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….जिंदगी का एक इतवार
By फ़ुरसतिया on July 26, 2010
दो दिन पहले झमाझम बारिश
हुई। दफ़्तर से घर आने के लिये उसके रुकने का इंतजार करते बारिश के जलवे
देखते रहे। मन किया कि बारिश में भीगते हुये घर चला जाये। लेकिन यह सोचकर
कि जेब मे कागज और मोबाइल भीग जायेंगे बरज दिये मन को। कपड़े भले सूख जायें
एक दिन में लेकिन जूता सूखने में दो दिन ले लेगा। मोबाइल भी चला जायेगा।
वैसे पन्नी में सब कुछ रखकर भीगने की हसरत ( जो सच में थी ही नहीं) पूरी
कर सकते थे लेकिन फ़िर मटिया ही तो दिये।
झमाझम बारिश में एक चिड़िया के दो बच्चे पानी में फ़ंस गये हैं। आफ़िस के सामने सड़क पर फ़ंसे वे पानी में छ्टपटा रहे हैं। साथ के लोग उन बच्चों को भीगते हुये सड़क से उठाकर बरामदे में रखते हैं। बच्चे ठिठुर रहे हैं। उनके शरीर के रोयें शरीर में चिपके हैं। चिड़ियों, पेड़ों के बारे में सिफ़र जानकारी के चलते मुझे पता चलता कि वे किस चिड़िया के बच्चे हैं। तब तक एक चिड़िया वहां आ जाती है। शायद वह उन बच्चों की मां है। पानी में भीगते हुये वह आवाज लगाकर बच्चों को खोजती है। बच्चे उसकी आवाज सुनकर धीरे-धीरे बोलते हैं। दोनों में संवाद स्थापित हो जाता है। चिड़िया को अपने बच्चों की स्थिति का अंदाजा हो जाता है। वह वहां बरामदे से हमारे हटने का इंतजार कर रही है शायद।
शहर में सड़क जगह-जगह खुदी है। खुदी जगहों पर बोर्ड लगे हैं कि सड़क पर ताजा खुदी मिट्टी है। धंस सकती है। भारी वाहन न आयें। लिखावट इत्ती छोटी है कि दूर से दिखती नहीं। ट्रक अगर कोई आयेगा रात के अंधेरे में तो कैसे देखेगा। खुदाई बहुत दिन से हो रही है। भराई भी। अभी सड़क का समतल होना और बोर्ड का हटना बाकी है।
शहर की तरफ़ जाते हुये देखता हूं कि एक नौजवान बड़ी इस्पीड में मोटरसाइकिल दौड़ाते आता है और सामने से फ़ुर्र सा सड़क पर मोटरसाइकिल लहराते हुये चला जाता है। सड़क पर मोटरसाइकिल लहराते हुये वह साइन वेव सी बनाता है। उसके बाल हवा में उड़ रहे हैं। हेलमेट भी नहीं लगाये है बच्चा। मैं अपनी हमेशा की बोर कर देने वाली समझाइस अपने मन में दोहराता हूं- अगर आप 100% परफ़ेक्ट ड्राइवर हैं तो आप 50% सुरक्षित हैं। पचास प्रतिशत सुरक्षा अगले के हाथ में हैं। बच्चा हेलमेट भी नहीं लगाये है।
पत्नी और बच्चा बिग बाजार में पैसे बरबाद करने गये हैं। मैं बाहर इंतजार कर रहा हूं। आते-जाते लोगों को देखता हूं। मॉल में लोग कितने खुश-खुश से लगते हैं। खुबसूरत, चहकते,महकते, बेपरवाह, बिन्दास। कभी-कभी लगता है कि अपना सारा देश एक बहुत बड़ा मॉल होता। सबको यहां बुलाकर शामिल कर लिया जाता। सारी गरीबी,दुख, कष्ट दूर हो जाते। देश क्या दुनिया के बारे में भी ऐसा ही लगता है। लेकिन इत्ता बड़ा मॉल बनने में बहुत समय लगेगा। न जाने कित्ते साल। न जाने कित्ते दशक। न कित्ती शताब्दियां।
कभी-कभी हिसाब लगाता हूं कि आज के ही दिन दुनिया की सारी सम्पत्ति सब लोगों में बराबर-बराबर बांट दी जाये तो कित्ता पड़ेगा हरेक के हिस्से में। हमारी कित्ती कम हो जायेगी। यह खाम ख्याली है। लेकिन सोचते हैं अक्सर। सोचना ससुर अपने आप में खाम ख्याली है। ख्याल जब आते हैं मन में तो उनकी जामा तलासी नहीं होती। मन मॉल बनने से बचा हुआ है।
मुझे तीसरी मंजिल पर रेलिंग के पास बहुत देर से खड़ा देखकर नीचे से सिक्योरिटी गार्ड वहां से हटने के लिये कहता है। उसको बताया गया होगा यह करने के लिये। आजकल हर जगह सुरक्षा की ढेर चिंता की जाती है। हर जगह जामा तलाशी। हर जगह बदन टटोली। लेकिन फ़िर भी दुर्घटनायें हैं कि घट ही जाती हैं। बेतुकेपन के बावजूद ये कविता पंक्ति याद आती है:
इस बीच मैं पास में ही रहने वाले अपने सीनियर अग्निहोत्री जी से मिलकर आता हूं। चाय के बहाने उनकी बहू तमाम तरह का नास्ता करा देती है। सास-ससुर अपनी बहू की खूब सारी तारीफ़ करते हैं। अग्निहोत्री जी तमाम किस्से सुनाते हैं। एक महाप्रबंधक ने किसी गलती पर उनके एक स्टॉफ़ को निलम्बित करने का आदेश दिया। अग्निहोत्रीजी ने उनसे कहा- साहब गलती तो हुई है लेकिन इसके लिये आपका उस स्टॉफ़ को निलम्बित करना शेर के द्वारा मेढक का शिकार करने जैसा है। इसी बात पर खुश होकर उन्होंने निलम्बन रद्द कर दिया। उन्हीं महाप्रबंधक ने एक दिन उनको फ़ोन किया और कहा- अग्निहोत्री मैं इस समय हजरतगंज में लाल बत्ती की गाड़ी में घूम रहा हूं। मैंने जिन्दगी में इस बात की कभी कल्पना नहीं थी। सोचा यह बात किससे शेयर करूं तो तुम्हारी याद आयी और तुमको फ़ोन किया।
आदमी कितनी भी ऊंची पोस्ट पर पहुंच जाये उसके अंदर तमाम मासूम ख्वाहिशें बनी रहती हैं। हमारे अंदर कुछ बचपना हमेशा बना रहता है।
घर लौटते हुये कार का एअर कंडीशनर चालू कर देता हूं। वही सीली हवा बार-बार घूमती रहती है। बाहर गरम हवा फ़ेंकती है कार। दुनिया में वातानुकूलन बढ़ता जा रहा है। धरती गर्म हो रही है। दुनिया भर में न जाने कित्ती बहसें एअरकंडीशनर कमरों/हालों में होती हैं। धरती को ठंडा करने के उपाय उसको गरम करते हुये सोचे जाते हैं। जिसे देखो वह कहने लगता कि नष्ट हो जायेगी धरती इस तरह एक दिन।
मैं सोचता हूं कि धरती क्या नष्ट हो जायेगी। उसके लिये तो मानव और तमाम लोगों की तरह एक जानवर है। जब डायनोसर खतम हुये तब भी धरती न नष्ट हुई। तमाम तरह के जानवर नष्ट हुये, वनस्पतियां खतम हो गयीं तब भी धरती न नष्ट हुई तो आदमी के नष्ट होने से क्या खतम होगी! उसके लिये यह तो केवल बदलाव होगा। शायद रोचक भी हो कि उसकी छाती पर मूंग दलने वाले कम हुये। उसके दूसरे बच्चों को आजादी मिली। 6000 किलोमीटर की त्रिज्या वाली पृथ्वी के एकाध -दो, दस-बीस मिलोमीटर को बरबाद करके हम सोचते हैं कि धरती खतम हो जायेगी। धरती जब हिम युग में न खतम हुई, आग के गोले के समय न खतम हुई तो जरा सा ताममान बढ़ने से खतम हो जायेगी भला।
हम अपने को सब कुछ मानकर सबके खात्मे की बात करने लगते हैं। यह दीवार पर चढ़ती एक चींटी की सोच की तरह है जिसके पर निकल आये हैं और वह सोचती है अब तो दुनिया खतम हो जायेगी।
अजब चिरकुटई है। है कि नहीं! बताइये भला।
झमाझम बारिश में एक चिड़िया के दो बच्चे पानी में फ़ंस गये हैं। आफ़िस के सामने सड़क पर फ़ंसे वे पानी में छ्टपटा रहे हैं। साथ के लोग उन बच्चों को भीगते हुये सड़क से उठाकर बरामदे में रखते हैं। बच्चे ठिठुर रहे हैं। उनके शरीर के रोयें शरीर में चिपके हैं। चिड़ियों, पेड़ों के बारे में सिफ़र जानकारी के चलते मुझे पता चलता कि वे किस चिड़िया के बच्चे हैं। तब तक एक चिड़िया वहां आ जाती है। शायद वह उन बच्चों की मां है। पानी में भीगते हुये वह आवाज लगाकर बच्चों को खोजती है। बच्चे उसकी आवाज सुनकर धीरे-धीरे बोलते हैं। दोनों में संवाद स्थापित हो जाता है। चिड़िया को अपने बच्चों की स्थिति का अंदाजा हो जाता है। वह वहां बरामदे से हमारे हटने का इंतजार कर रही है शायद।
शहर में सड़क जगह-जगह खुदी है। खुदी जगहों पर बोर्ड लगे हैं कि सड़क पर ताजा खुदी मिट्टी है। धंस सकती है। भारी वाहन न आयें। लिखावट इत्ती छोटी है कि दूर से दिखती नहीं। ट्रक अगर कोई आयेगा रात के अंधेरे में तो कैसे देखेगा। खुदाई बहुत दिन से हो रही है। भराई भी। अभी सड़क का समतल होना और बोर्ड का हटना बाकी है।
शहर की तरफ़ जाते हुये देखता हूं कि एक नौजवान बड़ी इस्पीड में मोटरसाइकिल दौड़ाते आता है और सामने से फ़ुर्र सा सड़क पर मोटरसाइकिल लहराते हुये चला जाता है। सड़क पर मोटरसाइकिल लहराते हुये वह साइन वेव सी बनाता है। उसके बाल हवा में उड़ रहे हैं। हेलमेट भी नहीं लगाये है बच्चा। मैं अपनी हमेशा की बोर कर देने वाली समझाइस अपने मन में दोहराता हूं- अगर आप 100% परफ़ेक्ट ड्राइवर हैं तो आप 50% सुरक्षित हैं। पचास प्रतिशत सुरक्षा अगले के हाथ में हैं। बच्चा हेलमेट भी नहीं लगाये है।
पत्नी और बच्चा बिग बाजार में पैसे बरबाद करने गये हैं। मैं बाहर इंतजार कर रहा हूं। आते-जाते लोगों को देखता हूं। मॉल में लोग कितने खुश-खुश से लगते हैं। खुबसूरत, चहकते,महकते, बेपरवाह, बिन्दास। कभी-कभी लगता है कि अपना सारा देश एक बहुत बड़ा मॉल होता। सबको यहां बुलाकर शामिल कर लिया जाता। सारी गरीबी,दुख, कष्ट दूर हो जाते। देश क्या दुनिया के बारे में भी ऐसा ही लगता है। लेकिन इत्ता बड़ा मॉल बनने में बहुत समय लगेगा। न जाने कित्ते साल। न जाने कित्ते दशक। न कित्ती शताब्दियां।
कभी-कभी हिसाब लगाता हूं कि आज के ही दिन दुनिया की सारी सम्पत्ति सब लोगों में बराबर-बराबर बांट दी जाये तो कित्ता पड़ेगा हरेक के हिस्से में। हमारी कित्ती कम हो जायेगी। यह खाम ख्याली है। लेकिन सोचते हैं अक्सर। सोचना ससुर अपने आप में खाम ख्याली है। ख्याल जब आते हैं मन में तो उनकी जामा तलासी नहीं होती। मन मॉल बनने से बचा हुआ है।
मुझे तीसरी मंजिल पर रेलिंग के पास बहुत देर से खड़ा देखकर नीचे से सिक्योरिटी गार्ड वहां से हटने के लिये कहता है। उसको बताया गया होगा यह करने के लिये। आजकल हर जगह सुरक्षा की ढेर चिंता की जाती है। हर जगह जामा तलाशी। हर जगह बदन टटोली। लेकिन फ़िर भी दुर्घटनायें हैं कि घट ही जाती हैं। बेतुकेपन के बावजूद ये कविता पंक्ति याद आती है:
तस्वीर पर जड़े हैं
ब्रह्मचर्य के नियम और
उसी तस्वीर के पीछे
एक चिड़िया बच्चा दे जाती है।
इस बीच मैं पास में ही रहने वाले अपने सीनियर अग्निहोत्री जी से मिलकर आता हूं। चाय के बहाने उनकी बहू तमाम तरह का नास्ता करा देती है। सास-ससुर अपनी बहू की खूब सारी तारीफ़ करते हैं। अग्निहोत्री जी तमाम किस्से सुनाते हैं। एक महाप्रबंधक ने किसी गलती पर उनके एक स्टॉफ़ को निलम्बित करने का आदेश दिया। अग्निहोत्रीजी ने उनसे कहा- साहब गलती तो हुई है लेकिन इसके लिये आपका उस स्टॉफ़ को निलम्बित करना शेर के द्वारा मेढक का शिकार करने जैसा है। इसी बात पर खुश होकर उन्होंने निलम्बन रद्द कर दिया। उन्हीं महाप्रबंधक ने एक दिन उनको फ़ोन किया और कहा- अग्निहोत्री मैं इस समय हजरतगंज में लाल बत्ती की गाड़ी में घूम रहा हूं। मैंने जिन्दगी में इस बात की कभी कल्पना नहीं थी। सोचा यह बात किससे शेयर करूं तो तुम्हारी याद आयी और तुमको फ़ोन किया।
आदमी कितनी भी ऊंची पोस्ट पर पहुंच जाये उसके अंदर तमाम मासूम ख्वाहिशें बनी रहती हैं। हमारे अंदर कुछ बचपना हमेशा बना रहता है।
घर लौटते हुये कार का एअर कंडीशनर चालू कर देता हूं। वही सीली हवा बार-बार घूमती रहती है। बाहर गरम हवा फ़ेंकती है कार। दुनिया में वातानुकूलन बढ़ता जा रहा है। धरती गर्म हो रही है। दुनिया भर में न जाने कित्ती बहसें एअरकंडीशनर कमरों/हालों में होती हैं। धरती को ठंडा करने के उपाय उसको गरम करते हुये सोचे जाते हैं। जिसे देखो वह कहने लगता कि नष्ट हो जायेगी धरती इस तरह एक दिन।
मैं सोचता हूं कि धरती क्या नष्ट हो जायेगी। उसके लिये तो मानव और तमाम लोगों की तरह एक जानवर है। जब डायनोसर खतम हुये तब भी धरती न नष्ट हुई। तमाम तरह के जानवर नष्ट हुये, वनस्पतियां खतम हो गयीं तब भी धरती न नष्ट हुई तो आदमी के नष्ट होने से क्या खतम होगी! उसके लिये यह तो केवल बदलाव होगा। शायद रोचक भी हो कि उसकी छाती पर मूंग दलने वाले कम हुये। उसके दूसरे बच्चों को आजादी मिली। 6000 किलोमीटर की त्रिज्या वाली पृथ्वी के एकाध -दो, दस-बीस मिलोमीटर को बरबाद करके हम सोचते हैं कि धरती खतम हो जायेगी। धरती जब हिम युग में न खतम हुई, आग के गोले के समय न खतम हुई तो जरा सा ताममान बढ़ने से खतम हो जायेगी भला।
हम अपने को सब कुछ मानकर सबके खात्मे की बात करने लगते हैं। यह दीवार पर चढ़ती एक चींटी की सोच की तरह है जिसके पर निकल आये हैं और वह सोचती है अब तो दुनिया खतम हो जायेगी।
अजब चिरकुटई है। है कि नहीं! बताइये भला।
Posted in बस यूं ही | 37 Responses
………. bilkul man ki baat hai.
itti me breakfast ho liya samjhen. dinner chittha charcha se poori hohi.
thanks…….
पसंद आया.
चकाचक लाइनें हैं… पसन्द का चटका वाली सुविधा खत्म हो गई है वरना… छोड़ता नहीं आपको…
सुरेश चिपलूनकर की हालिया प्रविष्टी..स्विस बैंक से 180 देशों के हजारों खातों की जानकारी चोरी… ईमानदार प्रधानमंत्री जी- कुछ कीजिये… Swiss Bank Client list hacked
बड़े दिनों बाद अपने रंग में दिखे हैं…बरसात, पैसा, ब्रह्मचर्य, ग्लोबल वार्मिंग, ज़िंदगी-मौत क्या-क्या दर्शन नहीं है इस फुरसतिया पोस्ट में…
पैसे की चाह रपटीली होती है, लेकिन फिर भी ये गाना गाते हुए सबको उस राह पर दौड़ना पड़ता है…
आज रपट जाएं तो हमें न उठइयो,
हमें जो उठइयो तो खुद भी रपट जाइयो…
आपकी आज की पोस्ट पढ़ने के बाद बिल गेट्स याद आ गए…क्यों याद आ गए, आज रात को अपनी पोस्ट में लिखूंगा…
जय हिंद…
“कभी-कभी लगता है कि अपना सारा देश एक बहुत बड़ा मॉल होता। सबको यहां बुलाकर शामिल कर लिया जाता। सारी गरीबी,दुख, कष्ट दूर हो जाते।”
मेरी मनपसंद लाइनें–
-हमारे अंदर कुछ बचपना हमेशा बना रहता है।
-वही सीली हवा बार-बार घूमती रहती है। बाहर गरम हवा फ़ेंकती है कार। (हम सब भी तो यही कर रहे हैं)
-दुनिया की सारी सम्पत्ति सब लोगों में बराबर-बराबर बांट दी जाये
सच है. कभी-कभी तो ये बचपना ज़िद पर भी अड़ जाता है. इस बचपने के सहारे ही तो हम खुश हो पाते हैं.
“धरती को ठंडा करने के उपाय उसको गरम करते हुये सोचे जाते हैं। ”
आप तो सच्ची गम्भीर हो गये!!!
आप पर उदासी सूट नहीं करती फ़ुरसतिया जी, आप तो हंसते और हंसाते रहिए किसी की भी टांग खींचें, मंजूर है…….लेकिन इतना गम्भीर चिंतन, वो भी गम्भीरता के साथ??? न.
बिग बाज़ार में साथ साथ क्यों नहीं जाते …दिल बैठता है क्या …हमें भी डरा दिया !
सारी संपत्ति दुनिया में बटवाने की सोच लिए …फिर डरा रहे हो सबको ! कितनी जमापूंजी बची रिटायरमेंट के बाद गुजारे को …यह तो बताया ही नहीं !
आज कल बड़ी खतरनाक पोस्टें लिख रहे हो फुर्सत में गुरु …उखड़े मूड से लिखी पोस्ट से भी अपना काम कर जाते हो !
जय गुरुदेव
बरखा को निहारते मन में घुमड़ते विचारों की बढ़िया भेल बनी, कुछ खट्टी, कुछ मीठी पर मजेदार।
देखा जाये तो पोस्ट मस्त है,
किन्तु पीछे कहीं पर लेखक पस्त है ।
नाश हो बिग बाज़ार का, क्या बहुत पैसे खींच लिये ?
मन में घुमड़ रही वर्ग-असमानता नें मन को सींच दिये ?
किसी की गर्मी निकली, और दर्शन थोप दिया ए.सी. पर !
फुरस्तिया की जबरई बनी रहे, धरती खतम हो सो बेहतर !
उड़ी बाबा, अमारा ईश टीप्पनी से कोबिता का माफ़िक बू आता !
शोत्ती, हमने नहीं बनाया, ई तुकाराम ईशमें कईसे घुस आता !
आखिर आदमी कितनी भी ऊंची पोस्ट पर पहुंच जाये उसके अंदर तमाम मासूम ख्वाहिशें बनी रहती हैं।
पर …
वन्दना जी से सहमत।
अनूप जी आपकी पहचान ब्लॉग जगत के परसाई के रूप में है। अज्ञेय सा इतना गम्भीर चिंतन, वो भी गम्भीरता के साथ?
@
तस्वीर पर जड़े हैं
ब्रह्मचर्य के नियम और
उसी तस्वीर के पीछे
एक चिड़िया बच्चा दे जाती है।
— कविता पढ़ कर तो मैं एकबारगी चौक गया .. आपके फ्लेवर पर यह फ़िक्र-मंदी ! का हुआ है ?
लेकिन रसबदल भी जरूरी है पर क्या किया जाय पब्लिक तो उसी फ़ुरसतिया की तलबगार है ! ” मौज देन के कारने फ़ुरसतिया धरा शरीर ” , यही समझिये !!
इसलिए केवल सूचना दे रही हूँ कि… पढ़ लिया….
जय हो फुरसतिया महराज की…।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..वर्धा में ब्लॉगर सम्मेलन की तिथि दुबारा नोट कीजिए…
‘स्लाइस ऑफ़ लाइफ’ पोस्ट
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..बी जे पी की इतनी आलोचना क्यूँ होती है
फुरसतिया चच्चा ! आपको पढना हमेशा ही मजेदार रहा है और आज भी ठीक वैसा ही पाया.
आपको पत्नी और बच्चा बिग बाजार में पैसे बरबाद करने गये हैं.
होता होगा हम कुंवारे क्या जानें ! (कुंवारे होने का दर्द )
चिड़िया के बच्चे, वर्षा, लहराती हुई बाइक…..सब कमाल.
ई-गुरु राजीव की हालिया प्रविष्टी..वर्ड वेरिफिकेशन क्या है और कैसे हटायें
परसाई कभी शिक्षाप्रद नहीं लगे.
E-Guru Rajeev की हालिया प्रविष्टी..वर्ड वेरिफिकेशन क्या है और कैसे हटायें
यह बात बहुत सही कही है आप ने ..अभी हाल ही में भारत से एक बड़े केन्द्रीय संस्थान के निदेशक का हमारे घर आना हुआ ,बहुत आश्चर्य हुआ जब उन्हें मैंने अपने बेटे की आर्चीस [कार्टून किताबें]पढते हुए देखा,और तो और वो सफर में पढ़ने के लिए कुछ अपने साथ ले भी गए!सुना ही करते थे कि आदमी जितना बूढा होता है उतना ही बच्चा होता जाता है.:)
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चिड़िया के बच्चे और चिड़िया का मिलन ,मोटर सायकिल सवार की सुरक्षा के प्रति चिंता..आदि आप की बातें पोस्ट में विविधता ला रही हैं..साथ ही आप के संवेदनशील हृदय का परिचय भी देती हैं.
हाँ..धरती खतम नहीं होगी ..चिंता न करीए …आदमी खुद को बदलाव के अनुकूल बना ही लेगा
प्रमेन्द्र प्रताप सिंह की हालिया प्रविष्टी..प्रमेन्द्र प्रताप सिंह- अधिवक्ता इलाहाबाद उच्च न्यायालय
shefali की हालिया प्रविष्टी..लाल- बॉल और पॉल
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..एक सपने का लोचा लफड़ा…