Friday, December 31, 2010

फ़ेसबुक स्टेटस 2010

अल्लेव ई ससुरा सोमवार आ धमका! चल भाग भाग चलें दफ़्तर की ओर! (05-04-10)

इतवार की निश्चिंतता देखकर लगता है कि हर दिन थोड़ा-थोडा इतवार मिला देना चाहिये! (04-04-10)

सुबह-सुबह चाय पीकर बैठ गये लैपटाप लेकर। इधर-उधर न जाने किधर-किधर टहल रहे हैं! (04-04-10)

फ़ेसबुक में भी क्या-क्या बमचक मची रहती है! (03-04-10)



 

Tuesday, December 14, 2010

हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे

http://web.archive.org/web/20140209203014/http://hindini.com/fursatiya/archives/1786

हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे

भ्रष्ट हमारे भ्रष्ट हमारे
कल की पोस्ट पर टिपियाते हुये डा.आराधना ने कहा:
कुल मिलाकर, पोस्ट कुछ अधूरी सी लगी. नमक कम है या हींग डालना भूल गए हैं या धनिया पत्ती नहीं डाली. कुछ तो कमी है.
हमें लगा इस मसले पर और कुछ लिखने का स्कोप बनता है। एक मासूम बहाना कि डा.अनुराधा की मांग पर नमक, हींग, धनिया पत्ती मिलाकर येल्लीजिये नई डिस हाजिर है।
भ्रष्टाचार की महिमा अनन्त है। जहां जीवन है वहां किसी न किसी रूप में यह विद्यमान है। कहीं कम कहीं ज्यादा। भ्रष्टाचार हमेशा रहा है, रहेगा। कम या ज्यादा हो सकता है लेकिन खतम नहीं होगा।
इस बारे में आगे फ़िर कभी कहा जायेगा। फ़िलहाल तो आप यह कथा बांचिये। देखिये कि कैसे भ्रष्टाचार में आकंड डूबे लोग ही भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मोर्चा संभालने का नाटक करते हैं। भ्रष्टाचार को खादी-पानी-रसद पहुंचाने वाले लोग ही उसकी जड़ को उखाड़ने का पोज बनाते हुये फ़ोटो सेशन करते हैं। बहुत झाम है। फ़िलहाल तो आप यह देख लीजिये। रिठेल है इसलिये जो पढ़ चुकें हैं वे इसे अपनी जिम्मेदारी पर पढ़ें।

हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे

कुछ देर बाद मैंने पाया कि मैं एक सभा में हूं। मेरे चारो तरफ लटके चेहरों का हुजूम है। मैंने लगभग मान लिया था कि मैं किसी शोकसभा में हूं। पर मंच से लगभग दहाड़ती हुई ओजपूर्ण आवाज ने मेरा विचार बदला। मुझे लगा कि शायद कोई वीर रस का कवि कविता ललकार रहा हो। पर यह विचार भी ज्यादा देर टिक नहीं सका। मैंने कुछ न समझ पाने की स्थिति में यह तय माना कि हो न हो कोई महत्वपूर्ण सभा हो रही हो.
मेरा असमंजस अधिक देर तक साथ नहीं दे पाया। पता चला कि देश के शीर्षतम भ्रष्टाचारियों का सम्मेलन हो रहा था। सभी की चिन्ता पिछले वर्ष के दौरान घटते भ्रष्टाचार को लेकर थी। मुख्य वक्ता ‘भ्रष्टाचार उन्नयन समिति’ का अध्यक्ष था। वह दहाड़ रहा था:-
मित्रों,आज हमारा मस्तक शर्म से झुका है। चेहरे पर लगता है किसी ने कालिख पोत दी । हम कहीं मुंह दिखाने लायक न रहे। हमारे रहते पिछले साल देश में भ्रष्टाचार कम हो गया। कहते हुये बड़ा दुख होता है कि विश्व के तमाम पिद्दी देश हमसे भ्रष्टाचार में कहीं आगे हैं। दूर क्यों जाते हैं पड़ोस में बांगलादेश, जिसे अभी कल हमने ही आजाद कराया वो, आज हमें भ्रष्टाचार में पीछे छोड़कर सरपट आगे दौड़ रहा है।
मित्रों ,यह समय आत्ममंथन का है। विश्लेषण का है। आज हमें विचार करना है कि हमारे पतन के बुनियादी कारण क्या हैं ?आखिर हम कहां चूके ?क्या वजह है कि आजादी के पचास वर्ष बाद भी हम भ्रष्टाचार के शिखर तक नहीं पहुंचे। दुनिया के पचास देश अभी भी हमसे आगे हैं । क्या मैं यही दिन देखने के लिये जिन्दा हूं? हाय भगवान तू मुझे उठा क्यों नहीं लेता?
कहना न होगा वीर रस से मामला करुण रस पर पहुंच चुका था। वक्ता पर भावुकता का हल्ला हुआ। उसका गला और वह खुद भी बैठ गया। श्रोताओं में तालियों का हाहाकार मच गया।
कहानी कुछ आगे बढती कि संचालक ने कामर्शियल ब्रेक की घोषणा कर दी। बताया कि कार्यक्रम किन-किन लोगों द्घारा प्रायोजित थे। प्रायोजकों में व्यक्तियों नहीं वरन् घोटालों का जलवा था। स्टैम्प घोटाला,यू टी आई घोटाला आदि युवा घोटालों के बैनरों में आत्मविश्वास की चमक थी। पुराने,कम कीमत के घोटाले हीनभावना से ग्रस्त लग रहे थे। अकेले दम पर सरकार पलट देने वाले निस्तेज बोफोर्स घोटाले को देखकर लगा कि किस्मत भी क्या-क्या गुल खिलाती है।
कामर्शियल ब्रेक लंबा खिंचता पर ‘भ्रष्टाचार कार्यशाला’ का समय हो चुका था। कार्यशाला में जिज्ञासुओं की शंकाओं का समाधान होना था। शंका समाधान प्रश्नोत्तर के रूप में हुआ। कुछ शंकायें और उनके समाधान निम्नवत हैं:-
सवाल:गतवर्ष की अपेक्षा भ्रष्टाचार में पिछङने के क्या कारण हैं?आपकी नजरों में कौन इस पतन के लिये जिम्मेंदार है?
जवाब:अति आत्म विश्वास,अकर्मण्यता,लक्ष्य के प्रति समर्पणका अभाव मुख्य कारण रहे पिछड़ने के। इस पतन के लिये हम सभी दोषी हैं।
सवाल:आपका लक्ष्य क्या है?
जवाब: देश को भ्रष्टाचार के शिखर पर स्थापित करना।
सवाल:कैसे प्राप्त करेंगे यह लक्ष्य?
जवाब:हम जनता को जागरूक बनायेंगे। इस भ्रम ,दुष्प्रचार को दूर करेंगे कि भ्रष्टाचार अनैतिक,अधार्मिक है। जब भगवान खुद चढावा स्वीकार करते हैं तो भक्तों के लिये यह अनैतिक कैसे होगा?
सवाल: तो क्या भ्रष्टाचार का कोई धर्म से संबंध है?
जवाब:एकदम है.बिना धर्म के भ्रष्टाचारी का कहां गुजारा? जो जितना बडा भ्रष्टाचारी है वो उतना बडा धर्मपारायण है। मैं रोज पांच घंटे पूजा करता हूं। कोई देवी-देवता ऐसा नहीं जिसकी मैं पूजा न करता हूं। भ्रष्टाचार भी एक तपस्या है।
सवाल:तो क्या सारे धार्मिक लोग भ्रष्ट होते हैं?
जवाब:काश ऐसा होता! मेरा कहने का मतलब है कि धर्मपारायण व्यक्ति का भ्रष्ट होना कतई जरूरी नहीं है । परन्तु एक भ्रष्टाचारी का धर्मपारायणहोना अपरिहार्य है।
सवाल:कुछ प्रशिक्षण भी देते हैं आप?
जवाब:हां नवंबर माह में देश भर में जोर-शोर से आयोजित होने वाले सतर्कता सप्ताह में हर सरकारी विभाग में अपने स्वयंसेवकों को भेजते हैं।
सवाल:सो किसलिए?
जवाब:असल में वहां भ्रष्टाचार उन्मूलन के उपाय बताये जाने का रिवाज है,सारे पुराने उपाय तो हमें पता हैं पर कभी कोई नया उपाय बताया जाये तो उसके लागू होने के पहले ही हम उसकी काट खोज लेते हैं। गफलत में नहीं रहते हम। कुछ नये तरीके भी पता चलते हैं घपले करने के।
सवाल:आपके सहयोगी कौन हैं?
जवाब:वर्तमान व्यवस्था। नेता,अपराधी,कानून का तो हमें सक्रिय सहयोग काफी पहले से मिलता रहा है। इधर अदालतों का रुख भी आशातीत सहयोगत्मक हुआ है। कुल मिलाकर माहौल भ्रष्टाचार के अनुकूल है।
सवाल:जो बीच-बीच में आपके कर्मठ,समर्पित भ्रष्टाचारी पकड़े जाते हैं उससे आपके अभियान को झटका नहींलगता?
जवाब:झटका कैसा? यह तो हमारे प्रचार अभियान का हिस्सा एक है
। इसके माध्यम से हम लोगों को बताते हैं कि देखो कितनी संभावनायें हैं इस काम में। लोग जो पकड़े जाते हैं वो लोगों के रोल माडल बनते हैं। हमारा विजय अभियान आगे बढता है.
सवाल:आपकी राह में सबसे बडा अवरोध क्या है भ्रष्टाचार के उत्थान की राह में?
जवाब: जनता । अक्सर जनता नासमझी में यह समझने लगती कि हम कोई गलत काम कर रहे हैं। हालांकि आज तस्वीर उतनी बुरी नहीं जितनी आज से बीस साल पहले थी। आज लोग इसे सहज रूप में लेते हैं। यह अपने आप में उपलब्धि है।
सवाल: क्या आपको लगता है कि आप अपने जीवन काल में भ्रष्टाचार के शिखर तक देश को पहुंचा पायेंगे?
जवाब:उम्मीद पर दुनिया कायम है। मेरा रोम-रोम समर्पित है भ्रष्टाचार के उत्थान के लिये। मुझे पूरी आशा कि हम जल्द ही तमाम बाधाओं को पार करके मंजिल तक पहुंचेंगे।
अभी कार्यशाला चल ही रही थी कि शोर सुनायी दिया। आम जनता जूते,चप्पल,झाड़ू-पंजा आदि परंपरागत हथियारों से लैस भ्रष्टाचारियों की तरफ आक्रोश पूर्ण मुद्रा में बढी आ रही थी। कार्यशाला का तंबू उखड़ चुका था। बंबू बाकी था। हमने शंका समाधान करने वाले महानुभाव की प्रतिक्रिया जानने के लिये उनकी तरफ देखा पर तब तक देर हो चुकी थी। वो महानुभाव जनता का नेतृत्व संभाल चुके थे- ‘मारो ससुरे भ्रष्टाचारियों ‘को चिल्लाते हुये भ्रष्टाचारियों को पीटने में जुट गये थे।
हल्ले से मेरी नींद टूट गयी। मुझे लगा शिखर बहुत दूर नहीं है।

मेरी पसंद

विवेक मिश्र विवेक मिश्र
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , एक दूजे को दोनों प्यारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , अंधे लूले हैं यहाँ सारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , राज पथों पर हैं अंधियारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , होते रोज हैं वारे – न्यारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , जिंदाबाद कहो मिल सारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , जब बँटे रेवड़ी खाए सारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , कलयुग के दोनों है मारे ।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे , जो अपने वो हमें दुलारे ।
विवेक मिश्र की पोस्ट से साभार

27 responses to “हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे”

  1. sanjay
    अच्छा तो कुछ-कुछ बचाय रखे थे ….. और हमें पता नहीं चला ….. गजब्बे सबाल-जबाब दिए हैं ….
    प्रणाम.
  2. ismat zaidi
    वाह !
    क्या बात है ,अनूप जी
    भ्रष्टाचार की ऐसी व्याख्या और भ्रष्टाचारियों से साक्षात्कार
    मज़ा आ गया ,लेकिन हालात की गंभीरता का भी एहसास हुआ
    जीवन मूल्यों में आई गिरावट चिंतित कर गई और शायद हमें जगाने का काम भी कर दिया गया इसी बहाने
    बहुत उम्दा!
  3. satish saxena
    @ बड़े उस्ताद जी, अनूप शुक्ल
    सपने शाही देखते हो गुरु …मैं भी वहीं था ! जब मारो भ्रष्ट चारियों को सुना…. मैं आपको छोड़ भाग गया ……..
    भागते भागते देखा भीड़ ने आपको घेर रखा था …कुछ अधिक तो नहीं लगी गुरुदेव ??
    जे एन यू पंहुचने से एक घंटे पहले फोन जरूर कर देना ! बुड्ढा कई बार भूल जाता है…चाय साथ साथ पियेंगे वाइन ग्लास में !
    वादा रहा

    satish saxena की हालिया प्रविष्टी..कैसे समझाऊँ मैं तुमको पीड़ा का सुख होता क्या -सतीश सक्सेना
  4. काजल कुमार
    …और अंत में आपकी पसंद का जवाब नहीं.
  5. shikha varshney
    हमें तो पहली में भी नून मिर्ची सब ठीक ही लगा था :) इसमें भी सभी मसाले सही अनुपात में लग रहे हैं :)
    shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..इक नज़र जिंदगी
  6. Rashmi Swaroop
    Awesome hai sir !
    Almost no.1 par hi hain hum bhrasht rashtro me.. lage raho bhrashtachariyo…
    Khair, ek baar fir.. maza aa gaya!
    :)
    Rashmi Swaroop की हालिया प्रविष्टी..जब मैं फ़ुरसत ‘कमा’ लूँगी
  7. dr.anurag
    पता नहीं शुक्ल जी….अजीब बात है वैसे रडिय काण्ड ओर उसके बाद मीडिया की भूमिका पर हिंदी ब्लोगों में भी कम लिखा गया है …..विनीत कुमार ओर मोहल्ला को छोड़कर …लोगो की टोलेरेंस पावर बढ़ गयी है शायद…विअसे हिन्दुतान अखबार ने सिलेवार कुछ लेख लिखे है पढ़कर आप ओर फ्रासट्रेटेड हो जाते है …..
    वैसे सोचिये गर हर आदमी सच्चा ओर ईमानदार हो जाए ……तो मुसीबते कितनी हो जायेगी दुनिया में …..सचाई के भी तो कुछ साइड इफेक्ट्स होते है न ?
  8. Anonymous
    पहली बार आपके ब्लाग पर आए हैं हम…भाई आप लाजवाब है…साधु-सा
  9. gustakh manjit
    पहली बार आपके ब्लॉग पर आया और मुरीद हो गया…
    1. eswami
      :)
  10. प्रवीण पाण्डेय
    हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे
    तुम दो मारो, हम छै मारें।
  11. वन्दना अवस्थी दुबे
    हमने शंका समाधान करने वाले महानुभाव की प्रतिक्रिया जानने के लिये उनकी तरफ देखा पर तब तक देर हो चुकी थी। वो महानुभाव जनता का नेतृत्व संभाल चुके थे- ‘मारो ससुरे भ्रष्टाचारियों ‘को चिल्लाते हुये भ्रष्टाचारियों को पीटने में जुट गये थे।
    व्यक्तित्व का यही दोहराव तो भ्रष्टाचारियों की पहचान है. शानदार पोस्ट. धन्यवाद अनुराधा जी को. वैसे हमें पुरानी पोस्ट भी अपने आप में पूरी ही लगी थी.
    वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..नन्हे मेले के मुन्ने दुकानदार
  12. Abhishek
    बढ़िया, ऐसी कार्यशाला परोक्ष रूप से हमेशा ही चल रही है. आजकल तो डिमांड भी बढ़ गया लगता है.
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..फंडा बाबा
  13. aradhana
    भ्रष्टाचार ऐसा मुद्दा है, जिस पर हँसकर भी हम दुखी हो जाते हैं. डॉ. अनुराग का कहना सही है कि लोगों की सहनशक्ति बढ़ रही है और हालिया घोटालों के बाद तो यही लगता है कि देश भ्रष्टाचार के शिखर पर पहुँच ही जाएगा और हम अफ़सोस भी नहीं कर पायेंगे.
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..चाकू एक कहानी
  14. मनोज कुमार
    सारा जीवन अस्‍त-व्‍यस्‍त है
    जिसको देखो वही त्रस्‍त है ।
    जलती लू सी फिर उम्‍मीदें
    मगर सियासी हवा मस्‍त है ।
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..शिवस्वरोदय-22
  15. Gyan Dutt Pandey
    ‘मारो ससुरे भ्रष्टाचारियों को’
    वो मारे पहला चप्पल जिसने भ्रष्टाचार न किया हो! अन्यथा यह देश भ्रष्टाचारी इस लिये है कि यहां भ्रष्टाचार को सामाजिक स्वीकृति मिली हुई है।
    Gyan Dutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..सुरेश जोसेफ
  16. सतीश चन्द्र सत्यार्थी
    थोड़ा दम धरिये… सब लोग मन से जुटे हैं.. शिखर तक जरुर पहुँच जायेंगे…
    सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगिंग- ये रोग बड़ा है जालिम
  17. chandra mouleshwerc
    `मैंने लगभग मान लिया था कि मैं किसी शोकसभा में हूं।’
    अरे नहीं सा’ब, यह तो लोकसभा है :)
  18. Anonymous
    वाह बहुत खूब. मजा आ गया सुबह की चाय की चुस्कियों का. कभी मेरे ब्लॉग ‘सारंगी’ पर भी तशरीफ़ लायें. शुक्रिया.
    1. eswami
      लिंक तो दीजिये!
  19. शरद कोकास
    ” जो जितना बडा भ्रष्टाचारी है वो उतना बडा धर्मपारायण है।”
    कुल मिलाकर यही बात सही लगी ।
    शरद कोकास की हालिया प्रविष्टी..ठंड के दिन भी कितने मज़ेदार होते हैं
  20. VMW Team
    भ्रष्टाचार में वाकई दम आ गया है क्या? जिसकी व्याख्या ज्ञानियों ने अपने-अपने ढंग से की है। यथा लूट, चोरी, डकैती, हत्या, झूठ, फरेब, धोखाधडी, विश्वासघात रिश्वतखोरी, हरामखोरी, लालच, छल …। जैस हरि के हजार नाम, वैसे भ्रष्टाचार के भी। भ्रष्टाचार में बहुत गुण हैं। बच्चा ईमानदारी से परीक्षा देगा तो मेरिट में पिछड़ जाएगा। भ्रष्टाचार की कृपा नहीं होती तो जिन्हें आज सलाखों के पीछे होना चाहिए, वे सदन की शोभा नहीं बढ़ाते? दफ्तरों में बाबुओं की मेज पर फाइल आगे नहीं सरकती? न्यायालय में पेशकार बिना भेंट के ही तारीख दे देता?
    पूरा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे http://vmwteam.blogspot.com और भ्रष्टाचार को नमस्कार!
    पर क्लिक करे………
    बढ़िया पोस्ट बधाई!
  21. Khushdeep Sehgal, Noida
    सुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
    यह हमारी आकाशगंगा है,
    सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
    कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
    आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
    किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
    मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
    आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
    मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
    उनमें से एक है पृथ्वी,
    जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
    इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
    भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
    मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
    भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
    एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
    नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
    शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
    यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां…
    -डॉ एपीजे अब्दुल कलाम
    नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो…
    जय हिंद…
    Khushdeep Sehgal, Noida की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगवुड के लिए नववर्ष पर 12 कामनाएंखुशदीप
  22. राहुल सिंह
    विनोबा भावे ने कहा था – ‘भ्रष्‍टाचार, शिष्‍टाचार बन गया है और र्इमानदारी विशिष्‍टाचार.
    राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..गिरोद
  23. संजय बेंगाणी
    आपके लिखे का असर है, देव. आए दिन नए घोटाले सामने आ रहे हैं. आपको शिकायत का मौका नहीं मिलेगा अब :) हम शिखर पर थे-हैं और रहेंगे. जय हिन्द!
  24. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे [...]
  25. संगीता पुरी
    भ्रष्‍टाचारियों से अधिक सवाल जबाब नहीं करना चाहिए !!

Monday, December 13, 2010

घपलों/घोटालों के व्यवहारिक उपयोग

http://web.archive.org/web/20140419215748/http://hindini.com/fursatiya/archives/1776

घपलों/घोटालों के व्यवहारिक उपयोग

आजकल देश में घपलों और घोटालों का हल्ला है। बमचक मची है। जिधर देखो उधर घपला दिखता है। घोटाला मिलता है। जुमलेबाज लोग कहने भी लगे हैं -भारत घोटाला प्रधान देश है।
मिशनरी चिंतितों को चिन्ता करने का बहाना मिल गया है। बहुत दिन तक वे आराम से देश की हालत पर चिन्तित हो सकते हैं। देश रसातल में जा रहा है। शायद रसातल कोई मुकाम हो जहां पहुंचकर देश आराम से सुस्तायेगा। चैन की सांस लेगा। कमर सीधी करेगा। फ़िर आगे कहीं के लिये बढ़ेगा।
लेकिन मैं मिशनरी आशावादी हूं। जब भी ऊपरी तौर पर खराब नजर आने वाली चीजें दिखती हैं तो उसका व्यवहारिक उपयोग की बात ध्यान में आती है। मुझे यह श्लोक याद आता है:
अमंत्रं अक्षरं नास्ति , नास्ति मूलं अनौषधं ।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ: ॥

(कोई अक्षर ऐसा नही है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो , कोई ऐसा मूल (जड़) नही है , जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नही होता , उसको काम मे लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं ।)
इसी तर्ज पर घपलों और घोटालों के कुछ व्यवहारिक उपयोग जो मुझे समझ में आते हैं वे इस तरह हैं:
  1. घपले और घोटाले हमारे देश की आर्थिक स्थिति के परिचायक हैं। बड़ा घपला मतलब मजबूत आर्थिक स्थिति। कभी 100 करोड़ रुपये से भी कम के बाफ़ोर्स घोटाले में सरकार पलट गयी थी। आज लाख करोड़ रुपये का घोटाले में सरकार हिलती नहीं। लाखों करोड़ के घोटाले हम ऐसे पचा जाते हैं जैसे हाजमोला की गोली। इससे साफ़ पता चलता है कि देश आर्थिक रूप से मजबूत हुआ है।
  2. आज बच्चे अक्षरज्ञान से पहले घोटाला ज्ञान पाते हैं। उनको बड़ी गिनती सिखाने के लिये इन घपलों का उपयोग किया जा सकता है। बाफ़ोर्स घोटाला मतलब सौ करोड़। ताबूत घोटाला मतलब हजार करोड़। स्पेक्ट्रम घोटाला मतलब लाख करोड़। स्विस बैंक घोटाला मतलब करोड़ों करोड़। बच्चे गिनतियों को तुलनात्मक रूप से बेहतर समझ सकेंगें इन घोटालों के माध्यम से।
  3. जिस क्षेत्र में कोई घपला होता है लोग उसके बारे में जानने के लिये उत्सुक होते हैं। स्पेक्ट्रम घोटाले के पहले स्पेक्ट्रम कौन चिड़िया का नाम है लोग जानते नहीं थे। इसके होते ही लोग स्पेक्ट्रम ज्ञान के लिये ललक उठे। चारा घोटाले के पहले बहुतों को पता ही नहीं होगा कि कहीं जानवरों को चारा भी दिया जाता है सरकार की तरफ़ से। घपले और घोटाले देश का सामान्य ज्ञान बढ़ाने में सहायक होते हैं। लोगों की उदासीनता तोड़कर चीजों को जानने की इच्छा पैदा करने के लिये घोटालों से बढ़कर कोई और चीज आज के जमाने में नहीं हो सकती।
  4. घपलों और घोटालों के माध्यम से छुट्टियों का जुगाड़ हो सकता है। जहां कहीं घपला हुआ वहां काम ठप्प करके घोटाले की जांच कराने की मांग करके कई दिन काम बंद रखकर धूप सेंकी जा सकती है। अगर कोई जांच बैठ गयी है तो उसको उठाकर दूसरी जांच बैठाने के लिये हल्ला मचाया जा सकता है। जब तक मन माफ़िक जांच बैठ जाये काम रोक कर छुट्टी मनाई जा सकती है।
  5. कौन बनेगा करोड़पति में कम्यूटर जी एक सवाल पूछ सकते हैं इन घोटालों को इनके बढ़ते क्रम में लगाइये। लोगों की सहज रुचि विकसित की जा सकती है अपने आसपास के घपलों के बारे में जानने की।
  6. घटनाओं को याद रखने के लिये घोटालों का उपयोग संदर्भ के रूप में किया जा सकता है। बाफ़ोर्स घोटाले से शुरू हुआ उनका प्रेम प्रसंग ताबूत कांड तक चला। उनकी शादी हवाला कांड के समय हुई थी और स्पेक्ट्रम घोटाला तक चली इसके बाद उन्होंने आपसी सहमति से तलाक ले लिया। उनका एक बच्चा भी है जो अलकतरा घोटाले के समय हुआ था।
  7. कभी-कभी लोग अपने को बहुत नीच और खराब समझने लगते हैं। उनको लगता है कि उनसे बड़ा देश कृतघ्न और कोई नहीं है। ऐसे कमजोर समय में बड़े घपले उनका अपराध बोध दूर करने में रामबाण साबित हो सकते हैं। सौ-पचास रुपये की घूस लेने वाला बाबू लाख करोड़ के घोटाले को याद करते हुये जिन्दगी भर अपने लिये पवित्रात्मा बना रह सकता है। खीरे का चोर अपने को हीरे के चोर से बेहतर समझते हुये ग्लानि मुक्त रह सकता है।
  8. हरामखोर और आलसी लोग आराम से घपलों और घोटालों के बारे में चर्चा-जुगाली करते हुये अपनी अनन्तकाल तक कामचोरी को जारी रख सकते हैं। अपने देश में अभी तक कामचोरी को भ्रष्टाचार का दर्जा नहीं मिला। यह सबसे बड़ा घपला है जो अभी तक आम जनता के संज्ञान में नहीं आया।
  9. लोग अपने बच्चों को सिखाते हुये कह सकते हैं कि जैसे हर पैदा हुआ आदमी मरने के बाद श्मशान जाता है वैसे ही हर घपले का पैसा स्विसबैंक पहुंचता है। घपले का पैसा वहीं जाकर सुकून पाता है।
  10. विज्ञान शिक्षा में ब्लैक होल की जानकारी देते हुये गुरुजी लोग बता सकते हैं जैसे ब्लैक होल दिखता नहीं लेकिन दिखने वाले पदार्थ के मुकाबले में भारी बहुत होता है वैसे ही काला पैसा भी सफ़ेद पैसे के मुकाबले में बहुत वजनी होता है। जैसे ब्लैक होल दिखता नहीं लेकिन अपने अंदर से प्रकाश तक को बाहर नहीं निकलने देता वैसे ही कालापैसा अपने पास से गुजरने वाले ईमान, धर्म, कर्तव्य, नियम,कानून को अपने अंदर ऐसे घसीट लेता है कि लगता ही नहीं कभी ये सब थे भी।
  11. यह हमारे देश में प्रतिस्पर्धा को बढावा देने का एक महत्वपूर्ण औजार है… हर बार एक नया चैलेंज सामने आता है कि पिछला लाख करोड़ का था तो अगला इस का दस गुना-बीस गुना होना चाहिये. यह एक बड़ी श्रेष्ठ तरकीब है देश के महान घोटालेबाजों को बढ़ावा देने के लिये. सौजन्य से एक भारतीय नागरिक
  12. घोटाले भाई-चारा को भी बढ़ावा देते हैं. ताबूत घोटाला वाले बोफोर्स वालों को कुछ नहीं कहेंगे. भाई-चारा बढ़ता जाएगा. सौजन्य से शिवकुमार मिश्र
  13. घोटालों का सबसे बड़ा फायदा राजनीतिक पार्टियों के बीच सद्‍भावपुर्ण माहौल विकसित करने के रूप में भी होता है। चूँकि सभी किसी न किसी घोटाले में फँसी होती हैं इसलिए अंदर से सभी एक दूसरे को नैतिक बल प्रदान करती रहती हैं। सौजन्य से सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
उपयोग और भी बहुत सारे हैं लेकिन ज्यादा ज्ञान बघारना हमको शोभा नहीं देता। मुझे पता है कि आपको इससे बेहतर उपाय पता होंगे इसलिये यहीं रुकता हूं। आप यह सब पढ़ते हुये थक गये होंगे इसलिये आपके श्रम को भुलाने के लिये आपको यह कथा सुनाता हूं। इसका सार यह है कि भष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ प्राणी जब पुलिस को आते देखता है तो भष्टाचार का काम कुछ क्षणों के लिये स्थगित करके भष्टाचार मिटाने के लिये नारे लगाने लगता है। हर जगह आप इसके उदाहरण देख सकते हैं। बहरहाल ज्यादा पचड़े में पढ़े बिना यह सत्यकथा बांचिये। यह सत्यकथा आज से छह साल पहले लिखी गयी थी लेकिन देखिये यह आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी छह साल पहले थी।

हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे

मेरी पसंद

समझते थे, मगर फिर भी न रखी दूरियां हमने
चिरागों को जलाने में जला ली उंगलियां हमने
कोई तितली हमारे पास आती भी तो क्या आती
सजाये उम्र भर कागज़ के फूल और पत्तियां हमने
यूं ही घुट घुट के मर जाना हमें मंज़ूर था लेकिन
किसी कमज़र्फ पर ज़ाहिर ना की मजबूरियां हमने
हम उस महफिल में बस एक बार सच बोले थे ए वाली
ज़ुबान पर उम्र भर महसूस की चिंगारियां हमने


वाली आसी

25 responses to “घपलों/घोटालों के व्यवहारिक उपयोग”

  1. भारतीय नागरिक
    आपने एक महत्वपूर्ण तथ्य तो छोड़ ही दिया. दर-असल यह हमारे देश में प्रतिस्पर्धा को बढावा देने का एक महत्वपूर्ण औजार है… हर बार एक नया चैलेंज सामने आता है कि पिछला लाख करोड़ का था तो अगला इस का दस गुना-बीस गुना होना चाहिये. यह एक बड़ी श्रेष्ठ तरकीब है देश के महान घोटालेबाजों को बढ़ावा देने के लिये.
  2. rachna
    तस्वीर बिटियाँ की हैं क्या ?? सुंदर लग रही हैं . हंसते हुए विद्रोह कम ही कर सकते . अगर बिटिया की नहीं हैं तो क्षमा
  3. sanjay
    जैसे ब्लैक होल दिखता नहीं लेकिन अपने अंदर से प्रकाश तक को बाहर नहीं निकलने देता वैसे ही कालापैसा अपने पास से गुजरने वाले ईमान, धर्म, कर्तव्य, नियम,कानून को अपने अंदर ऐसे घसीट लेता है कि लगता ही नहीं कभी ये सब थे भी।
    ………………………………………………..
    सब कुछ त आप खुद्दै कह देते हैं ….. कुछो ना बचा कहने को ………..
    प्रणाम.
  4. Suresh Chiplunkar
  5. satish saxena
    आप कहाँ घोटालों की चिंता करने लग जाते हो ब्लॉग जगत में कुछ नया …कुछ सुधार की गुंजाइश हो तो कुछ करें भी ….हम ब्लागर घोटाले कर नहीं सकते…करने वालों को गाली देते देते थक जाते हैं !
    शुभकामनायें आपको
  6. Shiv Kumar Mishra
    सुपर-डुपर पोस्ट!!
    वैसे घोटाले भाई-चारा को भी बढ़ावा देते हैं. ताबूत घोटाला वाले बोफोर्स वालों को कुछ नहीं कहेंगे. भाई-चारा बढ़ता जाएगा.
    Shiv Kumar Mishra की हालिया प्रविष्टी..चंदू-राडिया संवाद
  7. masijeevi
    गजब हमेशा की तरह।
    तस्‍वीर पर कुछ न कहेंगे… रचना ने कह दिया है।
  8. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    घोटालों का सबसे बड़ा फायदा राजनीतिक पार्टियों के बीच सद्‍भावपुर्ण माहौल विकसित करने के रूप में भी होता है। चूँकि सभी किसी न किसी घोटाले में फँसी होती हैं इसलिए अंदर से सभी एक दूसरे को नैतिक बल प्रदान करती रहती हैं।
    न्यूज चैनेलों को जितना फायदा इन घोटालों से हुआ है उतना तो क्रिकेट की खबरें दिखाने से भी नहीं हुआ होगा। अब पत्रकारिता के कोर्स में घोटाला विषय पर स्पेशलिस्ट डिग्रियाँ शुरू की जा सकती हैं। वीर संघवी और प्रभु चावला से ‘अंदर की बात’ निकालने की कला पर स्पेशल लेक्चर कराया जा सकता है। देश की युवा प्रतिभाओं को नीरा राडिया से कोचिंग करायी जा सकती है जो पी.आर. जॉब के नये कीर्तिमान बना सकते हैं।
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..पढ़ना- पढ़वाना और लिखना साथ-साथ…
  9. देवेन्द्र पाण्डेय
    ..बहुत खूब। लगता है नई पीढ़ी का कष्ट आप ही दूर करेंगे। आपकी लेखनी को प्रणाम।
  10. aradhana
    इति घोटाला कथा. काले धन की ब्लैक होल से तुलना खूब रही… ये लाइनें भी जबरदस्त हैं —
    “जिस क्षेत्र में कोई घपला होता है लोग उसके बारे में जानने के लिये उत्सुक होते हैं। स्पेक्ट्रम घोटाले के पहले स्पेक्ट्रम कौन चिड़िया है लोग जानते नहीं थे।”
    सीरियसली, ये बात तो बिल्कुल सही है कि जिस क्षेत्र में घोटाला होता है, उसकी जानकारी जनता को ऐवें ही हो जाती है. मीडिया रात-दिन उसके बारे में इतना बताता है कि उसका नाम ही सुनकर पूरा घटनाक्रम आँखों के आगे घूम जाता है.
    कुल मिलाकर, पोस्ट कुछ अधूरी सी लगी. नमक कम है या हींग डालना भूल गए हैं या धनिया पत्ती नहीं डाली. कुछ तो कमी है.
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..चाकू एक कहानी
  11. Abhishek
    इन फायदों पर आज से पहले किसी ने गौर नहीं किया होगा. बहुत सही.
    बालिका के चित्र पर भी कुछ प्रकाश डालें. ये छायावाद समझ नहीं आया :)
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..फंडा बाबा
  12. प्रवीण पाण्डेय
    अब हँसी बन्द होगी तो टिप्पणी भी दी जायेगी।
  13. वन्दना अवस्थी दुबे
    “घोटाले देश का सामान्य ज्ञान बढ़ाने में सहायक होते हैं।”
    “आज बच्चे अक्षरज्ञान से पहले घोटाला ज्ञान पाते हैं।”
    “जहां कहीं घपला हुआ वहां काम ठप्प करके घोटाले की जांच कराने की मांग करके कई दिन काम बंद रखकर धूप सेंकी जा सकती है”
    “घटनाओं को याद रखने के लिये घोटालों का उपयोग संदर्भ के रूप में किया जा सकता है”
    “खीरे का चोर अपने को हीरे के चोर से बेहतर समझते हुये ग्लानि मुक्त रह सकता है।”
    “अपने देश में अभी तक कामचोरी को भ्रष्टाचार का दर्जा नहीं मिला। ”
    “जैसे ब्लैक होल दिखता नहीं लेकिन अपने अंदर से प्रकाश तक को बाहर नहीं निकलने देता वैसे ही कालापैसा अपने पास से गुजरने वाले ईमान, धर्म, कर्तव्य, नियम,कानून को अपने अंदर ऐसे घसीट लेता है कि लगता ही नहीं कभी ये सब थे भी।”
    ग़ज़ब घपला-ज्ञान.
    इतने दिनों से इन्हीं सबूतों को इकट्ठा कर रहे थे आप? अच्छा है :). अब इन्हें बिन्दुवार समझाने में आसानी होगी. ये व्यावहारिक उपयोग पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने की अनुशंसा करते हैं हम :)
    वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..नन्हे मेले के मुन्ने दुकानदार
  14. shikha varshney
    बताइए ..कितने तो फायदे हैं घोटालों के और लोग है कि ऐसे ही हलकान हुए जाते हैं :) बहुत दिनों बाद बेहतरीन व्यंग पढ़ा.
    shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..इक नज़र जिंदगी
  15. : हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे
    [...] कल की पोस्ट पर टिपियाते हुये डा.आराधना ने कहा: कुल मिलाकर, पोस्ट कुछ अधूरी सी लगी. नमक कम है या हींग डालना भूल गए हैं या धनिया पत्ती नहीं डाली. कुछ तो कमी है. [...]
  16. ismat zaidi
    वाह अनूप जी ,
    घपलों घोटालों का इतना ज्ञान ????????
    क्या बात है ! आप ने तो आंखें खोल दीं
    बहुत बढ़िया पोस्ट
  17. रंजना.
    सटीक साधा व्यंग्य…वाह !!!
    सत्य है आज हज़ार और लाख रुपये रिश्वतया घोटाले की खबर “धू छी ” टाईप लगती है..
    रंजना. की हालिया प्रविष्टी..मीठा माने
  18. मनोज कुमार
    महाकाव्‍य‍ लिख डालो इतना पतन दिखाई देता है
    घोर गरीबी में जकड़ा ये वतन दिखाई देता है ।
    जनता की आशाओं पर इक कफन दिखाई देता है।
    उजड़ा उजड़ा सच कहता हूँ चमन दिखाई देता है ।
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..शिवस्वरोदय-22
  19. Anil Attri Delhi
    क्या घोटाला तेरासी ..है .. फिर भी मेरा देश महान …
    अनिल अत्तरी
  20. Anil Attri Delhi
    वाह्ह ….. एंडी सै………………
    Anil Attri Delhi की हालिया प्रविष्टी..ये नहर इंसानों का खून मांगती है
  21. चिरागों को जलाने में जला ली उंगलियां हमने : चिट्ठा चर्चा
    [...] स्व.वाली असी की यह रचना आप जगजीत सिंह की आवाज में यहां सुन सकते हैं। [...]
  22. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] घपलों/घोटालों के व्यवहारिक उपयोग [...]
  23. कोई नया घपला हुआ क्या?
    [...] समर्थकों की सोच जरा अलग टाइप की है। वे घपलों के व्यवहारिक उपयोग के हिमायती हैं। वे मानते है कि घपले [...]
  24. Padm Singh पद्म सिंह
    सौ पचास की घूस लेने वाला निम्न कोटि का(चीप टाइप का) घोतालेबाज़ होता है … या कहें घोटालेबाजों के साथ बैठने लायक भी नहीं होता… एलीट क्लास के घोटालेबाज़ों में नाम शामिल करवाने के लिए उसके पास अवसर भी तो नहीं होता है. इस दृष्टि से सौ पचास वाले घोटालेबाज़ों की दलित श्रेणी में आते हैं… लेकिन संभावनाएं अनंत होती हैं… एलीट क्लास वाले कोई पेट से थोड़े ही सीख कर आते हैं… सरकार अगर दलित घोतालेबाज़ों को भी अवसर प्रदान करे, अनुभवी लोगों से प्रशिक्षण मिले, आरक्षण मिले तो उनके भीतर से भी एक महान घोतालेबाज़ पैदा हो सकता है.
    Padm Singh पद्म सिंह की हालिया प्रविष्टी..मगर यूं नहीं