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Wednesday, October 02, 2024

अपनी आदत है चुप रहते हैं



अपनी आदत है, चुप रहते हैं,
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
आंसू नहीं छलकने देंगे
ऐसी कसम उठा रखी है
होंठ नहीं दाबे दांतों से
हमने चीख दबा रखी है।
माथे पर पत्थर सहते हैं,
छाती पर खंजर सहते हैं
पर कहते पूनम को पूनम
मावस को मावस कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
हमने तो खुद्दार जिंदगी के
माने इतने ही माने
जितनी गहरी चोट अधर पर
उतनी ही मीठी मुस्कानें।
फ़ाके वाले दिन को, पावन
एकादशी समझते हैं
पर मुखिया की देहरी पर
जाकर आदाब नहीं कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
हम स्वर हैं झोपड़पट्टी के
रंगमहल के फाग नहीं हैं
आत्मकथा बागी लहरों की
गंधर्वों के राग नहीं हैं।
हम चिराग हैं, रात-रात भर
दुनिया की खातिर जलते हैं
अपनी तो तैराकी उलटी है
धारा में मुर्दे बहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
-शिवओम ‘अम्बर’फ़र्रुखाबाद
अंबर जी की यह कविता पहली बार कब सुनी , याद नहीं। लेकिन यह याद है कि इसकी पंक्ति :
‘अपनी तो उल्टी तैराकी है, धारा में मुर्दे बहते हैं ‘
हमारे मित्र Vinod Tripathi की पसंदीदा पंक्ति थी और वह इसे नारे की तरह प्रयोग करते हुए अक्सर दोहरते थे।
वरिष्ठ कवि अंबर जी देश के कवि मंचों के सर्वश्रेष्ठ संचालकों में रहे हैं। शाहजहांपुर में होने वाले कवि सम्मेलन और मुशायरे के लिए संचालन के लिए शिवओम अंबर जी और मेराज फैजाबादी जी हमारे पहली पसंद होते थे। दोनों के संयुक्त संचालन कवि सम्मेलन और मुशायरा सफलता की गारंटी होता था।
पिछले दिनों आर्मापुर में हिन्दी पखवाड़े के अवसर पर संपन्न कवि सम्मेलन में अन्य कवियों के साथ अंबर जी को फिर से सुनने का मौक़ा मिला। हमारी फ़रमाइश पर उन्होंने मेरी पसंदीदा कविता भी सुनाई। आप भी सुनिए।

https://www.facebook.com/share/p/eo6rBKjLJ7QmXNxV/

Thursday, September 05, 2024

आज कुछ देर सिर्फ़ अच्छा सोचा


जो कुछ है मेरे पास, उस पर ध्यान दिया
दोस्तों के साथ हंसती हुई तस्वीरें देखीं
माँ-बाप खुश हैं ,उनसे बात हुई आज
अपने मन के हिसाब का नाश्ता भी हुआ
तबियत में कोई ख़ास ख़राबी नहीं महसूस हुई
मेट्रो में बैठने को जगह मिल गई
एक छोटे बच्चे ने उँगली पकड़ ली
और मौसम भी सुहाना मिला आज।
आज कुछ देर सिर्फ़ अच्छा सोचा
तो लगा सब कुछ कितना अच्छा है। 🙂
-यह लिखाई 👆 मेरे छोटे बेटे Anany Shukla की है। इस पोस्ट में फ़ोटो भी अनन्य की है।

https://www.facebook.com/share/p/mBZ3jiHT9LVoqC4P/

Sunday, July 07, 2024

चलो थोड़ा दूर जाते हैं



चलते हैं दूर सभी सवालों से
ख्यालों से भी दूर हो के आते हैं,
आवाज देकर जहां से कोई बुला न सके,
शोर न सुनाई दे किसी का,
वहां तक होकर आते हैं...
समझना और समझाना ,
इस सब के थोड़ा पार जाते हैं,
थोड़ा ही सही , खुद से मिलकर आते हैं,
जहां से मेरी चीख किसी को न सुनाई दे,
वहां तक होकर आते हैं...
उलझे हुए हैं सभी यहां,
सबसे दूर कुछ देर खुद को सुलझाकर आते हैं,
जहां यह भारी मन हल्का महसूस करे,
वहां तक होकर आते हैं...
जिस जगह पर रोज जितना न पड़े,
मन है इस बार, थोड़ा हारकर आते हैं,
जहां तक जाने पर बैठ सकूं थोड़ा,
इस बार वहां तक होकर आते हैं...
चलो , थोड़ा दूर जाते है....
थोड़ा दूर जाने की बात हमारे छोटे बेटे अनन्य Anany Shukla ने यात्रा से वापस आकर की।
अनन्य पिछले तीन वर्षों से घुमक्कड़ी में जुटे हैं। तीन वर्ष पहले कारपोरेट की सर्विस छोड़कर घूमने-घुमाने का काम कर रहे हैं। अपनी ट्रेवल कम्पनी फिरगुन ट्रैवल्स Firgun Travels के माध्यम से देश विदेश की 41 ट्रिप लीड कर चुके हैं।
पिछले दिनों मंडी, हिमाचल प्रदेश में मंडी के पास 17345 फुट ऊँची फ्रेंडशिप पीक की ट्रेकिंग की। उस दौरान हर तरह के सम्पर्क से दूर रहे। मोबाइल बंद। हर शाम केवल सूचना मिलती थी, सब ठीक है।
फ्रेंडशिप पीक की ट्रैकिंग जरुर कठिन रही होगी। शायद इसीलिए आधे लोग ही पीक तक पहुंच सके। बाकी रुक गए रास्ते में। बिना शिखर तक पहुंचे लौट आए।
ऐसी किसी यात्रा पर निकलने और यात्रा के दौरान उठने वाले भाव लिखे अनन्य ने, यात्रा से लौट कर।
सफ़र की कुछ फ़ोटुएँ देखकर एहसास होता है कि ट्रैक कितना चुनौती भरा रहा होगा।
अनन्य की कम्पनी फिरगुन ट्रेवल्स को पिछले दिनों एक संस्था ट्रिप एडवाइजर ने अच्छी 10% ट्रेवल कम्पनियों में होने का प्रमाणपत्र दिया। यह प्रमाणपत्र ट्रिप में गये लोगों के फीडबैक के आधार पर दिया गया है।
घूमने-घुमाने का काम भी अनूठा है। ' सैर कर दुनिया की गाफिल' तो बचपन से सुनते आए हैं। अनन्य का कहना है -'निकल बेवजह।'(वीडियो का लिंक कमेंट में। अनन्य का लिखा यह गीत उनके दोस्त अरिजित आनंद ने गाया है)
तो कब निकल रहे हैं घूमने के लिए?

https://www.facebook.com/share/p/6VN2KTWj8MQaKNQQ/

Sunday, July 03, 2022

कौन मुस्काया शरद के चाँद सा

 कौन मुस्काया शरद के चांद सा

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पिछले दिनों हमारे प्रिय गीतकार विनोद श्रीवास्तव जी से मुलाकात हुई तो उनके कुछ गीत रिकार्ड किये। उनमें से एक गीत वह भी था जिसे पूर्णिमा वर्मन जी ने 2005 में अपनी अंतर्जाल पत्रिका 'अनुभूति' में हिंदी के सौ सर्वश्रेष्ठ गीतों में शामिल किया था।
मैने तो कई बार इस गीत को सुना। आप भी गीत के पढ़ने और गीतकार की आवाज में सुनने का आनंद लीजिए:
कौन मुस्काया शरद के चाँद सा
सिंधु जैसा मन हमारा हो गया।
एक ही छवि तैरनी है झील में ,
रूप के मेले न कुछ कर पायेंगे।
एक ही लय गूँजनी संसार में,
दूसरे सुरताल किसको भाएंगे।
कौन लहराया महकती याद सा,
फूल जैसा तन हमारा हो गया।
खिल गया आकाश खुशबू ने कहा,
दूर अब अवसाद का घेरा हुआ।
जो कभी भी पास तक आती न थी
उस समर्पित शाम ने जी भर छुआ।
कौन गहराया सलोनी रात सा
रागमय जीवन हमारा हो गया।
पूर्व से आती फिर हवा फिर छू गई,
फिर कमल मुख हो गई संवेदना।
जलतरंगों में नहाती चाँदनी
हो गई है इंद्रधनुषी चेतना।
मौन शरमाया सबेरे गात सा
धूप जैसा क्षण हमारा हो गया।
कौन मुस्काया शरद के चाँद सा
सिंधु जैसा मन हमारा हो गया।
-विनोद श्रीवास्तव Vinod Srivastava

https://www.facebook.com/share/p/Wh19n9zZPPU2xkHf/

Wednesday, May 18, 2022

जो मेरे घर कभी नहीं आयेंगे



जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे
मैं उनसे मिलने
उनके पास चला जाऊँगा।
एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी मेरे घर
नदी जैसे लोगों से मिलने
नदी किनारे जाऊँगा
कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा ।
पहाड़, टीले, चट्टानें, तालाब
असंख्य पेड़ खेत
कभी नहीं आएँगे मेरे घर
खेत-खलिहानों जैसे लोगों से मिलने
गाँव-गाँव, जंगल-गलियाँ जाऊँगा।
जो लगातार काम में लगे हैं
मैं फ़ुरसत से नहीं
उनसे एक ज़रूरी काम की तरह
मिलता रहूँगा—
इसे मैं अकेली आख़िरी इच्छा की तरह।
-विनोद कुमार शुक्ल
सौजन्य से Pankaj Chaturvedi जी जिनकी फ़ेसबुक पोस्ट पर पहुँचकर बहुत प्यारा संस्मरण पढ़ सकते हैं।

https://www.facebook.com/share/p/QMqTWE9Vy8SQtrFs/

Thursday, March 24, 2022

धर्म छोटे बड़े नहीं होते

 धर्म छोटे बड़े नहीं होते
जानते तो लड़े नहीं होते

चोट तो फूल से भी लगती है
सिर्फ़ पत्थर कड़े नहीं होते।
यह सबसे पहला मुक्तक था जो मैंने सुना था विनोद जी का। सुनिए आप भी।

https://www.facebook.com/share/v/wQvp5N4PENDcx53o/

Wednesday, March 23, 2022

अगर रूठ भी गया तो क्या

 कानपुर के हमारे प्रिय गीतकार विनोद श्रीवास्तव जी कुछ दिन पहले शाहजहाँपुर आए। उनसे मिलना भी हुआ । विनोद जी के कुछ गीत रिकार्ड किए। उनमें से एक मुक्तक यहाँ पेश है।

अगर रूठ भी गया तो क्या
मैं अगर छूट भी गया तो क्या
तुमको मिल जाएँगे कई दर्पण
मैं अगर टूट भी गया तो क्या ?

https://www.facebook.com/share/v/nyxV2TsRPo6FiCyT/

Saturday, February 05, 2022

निकल बेवजह-घुमक्कड़ी का आह्वान गीत



हमारे छोटे सुपुत्र अनन्य Anany Shukla घुमक्कड़ी से जुड़े हैं। घूमने -घुमाने के अपने जुनून को पूरा करने के लिए उन्होंने अमेरिकन कम्पनी गोल्डमैन सैक्स की नौकरी छोड़कर घूमना शुरू किया। पिछले वर्ष से अपने मित्रों के साथ मिलकर फिरगुन ट्रेवेल्स नाम की कम्पनी बनाई। हिब्रू भाषा के शब्द फिरगुन का मतलब होता है जिसको आप चाहते हों उसकी सफलता पर महसूस होने वाली ख़ुशी। कम्पनी बनाने से लेकर अब तक अनन्य 20 ट्रिप लीड कर चुके हैं। आजकल बंगलोर के पास गोकर्ण में अपनी टीम के साथ हैं।
पिछले दिनों अनन्य ने एक गीत लिखा - निकल बेवजह । गीत एक तरह से घुमक्कड़ी का आह्वान गीत है। अनन्य के गीत को आवाज़ दी है अनन्य के मित्र अर्जित आनंद ने। गीत सुनकर जो भाव आए उसका बयान मुश्किल है। गीत के आख़िर में अनन्य की आवाज़ में आह्वान -'एक सफ़र खुद के लिए तय कर' सुनकर लगा कि अब बस निकल ही लिया जाए। गीत पढ़िए। गीत का लिंक टिप्पणी बक्से में दिया है। गीत सुनिए आपको अच्छा लगेगा। उचित लगे तो नई पीढ़ी को अपना आशीष और शुभकामनाएँ दें।
निकल बेवजह
------------
खुद से लड़- लड़ के, मैं खुद से जीत गया
थोड़ा सा ही सही, अब खुल रहा हूँ मैं,
निकला तनहा था, तारों का साथ मिला
एक नया एहसास मिला, अब खुल रहा हूँ मैं!
बाँट ली है सारी ख़ुशी, पोंछ के मेरे आंसू सभी
दूर था मैं खुद से कभी, अब मिल रहा हूँ मैं !
खुद से लड़ लड़ के, मैं खुद से जीत गया,
थोड़ा सा ही सही, अब खुल रहा हूँ मैं !
बेफ़िक्री के एक आँगन में, लिपटे हैं हम एक चादर में
तारों की इक बारात गयी, उसने हमने एक बात कही
तू जो हंसे तो चलती हवा ,आंसू गिरे तो लागे सजा
खुद पे हो जो यक़ीन तेरा, तो निकल बेवजह !
पंछी जागे हैं , तेरा रस्ता ताके हैं
तुझे रोज़ पुकारे हैं , क्यूँ सुन रहा है तू
एक सफ़र खुद के लिए तय कर। जो पीछे सारे ख़ौफ़ अब फहत कर। भूल जा कि क़िस्मत जैसा कुछ होता है। जब गलती तेरी नहीं तो क्यों रोता है । ये सपनों का कमरा तेरा है, इसे खुद सजा। जा, किसी अनजान शहर में एक नया दोस्त बना। तेरी जो लहरें कब से शांत पड़ी हैं, उनमें एक बवाल मचा। मेरे मुसाफ़िर अब तू निकल बेवजह। निकल बेवजह।
अनन्य इसी तरह गीत लिखते रहें। अर्जित इसी तरह गीतों को सवार देते रहे हैं। जीवन में नई ऊँचाइयाँ छुएँ। खुश रहें और अपने से जुड़े लोगों की ख़ुशियों का कारण बने। फिरगुन भाव का प्रसार करें।

https://www.facebook.com/share/p/MqL2VSZzagGEueZi/

Tuesday, January 04, 2022

जाड़े में धूप



जाड़े में धूप
आहिस्ते से आती है,
धीमें-धीमे सहमती हुई सी।
जैसे कोई अकेली स्त्री
सावधान होकर निकलती है
अनजान आदमियों के बीच से।
धूप सहमते हुये
गुजरती है चुपचाप
कोहरे, अंधेरे और जाड़े के बीच से।
-अनूप शुक्ल

https://www.facebook.com/share/p/Hx4BxXh7NqbTZD1r/

Sunday, November 21, 2021

आशा। उम्मीद



मेरे हाल पर दोस्त मुझे ही दुख नहीं
तो यह तुम्हारा किस बात का घबराना
तुम मेरे जलते चूल्हे पर कभी
अपने आंसू मत गिराना।
अरे थोड़ा बिखरा ही तो है कमरा मेरा,
कोई टूटा थोड़ी है,
तुम मुझे संवारने की आस से
मेरे पास मत आना।
और जब दस्तक दो दरवाजे पर तो,
कुछ वक्त बैठने का इरादा साथ लाना,
मैं बन्द दीवारों में रखी कोई मूर्ति नहीं,
जब जाना तो फिर मिलने की उम्मीद मेरे पास छोड़ जाना।
जो दिखे कभी दरवाजे पर ताला,
तो देखकर लौट मत जाना,
मेरे पूरे घर से वाकिफ हो यार तुम,
सीधा खिड़की से भीतर चली आना।
-अनन्य शुक्ल
यह दो मिनट वाली कविता मेरे सुपुत्र Anany Shukla ने अंग्रेजी की लिपि में लिखी। शायद अनन्य के पाठक रोमन लिपि में ही पढ़ने वाले ज्यादा हैं। पढ़ते हुए इसे देवनागरी में लिखने का मन हुआ। पढ़िये।
Hope | Umeed
Mere haal par dost mujhe hi dukh nahi to yeh tumhaara kis baat ka ghabraana,
Tum mere jalte chulhe par kabhi apne aansu mat giraana..
Arrey thoda bikhra hi to hai kamra mera, koi toota thodi hai,
Tum kewal mujhe sawaarne ki aas se mere paas mat aana..
Aur jab dastak do darwaaze par to kuch waqt baithne ka iraada saath laana,
Main band deewaron mein rakhi koi murti nahi,
Jab jaana to phir milne ki wo umeed mere paas chhod jaana..
Jo dikhe kabhi darwaaze par taala, to dekh kar laut mat jaana,
Mere poore ghar se waaqif ho yaar tum,
Seedha khidki se bheetar chali aana..
- Anany Shukla
📍Choki Dhani, Jaipur, Rajasthan 🇮🇳