आज परसाई जी के ’देशबन्धु समाचार’ पत्र में लोकप्रिय स्तम्भ ’पूछो परसाई से’ साम्प्रदायिकता पर पूछे गये एक सवाल का जबाब। सन 1986 में दिया गया यह जबाब आज 28 साल बाद भी उतना ही प्रासंगिक है।
प्रश्न : भारत में साम्प्रदायिक उन्माद कब खतम होगा? हमारे देश के सभी सम्प्रदाय के नेताओं के अथक प्रयास के बाद भी यह समस्या क्यों नहीं समाप्त हो रही है? हम युवाओं को आपका निर्देश?
(रायपुर से धर्मेश कुमार नामदेव ’पूछो परसाई से’ स्तम्भ में 13 अप्रैल 1986 को!)
उत्तर: बाकी बातें छोडिये। युवक क्या कर सकते हैं, यह समझिये! युवक पहले स्वयं शिक्षित हों और फ़िर लोगों को शिक्षित करें। शिक्षा से मतलब उस शिक्षा से नहीं जो लोगों को दी जा रही है। सही शिक्षा। इतिहास की
मध्ययुग के इतिहास की गलत समझ साम्प्रदायिक द्वेष का मूल कारण है।
सही समझ होनी चाहिये। मध्ययुग के इतिहास की गलत समझ साम्प्रदायिक द्वेष का मूल कारण है। यह इतिहास मुझे भी गलत पढ़ाया गया था और आप युवकों को भी गलत पढ़ाया जाता है। मुसलमान भारत में लूटपाट करने या राज्य जीतने के लिये आते थे। इस्लाम का नाम वे उत्तेजित करने के लिये लेते थे। महमूद गजनवी सोमनाथ का खजाना लूटने आया था, इस्लाम के लिये नहीं। उसकी सेना में हिन्दू बहुत थे। रास्ता
जितने हमलावर आये उन सबकी सेना में बहुत से सिपाही भारत में भरती होते थे।
सिपाही अच्छी नौकरी करना चाहते थे, चाहे वह हिन्दू राजा की हो या मुसलमान
की।
बताने वाले भी हिन्दू थे। जितने हमलावर आये उन सबकी सेना में बहुत से सिपाही भारत में भरती होते थे। सिपाही अच्छी नौकरी करना चाहते थे, चाहे वह हिन्दू राजा की हो या मुसलमान की। शिवाजी के सेनाध्यक्ष मुसलमान थे और प्रतापसिंह के हिन्दू। अकबर के सेनापति मानसिंह थे और औरंगजेब के सेनापति जयसिंह। बाबर की पानीपत की लड़ाई इब्राहिम लोदी से हुई जो मुसलमान था। राज्य और पैसे के मामले में न मुस्लिम-मुस्लिम भाई-भाई थे न हिन्दू-हिन्दू भाई-भाई। औरंगजेब की ज्यादा लड़ाई मुसलमानों से हुई थी।पहले जो आये वे लुटेरे थे। मुगल यहां रहने आये थे। बाबर लौटकर वतन नहीं गया। मुगल लोगों की सभ्यता और संस्कृति उन्नत थी। इन्हें शकों और हूणों जैसी बर्बर जातियों की तरह भारतीय समाज पचा नहीं सकता था। ये ताजमहल बनाने वाले लोग थे। इनके साथ संस्कृतियों का समन्वय ही हो सकता था और वह हुआ।
हिन्दू से मुसलमान तलवार की धार से नहीं बने। कारीगर मुसलमान बने और नीची जातियों के लोग स्वेच्छा से बने। वे हिन्दू समाज में अछूत थे, अपमानित होते थे और अत्याचार के शिकार थे। उन्हें इस्लाम में बराबरी का दर्जा मिला। बहुदेववाद से छूटकर एकेश्वरवाद मिला।
मध्ययुग के काव्य में कहीं हिन्दू-मुस्लिम द्बेष नहीं है, समन्वय है।
मन्दिर लूटने का महकमा मुसलमान राजाओं के यहां नहीं था। हिन्दू राजाओं के शासन में बाकायदा मन्दिर लूटने का महकमा था। सबसे ज्यादा मन्दिर राजा हर्ष ने लूटे। मुसलमान राजा भी मन्दिर धन के लिये ही लूटते थे पर औरंगजेब काशी के विश्वनाथ मंदिर तथा उज्जैन के महाकाल मन्दिर को धन देता था।
इतिहास को ठीक से पढें, समझे। जाति प्रथा खत्म करें। मन्दिर और मस्जिद के
लिये न लड़ें।
मध्ययुग के काव्य में कहीं हिन्दू-मुस्लिम द्बेष नहीं है, समन्वय है। मुसलमान कवियों ने कृष्ण पर काव्य लिखा है। कबीरदास ने हिन्दू -मुसलमान दोनों को पाखंड के लिये लताड़ा है पर यह नहीं कहा कि तुम भाई-भाई हो और आपस में मत लडो। इसकी जरूरत भी नहीं थी।विस्तार से नहीं लिखा जा सकता। मेरा मतलब इतिहास को ठीक से पढें, समझे। जाति प्रथा खत्म करें। मन्दिर और मस्जिद के लिये न लड़ें। साम्प्रदायिक राजनीति के चक्कर में न आयें। द्वेष को खत्म करें। युवक जनता को शिक्षित करें।
-हरिशंकर परसाई