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मुफ़्त के माल पर चिंतन
By फ़ुरसतिया on July 30, 2013
चुनाव आने वाले हैं।
पार्टियां चुनाव घोषणापत्र तैयार कर रही हैं। मुफ़्त में बांटे जाने वाला सामान अभी तय नहीं हुआ है। मुफ़्तिया सामान की घोषणा के बिना चुनाव घोषणा पत्र उसी तरह सूना लगता है जैसे बिना घोटाने की कोई इस्कीम। सामान तय करने के लिये पार्टी की शिखर बैठक बुलाई गयी है। गहन चिंतन चल रहा है।
पिछली बार लैपटॉप दिया था। इस बार उसके लिये बिजली का वायदा कर सकते हैं। – एक नेता ने सुझाव दिया।
अरे भाई, लैपटॉप अगले चुनाव तक बचेंगे क्या? जिसको दिया उसने बेंच दिया दूसरे को। जो बचे होंगे वे अगले चुनाव तक खराब हो चुके होंगे। ई लैपटॉप कंपनी बड़ी खच्चर निकली। चंदा भी नहीं दिया पूरा और सामान भी सड़ियल दिया। वो तो कहो जनता को मुफ़्त में बांटा गया वर्ना तोड़-फ़ोड़ होती। कोई फ़ायदा नहीं इस घोषणा से। बल्कि लफ़ड़ा है। बिजली फ़िर सबके लिये लोग मांगेंगे।
फ़िर इस बार बिजली की घोषणा करें क्या? -एक ने सुझाव दिया।
अरे भैया बिजली होती तो फ़िर क्या था। बिजली बनायेगा कौन? जित्ती बनती है सब अपने चुनाव क्षेत्र में ही खप जाती है। बिजली का नाम मत लो, जनता दौड़ा लेगी -भाग नेता भाग कहते हुये।
इनवर्टर कैसा रहेगा नेता जी?
अबे इनवर्टर क्या हवा में चार्ज होगा? उसके लिये भी तो बिजली चाहिये। बिजली से अलग कोई आइटम बताओ।
क्या मोटरसाइकिल की घोषणा कर सकते हैं? दूसरे ने सुझाव दिया।
करने को तो कर सकते हैं। लेकिन लफ़ड़ा ये है कि कोई गारंटी नहीं कि हम चुनाव में हार ही जायें। अगर ये पक्का होता कि हम हार ही जायेंगे तो मोटर साइकिल क्या कार की घोषणा कर देते। लेकिन जनता का कोई भरोसा नहीं। अगर जिता दिया तो लिये कटोरा घूमते रहेंगे मोटरसाइकिल देने के लिये।
साहब आप घोषणा कर दीजिये न। जीत गये तो किस्तों में दे देंगे। पहले साल पहिया देंगे, दूसरे साल इंजन , इसके बाद सीट और फ़िर चैन। पूरी मोटरसाइकिल योजना चार चुनाव में चलेगी। अगर जनता को मोटरसाइकिल चाहिये होगी तो झक मार के जितायेगी चार बार- युवा नेता मोटरसाइकिल पर अड़ा था।
अरे वोटर इत्ता सबर नहीं करता भाई। चार चुनाव तक इंतजार नहीं करेगा। उसको भी हर बार वैरियेशन चाहिये। मोटर साइकिल का झुनझुना बजेगा नहीं। पेट्रोल भी मंहगा है। फ़िर मोटर साइकिल तो लड़कों के लिये हुई। लड़कियों के लिये स्कूटी चाहिये होगी। अलग-अलग आइटम हो जायेंगे।
कोई जरूरी है कोई सामान मुफ़्त में देना? जनता को मुफ़्त का सामान देने की बजाय और कोई भलाई का काम करें। एक युवा नेता ने जिसके चेहरे से क्रांति टपक रही थी सुझाया।
देखने तो समझदार लगते हो लेकिन जनता के बारे में समझ कमजोर है बरुखुरदार की। चुनाव लड़ना लड़की की शादी करने की तरह है। लड़के वाले कुछ नहीं चाहते फ़िर भी टीवी, फ़्रिज, कार देना पड़ता है लड़की वाले को। दस्तूर है। जनता को भी मुफ़्त का सामान देने का दस्तूर बन गया है तो निभाना पड़ेगा चाहे हंस के निभायें या रो के। नेता जी के चेहरे पर बेटी के बाप का दर्द पोस्टर की तरह चिपका दिखा।
आप लोग बताओ जनता की क्या पसंद है? किस चीज को सबसे ज्यादा जरूरत है उसे। आप लोग तो जनता के नुमाइदे हो। उसकी पसंद अच्छे से जानते होंगे- नेता जी सवाल उछाला।
जनता की सिर्फ़ रोटी, कपड़ा और मकान चाहती है। उसका वायदा तो सब लोग कर चुके हैं। लेकिन दे कोई नहीं पाता इसीलिये ये मुफ़्तिया झुनझुने बजाते हैं सब। रही आज की जनता पसंद की बात तो उसके बारे में हम बता नहीं सकते।पिछले चुनाव के बाद से जनता से संपर्क टूटा है। जरूरत ही नहीं पड़ी जनता के पास जाने की। कोई जनता से जुड़ा नेता हो वो बताये।
जनता से जुड़ा नेता के नाम पर सब एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे। कोई जनता से सीधे जुड़ा कहकर अपने को हाईकमान की नजरों से गिरने का खतरा नहीं लेना चाहता था।
आखिर में तय हुआ कि जिस कंपनी को नेताजी की इमेज चमकाने का ठेका दिया गया है वही जनता के बीच सर्वे करके बतायेगी कि इस बार किस मुफ़्तिया आइटम की घोषणा करनी चाहिये।
सर्वे टीम वालों को काम मिलते ही वे इंटरनेट पर खंगालने लगे कि अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया के चुनावों में जनता से क्या वायदे हुये थे।
देखिये इस बार पार्टी कौन सा सामान मुफ़्त बांटने की घोषणा करती है।
पार्टियां चुनाव घोषणापत्र तैयार कर रही हैं। मुफ़्त में बांटे जाने वाला सामान अभी तय नहीं हुआ है। मुफ़्तिया सामान की घोषणा के बिना चुनाव घोषणा पत्र उसी तरह सूना लगता है जैसे बिना घोटाने की कोई इस्कीम। सामान तय करने के लिये पार्टी की शिखर बैठक बुलाई गयी है। गहन चिंतन चल रहा है।
पिछली बार लैपटॉप दिया था। इस बार उसके लिये बिजली का वायदा कर सकते हैं। – एक नेता ने सुझाव दिया।
अरे भाई, लैपटॉप अगले चुनाव तक बचेंगे क्या? जिसको दिया उसने बेंच दिया दूसरे को। जो बचे होंगे वे अगले चुनाव तक खराब हो चुके होंगे। ई लैपटॉप कंपनी बड़ी खच्चर निकली। चंदा भी नहीं दिया पूरा और सामान भी सड़ियल दिया। वो तो कहो जनता को मुफ़्त में बांटा गया वर्ना तोड़-फ़ोड़ होती। कोई फ़ायदा नहीं इस घोषणा से। बल्कि लफ़ड़ा है। बिजली फ़िर सबके लिये लोग मांगेंगे।
फ़िर इस बार बिजली की घोषणा करें क्या? -एक ने सुझाव दिया।
अरे भैया बिजली होती तो फ़िर क्या था। बिजली बनायेगा कौन? जित्ती बनती है सब अपने चुनाव क्षेत्र में ही खप जाती है। बिजली का नाम मत लो, जनता दौड़ा लेगी -भाग नेता भाग कहते हुये।
इनवर्टर कैसा रहेगा नेता जी?
अबे इनवर्टर क्या हवा में चार्ज होगा? उसके लिये भी तो बिजली चाहिये। बिजली से अलग कोई आइटम बताओ।
क्या मोटरसाइकिल की घोषणा कर सकते हैं? दूसरे ने सुझाव दिया।
करने को तो कर सकते हैं। लेकिन लफ़ड़ा ये है कि कोई गारंटी नहीं कि हम चुनाव में हार ही जायें। अगर ये पक्का होता कि हम हार ही जायेंगे तो मोटर साइकिल क्या कार की घोषणा कर देते। लेकिन जनता का कोई भरोसा नहीं। अगर जिता दिया तो लिये कटोरा घूमते रहेंगे मोटरसाइकिल देने के लिये।
साहब आप घोषणा कर दीजिये न। जीत गये तो किस्तों में दे देंगे। पहले साल पहिया देंगे, दूसरे साल इंजन , इसके बाद सीट और फ़िर चैन। पूरी मोटरसाइकिल योजना चार चुनाव में चलेगी। अगर जनता को मोटरसाइकिल चाहिये होगी तो झक मार के जितायेगी चार बार- युवा नेता मोटरसाइकिल पर अड़ा था।
अरे वोटर इत्ता सबर नहीं करता भाई। चार चुनाव तक इंतजार नहीं करेगा। उसको भी हर बार वैरियेशन चाहिये। मोटर साइकिल का झुनझुना बजेगा नहीं। पेट्रोल भी मंहगा है। फ़िर मोटर साइकिल तो लड़कों के लिये हुई। लड़कियों के लिये स्कूटी चाहिये होगी। अलग-अलग आइटम हो जायेंगे।
कोई जरूरी है कोई सामान मुफ़्त में देना? जनता को मुफ़्त का सामान देने की बजाय और कोई भलाई का काम करें। एक युवा नेता ने जिसके चेहरे से क्रांति टपक रही थी सुझाया।
देखने तो समझदार लगते हो लेकिन जनता के बारे में समझ कमजोर है बरुखुरदार की। चुनाव लड़ना लड़की की शादी करने की तरह है। लड़के वाले कुछ नहीं चाहते फ़िर भी टीवी, फ़्रिज, कार देना पड़ता है लड़की वाले को। दस्तूर है। जनता को भी मुफ़्त का सामान देने का दस्तूर बन गया है तो निभाना पड़ेगा चाहे हंस के निभायें या रो के। नेता जी के चेहरे पर बेटी के बाप का दर्द पोस्टर की तरह चिपका दिखा।
आप लोग बताओ जनता की क्या पसंद है? किस चीज को सबसे ज्यादा जरूरत है उसे। आप लोग तो जनता के नुमाइदे हो। उसकी पसंद अच्छे से जानते होंगे- नेता जी सवाल उछाला।
जनता की सिर्फ़ रोटी, कपड़ा और मकान चाहती है। उसका वायदा तो सब लोग कर चुके हैं। लेकिन दे कोई नहीं पाता इसीलिये ये मुफ़्तिया झुनझुने बजाते हैं सब। रही आज की जनता पसंद की बात तो उसके बारे में हम बता नहीं सकते।पिछले चुनाव के बाद से जनता से संपर्क टूटा है। जरूरत ही नहीं पड़ी जनता के पास जाने की। कोई जनता से जुड़ा नेता हो वो बताये।
जनता से जुड़ा नेता के नाम पर सब एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे। कोई जनता से सीधे जुड़ा कहकर अपने को हाईकमान की नजरों से गिरने का खतरा नहीं लेना चाहता था।
आखिर में तय हुआ कि जिस कंपनी को नेताजी की इमेज चमकाने का ठेका दिया गया है वही जनता के बीच सर्वे करके बतायेगी कि इस बार किस मुफ़्तिया आइटम की घोषणा करनी चाहिये।
सर्वे टीम वालों को काम मिलते ही वे इंटरनेट पर खंगालने लगे कि अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया के चुनावों में जनता से क्या वायदे हुये थे।
देखिये इस बार पार्टी कौन सा सामान मुफ़्त बांटने की घोषणा करती है।
Posted in बस यूं ही | 10 Responses
यह तो जबरदस्त पंच है। जय हो हाई कमान की।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..वर्धा में फिर होगा महामंथन
प्रणाम.
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..बस ऐसे ही…
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..धाराप्रवाह हिन्दी बोलने वाला कोरियन छात्र जुन हाक उर्फ़ आमिर
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..धरतीपकड़ फ़िर मैदान में !
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..सोते सोते कहानी सुनाना