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लोकतंत्र का वीरगाथा काल
By फ़ुरसतिया on October 28, 2013
पुराने
समय में जब राजा लोग युद्ध के लिये निकलते थे तो तमाम तरह के ताम-झाम के
साथ निकलते थे। मेरा मतलब प्रयाण करते थे। रानियां बख्तरबंद पहनाती थीं।
पंडित मंत्रोच्चार करते थे। चारण और भाट उनकी तारीफ़ के किस्से चिल्लाते
हुये गाते थे। अपने-अपने राजाओं को सूर्य के समान तेजस्वी, सागर के समान
विशाल हृदय वाला, चंद्रमा के समान शीतल टाइप बताते थे। जो भाट जित्ती
कुशलता से अपने अन्नदाता की तारीफ़ कर सके वो उत्ता बड़ा कवि माना जाता था।
जिसके दरबार में जित्ता बड़ा कवि होता था वो राजा उत्ता शूरवीर कहलाता था।
राजाओं की वीरता उनके दरबारी कवियों की काबिलियत पर निर्भर करती थी।
युद्ध में एक राजा हार जाता होगा। मारा जाता होगा। एक राजा के हारने का मतलब एक चारण कवि के सूर्य का अस्त हो जाना, एक समुद्र का सूख जाना, एक चन्द्रमा पर ग्रहण लग जाना होता था। हारे हुये राजा का कवि अपना पोथी-पत्रा उठाकर प्रतिद्वंदी कवि के अंडर में काम करने लगता होगा। कभी जिस राजा का अलग-अलग तरीके से संहार करवाया होगा अपने मरे हुये राजा से अब उसी राजा की वीरता का श्रंगार करने लगता होगा।
आज जमाना आधुनिक हो गया है। युद्ध की जगह चुनाव होने लगे हैं। तलवारों की जगह जबाने चलती हैं। हाथियों के चिंघाड़ लाउडस्पीकरों के हल्ले में बदल गयी है। घोड़ों की जगह प्रचारक हिनहिनाने लगे हैं। चुनाव युद्ध की तैयारियां होने लगी हैं।
पहले राजाओं के पास अपने खास हथियार होते थे जिन्हे वे अपनी कड़ी मेहनत और घोर तपस्या से अर्जित करते थे। आज जमाना बहुत आगे जा चुका है। आज के शूरवीरों को अपने लिये हथियार अर्जित करने के लिये मेहनत नहीं करनी पड़ती। एक बहादुर दूसरे की कमियों को अपने हथियार की तरह प्रयोग करता है। एक की नीचता दूसरे की महानता बन जाती है। एक का घपला दूसरे के लिये उपलब्धि बन जाता है। एक का भ्रष्टाचार दूसरे का हथियार।
जब एक की कमजोरी दूसरे की ताकत बन जाती है तो काहे के लिये अपनी ताकत के लिये पसीना बहाना। दूसरे की कमियां खोजो, बड़े मियां बन जाओ।
पुराने जमाने में राजा लोग जब लड़ते थे तो तलवारें टकरातीं थीं। चिंगारियां निकलती थीं। खून बहता था। लोग घायल होते थे। अब जमाना आधुनिक हो गया है। भाले, तलवार की जगह घपले, दंगे, भाईभतीजावाद, वंशवाद के आरोपों से हमले होते हैं। एक के एक घपले का जबाब अगले के पचीस घपले हैं। छोटे दंगे का जबाब बड़ा दंगा है। छोटी नीचता का जबाब बड़ी नीचता है। एक रंगी चिरकुटई के जबाब में अगले की बहुरंगी हरकते हैं। मामला फ़ुल हाईटेक हो गया है।
चुनाव आने वाले हैं। प्रचार युद्ध शुरु हो चुका है। प्रचारक अपने-अपने हथियार तेज कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर नये-नये खाते बन रहे हैं। पुरानी खबरों/सूचनाओं को अपने-अपने हिसाब से रंग-रोगन करके दूसरे पक्ष पर हमले शुरु हो गये हैं।
अपने यहां संसदीय लोकतंत्र है। प्रधानमंत्री बहुमत पाये दल के लोग चुनते हैं। कौन जीतेगा यह तय नही। वोटिंग में अभी देरी है। लेकिन प्रधानमंत्री चुन लिये गये हैं। जिस दल ने नहीं चुने उसका उसके प्रधानमंत्री प्रतिद्वंदी दल ने चुन के दे दिया है। ले बे, ये है तेरा प्रधानमंत्री। चल युद्ध शुरु करें।
युद्द भूमि भी पहले की तरह संकुचित नहीं रही। पूरे देश में पसरा है लड़ाई का मैदान। जहां- जहां वोटर है, वहां -वहां युद्ध का मैदान है। चारण भाट सोशल मीडिया पर मुस्तैद हो गये हैं। टीवी चैनल पर डट गये हैं। अखबार में कलम कस के आ गये हैं। हमले शुरु हो गये हैं। हमले और बचाव का फ़ीता कट गया है।
सोशल मीडिया पर तैनात अनगिनत स्वत:स्फ़ूर्त और भाड़े के प्रचारक किसी भी सूचना या बयान को अपने नेता खिलाफ़ पाते हैं तो वे उस पर टूट पड़ते हैं। सूचना और बयानबाज के चिथड़े-चिथड़े कर डालते हैं। अपने नेता की शान के खिलाफ़ बोलता हुआ हर व्यक्ति उनके लिये पांडवों के कुत्ते सरीखा है जिसका मुंह वे एकलव्य की तरह अपने बयान बाणों से बंद कर देते हैं।
चुनाव युद्द में कूदे नेताओं के तूरीण में इधर एक नया हथियार जुड़ा है। मसखरी का हथियार। पहले राजा लोग अपनी वीरता पर भरोसा रखते थे। वह भरोसा अब मसखरेपन पर शिफ़्ट हो गया है। चुनाव मैदान में उतरा नेता स्टैंड अप कामेडियन में बदलता जा रहा है। चुनाव लाफ़्टर चैलेंज में बदलता जा रहा है। एक-दूसरे की खिल्ली उड़ाते हुये नेता एक-दूसरे के लिये मसखरी का मसाला मुहैया करा रहे हैं। नेता अपने चारण का काम हल्का कर रहे हैं। खुद के भाट बन रहे हैं।
यहां नेता कैसा भी हो, उसके कसीदे ही काढ़े जाने हैं। दोनों तरफ़ से अपने नायक की संभावित विजय की गाथायें भी लिखी जा चुकी हैं। मजे की बात है कि दोनों विजयगाथाओं को लिखने का ठेका एक ही भाट कंपनी को मिला है। एडवांस में लिखी जा रही विजयगाथा का भुगतान भी एडवांस में हो चुका है।
यह लोकतंत्र का वीरगाथा काल है।
इस पोस्ट को मेरी आवाज में सुनें:
रिकार्ड किया: 31.10.13
रिकार्ड लगाया: 31.10.13
समयावधि:5.55 मिनट
आवाज : अनूप शुक्ल
युद्ध में एक राजा हार जाता होगा। मारा जाता होगा। एक राजा के हारने का मतलब एक चारण कवि के सूर्य का अस्त हो जाना, एक समुद्र का सूख जाना, एक चन्द्रमा पर ग्रहण लग जाना होता था। हारे हुये राजा का कवि अपना पोथी-पत्रा उठाकर प्रतिद्वंदी कवि के अंडर में काम करने लगता होगा। कभी जिस राजा का अलग-अलग तरीके से संहार करवाया होगा अपने मरे हुये राजा से अब उसी राजा की वीरता का श्रंगार करने लगता होगा।
आज जमाना आधुनिक हो गया है। युद्ध की जगह चुनाव होने लगे हैं। तलवारों की जगह जबाने चलती हैं। हाथियों के चिंघाड़ लाउडस्पीकरों के हल्ले में बदल गयी है। घोड़ों की जगह प्रचारक हिनहिनाने लगे हैं। चुनाव युद्ध की तैयारियां होने लगी हैं।
पहले राजाओं के पास अपने खास हथियार होते थे जिन्हे वे अपनी कड़ी मेहनत और घोर तपस्या से अर्जित करते थे। आज जमाना बहुत आगे जा चुका है। आज के शूरवीरों को अपने लिये हथियार अर्जित करने के लिये मेहनत नहीं करनी पड़ती। एक बहादुर दूसरे की कमियों को अपने हथियार की तरह प्रयोग करता है। एक की नीचता दूसरे की महानता बन जाती है। एक का घपला दूसरे के लिये उपलब्धि बन जाता है। एक का भ्रष्टाचार दूसरे का हथियार।
जब एक की कमजोरी दूसरे की ताकत बन जाती है तो काहे के लिये अपनी ताकत के लिये पसीना बहाना। दूसरे की कमियां खोजो, बड़े मियां बन जाओ।
पुराने जमाने में राजा लोग जब लड़ते थे तो तलवारें टकरातीं थीं। चिंगारियां निकलती थीं। खून बहता था। लोग घायल होते थे। अब जमाना आधुनिक हो गया है। भाले, तलवार की जगह घपले, दंगे, भाईभतीजावाद, वंशवाद के आरोपों से हमले होते हैं। एक के एक घपले का जबाब अगले के पचीस घपले हैं। छोटे दंगे का जबाब बड़ा दंगा है। छोटी नीचता का जबाब बड़ी नीचता है। एक रंगी चिरकुटई के जबाब में अगले की बहुरंगी हरकते हैं। मामला फ़ुल हाईटेक हो गया है।
चुनाव आने वाले हैं। प्रचार युद्ध शुरु हो चुका है। प्रचारक अपने-अपने हथियार तेज कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर नये-नये खाते बन रहे हैं। पुरानी खबरों/सूचनाओं को अपने-अपने हिसाब से रंग-रोगन करके दूसरे पक्ष पर हमले शुरु हो गये हैं।
अपने यहां संसदीय लोकतंत्र है। प्रधानमंत्री बहुमत पाये दल के लोग चुनते हैं। कौन जीतेगा यह तय नही। वोटिंग में अभी देरी है। लेकिन प्रधानमंत्री चुन लिये गये हैं। जिस दल ने नहीं चुने उसका उसके प्रधानमंत्री प्रतिद्वंदी दल ने चुन के दे दिया है। ले बे, ये है तेरा प्रधानमंत्री। चल युद्ध शुरु करें।
युद्द भूमि भी पहले की तरह संकुचित नहीं रही। पूरे देश में पसरा है लड़ाई का मैदान। जहां- जहां वोटर है, वहां -वहां युद्ध का मैदान है। चारण भाट सोशल मीडिया पर मुस्तैद हो गये हैं। टीवी चैनल पर डट गये हैं। अखबार में कलम कस के आ गये हैं। हमले शुरु हो गये हैं। हमले और बचाव का फ़ीता कट गया है।
सोशल मीडिया पर तैनात अनगिनत स्वत:स्फ़ूर्त और भाड़े के प्रचारक किसी भी सूचना या बयान को अपने नेता खिलाफ़ पाते हैं तो वे उस पर टूट पड़ते हैं। सूचना और बयानबाज के चिथड़े-चिथड़े कर डालते हैं। अपने नेता की शान के खिलाफ़ बोलता हुआ हर व्यक्ति उनके लिये पांडवों के कुत्ते सरीखा है जिसका मुंह वे एकलव्य की तरह अपने बयान बाणों से बंद कर देते हैं।
चुनाव युद्द में कूदे नेताओं के तूरीण में इधर एक नया हथियार जुड़ा है। मसखरी का हथियार। पहले राजा लोग अपनी वीरता पर भरोसा रखते थे। वह भरोसा अब मसखरेपन पर शिफ़्ट हो गया है। चुनाव मैदान में उतरा नेता स्टैंड अप कामेडियन में बदलता जा रहा है। चुनाव लाफ़्टर चैलेंज में बदलता जा रहा है। एक-दूसरे की खिल्ली उड़ाते हुये नेता एक-दूसरे के लिये मसखरी का मसाला मुहैया करा रहे हैं। नेता अपने चारण का काम हल्का कर रहे हैं। खुद के भाट बन रहे हैं।
यहां नेता कैसा भी हो, उसके कसीदे ही काढ़े जाने हैं। दोनों तरफ़ से अपने नायक की संभावित विजय की गाथायें भी लिखी जा चुकी हैं। मजे की बात है कि दोनों विजयगाथाओं को लिखने का ठेका एक ही भाट कंपनी को मिला है। एडवांस में लिखी जा रही विजयगाथा का भुगतान भी एडवांस में हो चुका है।
यह लोकतंत्र का वीरगाथा काल है।
इस पोस्ट को मेरी आवाज में सुनें:
रिकार्ड किया: 31.10.13
रिकार्ड लगाया: 31.10.13
समयावधि:5.55 मिनट
आवाज : अनूप शुक्ल
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