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बारिश में भीगते गर्मी के बिम्ब
By फ़ुरसतिया on June 19, 2012
परसों
अचानक बारिश हुई। बादल राहत सामग्री सी बांट के चले गये। पानी इधर-उधर
गिरा के फ़ूट लिये। कुछ के मन-मयूर नृत्य करने लगे होंगे। जिनके मन मयूर को
नाचना नहीं आता होगा वे अपनी जगह पर खड़े-खड़े प्रमुदित हुये होंगे।
फ़िर हमारे मित्र ( धीरेन्द्र पाण्डेय जो कि हमारे ही स्कूल के हैं) मिल गये नेट पर। मौसम के बारे में चर्चा होने लगी। हमने बताया कि यहां तो पानी बरस गया। मौसम सुहाना हो गया है। उहां का हाल है?
वो बोले -आपके तो मजे हैं! यहां तो मामला गरम है अभी तक!
हमने कहा- मजे क्या! मौसम भले खुशगवार हो गया हो लेकिन हमें गर्मी पर कविता लिखनी थी।
पानी बरस जाने से सारे बिम्ब गीले हो गये। बड़ा नुकसान हो गया।
कवि की सबसे बड़ी दौलत उसके बिम्ब होते हैं। कवि बिम्बों को अपने सीने से चिपकाकर रखता है जैसे मां अपने बच्चे को संभालती है। जरा सा बिम्ब इधर-उधर हुये नहीं कि कवि बेचैन हो जाता है। क्या पता वापस मिलने पर डांटता हो- कहां चले गये थे बिम्ब बेटे हमारा तो जी धक्क हो गया। तुम्हें हमारी कसम जो कभी हमारी नजर से ओझल हुये। कोई दूसरा कवि पकड़कर अपनी कविता में टांक देगा तुम्हे।
कुछ कवि/कवियत्रियां इसी तरह की बात उपमा से कहती होंगी- बेटी उपमा! जमाना बड़ा खराब है। अकेले इधर-उधर मत जाया करो! सत्यमेव जयते देखने भर से लोगों की नीयत ठीक नहीं हो जाती।
हमारे दोस्त हमसे चुहल करने लगे। कवि के साथ यही त्रासदी है उसको कोई गंभीरता से नहीं लेता। बोले- भट्टी के सामने खड़े होकर कविता लिख लो।
हमने कहा -वह तो प्रायोजित कविता होगी। भट्टी सुलगाने के लिये कोयला/तेल फ़ुकेगा सो अलग।
उसने सलाह दी- छुट्टी लेकर राजस्थान निकल जाओ। वहां अभी बहुत गर्मी होगी। सारे बिम्ब निकाल के धर देना कविता में।
मैं सोचता हूं कि अगर कहीं कविता लिखने के लिये छुट्टी का आवेदन करूं तो बॉस क्या कहेंगे?
क्या पता डांट दें कि ऐसा फ़ालतू माफ़िक बात करते हो। कविता लिखने के भी कहीं छुट्टी मिलती है! लेकिन अगर कोई कवि हृदय बॉस हो तो शायद चर्चा के लिये बुलाये और पूछताछ करे!
साहब : तुम कविता लिखते हो!
कवि: हां, साहब! कभी-कभी लिख लेते हैं।
साहब : क्यों क्या परेशानी है तुम्हें यहां जो कविता लिखते हो! काम-धाम कम है क्या?
कवि: परेशानी की बात नहीं साहब! बस ऐसे ही अपने को अभिव्यक्त करने का मन होता है। काम-धाम तो साहब बहुत है! उसी के चक्कर में कविता सृजन में बाधा पड़ती है।
साहब : किस रस में कविता लिखते हो?
कवि: साहब लिखता तो हर रस में हूं श्रंगार, वीर रस, वात्सल्य रस आदि लेकिन सब दोस्त उनको हास्य रस की ही तरह पढ़ते हैं।
साहब : ओह याद आया! जरूर तुम मुक्त छंद कवि होगे। तुम्हारी नोटिंग में कोई तार-तम्य नहीं मिलता।
कवि: ( कवि इसे तारीफ़ समझकर पांव के अंगूंठे से फ़र्श कुरदने की कोशिश करते हुये कहता है) साहब, क्या करूं! लाचार हो जाता हूं। अभिव्यक्ति के आगे। फ़ूट पड़ती है जहां-तहां। पता ही नहीं चलता।
साहब : तो कविता लिखने के लिये छुट्टी पर जाने की क्या जरूरत है?
कवि: साहब, दरअसल मेरे पास गर्मी के बहुत सारे बिम्ब पड़े हैं। मैं दफ़्तर के कामों में इतना उलझा रहा कि उन पर कविता लिख नहीं पाया। अब इधर बारिश आ गयी है। सो किसी गरम जगह जाकर इन पर कविता लिखना चाहता हूं।
साहब : तो अब जब दुबारा गर्मी पड़े तब लिख लेना। कौन बिम्ब कहीं भागे जा रहे हैं।
कवि: अरे सर नहीं! ये बिम्ब बड़े नखरेबाज होते हैं। हरजाई टाइप। जरा सा देरी हुई नहीं कि किसी दूसरे कवि की कविता में सट जायेंगे। एकदम निर्दलीय विधायक की तरह होते हैं बिम्ब – जहां सत्ता दिखी उससे संबंद्ध हो जाते हैं।
साहब : तुम्हारी बात समझ में नहीं आ रही कि गर्मी की कविता लिखने के लिये गर्म जगह जाना पड़ा। अगर ऐसा है तो विदेश में बैठकर कवि लोग देश की चिन्ता में कवितायें कैसे लिखते हैं।
कवि: साहब वे लोग सिद्ध होते हैं। मां भारती से उनके डायरेक्ट कनेक्शन होते हैं। वे जिस मूड की कविता जब चाहे लिख सकते हैं। जो लिख देते हैं -कविता बन जाता है। रो देते हैं, तो कविता। हंस देते हैं, तो कविता। मैं उतना सिद्द कवि नहीं हूं। इसलिये बहुत मेहनत करनी पड़ती है।
साहब : लेकिन तुम अगले साल गर्मी में भी तो इन बिम्बों का इस्तेमाल करके कविता लिख सकते हो। इनके लिये पैसे और छुट्टी बरबाद करने से क्या फ़ायदा।
कवि: साहब बताया न कि अगर कोई दूसरे कवि ने इनका उपयोग कर दिया तो ये बिम्ब जूठे हो जायेंगे। मां भारती नाराज होंगी कि उनके यहां जुठे बिम्ब चढ़ाये। इसलिये साहब जाने दीजिये। कविता पूरी होते ही मैं वापस आ जाउंगा।
साहब : ठीक है जाओ! लेकिन सोच लो कि इस बीच यहां कस कर बारिश हुई तो तुम्हारे बारिश वाले बिम्बों का नुकसान हो जायेगा। फ़िर तुम चेरापूंजी जाने के लिये छुट्टी मांगोगे क्या?
कवि: साहब! अभी तो आप जाने दीजिये अगली बार देरी नहीं करूंगा। समय पर कविता लिख लूंगा।
साहब से छुट्टी का आश्वासन मिल जाने पर कवि राजस्थान के लिये रिजर्वेशन के लिये ट्रेनों में जगह खोज रहा है। हर ट्रेन फ़ुल है। किसी में जगह नहीं है। कम्प्यूटर में इंतजार वाला डमरू घूम रहा है। कवि की झुंझलाहट से कोमल बिम्ब चोटिल हो रहे हैं। उनकी शक्ल बदल रही है। कवि सोच रहा है इससे अच्छा तो साहब छुट्टी देने से मना कर देते। कम से कम गर्मी वाले बिम्ब में बॉस के खिलाफ़ गुस्से को मिलाकर व्यवस्था के खिलाफ़ कविता बन जाती।
कवि के लिये दुनिया हमेशा से निष्ठुर रही है। कभी माहौल नहीं मिलता, कभी बिम्ब दगा दे जाते हैं और कभी छुट्टी नहीं। जब सब मिल जाते हैं तो रिजर्वेशन दगा दे जाता है।
इस बीच बारिश फ़िर से होने लगी है। कवि के मन से गर्मी के सारे बिम्ब उसी तरह से फ़ूट लिये हैं जैसे होमगार्ड के डंडा फ़टकारने से चौराहे के ठेलिये वाले इधर-उधर हो जाते हैं। बारिश के बिम्ब कवि के मन में नयी-नवेली दोस्त की तरह इठलाने लगे हैं। कवि उनको निहारने में व्यस्त हो जाता है।
मां भारती अपने कवि बालक की अल्हड़ता देखकर मुस्करा सी रही हैं- बाबरा कहीं का। नटखट, शैतान बच्चा।
ऊपर का चित्र और मेरी पसन्द में कविता रवि कुमार के यहां से आभार सहित!
मेरी पसन्द
एक बच्चा
किवाड़ की दराज़ से बाहर झांका
और गुलेल हाथ में लिए
हवा सा फुर्र हो गया
पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी की तरफ़
बस्ती की जर्जर चौखटों में
ख़ौफ़ तारी हो गया
कोई दहलीज़ नहीं लांघता
पर यह सभी जानते हैं
वह अपनी अंटी में सहेजे हुए
छोटे छोटे कंकरों से
सितारों को गिराया करता है
चट्टानों को बिखराकर लौटती
उसकी मासूम किलकारियां
मुनांदी की मुआफ़िक़
हर ज़ेहन में गूंज उठती हैं
ज़मीं तो ज़मीं
फ़लक भी ख़ौफ़ज़दा है उससे
वह आफ़्ताब को
गिरा ही लेगा बिलआख़िर
वह फिर से
हवा सा फुर्रsss हो रहा है
रवि कुमार
फ़िर हमारे मित्र ( धीरेन्द्र पाण्डेय जो कि हमारे ही स्कूल के हैं) मिल गये नेट पर। मौसम के बारे में चर्चा होने लगी। हमने बताया कि यहां तो पानी बरस गया। मौसम सुहाना हो गया है। उहां का हाल है?
वो बोले -आपके तो मजे हैं! यहां तो मामला गरम है अभी तक!
हमने कहा- मजे क्या! मौसम भले खुशगवार हो गया हो लेकिन हमें गर्मी पर कविता लिखनी थी।
पानी बरस जाने से सारे बिम्ब गीले हो गये। बड़ा नुकसान हो गया।
कवि की सबसे बड़ी दौलत उसके बिम्ब होते हैं। कवि बिम्बों को अपने सीने से चिपकाकर रखता है जैसे मां अपने बच्चे को संभालती है। जरा सा बिम्ब इधर-उधर हुये नहीं कि कवि बेचैन हो जाता है। क्या पता वापस मिलने पर डांटता हो- कहां चले गये थे बिम्ब बेटे हमारा तो जी धक्क हो गया। तुम्हें हमारी कसम जो कभी हमारी नजर से ओझल हुये। कोई दूसरा कवि पकड़कर अपनी कविता में टांक देगा तुम्हे।
कुछ कवि/कवियत्रियां इसी तरह की बात उपमा से कहती होंगी- बेटी उपमा! जमाना बड़ा खराब है। अकेले इधर-उधर मत जाया करो! सत्यमेव जयते देखने भर से लोगों की नीयत ठीक नहीं हो जाती।
हमारे दोस्त हमसे चुहल करने लगे। कवि के साथ यही त्रासदी है उसको कोई गंभीरता से नहीं लेता। बोले- भट्टी के सामने खड़े होकर कविता लिख लो।
हमने कहा -वह तो प्रायोजित कविता होगी। भट्टी सुलगाने के लिये कोयला/तेल फ़ुकेगा सो अलग।
उसने सलाह दी- छुट्टी लेकर राजस्थान निकल जाओ। वहां अभी बहुत गर्मी होगी। सारे बिम्ब निकाल के धर देना कविता में।
मैं सोचता हूं कि अगर कहीं कविता लिखने के लिये छुट्टी का आवेदन करूं तो बॉस क्या कहेंगे?
क्या पता डांट दें कि ऐसा फ़ालतू माफ़िक बात करते हो। कविता लिखने के भी कहीं छुट्टी मिलती है! लेकिन अगर कोई कवि हृदय बॉस हो तो शायद चर्चा के लिये बुलाये और पूछताछ करे!
साहब : तुम कविता लिखते हो!
कवि: हां, साहब! कभी-कभी लिख लेते हैं।
साहब : क्यों क्या परेशानी है तुम्हें यहां जो कविता लिखते हो! काम-धाम कम है क्या?
कवि: परेशानी की बात नहीं साहब! बस ऐसे ही अपने को अभिव्यक्त करने का मन होता है। काम-धाम तो साहब बहुत है! उसी के चक्कर में कविता सृजन में बाधा पड़ती है।
साहब : किस रस में कविता लिखते हो?
कवि: साहब लिखता तो हर रस में हूं श्रंगार, वीर रस, वात्सल्य रस आदि लेकिन सब दोस्त उनको हास्य रस की ही तरह पढ़ते हैं।
साहब : ओह याद आया! जरूर तुम मुक्त छंद कवि होगे। तुम्हारी नोटिंग में कोई तार-तम्य नहीं मिलता।
कवि: ( कवि इसे तारीफ़ समझकर पांव के अंगूंठे से फ़र्श कुरदने की कोशिश करते हुये कहता है) साहब, क्या करूं! लाचार हो जाता हूं। अभिव्यक्ति के आगे। फ़ूट पड़ती है जहां-तहां। पता ही नहीं चलता।
साहब : तो कविता लिखने के लिये छुट्टी पर जाने की क्या जरूरत है?
कवि: साहब, दरअसल मेरे पास गर्मी के बहुत सारे बिम्ब पड़े हैं। मैं दफ़्तर के कामों में इतना उलझा रहा कि उन पर कविता लिख नहीं पाया। अब इधर बारिश आ गयी है। सो किसी गरम जगह जाकर इन पर कविता लिखना चाहता हूं।
साहब : तो अब जब दुबारा गर्मी पड़े तब लिख लेना। कौन बिम्ब कहीं भागे जा रहे हैं।
कवि: अरे सर नहीं! ये बिम्ब बड़े नखरेबाज होते हैं। हरजाई टाइप। जरा सा देरी हुई नहीं कि किसी दूसरे कवि की कविता में सट जायेंगे। एकदम निर्दलीय विधायक की तरह होते हैं बिम्ब – जहां सत्ता दिखी उससे संबंद्ध हो जाते हैं।
साहब : तुम्हारी बात समझ में नहीं आ रही कि गर्मी की कविता लिखने के लिये गर्म जगह जाना पड़ा। अगर ऐसा है तो विदेश में बैठकर कवि लोग देश की चिन्ता में कवितायें कैसे लिखते हैं।
कवि: साहब वे लोग सिद्ध होते हैं। मां भारती से उनके डायरेक्ट कनेक्शन होते हैं। वे जिस मूड की कविता जब चाहे लिख सकते हैं। जो लिख देते हैं -कविता बन जाता है। रो देते हैं, तो कविता। हंस देते हैं, तो कविता। मैं उतना सिद्द कवि नहीं हूं। इसलिये बहुत मेहनत करनी पड़ती है।
साहब : लेकिन तुम अगले साल गर्मी में भी तो इन बिम्बों का इस्तेमाल करके कविता लिख सकते हो। इनके लिये पैसे और छुट्टी बरबाद करने से क्या फ़ायदा।
कवि: साहब बताया न कि अगर कोई दूसरे कवि ने इनका उपयोग कर दिया तो ये बिम्ब जूठे हो जायेंगे। मां भारती नाराज होंगी कि उनके यहां जुठे बिम्ब चढ़ाये। इसलिये साहब जाने दीजिये। कविता पूरी होते ही मैं वापस आ जाउंगा।
साहब : ठीक है जाओ! लेकिन सोच लो कि इस बीच यहां कस कर बारिश हुई तो तुम्हारे बारिश वाले बिम्बों का नुकसान हो जायेगा। फ़िर तुम चेरापूंजी जाने के लिये छुट्टी मांगोगे क्या?
कवि: साहब! अभी तो आप जाने दीजिये अगली बार देरी नहीं करूंगा। समय पर कविता लिख लूंगा।
साहब से छुट्टी का आश्वासन मिल जाने पर कवि राजस्थान के लिये रिजर्वेशन के लिये ट्रेनों में जगह खोज रहा है। हर ट्रेन फ़ुल है। किसी में जगह नहीं है। कम्प्यूटर में इंतजार वाला डमरू घूम रहा है। कवि की झुंझलाहट से कोमल बिम्ब चोटिल हो रहे हैं। उनकी शक्ल बदल रही है। कवि सोच रहा है इससे अच्छा तो साहब छुट्टी देने से मना कर देते। कम से कम गर्मी वाले बिम्ब में बॉस के खिलाफ़ गुस्से को मिलाकर व्यवस्था के खिलाफ़ कविता बन जाती।
कवि के लिये दुनिया हमेशा से निष्ठुर रही है। कभी माहौल नहीं मिलता, कभी बिम्ब दगा दे जाते हैं और कभी छुट्टी नहीं। जब सब मिल जाते हैं तो रिजर्वेशन दगा दे जाता है।
इस बीच बारिश फ़िर से होने लगी है। कवि के मन से गर्मी के सारे बिम्ब उसी तरह से फ़ूट लिये हैं जैसे होमगार्ड के डंडा फ़टकारने से चौराहे के ठेलिये वाले इधर-उधर हो जाते हैं। बारिश के बिम्ब कवि के मन में नयी-नवेली दोस्त की तरह इठलाने लगे हैं। कवि उनको निहारने में व्यस्त हो जाता है।
मां भारती अपने कवि बालक की अल्हड़ता देखकर मुस्करा सी रही हैं- बाबरा कहीं का। नटखट, शैतान बच्चा।
ऊपर का चित्र और मेरी पसन्द में कविता रवि कुमार के यहां से आभार सहित!
मेरी पसन्द
एक बच्चा
किवाड़ की दराज़ से बाहर झांका
और गुलेल हाथ में लिए
हवा सा फुर्र हो गया
पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी की तरफ़
बस्ती की जर्जर चौखटों में
ख़ौफ़ तारी हो गया
कोई दहलीज़ नहीं लांघता
पर यह सभी जानते हैं
वह अपनी अंटी में सहेजे हुए
छोटे छोटे कंकरों से
सितारों को गिराया करता है
चट्टानों को बिखराकर लौटती
उसकी मासूम किलकारियां
मुनांदी की मुआफ़िक़
हर ज़ेहन में गूंज उठती हैं
ज़मीं तो ज़मीं
फ़लक भी ख़ौफ़ज़दा है उससे
वह आफ़्ताब को
गिरा ही लेगा बिलआख़िर
वह फिर से
हवा सा फुर्रsss हो रहा है
रवि कुमार
Posted in बस यूं ही | 42 Responses
…वैसे गर्मी के बिम्ब न मिले तो कोई बात नहीं,बारिश में कोई बमबा पकड़ लो,पानी भी मिलेगा और कविता भी फिट हो जायेगी !!
….मजेदार रही कविताई की जुगत !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..मेरा हासिल हो तुम !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..मेरा हासिल हो तुम !
बेटी उपमा! जमाना बड़ा खराब है। अकेले इधर-उधर मत जाया करो! सत्यमेव जयते देखने भर से लोगों की नीयत ठीक नहीं हो जाती।………… gajjjab………
pranam.
थोड़ा घी और मसाले अधिक डालकर बना देते…
मसलन तपते धोरों पर गिरती बूंदें जलती हुई सौंधी खुशबू लिए… टाइप
वैसे चिंतन अधिक दमदार बन पड़ा है…
सिद्धार्थ जोशी की हालिया प्रविष्टी..इंद्रियों को जीतने वाले के आगे अप्सराओं का नृत्य
आपने तो पद्य लिख डाला !!! माँ भारती रुष्ट हो जायेंगी !!!!
चलिए हम रेगिस्तान में बैठकर कविता लिख डालते हैं :
भभके दुनिया यूँ , लौह-पथ-गामिनी-इंजन माफिक ज्यों !!!
सिसकें हर लाल विद्रोह करें !!!!!
क्या ये कालजयी कविता बनने लायक है !!!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..इश्क और फेसबुक
प्रणाम.
Manoj K की हालिया प्रविष्टी..सुनहरी किनार वाली नीली साड़ी
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..लॉफिंग …..बुद्धा नहीं…पुलिस ..
ये भी सही है जी …
“कम्प्यूटर में इंतजार वाला डमरू घूम रहा है। ” ….”कवि के लिये दुनिया हमेशा से निष्ठुर रही है। “……… कवि हो जाना ही तपस्या है ?
आशीष श्रीवास्तव
इसी तपस्या से बचने के लिये तो बिम्ब झलका के बात खतम कर दी। कविता नहीं लिखी।
मस्त !
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..धइलें रही हमके भर अंकवरीया…..बमचक – 8
राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..खुसरा चिरई
वैसे एक बात बतायें ई कविता लिखने के लिए बॉस से छुट्टी लेने वाला आइडिया मेरे दिमाग में भी आया था। लेकिन वही बात, आपने लिख दिया और हम आपकी पोस्ट पर कमेंट टीपते दिख रहे हैं।(:
कल बनारस में भी पहली बारिश हुई। बाबा रामदेव के माफिक लम्बी-लम्बी सांस खींचकर मिट्टी की सोंधी-सोंधी सुंगध फेफड़े में भरकर, कई बिंब इकट्ठा करके जब कविता लिखने का मूड बनाया ससुरी बिजली चली गयी।(: सारा बिंब बारिश में बह गया। सुबह देर तक बिजली नहीं आई। शाम को दफ्तर से लौटे तो यह पोस्ट सामने थी। अब का करें! लिखें कि पढ़ें..सतियानाश।:)
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..स्वतन्त्र देवता
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..हेनरी पोलाक का साथ
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..सदालाल सिंह (पटना १३)
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..ब्लोगर साथियों के समक्ष, मेरे गीत का लोक समर्पण – सतीश सक्सेना
संजय अनेजा की हालिया प्रविष्टी..शीतल दाह ..
आभार का सुभीता…धन्यवाद