http://web.archive.org/web/20140419215936/http://hindini.com/fursatiya/archives/2587
जबलपुर में आये हफ़्ता हो गया। एक हफ़्ता यहां बिता के आज कानपुर लौट रहे हैं। जब यह सूचना आशीष राय को दिये तो उन्होंने फ़रमाइश की कि घर से बाहर जाता आदमी के तर्ज पर एक कविता घर लौटते आदमी को भी लिखनी चाहिये। मन तो हमारा भी किया कि निकाल दी जाये एक ठो फ़रमाइशी कविता लेकिन फ़िर सोचा कि दोस्त और घर वाले सोचेंगे कि यह आदमी तो घर से निकलते ही कवि हो गया। सब कुछ सोचकर कविता लिखने का विचार मटिया दिया।
जबलपुर में सर्दी कानपुर के मुकाबले कम है और मौसम ज्यादा सुहावना। कानपुर का जो भी दोस्त मिला यहां उसने यहां के मौसम को अच्छा-अच्छा बताया।
एक दिन जबलपुर पैदल भ्रमण के लिये निकले। फ़ैक्ट्री से चार-पांच किमी की दूरी पर स्थित रांझी मार्केट गये और पैदल ही वापस आये। पूरा दो घंटा टहलते रहे। रांझी बाजार पहुंचते ही सामने एक बड़ा बोर्ड चमकता दिखाई दिया। हमें लगा कि कोई सिनेमा का पोस्टर लगा है। देखा तो पता चला कि बियर की दुकान है। उसके सामने इत्ता भीमकाय विज्ञापन लगा है।
बाजार वीएफ़जे से निकलते ही दोनों तरफ़ एक-एक किमी तक फ़ैला है। तमाम एस.टी.एम. मौजूद। इत्ता पैसा निकालकर लोग खर्च कर देते हैं। सड़क एक आम मध्यमवर्गीय शहर की तरह कुछ खुदी कुछ बनी। मन किया कि किसी चाय की दुकान पर बैठकर चुस्कियाते हुये कुछ समय बिताया जाये। लेकिन हर बार और अच्छी जगह की तलाश ही करते रहे। सड़क पर ही दो जगह देखा कि मोची लगभग अंधेरे में अपना काम कर रहे हैं।
सड़क किनारे ही गोल वाले सीवर पाइप पड़े हुये दिखे। लगा कि अब लगता है कि यहां भी सड़क की खुदाई होने वाली है। सीवर लाइनें पड़ेंगी। सोच ही रहे थे कि आगे खुदी सड़क पर एक जगह जमें पानी पर पैर पड़ा और जूता भीग गया। जूता भीगा तो मोजा भी कहां पीछे रह सकता था भला। वह भी भीग गया। मुसीबत में उसने जूते का साथ नहीं छोड़ा। अपने ने अपने लिये सूत्र वाक्य बताया कि सड़क पर चलते समय दूर भले एक बार न देखा जाये लेकिन आस-पास जरूर देखते रहना चाहिये।
लौटते हुये सोचा कि शैम्पू का पाउच ले लिया जाये। कई दुकाने दिखीं। कुछ चमकदार और कुछ कम चमकदार। हम छोटी दुकान से पाउच लेने की सोचे। आखिर में एक सबसे छोटी दुकान दिखी। वह घर के बाहर थी शायद किसी के। घर के बाहर दुकान। हमने तीन दिन के हिसाब से तीन पाउच देने के लिये। दुकानदार महिला ने बिना किसी हिचक के मुझे चार पाउच पकड़ा दिय यह कहते हुये कि चार का पैकेट है इसे लीजिये। आत्मविश्वास से। हमने बिना कुछ कहे उसकी इच्छा का पालन किया। बाद में सोचा कि दुनिया भर के मैनेजमेंट स्कूल सामान बेचने के जो तरीके सिखाते हैं उनको सीखकर भी लोगों के अन्दर इससे कुछ बहुत ज्यादा आत्मविश्वास तो नहीं आता होगा।
अखबार यहां हिन्दी का दैनिक भाष्कर बांचा। जबलपुर की खबरों में प्रतिदिन हमारी चार फ़ैक्ट्रियों में से किसी न किसी की खबरें जरूर छपती हैं। अपन यहां का तकिया कलाम है। अपन जायेंगे। अपन ऐसा करेंगे। अपन वैसा करेंगे। अमुक से अपन ने ऐसा कह दिया। अपनापे की बात!
नागपुर यहां से चार-पांच घंटे की दूरी पर है। भाषा में मराठी का असर दिखने लगा जबलपुर में। वी को यहां व्ही लिखा देखा अखबारों में।
कुछ दोस्तों ने जबलपुर को संस्कारधानी बताते हुये कहा कि हमारा भी यहां संस्कार हो जायेगा।
एक दोस्त को फोन नम्बर दिया तो उसने सवाल किया कि कानपुर में कुछ गड़बड़ की होगी इसीलिये वहां से भगाया गया होगा तू।
एक हफ़्ते में तमाम पुराने दोस्तों से मुलाकात हुई। बीस साल पहले कभी साथ रहे दोस्त मिले। बहुत अच्छा लगा। अब अपन कानपुर लौट रहे हैं आज। लौटकर जबलपुर के किस्से लिखेंगे आगे।
यहां लगाई फ़ोटो मेरी नातिन की हैं। मेरी भतीजी स्वाती की बिटिया आजकल अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में रोटी बना सीख रही है। मुझसे जब भी बात करती है तो कहती है- नानी से बात कराइये। मुझसे बात करना उसको भी पसन्द नहीं।
जबलपुर में एक हफ़्ता
By फ़ुरसतिया on January 25, 2012
जबलपुर में आये हफ़्ता हो गया। एक हफ़्ता यहां बिता के आज कानपुर लौट रहे हैं। जब यह सूचना आशीष राय को दिये तो उन्होंने फ़रमाइश की कि घर से बाहर जाता आदमी के तर्ज पर एक कविता घर लौटते आदमी को भी लिखनी चाहिये। मन तो हमारा भी किया कि निकाल दी जाये एक ठो फ़रमाइशी कविता लेकिन फ़िर सोचा कि दोस्त और घर वाले सोचेंगे कि यह आदमी तो घर से निकलते ही कवि हो गया। सब कुछ सोचकर कविता लिखने का विचार मटिया दिया।
जबलपुर में सर्दी कानपुर के मुकाबले कम है और मौसम ज्यादा सुहावना। कानपुर का जो भी दोस्त मिला यहां उसने यहां के मौसम को अच्छा-अच्छा बताया।
एक दिन जबलपुर पैदल भ्रमण के लिये निकले। फ़ैक्ट्री से चार-पांच किमी की दूरी पर स्थित रांझी मार्केट गये और पैदल ही वापस आये। पूरा दो घंटा टहलते रहे। रांझी बाजार पहुंचते ही सामने एक बड़ा बोर्ड चमकता दिखाई दिया। हमें लगा कि कोई सिनेमा का पोस्टर लगा है। देखा तो पता चला कि बियर की दुकान है। उसके सामने इत्ता भीमकाय विज्ञापन लगा है।
बाजार वीएफ़जे से निकलते ही दोनों तरफ़ एक-एक किमी तक फ़ैला है। तमाम एस.टी.एम. मौजूद। इत्ता पैसा निकालकर लोग खर्च कर देते हैं। सड़क एक आम मध्यमवर्गीय शहर की तरह कुछ खुदी कुछ बनी। मन किया कि किसी चाय की दुकान पर बैठकर चुस्कियाते हुये कुछ समय बिताया जाये। लेकिन हर बार और अच्छी जगह की तलाश ही करते रहे। सड़क पर ही दो जगह देखा कि मोची लगभग अंधेरे में अपना काम कर रहे हैं।
सड़क किनारे ही गोल वाले सीवर पाइप पड़े हुये दिखे। लगा कि अब लगता है कि यहां भी सड़क की खुदाई होने वाली है। सीवर लाइनें पड़ेंगी। सोच ही रहे थे कि आगे खुदी सड़क पर एक जगह जमें पानी पर पैर पड़ा और जूता भीग गया। जूता भीगा तो मोजा भी कहां पीछे रह सकता था भला। वह भी भीग गया। मुसीबत में उसने जूते का साथ नहीं छोड़ा। अपने ने अपने लिये सूत्र वाक्य बताया कि सड़क पर चलते समय दूर भले एक बार न देखा जाये लेकिन आस-पास जरूर देखते रहना चाहिये।
लौटते हुये सोचा कि शैम्पू का पाउच ले लिया जाये। कई दुकाने दिखीं। कुछ चमकदार और कुछ कम चमकदार। हम छोटी दुकान से पाउच लेने की सोचे। आखिर में एक सबसे छोटी दुकान दिखी। वह घर के बाहर थी शायद किसी के। घर के बाहर दुकान। हमने तीन दिन के हिसाब से तीन पाउच देने के लिये। दुकानदार महिला ने बिना किसी हिचक के मुझे चार पाउच पकड़ा दिय यह कहते हुये कि चार का पैकेट है इसे लीजिये। आत्मविश्वास से। हमने बिना कुछ कहे उसकी इच्छा का पालन किया। बाद में सोचा कि दुनिया भर के मैनेजमेंट स्कूल सामान बेचने के जो तरीके सिखाते हैं उनको सीखकर भी लोगों के अन्दर इससे कुछ बहुत ज्यादा आत्मविश्वास तो नहीं आता होगा।
अखबार यहां हिन्दी का दैनिक भाष्कर बांचा। जबलपुर की खबरों में प्रतिदिन हमारी चार फ़ैक्ट्रियों में से किसी न किसी की खबरें जरूर छपती हैं। अपन यहां का तकिया कलाम है। अपन जायेंगे। अपन ऐसा करेंगे। अपन वैसा करेंगे। अमुक से अपन ने ऐसा कह दिया। अपनापे की बात!
नागपुर यहां से चार-पांच घंटे की दूरी पर है। भाषा में मराठी का असर दिखने लगा जबलपुर में। वी को यहां व्ही लिखा देखा अखबारों में।
कुछ दोस्तों ने जबलपुर को संस्कारधानी बताते हुये कहा कि हमारा भी यहां संस्कार हो जायेगा।
एक दोस्त को फोन नम्बर दिया तो उसने सवाल किया कि कानपुर में कुछ गड़बड़ की होगी इसीलिये वहां से भगाया गया होगा तू।
एक हफ़्ते में तमाम पुराने दोस्तों से मुलाकात हुई। बीस साल पहले कभी साथ रहे दोस्त मिले। बहुत अच्छा लगा। अब अपन कानपुर लौट रहे हैं आज। लौटकर जबलपुर के किस्से लिखेंगे आगे।
यहां लगाई फ़ोटो मेरी नातिन की हैं। मेरी भतीजी स्वाती की बिटिया आजकल अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में रोटी बना सीख रही है। मुझसे जब भी बात करती है तो कहती है- नानी से बात कराइये। मुझसे बात करना उसको भी पसन्द नहीं।
Posted in बस यूं ही | 21 Responses
पोस्ट में रोटी बेलती सुंदर बिटिया का चित्र बहुत अच्छा है मगर इसको देखकर यह एहसास भी होता है कि पोस्ट करते वक्त भी जेहन में, अपने घर परिवार के सदस्यों की यादें ही छाई रहीं। घर लौटकर चहकते हुए मूड में लिखी पोस्ट का इतंजार रहेगा।
* अनूप शुक्ल बीयर के बड़े बोर्ड के सामने खड़े होकर भी चाय की छोटी दुकान ढूंढते हैं.
*उनके जूतों और मोंजों में बहुत दोस्ती है.हमेशा एक दुसरे का साथ देते हैं.
* जबलपुर जाकर भी उनके सर पर बाल बचे हुए हैं.शेम्पू खरीदने पड़े.
*और लास्ट बात नोट द लीस्ट- उनसे बात करना बच्चों को कतई पसंद नहीं :):)
मस्त मस्त पोस्ट है आगे के किस्सों का इंतज़ार रहेगा :).
Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..रंगीनियों का शहर "पेरिस"
रोटी तो सुघड़ बना रही है नातिन!
amit srivastava की हालिया प्रविष्टी.." आंसू हम पीते रहे, वो खिलखिलाते रहे…."
बेकार की बात, बीअर का विज्ञापन देख कर चाय की दूकान …. ये मात्र फुरसतिया ही कर सकता है. लीजिए चुस्किय…
बाकि बच्ची की रोटी बनाते फोटू अच्छी लग रही है याद आ रहा है कि कोई नौसिखिया ब्लोग्गर भी ऐसे ही पोस्ट लिखता होगा…
दीपक बाबा की हालिया प्रविष्टी..दबंग गुणा विधायक गुणा व्यापारी गुणा नौकरशाह = गुणातंत्र
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..किसका है गणतंत्र ?
और ब्लॉगरों से मिले कि नहीं ? किस्सों का इंतजार है, ठंड तो वैसे जबलपुर में भी अच्छी खासी पड़ती है।
विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..देखा पापा टीवी पर विज्ञापन देखकर IDBI Life Childsurance Plan लेने का नतीजा, “लास्ट मूमेंट पर डेफ़िनेटली पैसा कम पड़ेगा”।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..मैं गया था अपने गांव
बाकी जबलपुर में संस्कारीकरण वाली बात सच लगती है ,संभल के रहिएगा और लिखियेगा !
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..राष्ट्रीय मतदाता दिवस की बधाई!
गणतंत्र दिवस कि शुभकामनायें!!!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..अथ श्री "कार" महात्म्य!!!
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..एक अकेला उस शहर में!
नातिन की जो तस्वीर लगायी है वह बेशक बहुत प्यारी है लेकिन गनीमत है कि वह नार्वे में नहीं है। इसपर वहाँकी सरकार बहुत कड़ा एक्शन ले सकती थी। कहती- इत्ते छोटे बच्चे से किचेन का काम कराया जा रहा है। माँ-बाप से हटाकर इसे ‘फोस्टर पैरेन्ट्स’ को दिया जा सकता था। अभी अनुरूप और सागरिका के साथ ऐसा ही हुआ है।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..जाओ जी, अच्छा है…
ashish की हालिया प्रविष्टी..शिखा वार्ष्णेय रचित "स्मृतियों में रूस" और मेरी विहंगम दृष्टि
राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..मल्हार
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..कुछ अध्याय मेरे जीवन के
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..पाँच लीटर दूध और आधा किलो चीनी (पटना १०)
बीत गए तीन दिन
मौज गया हमसे छिन
इब तो एक पोस्ट दीन
प्रणाम.