आज शहर के एक अनाथालय जाना हुआ। किसी भी अनाथालय को देखने का यह मेरा पहला अनुभव था।
श्री राजकुमारी बाई बाल निकेतन शास्त्री ब्रिज के नीचे रेलवे ट्रैक के एकदम पास है। 1920 में स्थापित हुआ था। मतलब करीब 100 साल पुराना। पहुंचकर बताया कि वहाँ की वर्किंग देखने आये हैं। अनाथालय के बारे में जानना चाहते हैं। बाहर रजिस्टर में नाम और नंबर नोट करके अंदर एक कमरे में बैठा दिया गया। हम करीब साढ़े चार बजे गये थे। हमसे पहले आज दो लोग आये थे।
कमरे में एक अलमारी में खूब सारी ट्राफियां और मेडल रखे थे। शायद यहाँ के बच्चों ने हासिल किये थे वे सब।
कुछ देर में एक महिला आई वहां। रेखा जग्गी नाम बताया उन्होंने। 1999 से जुडी हैं इस अनाथालय से। कुल 6-7 लोग नियमित 24 घंटे रहती हैं यहाँ। बाकी लोग आते-जाते सहयोग करते हैं।
अनाथालय बच्चियों का है। बच्चियां बाल कल्याण समिति या फिर उप जिला अधिकारी की संस्तुति से ही रखे जाते हैं यहां। आज के समय 76 बच्चियां और 4 बच्चे हैं अनाथालय में। बच्चियों की अधिकतम संख्या 85 तक जा चुकी है कुछ साल पहले।
बच्चियां अनाथालय में उसी तरह रखी जाती हैं जैसे घरों में बच्चे रखे जाते हैं- बिन माँ बाप के बच्चे। बच्चे स्कूल भी जाते हैं।
'बच्चे सरकारी स्कूल में जाते होंगे। फ़ीस माफ़ होगी?' मेरे इस सवाल के जबाब में रेखाजी ने बताया -' नहीं। सब प्राइवेट स्कूल में जाते हैं। सरकारी स्कूल में पढाई कहाँ होती है।'
बच्चियां हर उम्र की हैं। अलग-अलग क्लास में पढ़ती हैं। आम तौर पर 18 साल की उम्र तक बच्चियां रहती हैं। इसके बाद कोशिश करते हैं कि उनकी शादी हो जाए। शादी करने से पहले लड़के की आर्थिक स्थिति देखते हैं। पुलिस वेरिफिकेशन करवाते हैं। एक लड़की के बारे में बताया उन्होंने जिसने यहाँ रहने के बाद नौकरी की। फिर शादी हुई। दो बच्चे हैं।
अगर 18 की उम्र तक शादी न हुई तब क्या करते हैं? इस सवाल के जबाब ने बताया कि ऐसा नहीं कि 18 साल बाद एकदम निकाल देते हैं। बच्ची को अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिश करते हैं। कुछ गुम हुए बच्चों के माँ-बाप पता लगने पर अपने बच्चों को ले भी जाते हैं।
लोग अलग-अलग तरह से अनाथालय की व्यवस्था करते हैं। कोई धन से कोई सामान देकर। सामान की लिस्ट नीचे दी गयी जिसे अनाथालय में देकर सहायता की जा सकती है। नकद पैसा भी दे सकते हैं। एक समय का खाने के पैसे भी दे सकते हैं। साधारण खाने के 3500/- और स्पेशल खाने के 4500/- रूपये।
इसके अलावा बच्चियों की जरुरत का कोई भी सामान, कपड़े , साबुन, शैम्पू आदि दे सकते हैं। कुछ लोग बच्चों की नाप ले जाते हैं फिर उसके हिसाब से कपड़े दे जाते हैं।
कभी कुछ सामान इस तरह से लोग देते हैं कि सबके लिए पर्याप्त नहीँ होता। ऐसे में यथासम्भव सबमें बंटवारा करने का प्रयास करके उसका उपयोग किया जाता है।
समस्याएं आती होंगी कभी-कभी बच्चियों को पालने में? इस सवाल के जबाब में रेखा जी ने कहा-'बिना समस्याओं के जिंदगी कहाँ होती है?'
बच्चियों को स्कूल के अलावा बाहर जाने की मनाही है। साल में एकाध बार सब लोगों को लेकर किसी जगह घुमाने ले जाते हैं। बस वगैरह का इंतजाम करते हैं। सब इंतजाम करना मुश्किल होता है इसलिए साल में एक दो बार से अधिक नहीं जा पाते।
हमने अनाथालय देखने की इच्छा जाहिर की तो उन्होंने एक महिला को साथ भेज दिया। फिर रजिस्टर में नाम और अंदर जाने का समय लिखकर अंदर गए।
अंदर पहुंचते ही कुछ बच्चियां आँगन में खेलती दिखीं। एक बच्ची से बात शुरू की तो महिला ने बताया -'अभी एक हफ्ते अस्पताल रहकर आई है। बीमार थी।' मैंने उसके हाल पूछे तो बोली-'ठीक है। कमजोरी है।'
एक बच्ची दरवाजे से बाहर झाँक रही थी। मैंने बाहर बुलाया। वह आ गयी। दीवार से चिपक कर सकुची खड़ी रही। मैंने नाम पूछा तो बताया उसने -शिखा। किस क्लास में पढ़ती हो ? तो बताया उसने - 7 में। हमने पूछा -पहाड़ा आता है ? उसने बताया -दस का आता है। फिर हमने आठ का पहाड़ा सुनाने को कहा। उसने सुनाया।
फिर मैंने पूछा-'खेल क्या-क्या खेलती हो?' उसने बताया-' पंचगुट्टा और चींटी धप।' उससे बात करते हुए और तमाम बच्चियां वहां आ गयीं। पूर्वी, शेफाली, वर्षा और अन्य कई बच्चियां। सात-आठ बच्चियां इकठ्ठा हो गयीं। किसी बात पर हंसने लगीं तो मैंने फोटो लेनी चाही तो साथ की महिला ने मना किया। यह भी बताया कि यहाँ सब जगह सीसीटीवी लगे हुए हैं। फोटो लेंगे तो उसको परेशानी होगी। हमने नहीं ली फिर फोटो।
मनोरंजन कक्ष में करीब 25-30 बच्चियां बैठी टीवी पर कोई फ़िल्म देख रहीं थी। देखा तो पिक्चर हिल रही थी। आवाज भी सुनाई नहीँ दे रही थी साफ़। शायद टीवी पुराना होने के कारण ऐसा हो या फिर कनेक्शन गड़बड़ हो।
कुछ बच्चियां वहां बहुत छोटी भी दिखीं। 2 से 3 साल की उमर की। ज्यादातर बच्चियां आर्य कन्या बालिका विद्यालय में पढ़ती हैं।
अनाथालय में बच्चों को सिलाई-कढ़ाई, कम्प्यूटर आदि सिखाने की भी व्यवस्था है। गौशाला भी है। ट्यूशन के लिए भी अध्यापक आते हैं। बिना पैसे वाले जो सहयोग देने वाले हैं वो नियमित नहीं रहते।
किसी बच्चे की पूरी देखभाल की कोई जिम्मेदारी लेना चाहे तो ले सकता है।।ऐसे एकाध बच्चों की जिम्मेदारी ली है लोगों ने। साल का 10 से 12 खर्च होता है एक बच्चे पर।
अनाथालय देखने के बाद मैंने कुछ पैसे देने चाहे। दीदी को बुलाया गया रसीद देने के लिए। उनके आने तक मैं वहीं काउंटर पर बैठा रहा। वहां बैठी महिला काजू का एक पैकेट खोलकर काजू के टुकड़े करने लगी। आज स्पेशल खाना था दीदी की तरफ से। महिला ने बताया कि बीस साल से भी अधिक समय से वे यहां पर हैं। घर परिवार के बारे में पूछने पर उन्होंने यही कहा-'अब जो कुछ है सब यहीं है।'
इस बीच बच्चियां खेलती हुई वहां से गुजरती रहीं। एक बच्ची ढेर सारे सूखे कपड़े छत से लेकर नीचे आई। बाल खुले हुए थे। लग रहा था आज शैम्पू किये हों। बात की मैंने तो उसने नमस्ते किया और बताया कक्षा 7 में पढ़ती है। फिर वह चली गयी। हमारे जैसे लोगों के सवालों की आदी हो गयी होगी वह।
दीदी आई। उनको कुछ पैसे दिए उन्होंने। नाम पूछकर रसीद बना दी। रसीद पर पता लिखा है:
श्री राजकुमारी बाई बाल निकेतन
925, नेपियर टाउन, शास्त्री पुल, जबलपुर-482001
(शासन द्वारा दत्तक ग्रहण हेतु मान्यता प्राप्त)
फोन: 0761-2407383, 2400107
आपकी कभी सहयोग करने की इच्छा हो तो इस पते पर कर सकते हैं। फोन करके जानकारी ले सकते हैं। अनाथालय में रात आठ बजे के बाद जाने की अनुमति नहीं है।
किसी भी अनाथालय में जाने का मेरा यह पहला अनुभव था। मैंने सोचा आपसे भी साझा करें।