रामफ़ल हमारी किताब ’पुलिया की दुनिया’ का विमोचन करते हुये। |
आज दोपहर बाद शहर जा रहे थे तो फैक्ट्री से यादव जी का फोन आया। साहब बुरी खबर है। रामफल का हार्टफेल हो गया।वो नहीं रहा।
रामफल हालांकि हमारी फैक्ट्री में काम नहीं करते थे। लेकिन लम्बे समय तक फैक्ट्री इस्टेट में फल विक्रेता के चलते तमाम लोग जानते थे उनको।यादव जी उनके घर के पास रहते हैं। एम टी में हैं। अक्सर रामफल के बारे में बात करते रहते थे। जिस दिन रामफल को सुनने की मशीन दिलाकर लौटे थे उस दिन भी उनके घर के पास मिले थे। उनके बारे में अपडेट देते रहते थे।
रामफल से आखिरी बार 26 जनवरी को मुलाकात हुई थी। VFJ स्टेडियम के बाहर। उस दिन तबियत कुछ ज्यादा खराब थी। फल लेने के बाद हमने कहा । कुछ दिन ठेला मत लगाओ। घर जाओ।आराम करो। इस पर रामफल बोले- 'ये 13000 रूपये के फल लिए हैं।इसके बाद आराम करेंगे। बेच लें नहीं तो खराब हो जाएंगे।कल डॉक्टर के पास गए थे। मिला नहीं। आज जाएंगे।'
रामफ़ल हमारे परिवार के लोगों के साथ दिसंबर 2014 में |
मैं फल लेकर चला आया। बीच में मुलाक़ात नहीं हुई।कल इतवार को मुलाक़ात होनी थी। पुलिया पर। लेकिन इसके पहले आज उनके निधन का दुखद समाचार मिला।
रामफल के घर गए शाम को।पता चला 26 को घर चले आये थे। डॉक्टर ने दवा दी थी। इन्हेलर भी। उससे आराम था। उसके बाद आज तक ठेला नहीं लगाया था। आज सुबह ढाडी बनवाने अपने आप गए थे। नाश्ता किया। हलवा खाया।फिर बच्चे के साथ वोट डालने गए।लौटकर आये तो दिल का दौरा पड़ा और रामफल 'शांत' हो गए।
रामफल के घर के बाहर उनके परिवार के लोग जमा थे। उनके छोटे भाई जो खमरिया में फल लगाते हैं, उनका बड़ा (42 साल का ) बेटा, छोटा बेटा और छोटी बेटी जो हाल ही में विधवा हुई थी और अन्य लोग मिले।
बेटी ने बताया -' पापा बहुत सीधे थे। अम्मा तेज हैं।पापा सबकी चिंता में घुलते गए। अपने दामाद (उसके पति) के न रहने पर हमारी चिंता बहुत करते थे।वही चिंता उनको खा गयी।' यह कहते हुए वह आंसू पोंछते हुए चुप हो गयी।
रामफल के दोनों बेटे मजूरी करते हैं। अनियमित आमदनी। घर के सब लोग ऐसे ही मजूरी या फल बेचने का काम करते हैं।
रामफल को सांस और ब्लड प्रेसर की समस्या थी। मैंने परचा देखा तो किन्हीं डॉक्टर सेठी का इलाज चल रहा था जो की बाल रोग विशेषज्ञ हैं।
रामफ़ल अपने नाती नातिन के साथ पुलिया पर |
घर के अंदर महिलाएं बारी-बारी से रो रही थीं। एक महिला ने चादर हटाकर रामफल का चेहरा दिखाया।मैंने रामफल को नमन किया और वापस चला आया।कल उनका दाहसंस्कार होगा।इतवार के दिन। जब रामफल से मुलाकात पुलिया पर होती थी। वे अपने ठेले पर होते थे। कल मुलाक़ात श्मशान घाट पर होगी और रामफल चिता पर होंगे।
रामफल का हमारा साथ कुछ महीनों का ही रहा।लेकिन इतने दिनों में ही उनसे इतना अपनापा हो गया था कि हफ्ते में कम से कम एक बार मुलाक़ात जरूर होती।इतवार को लंच बन्द कर देते हमेशा और रामफल के यहां से लाकर फल ही खाते।रामफल भी इन्तजार करते। देर होती तो मिलने पर कहते -'हमें लगा दिल्ली चले गए।'
हमसे जब मिलते तो अगर कान की मशीन न लगाये होते तो बिना पूछे सफाई देने लगते- 'अभी उतारी है खाना खाने के लिए। घर में भूल गए। लड़का लेने गया है।हम जल्दी चले आये भतीजा ला रहा है।'
हमारे घर वाले आये थे तो रामफल के साथ सबने फ़ोटो खिंचवाई।रामफल ने मेरी श्रीमती जी को अलग से संतरा दिया था। रामफल के तमाम डायलाग याद आ रहे हैं:
-सात साल का था तो सर पर कफ़न बांधकर निकला था।
-नेहरू जैसा प्रधानमन्त्री कोई नहीं हुआ।
-इंदिरा गांधी ने कोई गन्दा काम नहीं किया।
-तिवारी जी बम्बई चले जाओ अमिताभ बच्चन के घोड़ों की मालिश का काम मिल जाएगा।
-सारा खेल पैसे का होता है।
-प्रतापगढ़ से आया हूँ। पचास साल से फल बेंच रहा हूँ।रामफल यादव नाम है मेरा।
-नेहरू जैसा प्रधानमन्त्री कोई नहीं हुआ।
-इंदिरा गांधी ने कोई गन्दा काम नहीं किया।
-तिवारी जी बम्बई चले जाओ अमिताभ बच्चन के घोड़ों की मालिश का काम मिल जाएगा।
-सारा खेल पैसे का होता है।
-प्रतापगढ़ से आया हूँ। पचास साल से फल बेंच रहा हूँ।रामफल यादव नाम है मेरा।
रामफल यादव से जो फल लाये थे 26 जनवरी को उनमें से कुछ सामने रखे दिख रहे हैं। रमानाथ अवस्थी जी की कविता पंक्तियाँ याद आ रहीं हैं:
"आज आप हैं हम हैं लेकिन
कल कहाँ होंगे कह नहीं सकते
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।"
कल कहाँ होंगे कह नहीं सकते
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।"
शायद हमारा और रामफल का साथ इतने दिन का ही बदा था। उनकी याद को नमन!