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…वर्ना ब्लागर हम भी थे बड़े काम के
By फ़ुरसतिया on May 31, 2008
आलोक ने पिछलीपोस्ट में लिखा – हलकान यानी क्या? अग्रिम शुक्रिया।
अनिताजी ने तो टिप्पणी की शुरुआत ही इसका मतलब पूछते हुये की है – पहले तो हलकान का मतलब बता दिजिए, ये कानपुर सच्ची में जुमलों की नगरी है।
तो पहले तो अग्रिम शुक्रिया का हिसाब कर लिया जाये। अरविंद कुमार जी द्वारा संपादित सामांतर कोश के अनुसार हलकान मतलब होता है- परेशान, आजिज, उद्विग्न, तंग, दिक़, बेजा़र, हैरान।
एक बार फ़िर इस सामांतर कोश को देखिये , इस पर रीझिये और झट से इसे खरीद के अपने पास रखिये । बड़े काम की चीज है।
अनीता जी ने कहा कि कानपुर जुमलों का शहर है। मेरा मानना है कि हर शहर में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो नित नये शब्द गढ़ते हैं। कुछ के मतलब बताये जा सकते हैं कुछ् के मतलब केवल समझे जा सकते हैं। ऐसे केवल समझे या महसूस किये जाने वाले शब्द गूंगे के गुड़ होते हैं। कानपुर के मुन्नू गुरू के उछाले गये जुमले आप केवल महसूस कर सकते हैं उसकी सम्यक व्याख्या करना न आसान है और न जरूरी। रेजरपाल, लटरहरामी, कुरीजों, आन फ़ुट ये सब ऐसे शब्द हैं जो केवल बूझे जा सकते हैं।
ज्ञानजी ने हिंदी स्लैंग बनाने का आवाहनएक पोस्ट में किया। इस तरह के स्लैंग मेरे ख्याल से अनायास ही गढ़े जाते होंगे। इनको उछालने वाले को अपनी भाषा से सहज जुड़ाव होना चाहिये। दिमाग खुराफ़ाती हो तो सोने में सुहागा।
खुराफ़ात और जानकारी की एक मिसाल वसुधा पत्रिका के एक अंक में सागर विश्वविद्यालय के हिंदी अध्यापक पंडित रामशंकर शुक्ल ‘रसाल’ के बारे संस्मरण पढ़ते हुये दिखी। उनकी कक्षा में एक दिन एक नया विद्यार्थी आया। उसका नाम था भगवानदीन। मास्टर साहब में पहले तो उसके नाम का मतलब पूछा। वो न बता पाया होगा तो उन्होंने बताया-
१. भगवानदीन
२. भगवान+ दीन
३.भगवा+ न + दीन
४. भग+ वा+ न+ दीन
५. भग्गवा+ न+ दीन
इस पांचॊं शब्द विग्रह के भी अलग -अलग मतलब हैं। यह समझने वाले पर है कि वो इसके कितने मतलब लगा सकता है। बहरहाल हुआ यह कि भगवानदीन ने अगले दिन क्लास बदल ली।
जब हम लोग निरंतर निकालते थे तो उसमें एक कालम होता था पूछिये फ़ुरसतिया से। इसमें हम लोग लोगों के पूछे सवालों के जबाब लिखते थे। शुरुआत में हम लोगों ने खुद ही सवाल बनाये थे। एक सवाल जीतेंन्द्र का था-
सवाल: जितेन्द्र पुनः पूछते हैं, कम्पयूटर स्त्रीलिंग है या पुर्लिंग?
जबाब: भैया जितेन्द्र, बड़ा अहमक सवाल है। अब पूछा है तो जवाब भी सुनो, कम्प्यूटर चलता है, खराब होता है, बैठ जाता है। ये सारे मर्दाने लक्षण है। इसमें डाटा फीड होते हैं, सेव किये जाते हैं, यह उत्पादन का माध्यम है। ये सारे जनाने गुण हैं। तो फुरसतिया का यह मानना है कि दोनों गुण होने के कारण कम्पयूटर उभयलिंगी है। जवाब का और शुद्धिकरण किया जाय तो इसकी दिन प्रतिदिन बढ़ती महिमा के कारण कहना गलत न होगा कि कम्प्यूटर अर्द्धनारीश्वर है। अगला सवाल!
अपने कतिपय जनाने गुणों के आधार पर क्या कम्यूटर चोखेरवाली का सदस्य बन सकता है?
बाद में समय की कमी के कारण निरंतर का प्रकाशन ठहर गया। पूछिये फ़ुरसतिया में भी सवाल आने बंद हो गये वर्ना हम जबाब देते रहते। वो कहते हैं-
समय ने फ़ुरसतिया हमको निकम्मा कर दिया,
वर्ना ब्लागर हम भी थे बड़े काम के।
वैसे एक सवाल कुछ दिन पहले आया है। सवाल है-महोदय कृपया यह बताइये कि मर्दो के कपड़े जनाने क्यो होते हैं जबकि औरतों के कपड़े मर्दाने जैसे कमीज पहनली, पैन्ट पहन ली, ब्लाउज पहन लिया, पेटीकोट पहन लिया।
मेरा परिचय।
भारत सरकार रक्षा मंत्रालय के अधीन नियंत्रक वित्त एवं लेखा नियंत्रक कार्यलय कानपुर में कार्यरत
नामः अजीत कुमार मिश्रा
मिश्रा जी के सवाल का जबाब देने में डबल बबाल है। जो जबाब दिया जायेगा वे कहेंगे -किस नियम के अधीन है आप ऐसा कहते हैं। कृपया नियम की फोटो प्रति संलग्न करें। नमूने के तौर पर कहो वे जनाने-मर्दाने कपड़े भी न तलब कर लें।
आप सुझाओ कोई फ़ड़कता हुआ जबाब।
अनिताजी ने तो टिप्पणी की शुरुआत ही इसका मतलब पूछते हुये की है – पहले तो हलकान का मतलब बता दिजिए, ये कानपुर सच्ची में जुमलों की नगरी है।
तो पहले तो अग्रिम शुक्रिया का हिसाब कर लिया जाये। अरविंद कुमार जी द्वारा संपादित सामांतर कोश के अनुसार हलकान मतलब होता है- परेशान, आजिज, उद्विग्न, तंग, दिक़, बेजा़र, हैरान।
एक बार फ़िर इस सामांतर कोश को देखिये , इस पर रीझिये और झट से इसे खरीद के अपने पास रखिये । बड़े काम की चीज है।
अनीता जी ने कहा कि कानपुर जुमलों का शहर है। मेरा मानना है कि हर शहर में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो नित नये शब्द गढ़ते हैं। कुछ के मतलब बताये जा सकते हैं कुछ् के मतलब केवल समझे जा सकते हैं। ऐसे केवल समझे या महसूस किये जाने वाले शब्द गूंगे के गुड़ होते हैं। कानपुर के मुन्नू गुरू के उछाले गये जुमले आप केवल महसूस कर सकते हैं उसकी सम्यक व्याख्या करना न आसान है और न जरूरी। रेजरपाल, लटरहरामी, कुरीजों, आन फ़ुट ये सब ऐसे शब्द हैं जो केवल बूझे जा सकते हैं।
ज्ञानजी ने हिंदी स्लैंग बनाने का आवाहनएक पोस्ट में किया। इस तरह के स्लैंग मेरे ख्याल से अनायास ही गढ़े जाते होंगे। इनको उछालने वाले को अपनी भाषा से सहज जुड़ाव होना चाहिये। दिमाग खुराफ़ाती हो तो सोने में सुहागा।
खुराफ़ात और जानकारी की एक मिसाल वसुधा पत्रिका के एक अंक में सागर विश्वविद्यालय के हिंदी अध्यापक पंडित रामशंकर शुक्ल ‘रसाल’ के बारे संस्मरण पढ़ते हुये दिखी। उनकी कक्षा में एक दिन एक नया विद्यार्थी आया। उसका नाम था भगवानदीन। मास्टर साहब में पहले तो उसके नाम का मतलब पूछा। वो न बता पाया होगा तो उन्होंने बताया-
१. भगवानदीन
२. भगवान+ दीन
३.भगवा+ न + दीन
४. भग+ वा+ न+ दीन
५. भग्गवा+ न+ दीन
इस पांचॊं शब्द विग्रह के भी अलग -अलग मतलब हैं। यह समझने वाले पर है कि वो इसके कितने मतलब लगा सकता है। बहरहाल हुआ यह कि भगवानदीन ने अगले दिन क्लास बदल ली।
जब हम लोग निरंतर निकालते थे तो उसमें एक कालम होता था पूछिये फ़ुरसतिया से। इसमें हम लोग लोगों के पूछे सवालों के जबाब लिखते थे। शुरुआत में हम लोगों ने खुद ही सवाल बनाये थे। एक सवाल जीतेंन्द्र का था-
सवाल: जितेन्द्र पुनः पूछते हैं, कम्पयूटर स्त्रीलिंग है या पुर्लिंग?
जबाब: भैया जितेन्द्र, बड़ा अहमक सवाल है। अब पूछा है तो जवाब भी सुनो, कम्प्यूटर चलता है, खराब होता है, बैठ जाता है। ये सारे मर्दाने लक्षण है। इसमें डाटा फीड होते हैं, सेव किये जाते हैं, यह उत्पादन का माध्यम है। ये सारे जनाने गुण हैं। तो फुरसतिया का यह मानना है कि दोनों गुण होने के कारण कम्पयूटर उभयलिंगी है। जवाब का और शुद्धिकरण किया जाय तो इसकी दिन प्रतिदिन बढ़ती महिमा के कारण कहना गलत न होगा कि कम्प्यूटर अर्द्धनारीश्वर है। अगला सवाल!
अपने कतिपय जनाने गुणों के आधार पर क्या कम्यूटर चोखेरवाली का सदस्य बन सकता है?
बाद में समय की कमी के कारण निरंतर का प्रकाशन ठहर गया। पूछिये फ़ुरसतिया में भी सवाल आने बंद हो गये वर्ना हम जबाब देते रहते। वो कहते हैं-
समय ने फ़ुरसतिया हमको निकम्मा कर दिया,
वर्ना ब्लागर हम भी थे बड़े काम के।
वैसे एक सवाल कुछ दिन पहले आया है। सवाल है-महोदय कृपया यह बताइये कि मर्दो के कपड़े जनाने क्यो होते हैं जबकि औरतों के कपड़े मर्दाने जैसे कमीज पहनली, पैन्ट पहन ली, ब्लाउज पहन लिया, पेटीकोट पहन लिया।
मेरा परिचय।
भारत सरकार रक्षा मंत्रालय के अधीन नियंत्रक वित्त एवं लेखा नियंत्रक कार्यलय कानपुर में कार्यरत
नामः अजीत कुमार मिश्रा
मिश्रा जी के सवाल का जबाब देने में डबल बबाल है। जो जबाब दिया जायेगा वे कहेंगे -किस नियम के अधीन है आप ऐसा कहते हैं। कृपया नियम की फोटो प्रति संलग्न करें। नमूने के तौर पर कहो वे जनाने-मर्दाने कपड़े भी न तलब कर लें।
आप सुझाओ कोई फ़ड़कता हुआ जबाब।
तो अबकी फरमाईश ये है जी कि आप ‘पूछिये फुरसतिया से’ यहीं शुरू कर दें ।
या फिर एक नया ब्लॉग ही जड़ दें ।
मानना तो पड़ेगा ।
वरना कानपुरए आकर भूख हड़ताल पे बैठ जायेंगे ।
‘ पूछिये परसाई से’ स्तंभ पढ़ते पढ़ते बचपन बीता है ।
‘वसुधा’ने इसे संकलित किया था । वो अंक हमारा कोई कमबखत दोस्त मांग कर ले गया और वापस नहीं किया ।
फुरसतिया ने ये स्तंभ शुरू किया तो सवालों की बौछार देखते ही बनेगी ।
तो फिर क्या इरादा है ।
आपकी खबर ही सही है। गलती बताने के लिये शुक्रिया।
यह साइट तो खूब लड़ी मर्दानी… वाली है। उसकी सदस्यता का जुझारत्व कम्प्यूटर में शायद ही हो!
मिश्रा जी के सवाल का जबाब देने में डबल बबाल है।
वित्त विभाग को जितने भी उत्तर देंगे, उससे दूनी क्वैरी लग कर वापस मिलेंगी।
लास्टली – फुरसतिया = फुर्र सतिया = फुर्र सती या
वो सवालो के सिलसिले,वो लाजवाब जवाब
हमरे कई सारे सवाल अभी भी अनुत्तरित रह गए है, ना मानो तो लिस्ट उठाकर देख लो। फिर से शुरु करो ये सिलसिला, अब ब्लॉगजगत काफी बड़ा हो गया है, सवालों की कमी ना रहेगी।
पहला सवाल हम ही करते हैं.
भगवानदीन आजकल कंहा है?
अखबार भी नहीं निकल रहा बहुत समय से.
अब यही ‘संस्मरण’ गूगल ट्रांसलितरेशन में बार-बार ‘सन्समरण’ टाइप हो रहा था, किसी तरह दुरुस्त किया है वरना ‘सन्स’ का ‘मरण’ हो जाता!
शुक्लजी, लगे हाथ ‘रसालजी’ का आनन-फानन में भरी कक्षा के बीच रचा अभिनेत्री नूतन वाला सवैया भी कोट कर देते तो मज़ा आ जाता. हा हा हा!
हां , विजय शंकरजी मैंने वसुधा में ही कांतिकुमार जैन जी का संस्मरण पढ़ा था रामशंकर शुक्ल ‘रसाल’ के बारे में। नूतन वाला प्रसंग बस याद करके मजा लिया जा सकता है।
सामांतर कोश जी जानकारी के लिए धन्यवाद, आप के स्तंभ फ़ुरसतिया से पूछो का बेसब्री से इंतजार है, अहम्म! शुरु हो जाइए, हम सुन रहे हैं मतलब पढ़ रहे हैं।