके स्टैंड हायकमान के पास गिरवी रखे हैं। जो स्टैंड लेना है वे ही लेंगी। हम सब तो बिना स्टैंड की साइकिलें हैं-पार्टी सर्कस की रिंग में बस घूमते जा रहे हैं। स्टैंड ही लेना होता तो राजनीति में क्यों आते?
17. भारत में लोकतंत्र चुनावों की अधिसूचना जारी होने के साथ प्रारम्भ होता है और वोटिंग मशीन का बटन दबाने के साथ ही समाप्त हो जाता है।
18. देश और देश का पानी बाजार के हवाले है। नदियां तक खरीद लीं कारपोरेट्स ने। अपना अपना पानी खरीदो और पियो।
19. झूठ का महासागर है सोशल मीडिया। आदमी यहां औरत बनकर चैट करता है। सत्तर का होता है सत्रह का घोषित करता है।
20. पक्की सरकारी नौकरी मिल जाये तो आदमी आलसी हो ही जाता है।
21. जाति का पता न हो तो महाकवि किस काम के? काम का महापुरुष तो वही जिसके नाम पर वोट मांगे जा सकें।
अभी पोस्ट में शान्तिलाल जैन जी को टैग करने की कोशिश की तो पता चला कि हम आपस में फ़ेसबुकिया मित्र भी नहीं हैं। आशा है जल्ली ही बनेंगे। शुभकामनायें।
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