भ्रष्ट हमारे
कल की पोस्ट पर टिपियाते हुये डा.आराधना ने कहा:
कुल मिलाकर, पोस्ट कुछ अधूरी सी लगी. नमक कम है या हींग डालना भूल गए हैं या धनिया पत्ती नहीं डाली. कुछ तो कमी है.
हमें लगा इस मसले पर और कुछ लिखने का स्कोप बनता है। एक मासूम बहाना कि
डा.अनुराधा की मांग पर नमक, हींग, धनिया पत्ती मिलाकर येल्लीजिये नई डिस
हाजिर है।
भ्रष्टाचार की महिमा अनन्त है। जहां जीवन है वहां किसी न किसी रूप में
यह विद्यमान है। कहीं कम कहीं ज्यादा। भ्रष्टाचार हमेशा रहा है, रहेगा। कम
या ज्यादा हो सकता है लेकिन खतम नहीं होगा।
इस बारे में आगे फ़िर कभी कहा जायेगा। फ़िलहाल तो आप यह कथा बांचिये।
देखिये कि कैसे भ्रष्टाचार में आकंड डूबे लोग ही भ्रष्टाचार के खिलाफ़
मोर्चा संभालने का नाटक करते हैं। भ्रष्टाचार को खादी-पानी-रसद पहुंचाने
वाले लोग ही उसकी जड़ को उखाड़ने का पोज बनाते हुये फ़ोटो सेशन करते हैं। बहुत
झाम है। फ़िलहाल तो आप यह देख लीजिये। रिठेल है इसलिये जो पढ़ चुकें हैं वे
इसे अपनी जिम्मेदारी पर पढ़ें।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे
कुछ देर बाद मैंने पाया कि मैं एक सभा में हूं। मेरे चारो तरफ लटके
चेहरों का हुजूम है। मैंने लगभग मान लिया था कि मैं किसी शोकसभा में हूं।
पर मंच से लगभग दहाड़ती हुई ओजपूर्ण आवाज ने मेरा विचार बदला। मुझे लगा कि
शायद कोई वीर रस का कवि कविता ललकार रहा हो। पर यह विचार भी ज्यादा देर टिक
नहीं सका। मैंने कुछ न समझ पाने की स्थिति में यह तय माना कि हो न हो कोई
महत्वपूर्ण सभा हो रही हो.
मेरा असमंजस अधिक देर तक साथ नहीं दे पाया। पता चला कि देश के शीर्षतम
भ्रष्टाचारियों का सम्मेलन हो रहा था। सभी की चिन्ता पिछले वर्ष के दौरान
घटते भ्रष्टाचार को लेकर थी। मुख्य वक्ता ‘
भ्रष्टाचार उन्नयन समिति’ का अध्यक्ष था। वह दहाड़ रहा था:-
मित्रों,आज हमारा मस्तक शर्म से झुका है। चेहरे पर लगता है किसी ने
कालिख पोत दी । हम कहीं मुंह दिखाने लायक न रहे। हमारे रहते पिछले साल देश
में भ्रष्टाचार कम हो गया। कहते हुये बड़ा दुख होता है कि विश्व के तमाम
पिद्दी देश हमसे भ्रष्टाचार में कहीं आगे हैं। दूर क्यों जाते हैं पड़ोस में
बांगलादेश, जिसे अभी कल हमने ही आजाद कराया वो, आज हमें भ्रष्टाचार में
पीछे छोड़कर सरपट आगे दौड़ रहा है।
मित्रों ,यह समय आत्ममंथन का है। विश्लेषण का है। आज हमें विचार करना है
कि हमारे पतन के बुनियादी कारण क्या हैं ?आखिर हम कहां चूके ?क्या वजह है
कि आजादी के पचास वर्ष बाद भी हम भ्रष्टाचार के शिखर तक नहीं पहुंचे।
दुनिया के पचास देश अभी भी हमसे आगे हैं । क्या मैं यही दिन देखने के लिये
जिन्दा हूं? हाय भगवान तू मुझे उठा क्यों नहीं लेता?
कहना न होगा वीर रस से मामला करुण रस पर पहुंच चुका था। वक्ता पर
भावुकता का हल्ला हुआ। उसका गला और वह खुद भी बैठ गया। श्रोताओं में
तालियों का हाहाकार मच गया।
कहानी कुछ आगे बढती कि संचालक ने कामर्शियल ब्रेक की घोषणा कर दी।
बताया कि कार्यक्रम किन-किन लोगों द्घारा प्रायोजित थे। प्रायोजकों में
व्यक्तियों नहीं वरन् घोटालों का जलवा था। स्टैम्प घोटाला,यू टी आई घोटाला
आदि युवा घोटालों के बैनरों में आत्मविश्वास की चमक थी। पुराने,कम कीमत के
घोटाले हीनभावना से ग्रस्त लग रहे थे। अकेले दम पर सरकार पलट देने वाले
निस्तेज बोफोर्स घोटाले को देखकर लगा कि किस्मत भी क्या-क्या गुल खिलाती
है।
कामर्शियल ब्रेक लंबा खिंचता पर
‘भ्रष्टाचार कार्यशाला’
का समय हो चुका था। कार्यशाला में जिज्ञासुओं की शंकाओं का समाधान होना
था। शंका समाधान प्रश्नोत्तर के रूप में हुआ। कुछ शंकायें और उनके समाधान
निम्नवत हैं:-
सवाल:गतवर्ष की अपेक्षा भ्रष्टाचार में पिछङने के क्या कारण हैं?आपकी नजरों में कौन इस पतन के लिये जिम्मेंदार है?
जवाब:अति आत्म विश्वास,अकर्मण्यता,लक्ष्य के प्रति समर्पणका अभाव मुख्य कारण रहे पिछड़ने के। इस पतन के लिये हम सभी दोषी हैं।
सवाल:आपका लक्ष्य क्या है?
जवाब: देश को भ्रष्टाचार के शिखर पर स्थापित करना।
सवाल:कैसे प्राप्त करेंगे यह लक्ष्य?
जवाब:हम जनता को जागरूक बनायेंगे।
इस भ्रम ,दुष्प्रचार को दूर करेंगे कि भ्रष्टाचार अनैतिक,अधार्मिक है। जब
भगवान खुद चढावा स्वीकार करते हैं तो भक्तों के लिये यह अनैतिक कैसे होगा?
सवाल: तो क्या भ्रष्टाचार का कोई धर्म से संबंध है?
जवाब:एकदम है.बिना धर्म के
भ्रष्टाचारी का कहां गुजारा? जो जितना बडा भ्रष्टाचारी है वो उतना बडा
धर्मपारायण है। मैं रोज पांच घंटे पूजा करता हूं। कोई देवी-देवता ऐसा नहीं
जिसकी मैं पूजा न करता हूं। भ्रष्टाचार भी एक तपस्या है।
सवाल:तो क्या सारे धार्मिक लोग भ्रष्ट होते हैं?
जवाब:काश ऐसा होता! मेरा कहने का
मतलब है कि धर्मपारायण व्यक्ति का भ्रष्ट होना कतई जरूरी नहीं है । परन्तु
एक भ्रष्टाचारी का धर्मपारायणहोना अपरिहार्य है।
सवाल:कुछ प्रशिक्षण भी देते हैं आप?
जवाब:हां नवंबर माह में देश भर में जोर-शोर से आयोजित होने वाले सतर्कता सप्ताह में हर सरकारी विभाग में अपने स्वयंसेवकों को भेजते हैं।
सवाल:सो किसलिए?
जवाब:असल में वहां भ्रष्टाचार
उन्मूलन के उपाय बताये जाने का रिवाज है,सारे पुराने उपाय तो हमें पता हैं
पर कभी कोई नया उपाय बताया जाये तो उसके लागू होने के पहले ही हम उसकी काट
खोज लेते हैं। गफलत में नहीं रहते हम। कुछ नये तरीके भी पता चलते हैं घपले
करने के।
सवाल:आपके सहयोगी कौन हैं?
जवाब:वर्तमान व्यवस्था।
नेता,अपराधी,कानून का तो हमें सक्रिय सहयोग काफी पहले से मिलता रहा है। इधर
अदालतों का रुख भी आशातीत सहयोगत्मक हुआ है। कुल मिलाकर माहौल भ्रष्टाचार
के अनुकूल है।
सवाल:जो बीच-बीच में आपके कर्मठ,समर्पित भ्रष्टाचारी पकड़े जाते हैं उससे आपके अभियान को झटका नहींलगता?
जवाब:झटका कैसा? यह तो हमारे प्रचार अभियान का हिस्सा एक है
। इसके माध्यम से हम लोगों को बताते हैं कि देखो कितनी संभावनायें हैं इस
काम में। लोग जो पकड़े जाते हैं वो लोगों के रोल माडल बनते हैं। हमारा विजय
अभियान आगे बढता है.
सवाल:आपकी राह में सबसे बडा अवरोध क्या है भ्रष्टाचार के उत्थान की राह में?
जवाब: जनता । अक्सर जनता नासमझी
में यह समझने लगती कि हम कोई गलत काम कर रहे हैं। हालांकि आज तस्वीर उतनी
बुरी नहीं जितनी आज से बीस साल पहले थी। आज लोग इसे सहज रूप में लेते हैं।
यह अपने आप में उपलब्धि है।
सवाल: क्या आपको लगता है कि आप अपने जीवन काल में भ्रष्टाचार के शिखर तक देश को पहुंचा पायेंगे?
जवाब:उम्मीद पर दुनिया कायम है।
मेरा रोम-रोम समर्पित है भ्रष्टाचार के उत्थान के लिये। मुझे पूरी आशा कि
हम जल्द ही तमाम बाधाओं को पार करके मंजिल तक पहुंचेंगे।
अभी कार्यशाला चल ही रही थी कि शोर सुनायी दिया। आम जनता
जूते,चप्पल,झाड़ू-पंजा आदि परंपरागत हथियारों से लैस भ्रष्टाचारियों की तरफ
आक्रोश पूर्ण मुद्रा में बढी आ रही थी। कार्यशाला का तंबू उखड़ चुका था।
बंबू बाकी था। हमने शंका समाधान करने वाले महानुभाव की प्रतिक्रिया जानने
के लिये उनकी तरफ देखा पर तब तक देर हो चुकी थी। वो महानुभाव जनता का
नेतृत्व संभाल चुके थे- ‘
मारो ससुरे भ्रष्टाचारियों ‘को चिल्लाते हुये भ्रष्टाचारियों को पीटने में जुट गये थे।
हल्ले से मेरी नींद टूट गयी। मुझे लगा शिखर बहुत दूर नहीं है।
मेरी पसंद
विवेक मिश्र
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , एक दूजे को दोनों प्यारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , अंधे लूले हैं यहाँ सारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , राज पथों पर हैं अंधियारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , होते रोज हैं वारे – न्यारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , जिंदाबाद कहो मिल सारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , जब बँटे रेवड़ी खाए सारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , कलयुग के दोनों है मारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , जो अपने वो हमें दुलारे ।
विवेक मिश्र की पोस्ट से साभार
प्रणाम.
क्या बात है ,अनूप जी
भ्रष्टाचार की ऐसी व्याख्या और भ्रष्टाचारियों से साक्षात्कार
मज़ा आ गया ,लेकिन हालात की गंभीरता का भी एहसास हुआ
जीवन मूल्यों में आई गिरावट चिंतित कर गई और शायद हमें जगाने का काम भी कर दिया गया इसी बहाने
बहुत उम्दा!
सपने शाही देखते हो गुरु …मैं भी वहीं था ! जब मारो भ्रष्ट चारियों को सुना…. मैं आपको छोड़ भाग गया ……..
भागते भागते देखा भीड़ ने आपको घेर रखा था …कुछ अधिक तो नहीं लगी गुरुदेव ??
जे एन यू पंहुचने से एक घंटे पहले फोन जरूर कर देना ! बुड्ढा कई बार भूल जाता है…चाय साथ साथ पियेंगे वाइन ग्लास में !
वादा रहा
satish saxena की हालिया प्रविष्टी..कैसे समझाऊँ मैं तुमको पीड़ा का सुख होता क्या -सतीश सक्सेना
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..इक नज़र जिंदगी
Almost no.1 par hi hain hum bhrasht rashtro me.. lage raho bhrashtachariyo…
Khair, ek baar fir.. maza aa gaya!
Rashmi Swaroop की हालिया प्रविष्टी..जब मैं फ़ुरसत ‘कमा’ लूँगी
वैसे सोचिये गर हर आदमी सच्चा ओर ईमानदार हो जाए ……तो मुसीबते कितनी हो जायेगी दुनिया में …..सचाई के भी तो कुछ साइड इफेक्ट्स होते है न ?
तुम दो मारो, हम छै मारें।
व्यक्तित्व का यही दोहराव तो भ्रष्टाचारियों की पहचान है. शानदार पोस्ट. धन्यवाद अनुराधा जी को. वैसे हमें पुरानी पोस्ट भी अपने आप में पूरी ही लगी थी.
वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..नन्हे मेले के मुन्ने दुकानदार
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..फंडा बाबा
aradhana की हालिया प्रविष्टी..चाकू एक कहानी
जिसको देखो वही त्रस्त है ।
जलती लू सी फिर उम्मीदें
मगर सियासी हवा मस्त है ।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..शिवस्वरोदय-22
वो मारे पहला चप्पल जिसने भ्रष्टाचार न किया हो! अन्यथा यह देश भ्रष्टाचारी इस लिये है कि यहां भ्रष्टाचार को सामाजिक स्वीकृति मिली हुई है।
Gyan Dutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..सुरेश जोसेफ
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगिंग- ये रोग बड़ा है जालिम
अरे नहीं सा’ब, यह तो लोकसभा है
कुल मिलाकर यही बात सही लगी ।
शरद कोकास की हालिया प्रविष्टी..ठंड के दिन भी कितने मज़ेदार होते हैं
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बढ़िया पोस्ट बधाई!
यह हमारी आकाशगंगा है,
सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
उनमें से एक है पृथ्वी,
जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां…
-डॉ एपीजे अब्दुल कलाम
नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो…
जय हिंद…
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