व्यंग्य के मैदान पर शानदार बैटिंग करते हुये घड़ी की सुई को थोड़ा आगे की तरफ़ बढाया । उमर की पिच पर टहलते हुये एक रन लिया और अपने जीवन का अर्धशतक पूरा किया। पाठकों ने करतल ध्वनि से उनका हौसला बढाया। दुनिया भर के तमाम प्रशंसकों जिनमें सन्नी लियोन से लेकर राखी सावंत, बुश से लेकर हनी सिंह तक, ओबामा , ट्रंप से लेकर छज्जू पनवाड़ी तक शामिल हैं ने अपने-अपने अंदाज में उनको जन्मदिन की बधाई दी। टिमरिया टाइम्स के दिहाड़ी संवाददाता ने अपने अखबार की में आलोक पुराणिक की फ़ोटो छापकर उनको दुनिया के सब लेखकों से बड़ा बताते हुये सूचना दी कि इनके साथ हमने रेलवे प्लेटफ़ार्म पर एक साथ चाय पी है, भले ही पैसे अपने-अपने अलग दिये हों।
बुश ने भी फ़ोन करके बधाई दी कहते हुये -’ भाई साहब आपने बहुत हड़काया जब हम प्रेसीडेंसी की नौकरी बजा रहे थे अमेरिका में।' यह आलोक पुराणिक का ही जलवा था कि उन्होंने व्हाइट हाउस में रामलीला करवा दी ( http://iari.egranth.ac.in/cgi-bin/koha/opac-detail.pl…)
सन्नी लियोन ने लड़ियाते हुये जन्मदिन की बधाई दी और कहा -’ आलोक डियर, जब तक तुम लिख रहे हो तब तक हमको इंडियन मार्केट में अपनी पब्लिसिटी के लिये पैसा फ़ूंकना बेवकूफ़ी लगती है। लेकिन फ़ूंकते रहते हैं वर्ना लोग हमारे बारे में अच्छी-अच्छी बातें करने लगेंगे। फ़ालतू में मार्केट डाउन होगा।
राखी सावंत ने जो कुछ कहा वह राज ठाकरे की तेज आवाज और फ़िर भारतीय सर्जिकल स्ट्राइक के हल्ले में सुनाई ही नहीं।
उमर का अर्धशतक पूरा करने वाले आलोक पुराणिक से जब बात करो और पूछो क्या चल रहा है तो हमेशा एक ही जबाब - ’अजी बस, वही काम लिखाइयां-पढाइयां।’ मल्लब अगला लिखने पढ़ने में जिस कदर जुटा रहता है उससे तो लगता है अगला तो काम के बोझ का मारा है, इनका इलाज तो सिर्फ़ हमदर्द का टानिक सिंकारा है। किसी की कोई बुराई नहीं, कोई चुगली नहीं, कोई लगाई- बुझाई नहीं। ऐसे कहीं होती है व्यंग्यकारिता - "हाऊ अनरोमांटिक। हाऊ अनलाइक अ सटायरिस्ट।"
आलोक पुराणिक को पिछले कुछ सालों से लगातार पढ़ते आ रहे हैं हम। इस बीच उन्होंने भतेरे प्रयोग किये अपने व्यंग्य लेखन में।एक पूरे लेख की बजाय तीन-चार लघु लेख मय स्केच के। दिन भर समसामयिक विषय पर ट्रेंडियाते हुये लिखना। ट्रेंड लेखन में भी साथ में कार्टून खोजकर सटाना। बहुत मेहनत का काम है भाई। बाजीबखत जलन भी होती है कि कैसे कर लेता है बंदा यह सब।
आलोक पुराणिक किसी राजनीति में नहीं पड़ते। लोगों के बारे में कोई नकारात्मक बातचीत नहीं करते। बहुत मजबूरी न हो तो उठापटक वाले बयान भी नहीं देते। शरीफ़ आदमियों की तरह हरकतें करते हुये चुपचाप लिखते रहते हैं। लेकिन उनके प्रसंशक इतनी वैविध्यपूर्ण हैं कि उनसे मजे लेते रहते हैं। हमारे जैसे लोग तो उनसे जलते हैं तो खुले आम जलते हैं। लेकिन तमाम चुपचाप जलने वाले भी हैं। वे अकेले में धुंआ-धुंआ होते रहते हैं।
कुछ लोग आलोक पुराणिक से इतनी मोहब्बत करते हैं कि उनको बारे में कुछ भी बयान जारी कर देते हैं। ऐसे ही किसी ने एक दिन कह दिया -"आलोक पुराणिक तो व्यंग्यकार हैं ही नहीं।" इस बयान को कुछ सुशील पाठकों ने मौनं स्वीकार लक्षणम वाले तरीके से चुपचाप मान लिया। फ़िर दिन भर की बमचक के बाद बड़े लोगों ने तमाम फ़ायदे नुकसान को मद्देनजर रखते हुये बीच का रास्ता अपनाते हुये बयान जारी किया- " बावजूद तमाम हालिया विचलन के आलोक पुराणिक व्यंग्यकार हैं।" व्यंग्य की विधा के लोगों का यह सुरक्षित बयान ’वाली असी’ का यह शेर याद आया:
"तकल्लुफ़ से तसन्नों से अदाकारी से मिलते हैंआलोक पुराणिक लिखने पढ़ने में लगे रहते हैं। उनको लगता है और वे कहते भी हैं कि बाकी सब बेफ़ालतू है। समय यह नहीं याद रखेगा कि किसने किसे उठाया, किसको गिराया, किसके साथ खाया, किसको गरियाया। समय की छलनी में केवल आपका रचा हुआ जायेगा आगे। जब इस तरह की बातें करते हैं तो शंका भी होती है कि अर्थशास्त्री व्यंग्यकार फ़ायदे का धंधा देखकर कहीं उपदेशक बनने का अभ्यास तो नहीं कर रहा। लेकिन शंका हमेशा सबूत के अभाव में अपनी मौत मर जाती है।
हम अपने आप से भी कितनी तैयारी से मिलते हैं।"
कुछ लोग व्यंग्यकारों से सहज आशा के चलते आलोक पुराणिक से आशा करते हैं वे सरकार की बैंड बजाते रहें। आलोक पुराणिक ऐसा न करते देखकर उनके नंबर भी काट लेते हैं। लेकिन आलोक पुराणिक इस सब मूल्यांकन से बेपरवाह अपनी लिखाई में लगे रहते हैं। कोई लेख अच्छा बन गया और किसी ने तारीफ़ कर दी तो पगड़ी वाले राजस्थानी टाइप आदमी को हाथ जोड़कर हिलते-डुलते हुये आभार प्रकट करने भेज देते हैं।
समसामायिक लेखन के चलते यह भी बात होती है कि उनका लेखन बाजारवाद से प्रभावित है। मल्लब कालजयी टाइप का नहीं हैं। लेकिन आज जब समूची दुनिया का स्टियरिंग बाजार के हिसाब से घूम रहा है तब व्यंग्य लेखन कैसे उससे अछूता रहेगा। लेकिन यह सब बहस का विषय है, और बहस के बहाने नंबर देने/काटने का भी, इसलिये इसके बारे में अलग से।
आलोक पुराणिक एक बेहतरीन व्यंग्यकार ( उनको व्यंग्यकार न मानने वाले लेखक पढ सकते हैं) होने के साथ-साथ एक प्यारे इंसान भी हैं। बीहड़ व्यस्ता के बावजूद जब भी कोई सलाह मांगी जाती है देने के लिये उपलब्ध। बिना मांगे सलाह देने की आदत से बचे हुये हैं अभी तक। उनको जब भी अपने खिलाफ़ महीन साजिशों का पता चलता है वे और तगड़ाई से अपने काम में जुट जाते हैं। अपने बारे में कोई मुगालते पालने में समय बर्बाद करना पसंद नहीं उनको।
आलोक पुराणिक अपने काम पर फ़ोकस करके चलने वालों में हैं। अब पचास की तरफ़ बढ़ने हुये ’माइक्रो फ़ोकस’ करने लगे हैं। आगे क्या पता ’नैनो फ़ोकस’ हो जायें।
आज जीवन का अर्धशतक पूरा करते हुये आलोक पुराणिक को उनके जन्मदिन की बहुत बधाई।
मंगलकामनायें। कामना है कि वे अपने व्यक्तित्व की तमाम अच्छाईयां बनाये रखते हुये नित नया रचें और उपलब्धियों के नये-नये आयाम छुयें। शतायु हों, कालजयी और मालजयी लिखें। मुझे पूरा भरोसा है कि आने वाले समय में आलोक पुराणिक के बारे में कही हमारी यह बात सब स्वीकार करेंगे - आलोक पुराणिक व्यंग्य के अखाड़े के सबसे तगड़े पहलवान हैं।
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