http://web.archive.org/web/20140419215125/http://hindini.com/fursatiya/archives/1272
तीन दिन पहले ऑफ़िस में बैठे थे। पता चला सचिन 186 पर खेल रहे हैं। काम
भर की शाम हो गयी थी। घर चले आये। टेलीविजन के सामने पसर गये। धोनी अपना
बचपना दिखा रहे थे। हां यह बचपना ही है भाई! दूसरे छोर पर आपके साथी द्वारा
इतिहास बनने का इंतजार सारा देश कर रहा है और आपका उसका भूगोल बिगाड़ने के
लिये पसीना बहा रहे हैं। बहरहाल सचिन ने दो सौ रन पूरे किये और
कमेंन्ट्रेटर ने कहा- फ़र्स्ट टाइम इन द हिस्ट्री ऑफ़ प्लानेट! इस ग्रह के इतिहास में पहली बार किसी ने एक दिवसीय इतिहास में दो सौ रन बनाये ।
धोनी अगर थोड़ी कम बहादुरी और थोड़ी और समझदारी दिखाते तो शायद सचिन दो सौ के पार होकर और बेहतर रिकार्ड बना पाते!
बाद में पता चला कि यह सच नहीं था। पता नहीं उनको पता था या नहीं लेकिन महिला क्रिकेट में यह कारनामा १३ साल पहले ही हो चुका था। आस्ट्रेलिया की बैलिंडा क्लार्क 1997 में ही डबल सैकड़ा मार चुकी हैं। इसकी किसी खिलाड़ी, एक्स्पर्ट को हवा ही नहीं है। या फ़िर है तो वह इतिहास में पहली बार कहने के लालच में बताना नहीं चाहता।
मजे की बात है कि यह जानकारी पाने के बाद भी मीडिया में इस बात का जिक्र नहीं है। अखबार भी खामोश हैं। लगता है कुछ बोलोंगे तो सचिन का मह्त्व कम हो जायेगा।
इसके बाद तो शुरु हुआ जय जय कार! सचिन को लोगों ने क्या-क्या नहीं बना डाला। किसी ने कहा देवता है, किसी ने कहा कुछ है। किसी ने कहा कुछ। एक भाईसाहब अलबर्ट आइंस्टाइन और गांधीजी को एक सत्थे उठा लाये और बताइन कि जैसे गांधी जी के बारे में कहा था अलबर्ट आइंसटाईन ने कि आगे आने वाली पीढ़ियां इस बार पर हैरान होंगी कि कभी उनके बीच हाड़-मांस का इस टाइप का आदमी भी था उसी तरह सचिन भी अजायब घर की चीज हो गये हैं।
सचिन बहुत महान खिलाड़ी हैं। अद्भुत ! प्रतिभा, समर्पण, अनुशासन, लगन, मेहनत और विनम्रता और अन्य तमाम अनुकरणीय गुणों का जीवंत प्रतिरूप। लेकिन उनको देवता बता देना अपन को जमता नहीं। देवता बनाना मतलब अपने साथ के एक बेहतरीन इंसान को जाति बाहर कर देना। देवता कुछ करते नहीं हैं केवल मुस्कराते हैं, वरदान देते हैं और किसी की तपस्या से खुद का सिंहासन डोलने पर धरती पर अप्सरायें भेजकर उसकी तपस्या खंडित करवाने में लग जाते हैं। देवता पसीना नहीं बहाते। सचिन पसीना बहाता है, भागकर रन लेता है, डाइव लगाकर तीन रन बचाता है और अपनी टीम को जिताने की कोशिश करता है। देवता यह सब मानवीय काम नहीं कर पाते। वे केवल लीलायें करते हैं, मेहनत नहीं।
वैसे भी अपने देश में करोड़ों देवता हैं। विद्या, शक्ति, धन, धान्य, जल किसके देवी-देवता नहीं हैं अपने यहां! लेकिन इन सबके बावजूद देश न् जाने कब से निरक्षरता, कमजोरी, गरीबी, भुखमरी, अकाल की समस्याओं से जूझ रहा है। अब कुल जमा आठ-दस देशों में खेले जाने वाले खेल क्रिकेट का देवता भी बना के क्या इसकी भी ऐसी-तैसी करानी है।
सचिन सिर्फ़ सचिन है, देवता नहीं। उसे सचिन ही बने रहने दें यही उनके लिये और हमारे लिये बहुत है।
जब अपने बीच का कोई व्यक्ति असाधारण उपलब्धियां हासिल करता है तो हम उसको अतिमानवीय बताकर उसको अपने बीच से धकियाकर भगा देते हैं। उसे महान बना देते हैं। देवता बना देते हैं। उसको न भूतो न भविष्यति बताकर उसकी छवि कुछ ऐसी बना देते हैं गोया उस जैसा इंसान बनता नहीं है सिर्फ़ होता है।
सचिन के कैरियर में तमाम उतार-चढ़ाव आये। शुरुआतै चौपट हुई थी। इसके बाद जमें तो ऐसे जमे कि आज तक जम रहा है जलवा। तमाम असफ़लतायें भी मिलीं लेकिन सफ़लताओं की आंधी में वे सब तितर-बितर हो गयीं। एक सफ़ल खिलाड़ी एक असफ़ल कप्तान। एक शानदार क्रिकेट खिलाड़ी के साथ इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है कि पूरे बीस साल बेचारा सच्चे मन से तड़पने के बावजूद वह वह कप अपने देश के लिये नहीं ला पाया जो उसकी तमन्ना है। सचिन देवता होते तो ले आये होते अब तक कई बार यह कप। विश्वकप में पाकिस्तान के खिलाफ़ अविस्मरणीय पारी खेलने के बाद अगले मैच में आस्ट्रेलिया के खिलाफ़ उनकी पारी को हमेशा भूलना चाहता हूं लेकिन याद आता है कि उस समय सचिन अगर चल गये होते तो आज शायद कहानी कुछ और होती। लेकिन नहीं चल पाये क्योंकि वह एक खिलाड़ी है, देवता नहीं।
सचिन ने अपनी यह डबल सेंचुरी तमाम देश वासियों को समर्पित किया। जिस समय सचिन यह बता रहे है और कह रहे थे कि उनको पूरे देश वासियों का प्यार मिला है उस समय मुझे लग रहा था कि वे ठाकरे जी की उस बात का माकूल जबाब दे रहे जिसमें उन्होंने सचिन की इस बात के लिये आलोचना की थी कि उन्होंने यह कहा था कि मुंबई सबकी है! अब वे भी उनके लिये भारत रत्न की मांग कर रहे हैं।
नाना पाटेकर ने कहा कि वे अपनी आंखे दान दे जाना चाहेंगे ताकि अगर उनकी मौत हो जाये तो उनकी आंखें सचिन को खेलता हुआ देखें। नाना के इस बयान का प्रचार करके नेत्रदान के लिये लोगों को उत्साहित किया जा सकता था। लेकिन मीडिया अति की बात करना ज्यादा पसंद करता है। सचिन को भगवान बनाना चाहता है।
सचिन की तमाम उपलब्धियों को नमन लेकिन मुझे लगता है कि सचिन को सचिन ही रहने देना चाहिये भगवान बनाना उसके साथ अन्याय करना है।
फ़ुटकर शेर
मौसमें बेरंग को कुछ आशिकाना कीजिये,
आप भी अपनी जुल्फ़ों को शायराना कीजिये।
दिल की ख्वाहिश है ख्यालों में तेरे डूबे रहें,
जेहन कहता है कि फ़िक्रे आबोदाना कीजिये।
यकींन खत्म हुआ है गुमान बाकी है,
बढ़े चलो कि अभी आसमान बाकी है!
जरा सा पानी गिरा और जमीन जाग उठी,
हमारी मिट्टी में लगता है जान बाकी है।
तलाश करते रहो फ़ितनागर यहीं होगा,
अभी तो बस्ती का पक्का मकान बाकी है।
हर एक बहाने तुझे याद करते रहते हैं
हमारे गम से तेरी दस्तान बाकी है।
तुम उसके जुल्म से डरना ही छोड़ दो ’शाहिद’,
तीर खत्म हुये बस कमान बाकी हैं।
गजल तरन्नुम में
जहां भी खायी है ठोकर निशान छोड आये,
हम अपने दर्द का एक तर्जुमान छोड आये।
हमारी उम्र तो शायद सफर में गुजरेगी,
जमीं के इश्क में हम आसमान छोड आये।
किसी के इश्क में इतना भी तुमको होश नहीं
बला की धूप थी और सायबान छोड आये।
हमारे घर के दरो-बाम रात भर जागे,
अधूरी आप जो वो दास्तान छोड आये।
फजा में जहर हवाओं ने ऐसे घोल दिया,
कई परिन्दे तो अबके उडान छोड आये।
ख्यालों-ख्वाब की दुनिया उजड गयी ‘शाहिद’
बुरा हुआ जो उन्हें बदगुमान छोड आये।
–शाहिद रजा
…जहां भी खायी है ठोकर निशान छोड आये
By फ़ुरसतिया on February 27, 2010
धोनी अगर थोड़ी कम बहादुरी और थोड़ी और समझदारी दिखाते तो शायद सचिन दो सौ के पार होकर और बेहतर रिकार्ड बना पाते!
बाद में पता चला कि यह सच नहीं था। पता नहीं उनको पता था या नहीं लेकिन महिला क्रिकेट में यह कारनामा १३ साल पहले ही हो चुका था। आस्ट्रेलिया की बैलिंडा क्लार्क 1997 में ही डबल सैकड़ा मार चुकी हैं। इसकी किसी खिलाड़ी, एक्स्पर्ट को हवा ही नहीं है। या फ़िर है तो वह इतिहास में पहली बार कहने के लालच में बताना नहीं चाहता।
मजे की बात है कि यह जानकारी पाने के बाद भी मीडिया में इस बात का जिक्र नहीं है। अखबार भी खामोश हैं। लगता है कुछ बोलोंगे तो सचिन का मह्त्व कम हो जायेगा।
इसके बाद तो शुरु हुआ जय जय कार! सचिन को लोगों ने क्या-क्या नहीं बना डाला। किसी ने कहा देवता है, किसी ने कहा कुछ है। किसी ने कहा कुछ। एक भाईसाहब अलबर्ट आइंस्टाइन और गांधीजी को एक सत्थे उठा लाये और बताइन कि जैसे गांधी जी के बारे में कहा था अलबर्ट आइंसटाईन ने कि आगे आने वाली पीढ़ियां इस बार पर हैरान होंगी कि कभी उनके बीच हाड़-मांस का इस टाइप का आदमी भी था उसी तरह सचिन भी अजायब घर की चीज हो गये हैं।
सचिन बहुत महान खिलाड़ी हैं। अद्भुत ! प्रतिभा, समर्पण, अनुशासन, लगन, मेहनत और विनम्रता और अन्य तमाम अनुकरणीय गुणों का जीवंत प्रतिरूप। लेकिन उनको देवता बता देना अपन को जमता नहीं। देवता बनाना मतलब अपने साथ के एक बेहतरीन इंसान को जाति बाहर कर देना। देवता कुछ करते नहीं हैं केवल मुस्कराते हैं, वरदान देते हैं और किसी की तपस्या से खुद का सिंहासन डोलने पर धरती पर अप्सरायें भेजकर उसकी तपस्या खंडित करवाने में लग जाते हैं। देवता पसीना नहीं बहाते। सचिन पसीना बहाता है, भागकर रन लेता है, डाइव लगाकर तीन रन बचाता है और अपनी टीम को जिताने की कोशिश करता है। देवता यह सब मानवीय काम नहीं कर पाते। वे केवल लीलायें करते हैं, मेहनत नहीं।
वैसे भी अपने देश में करोड़ों देवता हैं। विद्या, शक्ति, धन, धान्य, जल किसके देवी-देवता नहीं हैं अपने यहां! लेकिन इन सबके बावजूद देश न् जाने कब से निरक्षरता, कमजोरी, गरीबी, भुखमरी, अकाल की समस्याओं से जूझ रहा है। अब कुल जमा आठ-दस देशों में खेले जाने वाले खेल क्रिकेट का देवता भी बना के क्या इसकी भी ऐसी-तैसी करानी है।
सचिन सिर्फ़ सचिन है, देवता नहीं। उसे सचिन ही बने रहने दें यही उनके लिये और हमारे लिये बहुत है।
जब अपने बीच का कोई व्यक्ति असाधारण उपलब्धियां हासिल करता है तो हम उसको अतिमानवीय बताकर उसको अपने बीच से धकियाकर भगा देते हैं। उसे महान बना देते हैं। देवता बना देते हैं। उसको न भूतो न भविष्यति बताकर उसकी छवि कुछ ऐसी बना देते हैं गोया उस जैसा इंसान बनता नहीं है सिर्फ़ होता है।
सचिन के कैरियर में तमाम उतार-चढ़ाव आये। शुरुआतै चौपट हुई थी। इसके बाद जमें तो ऐसे जमे कि आज तक जम रहा है जलवा। तमाम असफ़लतायें भी मिलीं लेकिन सफ़लताओं की आंधी में वे सब तितर-बितर हो गयीं। एक सफ़ल खिलाड़ी एक असफ़ल कप्तान। एक शानदार क्रिकेट खिलाड़ी के साथ इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है कि पूरे बीस साल बेचारा सच्चे मन से तड़पने के बावजूद वह वह कप अपने देश के लिये नहीं ला पाया जो उसकी तमन्ना है। सचिन देवता होते तो ले आये होते अब तक कई बार यह कप। विश्वकप में पाकिस्तान के खिलाफ़ अविस्मरणीय पारी खेलने के बाद अगले मैच में आस्ट्रेलिया के खिलाफ़ उनकी पारी को हमेशा भूलना चाहता हूं लेकिन याद आता है कि उस समय सचिन अगर चल गये होते तो आज शायद कहानी कुछ और होती। लेकिन नहीं चल पाये क्योंकि वह एक खिलाड़ी है, देवता नहीं।
सचिन ने अपनी यह डबल सेंचुरी तमाम देश वासियों को समर्पित किया। जिस समय सचिन यह बता रहे है और कह रहे थे कि उनको पूरे देश वासियों का प्यार मिला है उस समय मुझे लग रहा था कि वे ठाकरे जी की उस बात का माकूल जबाब दे रहे जिसमें उन्होंने सचिन की इस बात के लिये आलोचना की थी कि उन्होंने यह कहा था कि मुंबई सबकी है! अब वे भी उनके लिये भारत रत्न की मांग कर रहे हैं।
नाना पाटेकर ने कहा कि वे अपनी आंखे दान दे जाना चाहेंगे ताकि अगर उनकी मौत हो जाये तो उनकी आंखें सचिन को खेलता हुआ देखें। नाना के इस बयान का प्रचार करके नेत्रदान के लिये लोगों को उत्साहित किया जा सकता था। लेकिन मीडिया अति की बात करना ज्यादा पसंद करता है। सचिन को भगवान बनाना चाहता है।
सचिन की तमाम उपलब्धियों को नमन लेकिन मुझे लगता है कि सचिन को सचिन ही रहने देना चाहिये भगवान बनाना उसके साथ अन्याय करना है।
मेरी पसंद
आज आपको इसमें सुनाते हैं शाहिज रजा की शायरी। शाहिद शाहजहांपुर की आर्डनेंन्स क्लॉदिंग फ़ैक्ट्री में काम करते हैं। यह बेहतरीन शायर मेरा पसंदीदा शायर है। दस पन्द्रह वर्ष पहले शाहजहांपुर में मेरे घर में एक गोष्ठी हुई थी उसमें शाहिद ने कुछ शेर और एक गजल तरन्नुम में सुनाई थी। आप भी सुनिये ये बेहतरीन शेर और लाजबाब गजल! जिनका नेट कनेक्शन धीमा है उनके लिये यहां टाइप करके भी पेश किया जा रहे हैं शेर/गजल।फ़ुटकर शेर
मौसमें बेरंग को कुछ आशिकाना कीजिये,
आप भी अपनी जुल्फ़ों को शायराना कीजिये।
दिल की ख्वाहिश है ख्यालों में तेरे डूबे रहें,
जेहन कहता है कि फ़िक्रे आबोदाना कीजिये।
यकींन खत्म हुआ है गुमान बाकी है,
बढ़े चलो कि अभी आसमान बाकी है!
जरा सा पानी गिरा और जमीन जाग उठी,
हमारी मिट्टी में लगता है जान बाकी है।
तलाश करते रहो फ़ितनागर यहीं होगा,
अभी तो बस्ती का पक्का मकान बाकी है।
हर एक बहाने तुझे याद करते रहते हैं
हमारे गम से तेरी दस्तान बाकी है।
तुम उसके जुल्म से डरना ही छोड़ दो ’शाहिद’,
तीर खत्म हुये बस कमान बाकी हैं।
गजल तरन्नुम में
जहां भी खायी है ठोकर निशान छोड आये,
हम अपने दर्द का एक तर्जुमान छोड आये।
हमारी उम्र तो शायद सफर में गुजरेगी,
जमीं के इश्क में हम आसमान छोड आये।
किसी के इश्क में इतना भी तुमको होश नहीं
बला की धूप थी और सायबान छोड आये।
हमारे घर के दरो-बाम रात भर जागे,
अधूरी आप जो वो दास्तान छोड आये।
फजा में जहर हवाओं ने ऐसे घोल दिया,
कई परिन्दे तो अबके उडान छोड आये।
ख्यालों-ख्वाब की दुनिया उजड गयी ‘शाहिद’
बुरा हुआ जो उन्हें बदगुमान छोड आये।
–शाहिद रजा
Posted in पाडकास्टिंग, बस यूं ही | 31 Responses
पहले सैकड़ा वाली बात पर मीडिया पता नहीं क्यों मौन है.
अच्छी जानकारी दी आपनें.
आपको सपरिवार होली की रंगारंग शुभकामनाएं
———————————–
Ghazal bahut badhiya hai.
-Lekin Mic shayar se duur rakha hai…
shayar se jyada saaf sunNe walon ki awazen aa rahi hain.
Volume bhi bahut kam hai..full volume kar ke bhi kam hai.
———————–
HOLI KI BAHUT BAHUT SHUBHKAAMNAAYEN !
जहां तक बात सचिन के दो सौ रन की है यह तो मेरे लिए भी नई जानकारी थी कि आस्ट्रेलियन महिला ने 13 वर्ष पहले ही ये रि कार्ड बना मारा था…
(हो न हो इस ख़बर का यूं दबे रहना ज़रूर औरतों को आगे न आने देने वाले मर्दों की चाल रही होगी)
ऐसा पक्षपात तो क्रिकेट में ही संभव है।
किसी भी इन्सान के चरित्र को आप असहमति ओर यश के शिखर पर माप सकते है .सचिन उसमे खरे उतरते है .
अब आप की एक बात से असहमति….धोनी इसलिए इस तरह से खेल रहे थे क्यूंकि वे जानते ओवर बहुत है .सचिन के पैर में क्रेम्प आने लगा था थकान के कारण .इसलिए वे हित लगा रहे थे .आप उन पर शुबहा मत कीजिये ….यकीन मानिये हमारी आपकी तरह उस टीम के कप्तान को भी इस ऐतिहासिक लम्हे का इंतज़ार होगा……दूसरी बात .उसी रात न्यूज़ में आ गया था के एक महिला खिलाडी ये कारनामा कर चुकी है ….
खैर होलियाय्ये ……..
दिल की ख्वाहिश है ख्यालों में तेरे डूबे रहें,
जेहन कहता है कि फ़िक्रे आबोदाना कीजिये।
यकींन खत्म हुआ है गुमान बाकी है,
बढ़े चलो कि अभी आसमान बाकी है!
उनका भी ब्लोग है क्या?
आप को और आप के परिवार को होली की ढेर सारी शुभकामनाएं
महिला हॉकी भी देखना रोचक रहता है. शायद ही कोई खेल हो जहां महिलाएं अपने जौहर ना दिखा रही हों और बखूबी ना दिखा रही हों, यहां तक कि लेडीज़ सॉकर तक में जबर्दस्त खेल देखने को मिलता है.
लेकिन क्रिकेट में महिलाओं को खेलते देखने से ज्यादा डल और बोरिंग और कुछ नहीं हो सकता. क्रिकेट अपने मूल चरित्र में ही एक सुस्त खेल है. उसमें अगर कोई असली आकर्षण भरता है तो वो या तो सचिन, सहवाग जैसे बड़े हिटर हैं या ब्रैट ली, शेन बांड जैसे तूफ़ानी गेंदबाज. महिला क्रिकेट में ये सब नहीं देखने को मिलता. इसीलिये वहां ज्यादा आकर्षण नहीं बनता. उसकी अलोकप्रियता की यही वजह है.
तो फ़िर महिला क्रिकेट के रिकॉर्ड्स को कोई तवज्जो दे भी क्या? हां सचिन की इस अन्यतम उपलब्धि को पंक्चर करने के लिये ढूढ-ढांढ कर फ़ालतू के तथ्य लाये जा रहे हैं, बेवजह. मूर्खतापूर्ण.
आप भी अपनी जुल्फ़ों को शायराना कीजिये.
aap par janch raha hai
दिल की ख्वाहिश है ख्यालों में तेरे डूबे रहें,
जेहन कहता है कि फ़िक्रे आबोदाना कीजिये।
और-
जरा सा पानी गिरा और जमीन जाग उठी,
हमारी मिट्टी में लगता है जान बाकी है।
और-
तुम उसके जुल्म से डरना ही छोड़ दो ’शाहिद’,
तीर खत्म हुये बस कमान बाकी हैं।
और-
फजा में जहर हवाओं ने ऐसे घोल दिया,
कई परिन्दे तो अबके उडान छोड आये।
बहुत बहुत सुन्दर. धन्यवाद.
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आदरणीय अनूप जी,
सचिन वाकई एक LIVING LEGEND हैं और उनकी यह पारी अविस्मरणीय, परंतु धोनी के बारे में आपके कथन से असहमत, सचिन के इस रिकार्ड तक पहुंचने के पीछे युसुफ और धोनी का योगदान कम नहीं है, जिन्होंने बालरों को कूट कर सचिन के ऊपर दबाव नहीं आने दिया, वैसे भी काफी गेंदें बची थीं।
हॉकी…दद्दा ध्यानचंद
क्रिकेट…सचिन तेंदुलकर
इन शब्दों को अब पर्यायवाची बना दिया जाना चाहिए…
महागुरुदेव आपको और परिवार के सभी सदस्यों को रंगोत्सव की बधाई…
जय हिंद…
हॉकी…दद्दा ध्यानचंद
क्रिकेट…सचिन तेंदुलकर
इन शब्दों को अब पर्यायवाची बना दिया जाना चाहिए…
महागुरुदेव आपको और परिवार के सभी सदस्यों को रंगोत्सव की बधाई…
जय हिंद…
ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
गले लगा लो यार, चलो हम होली खेलें.
आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.
-समीर लाल ’समीर’
मगर लगती है उसमे मेहनत ज़ियादा
क्रिकेट,किताबों,फिल्मों का ज़िक्र हों तो चुपचाप गुजर जाना मुश्किल होता है
यकींन खत्म हुआ है गुमान बाकी है,
बढ़े चलो कि अभी आसमान बाकी है!
अच्छी ग़ज़ल है
रामराम
ग़ज़ल सुन तो नहीं पायी, पर पढ़ी ज़रूर, अच्छी लगी. शाहिद रजा से मिलवाने के लिये धन्यवाद.
मै तो कहूँगा कि दक्षिण आफ्रीका की महान फिल्डिग के कारण यह दोहरा शतक बना अन्यथा, वो चौका न रूका होता तो सचिन को स्ट्राइक भी न मिली होती और और आज सचिन 199 पर होते और घोनी के 3 और और ज्यादा होते है।
वकाई आज आपको पढ़ कर बहुत अच्छा लगा, सादी सरल हस्य व्यंग की भाषा, जो मुझे बहत अच्छी लगती है।
होली पर्व की बहुत बहुत बधाई