जयपुर निवासी यशवंत कोठारी जी Yashwant Kothari अध्यापक, लेखक, घुमक्कड़, उपन्यासकार सामाजिक कार्यकर्ता व्यंग्यकार मने क्या नहीं हैं। मतलब बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। उन्होंने हमारे ’पंचबैंक’ को देखकर अपनी दो किताबें मुझे सस्नेह भेजीं। ’ नोटम नमामि’ व्यंग्य लेखों का संग्रह है। ’असत्यम, अशिवम, असुन्दरम’ व्यंग्य उपन्यास है। कुल जमा 31 किताबों के लेखक यशवंत के नाम व्यंग्य की 12 किताबें हैं। उनके बारे में फ़िर कभी। फ़िलहाल यशवंत कोठारी जी के व्यंग्य संग्रह ’नोटम नमामि’ के कुछ पंच यहां पेश हैं।
1. जो नंगा नहीं होना चाहते वे लोकतंत्र को नंगा कर देते हैं।
2. आजादी के पचास वर्षों गांधी जी की लंगोट से चलकर हम लोकतंत्र की लंगोट तक पहुंच गये हैं।
3. भावताव में पत्नी का निर्णय ही अंतिम और सच साबित होता है।
4. पति का उपयोग केवल थैले, झोले या टोकरियां उठाने में ही होता है। बाकी का सब काम महिलायें ही संपन्न करती हैं।
5. जो नायिका एक फ़िल्म में पद्मिनी लगती है, वही किसी अन्य फ़िल्म में किसी अन्य नायक के साथ हस्तिनी लगने लगती है।
6. पूरा देश दो भागों में बंट गया है। लोन लेकर ऐश करने वाला देश और लोन नहीं मिलने पर भूखा प्यासा देश।
7. भूख से मरते आदिवासियों को कोई रोटी खरीदने के लिये लोन नहीं देता है, मगर उद्योगपति को नई फ़ैक्ट्री या व्यापारी को नई कार खरीदने के लिये पचासों बैंक या वित्तीय कंपनियां लोन देने को तैयार हैं।
8. हर तरफ़ लोन का इंद्रधनुष है, मगर गरीब को शुद्ध् पानी नसीब नहीं।
9. सत्ता के लोकतंत्र में बहुमत के लिये कुछ भी किया जा सकता है। घोड़ों की खरीद-फ़रोख्त से लगाकर विपक्षी से हाथ मिलाने तक सब जायज है।
10. हिंदी वास्तव में गरीबों की भाषा है। भाषाओं में बी.पी.एल है हिन्दी। हिन्दी लिखने वाले गरीब्, हिन्दी बोलने वाले गरीब, हिन्दी का पत्रकार गरीब, हिन्दी का कलाकार गरीब।
11. दफ़्तर वह स्थान है, जहां पर घरेलू कार्य तसल्ली से किये जाते हैं।
12. लंच में बड़े-बड़े लोग बड़ी डील पक्की करते हैं और छोटे-छोटे लोग छोटी-छोटी बातों के लिये लड़ते-झगड़ते एवं किस्मत को कोसते हैं।
13. कुछ लोग लंच घर पर ही करने चले जाते हैं और वापस नहीं आते।
14. लंच एक ऐसा हथियार है, जो सबको ठीक कर सकता है। लंच पर जाना अफ़सरों का प्रिय शगल होता है।
15. दफ़्तरों में लंच का होना इस बात का प्रतीक है कि देश में खाने-पीने की कोई कमी नहीं है।
16. कुढना, जलना या दुखी होकर बड़बड़ाना ह्मारा राष्ट्रीय शौक हो गया है। जो कुछ नहीं कर सकते वे बस कुढते रहते हैं।
17. पति पत्नी पर कुढता है, पत्नी पति पर कुढता है। दोनों मिलकर बच्चों पर कुढते हैं।
18. इस देश में सिवाय कुढने के , चिडचिडाने के हम कर भी क्या सकते हैं।
19. कुढने से हाजमा दुरुस्त होता है, स्वास्थ्य ठीक रहता है, नजरें तेज होती हैं, किसी की नजर नहीं लगती और सबसे बड़ी बात, कुढने के बाद दिल बड़ा हल्का महसूस होता है।
20. जो व्यक्ति परनिंदा नहीं कर सकता , वह अपने जीवन में कुछ भी नहीं कर सकता।
21. परनिन्दा आम आदमी का लवण भास्कर चूर्ण है, त्रिफ़ला चूर्ण है , जो हाजमा दुरुस्त रखत है। पेट साफ़ करता है। मनोविकारों से बचाता है और स्वस्थ रखता है।
’नोटम नमामि’ के प्रकाशक हैं ग्रंथ अकादमी , पुराना दरियागंज नई दिल्ली-110002
किताब का पहला संस्करण 2008 में आया और इस हार्ड बाउंड किताब के दाम हैं एक सौ पचहत्तर रुपये मात्र।
किताब का पहला संस्करण 2008 में आया और इस हार्ड बाउंड किताब के दाम हैं एक सौ पचहत्तर रुपये मात्र।
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