Monday, February 23, 2015

मास्टर की तो मरन है।

पिछले हफ्ते की खबर के अनुसार मास्टर लोगों की हाजिरी अब एस एम एस से लगेगी।

पता चला कि अध्यापक लोग पढाई का काम छोड़कर नेतागीरी करते रहते हैं। स्कूल से आकर गायब हो जाते हैं। इस मनमानी पर लगाम लगाने के लिए अब मोबाइल से हाजिरी लगेगी अध्यापकों की।

इसमें अध्यापकों को स्कूल परिसर से एक टोल फ्री नंबर पर एस एम एस करना होगा। अध्यापक की यूनिक आई डी होगी। उसके एस एम एस से उसकी हाजिरी लग जायेगी।हाजिरी के लिए एस एम एस स्कूल परिसर से ही भेजा जा सकेगा। दो बार देरी पर वेतन कटेगा। तीसरी बार सस्पेंड।

अब बताओ भाई। ये दिन आ गए हैं। हाजिरी लेने वालों की हाजिरी लगनी शुरू हो रही है। यह तो ऐसा ही हुआ जैसा फिराक साहब कहते थे-"फिराक तो उसकी फिराक में है,जो तेरी फिराक में है।"

जिसने भी इस योजना कि कल्पना की है वह अव्वल दर्जे का घामड़ होगा। इतने छेद हैं इस प्लान में कि योजना शुरू होते ही फेल होना तय है। कुछ उदाहरण ऐसे होंगे:


1.आधे मास्टर कहेंगे-साहब हमारे पास मोबाइल ही नहीं है। कहाँ से लगाये हाजिरी। सरकार को हाजिरी लेनी है तो मोबाइल मुहैया करवाये।

2. मोबाईल धारी अध्यापक कहेंगे--"हमको एस एम एस करना नहीं आता। एस.एम.एस. कार्यशालाएं लगवाये सरकार। तब तक योजना पर कार्यान्वयन स्थगित रखा जाए।"

3. स्कूल के मास्टर सहयोग के आधार पर हाजिरी लगाएंगे। तिवारी जी अपना मोबाइल गुप्ता जी को दे देंगे -"यार ज़रा देर हो जायेगी। लगा देना स्कूल जाकर।" हाजिरी लगाने के लिए चपरासी, स्कूल के छात्र या फिर विद्यालय परिसर के पास चाय/पान वाले की सेवायें भी ली जा सकती हैं।

4.हर अध्यापक के पास दो मोबाईल होगे।एक हाजिरी वाला दूसरा बात वाला। हाजिरी वाला मोबाईल सरकारी स्कूलों की तरह सस्ता टाइप होगा। बतियाने वाला स्मार्ट टाइप।

5. अगला बवाल होगा मोबाइल कवरेज का।जिसका वेतन कटेगा वह बवाल काटेगा कि हमने तो किया था एस एम एस। नेटवर्क की गड़बड़ी के चलते नहीं मिला तो इसमें हमारी क्या गलती?

6.मास्टर लोग स्कूल पहुंचकर बोलेंगे -"साहब हम तो स्कूल आ गए लेकिन मोबाईल घर भूल आये। हाजिरी लगा लो। " हेडमास्टर बोलेगा -"हम कैसे लगा ले भाई? आप यहां हैं लेकिन एस एम एस नहीं है आपका तो आप गैरहाजिर माने जाएंगे।" एस एम एस आदमी से बड़ा हो जाएगा।

7.स्कूल की तरफ भागता मास्टर कहीं भिड़ जाएगा। गिरने से पहले किसी से रिरियाते हुए बोलेगा- "भैया हमको अस्पताल बाद में ले जाना। पहले ये मेरा मोबाईल ले जाकर हाजिरी लगा लो पास में स्कूल है मेरा।" पता चलेगा कि एक ही आदमी स्कूल परिसर में दाखिल हो रहा है 8 बजे और किसी अस्पताल में भी उसी समय उसकी पर्ची बन रही है भर्ती के लिए।

8.मोबाइल कम्पनियां विज्ञापन करेंगी -"हमारे मोबाइल लाएं,हाजिरी का सरदर्द दूर भगाएं।" कोई ऐसा एप्लीकेशन बनेगा जिसमें स्कूल परिसर में मोबाईल आन करते ही हाजिरी का एस एम एस हो जाएगा।

9. जिन स्कूलों में नेटवर्क कवरेज किसी ख़ास जगह खड़े होने पर ही पकड़ता होगा वहां उस जगह पर कब्जे को लेकर मास्टरों में झगड़ा होगा। गुटबाजी होगी। पता चला की नेटवर्क कवरेज वाली जगह पर कब्जे को लेकर पाण्डेय गुट और शर्मा गुट में मारपीट हो जायेगी। स्कूल में हाजिरी लगाने के झगडे को लेकर दोनों गुट के लोग कचहरी में हाजिरी बजाते नजर आएंगे।

और न जाने क्या बवाल होंगे। लेकिन यह सोचकर तरस आ रहा है कि अध्यापक कभी समाज का सबसे सम्मानित वर्ग माना जाता था उसकी हालत ऐसी हो गयी है कि उसकी निगरानी करने के लिए जुगाड़ खोजे जा रहे हैं। जनगणना, चुनाव,पोलियो का टीका, आधार कार्ड जहां देखो तहाँ उसको भिड़ाया जाता है। पढ़ाई छोड़कर सब काम कराया जाता है । ऐसे में वो पढ़ायेगा कहाँ से?


इसके बाद अब इस तरह के जुगाड़ भी सोचे जा रहे हैं।मास्टर के हाल एक दम मवेशी जैसे हैं जिसको बधिया करने के उपाय हर कोई सोचता है।

मास्टर की तो मरन है।

Friday, February 06, 2015

हमें ऐसे मजाक पसंद नहीं

पता चला कि कल अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा है - ’गांधी जी आज होते तो भारत में धार्मिक असहिष्णुता से आहत होते।’

अब हम कोई राष्ट्रीय प्रवक्ता तो हैं नहीं जो उनके बयान पर  कोई आधिकारिक बयान जारी कर सकें। लेकिन मन तो करता है कुछ कहने का। लेकिन यह समझ नहीं आ रहा कि क्या कहें?

पहले मन किया कि कह दें कि आप हमारे प्यारे देश की चिन्ता छोड़कर अपने देश की चिन्ता करिये। हम गांधी जी को संभाल लेंगे। गांधी जी जब विदा हुये थे  तब ही कौन कम आहत  थे । आज होते तो थोड़ा और आहत हो लेते। जब बाकी क्षेत्रों में प्रगति होगी तो ’धार्मिक असहिष्णुता’  ने कौन किसी की भैंस खोली है जो वह न बढे। बाकी बुराइयों की तरह उसको भी प्रगति करने  का हक है।



फ़िर मन किया कि कह दें हमारा देश ’वसुधैव कुटुम्बकम’ वाला देश है। ’सुजलाम् सुफ़लाम्’ वाला देश है। ’मलयज् शीतलाम’ की भी चौकस व्यवस्था है यहां। ऐसे देश में धार्मिक असहिष्णुता का क्या काम?  क्या करेगी , कैसे रहेगी ऐसे देश में धार्मिक असहिष्णुता जहां ’वन्दे मातरम’ का नारा लगाने वाले गली-गली मिलते हों? आपको धोखा हुआ होगा मिस्टर प्रेसीडेंट। आप किसी और देश के लिये दिया जाने वाला बयान पढ़ गये होंगे गलती से। भारत चूंकि आपके दिल में बसता है इसलिये आप भारत का नाम ले लिये। इसके पहले कि आपसे इस तरह  की और बचकानी गलतियां हों आप अपना बयान लेखक बदल डालिये।

फ़िर सोचा उनको गाना सुनाकर बता दें कि -’जहां-जहां डाल-डाल पर सोने की चिडियां करती हैं बसेरा, वह भारत देश है मेरा।’ यहां सब जगह अमन-चैन है। सुबह सूरज उगता है, शाम को ढल जाता है। नियम से चुनाव होते हैं। अपने-अपने जाति, धर्म के हिसाब वोट पड़ते हैं। सरकार बनती है। राज-काज चलता है। विकास होता है। घपले-घोटाले होते हैं। कोई धार्मिक मसला फ़ंसा  तो दंगे से सुलटा लेते हैं। किसको यहां फ़ुरसत है धार्मिक असहिष्णुता फ़ैलाने की?

वैसे होने को तो धार्मिक असहिष्णुता से वह भी आहत होता है जो  सब धर्मों को समान भाव से देखता है। वह धर्म के नाम पर होते बवाल देखकर दुखी होता है। इसी तरह कट्टर धार्मिक भी धार्मिक असहिष्णुता को देखकर दुखी होता है। उसको लगता है कि दूसरे धर्म वाले उसके धर्म वालों  को ज्यादा नुकसान पहुंचाये जा रहे हैं। दूसरे धर्म के लोग ज्यादा सुविधायें बटोरे ले रहे हैं। दंगो में हर धर्म के कट्टर लोग दुखी होते हैं यह सोचकर कि दूसरे धर्म के लोग कम लुटे, कम मरे। यह सोच-सोचकर कट्टर लोग भी आहत होते हैं कि क्या फ़ायदा ऐसे धार्मिक असहिष्णुता का जिसके होते हुये भी विधर्मी को निपटा न सके।

एक मन यह भी हुआ कि चंदा करके जायें अमेरिका और लौटते ही हम भी कोई ऐसा  फ़ड़कता हुआ बयान जारी करें अमेरिका के बारे में अमेरिकी लोग बिलबिला के रह जायें लेकिन फ़िर यह सोचकर  कि अभी प्लान बनायेंगे तो जाते-लौटते अमेरिका का राष्ट्रपति बदल जायेगा योजना मुल्तवी कर दिये। फ़िर चलते-चलते मन किया वक्त फ़िल्म का डायलाग मार दें- ’जिनके घर शीशे के होते हैं वो दूसरे के घर में पत्थर नहीं फ़ेंकते।’  लेकिन यह सोचकर कि थोड़ा ज्यादा हो जायेगा नहीं मारे।

यह सब लिखते हुये मुझे अपने प्रधानमंत्री की बात याद आ गयी वे और अमेरिकी राष्ट्रपति आपस में मजाक करते रहते हैं। चुटुकुले साझा करते हैं। क्या पता अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह बात मजाक में कही हो। यही सोचकर हम कुछ और कह नहीं रहे। लेकिन अगर यह बात मजाक में कही गयी है तो यही कहेंगे कि भई इतना सीरियस मजाक मत किया करें। व्यक्तिगत मजाक अलग बात है। देश के साथ दिल्लगी अलग। हमें ऐसे  मजाक पसंद नहीं।

आप बताओ आपकी क्या प्रतिक्रिया है धार्मिक असहिष्णुता वाले बयान पर?


Wednesday, February 04, 2015

स्मार्टफ़ोन की बेवकूफ़ी

हमें तो लूट लिया सैमसंग फोन वालों ने।

न,न,न हम कोई गप्प नहीं हांक रहे ।

गप्प हांकना होता तो चुनाव न लड़ लिए होते। खड़े हो जाते चुनाव में और करने लगते लगते देशसेवा। भारतमाता तो बहुत दिन से पुकार रही हैं। कहती रहती हैं -"बेटा,फटाक देना आ जाओ मेरी सेवा करने के लिए।देर करोगे तो दूसरे लोग मेरी सेवा कर डालेंगे।तुम टापते रह जाओगे। फिर न कहना कि बताया नहीं।देश सेवा का स्टॉक सीमित है। फौरन कोई भी सवारी पकड़ो और भागते चले आओ 'जयहिंद' और 'वन्देमातरम' चिल्लाते हुए।"
हम भारतमाता से हर बार कह देते हैं-"माताजी,आपकी आवाज सुनाई नहीं दे रही।आप फोन रखो। हम मिलाते हैं इधर से।" इसके बाद भारतमाता वाला फोन बंद कर देते हैं। कितना झूठ बोलें बार-बार भारतमाता से।अगली बार जब बात होगी तो कह देंगे-"माताजी,बैटरी डिस्चार्ज हो गयी थी।"

देशसेवा के मामले में बड़े-बड़ों की बैटरी डिस्चार्ज हो जाती है।उसको फिर से चार्ज करवाना पड़ता है, चुनाव लड़कर।

खैर बात सैमसंग फोन की हो रही थी।स्मार्ट फोन है।अब आप पूछेगे कि स्मार्ट बोले तो क्या? तो जनाब स्मार्ट माने मंहगा। यह बात आदमी और फोन दोनों पर लागू होती है। स्मार्ट है मतलब मंहगा तो पक्का होगा।आदमी मंहगा होने का मतलब जो काम एक आम आदमी 5 रूपये में करेगा उसी काम को स्मार्ट आदमी से कराने में 500 ठुक जाएंगे।दिन भर जितना स्मार्ट दिखने के लिए एक आम आदमी 1000 रूपये के कपड़े पहनकर काम चला लेगा उससे कम स्मार्ट दिखने के लिए स्मार्ट आदमी एक बार में 10 लाख फूंक देगा।

बहरहाल। बात सैमसंग फोन की हो रही थी।

तो हुआ यह कि कल अपन रात सोये सुबह 6 बजे का अलार्म लगाकर। सोचे सुबह बजेगा अलार्म तब उठ जाएंगे। सुबह 4 बजे एक बार नींद खुली। सोचा उठ जाएँ। लेकिन नहीं उठे।लगा फोन बुरा मान जाएगा और कहेगा-"जब आपने मुझे 6 बजे जगाने का काम सौंपा है तो 4 बजे कैसे उठ सकते हैं?"

यह भी सोचे क्या पता ज्यादा बुरा मान जाये तो यह भी कह दे-"आपकी हिम्मत कैसे हुयी 6 बजे के पहले उठने की?" आजकल के सेवक बहुत आक्रामक हो गए हैं। सेवा कार्य में कोई भी विघ्न पड़ने पर मालिक तक का 'भरत मिलाप' करवा देते हैं।

खैर, हम सो गये फिर से।इस बार जगे तो सुबह के 6 बजकर पांच मिनट हो गए थे। हमने सोचा शायद फोन अलसा गया होगा। एकाध मिनट में जगा देगा। लेकिन नहीं। वह तो शांत ही रहा। चुनाव में किये गए वायदे भूल जाने राजनेता की तरह बेशर्मी से मुझे ताकता रहा। बज के नहीं दिया अलार्म। मन तो किया मारे दो कंटाप होश ठिकाने आ जाएँ। लेकिन 'हिंसाबाद' ठीक नहीं है यह सोचकऱ और कम से कम 10 हजार रूपये फिर ठुकने की बात सोचकर कंटाप मारने की बात मटिया दिए।

बाद में सोचा कि देखें कि यह ससुरा फोन बजा क्यों नहीं सुबह 6 बजे। तो पता लगा कि हम अलार्म कुछ गलत लगाये थे। हुआ यह कि कल छुट्टी थी तो हम समझे इतवार है। छुट्टी और इतवार कुछ इस तरह संरक्षित है अपने दिमाग में जैसे कि कुछ तमाम लोगों के दिमाग में 'विधर्मी/विपक्षी मतलब देशद्रोही' वाला पवित्र भाव सरंक्षित होता है।

तो जब हम कल मतलब मंगलवार को इतवार समझकर अगले दिन 6 बजे जगने के लिए अलार्म लगाये तो सोचा कि जगा देगा सुबह।लेकिन वह तो सोमवार को बजेगा। हम वुधवार को जगने के लिए अलार्म बजने का इन्तजार कर रहे हैं। जबकि उधर फोन इन्तजार कर रहा था कि सोमवार आये तो मालिक को जगाएं।

आप कहेंगे कि खुद बेवकूफी करते हैं और दोष फोन को देते हैं। तो भाई हम अपनी गलती मानते हैं लेकिन ये ससुर फोन भी क्या कम बेवकूफ है। अलार्म लगाने का मतलब मामला घँटो का होगा। ये थोड़ी कि हफ्ते भर बाद का कोई अलार्म लगाये तो वह बिना सवाल पूछे कहे-"ठीक है साहब,जगा देंगे।" फिर तो वह बुड़बक हुआ हमारी तरह।


अगर किसी फोन की हरकतें किसी अंधभक्त स्वयंसेवक सरीखी हो तो वो काहे का स्मार्ट फोन हुआ? 25000 रूपये में मिलने वाला फोन 200 रूपये दिहाड़ी पर मिलने वाले इंसान से भी ज्यादा बेअक्ल की हरकतें तो करेगा तो काहे का स्मार्ट हुआ फोन?

इसीलिए हम कहे शुरू में कहे -"हमें तो लूट लिया सैमसंग फोन वालों ने।"

आपै बताइये कोई गलत कहे?

Tuesday, February 03, 2015

बिछुड़ी हुई चप्पल का शोक

बिछुडी चप्पल
आज ट्रेन से उतरते हुए दोनों चप्पलें बैग में धर लीं।घर आकर देखा तो अपनी एक चप्पल के साथ में दूसरी चप्पल दूसरे की आ गयी। साइज अलग-अलग होने के चलते उनको पहनकर चलना कठिन है।

यह तो कुछ ऐसे ही हुआ कि केंद्र और राज्य की सरकारें अलग-अलग होने से विकास की रफ़्तार बाधित हो जाये।


घर में हंसी हो रही है। कहा जा रहा है -'उमर हो गयी,भूलने लगे हो चीजें।'

कोई यह नहीं देख रहा की साल भर पहले दोनों चप्पलें भूल आये थे। इस बार तो दो साथ लाये हैं। जोड़ी बेमेल है तो क्या हुआ। जब इंसान बेमेल जोड़ियां निभाते हुये जिंदगी गुजार लेता है फिर यह तो चप्पले हैं। निभा लेंगी। बेमेल होने के चलते अब तो निठल्ला ही रहना है।

यह तो अच्छा हुआ कि पुरानी चप्पलें जिनको 'मार्गदर्शक चप्पलें' समझकर घूरे में फेंकने का निर्णय घर वाले ले चुके थे वो अभी तक फेकी नहीं गयीं थी। अब वही मेरी ' पैर संगिनी' बनी कठिन समय की साथी साबित हो रही हैं।

सोच तो यह भी रहा हूँ कि जिसकी चप्पलें गलती से उठा लाये वह क्या सोच रहा होगा? क्या पता दोनों चप्पलें हाथ में लिए हमें खोज रहा हो सोचते हुए -मिल भर जाए बस।

क्या पता मेरी खोयी हुई चप्पल किसी पार्टी के संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों को बताती हुई मिले- 'अनूप शुक्ल के अराजक व्यवहार से आजिज आकर मैंने उनका साथ छोड़ा।वे हमेशा अपनी पुरानी चप्पलों के ऊपर एकदम नए जूते को तरजीह देने लगे थे। जब जूते पहनते थे तो उतारते नहीं थे। लेकिन जब हमको पहनते थे ,जहां  तहाँ उतार देते थे। आज ही जूते उतारे तो बैग में रखे। लेकिन हमें उतार कर जमीन में घर दिया। ठिठुर गयी जाड़े में।'
आगे शायद वह कहे-'एक सपर्पित चप्पल होने के चलते उनके पास मेरा दम घुटने लगा था। इसलिए उनका साथ छोड़ा। अब आजाद होकर अच्छा लग रहा है।'

क्या पता शाम को किसी चैनल की यह खबर बने-'एक बड़ी खबर आ रही है कानपुर से। एक दो साल पुरानी चप्पल ने एक पचास साल पुराने पैर का साथ छोड़कर नया पैर ज्वाइन कर लिया है।बताया जाता है पैर के रवैये से चप्पल को नाराजगी थी। पैर चप्पल को पार्टी में कभी नहीं ले जाते थे। सिर्फ घर में ही टहलाते थे चप्पल को।'
हो तो यह भी सकता है कि शाम को इस पर कोई प्राइम टाइम चैनल इस पर बहस आयोजित करते हुए दिल्ली विधान सभा चुनाव में इसके प्रभाव का अध्ययन करे।

कल की अखबारों की खबर हो सकती है-
' पुरुष चप्पल, महिला चप्पल के साथ फरार'
'पुरुष चप्पल महिला चप्पल के साथ धराई'
'नई चप्पल चोरी जाने से पुरानी के दिन बहुरे'
अब जो होगा सो देखा जाएगा।फिलहाल तो बिछुड़ी हुई चप्पल का शोक मना रहे हैं।

Monday, February 02, 2015

बापू की समाधि पर पीपल का पौधा

 भारत में कोई भी विदेशी मेहमान आता है तो उसे राजघाट  जरूर ले जाया जाता है। फ़िर चाहे वह अहिंसा  पर विश्वास रखने वाले नेल्शन मंडेला हों या हर मसले का हल बमबारी में खोजने वाले देश अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष।
राजघाट पर महात्मा गांधी की समाधि है। गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे। उनके बारे में  गाना भी बना है -

दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल,
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।

 गांधी जी की समाधि पर उनके जन्मदिन और शहीद दिवस पर उनकी प्रिय रामधुन  तो बजती है। बाहर से कोई  आता है तो उसको वहां जरूर ले जाते हैं।

इस बार  हमारे  मेहमान बनकर अमेरिकी राष्ट्रपति आये। वे भी गये राजघाट। उनको तक यह पता था कि बापू अहिंसा के हिमायती थे। हालांकि अमेरिका को अहिंसा पर कोई खास एतबार नहीं है। वह हर समस्या का इलाज बमबारी में खोजता है। लम्बा इतिहास है उसका हिंसा का। परसाई जी ने लिखा भी है:

अमरीकी शासक हमले को सभ्यता का प्रसार कहते हैं.बम बरसते हैं तो मरने वाले सोचते है,सभ्यता बरस रही है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने राजघाट पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुये कहा- "भारत में बापू के आदर्श आज भी जिन्दा हैं।"

इसका एक मतलब तो तारीफ़ की बात है भारत में अहिंसा की भावना बची हुयी है। लेकिन इसमें आश्चर्य का भी है - "हमने दुनिया भर में इतने हथियार बेचे। चलाये। चलवाए। लेकिन भारत में बापू के आदर्शो को ठिकाने नहीं लगा  पाये। लेकिन हम हार नहीं मानेंगे। इनको  निपटानें की कोशिश करते रहेंगे।"

अमेरिकी राष्ट्रपति ने राजघाट पर पीपल का पौधा लगाया।  पीपल का पौधा वैसे तो बहुत लाभकारी होता है। सबसे ज्यादा आक्सीजन देता है। कई तरह के देवता इसमें निवास करते हैं। शुद्ध हिन्दू पौधा है।

लेकिन पीपल का पौधा इमारतों के लिये बहुत खतरनाक होता है। जहां लगाया जाता है वहां इसकी जड़ें फ़ैलकर इमारत की नींव और दीवार को कमजोर कर देती हैं। पौधा मजबूत होता है, इमारत कमजोर हो जाती है। देश की अनगिनत इमारतों की कमजोरी का कारण यह पवित्र पौधा है। लोग पवित्रता के चलते इसको उखाड़ते नहीं। इमारत भले गिर जाये।

इस दौरे में अमेरिका से  कई समझौते हुये हैं।  भारतीय मीडिया लहालोट है। गदगद है। लेकिन अमेरिका से दोस्ती की बात सोचते ही हमें कानपुर के ठग्गू के लड्डू का डायलाग याद आता है-

ऐसा कोई सगा नहीं,
जिसको हमने ठगा नहीं।

अमेरिका से आये गेंहूं के साथ आये गाजर घास तो अब तक झेल रहे हैं हम। अब यह पीपल का पौधा। खबर सुनते ही हमारा मन  पीपल के पत्ते की तरह कांपने लगा।   अहिंसा तो खैर एक विचार है। उसको खतम करना तो किसी के बूते की बात नहीं लेकिन अहिंसा के पुजारी की समाधि के प्रति चिंता होने लगी है। वैसे भी लोग हिंसा के हिमायती की मूर्ति लगाने के लिये हल्ला शुरु मचाने ही लगे हैं।

क्या आपको भी ऐसा ही कुछ लगा ?