Monday, April 26, 2010

…आंख के अन्धे नाम नयनसुख

http://web.archive.org/web/20140419221607/http://hindini.com/fursatiya/archives/1371

19 responses to “…आंख के अन्धे नाम नयनसुख”

  1. वन्दना अवस्थी दुबे
    भैया हम तो आराधना जी के शुक्रगुज़ार हैं कि जिनकी एक टिप्पणी के चलते हमें एक और शानदार पोस्ट पढने को मिल गई, वो भी एक दिन के अन्तर पर.
    “……तो मुहावरची ने उसकी खिल्ली उड़ाकर उसको टोक दिया होगा और बेचारी छछूंदर अपना सा सर लेकर रह गई होगी….”
    गजब हास्य की सृष्टि करते हैं आप. उतना ही मजबूत व्यंग्य-
    “…… टाट पर जहां मखमल जुड़ता है मीडिया टाइप की नजरे उस जगह को घूर-घूर कर उसकी निजता का उल्लंघन करती हैं। वे गैर इरादतन तरीके से टाट की कमजोरी और मखमल की चिरकुट चुनाव का बखान करती हैं।”
    और ऐंचा-ताना घराना…… वाह …
    अरे हां…एक बात तो पूछना भूल ही गई………. ” कुछ सुगंध विशेषज्ञ बताते हैं छ्छूंदर एक बदबूदार जीव होती है।”
    ये सुगंध विशेषज्ञ कौन हैं? :)
  2. विवेक सिंह
    अरे ये भटक गए हैं कोई भला आदमी घर पहुँचा दो ।
  3. अमर

    बुड्ढी घोड़ी लाल लगाम !
    बेचारे घोड़े को क्या ऍलाट किया है, जी ?
    जरा उधरौ लाइट मार देते, तो तेरा क्या बिगड़ जाता, फ़ुरसतिया ?

  4. गिरिजेश राव
    आनन्द आ गया। टिपिकल खुरपेंचिया (फुरसतिया :)) लेख।
    ‘धड़कता हुआ सर’ समझ में नहीं आया। छछुन्दर का दिल उसके सिर में होता है क्या?
    हो भी सकता है – वो कहावत है न ” दिमाग घुटने में” …[किसी के उपर छींटाकसी की कोई मंसा नहीं है ]
  5. अजित वडनेरकर
    फ़ट-फ़ट,फ़ट-फ़ट, धक-धक,धक-धक !
    एवरेज तो देखिए इस गाड़ी का। भटकेंगे नहीं तो और क्या होगा?
  6. आज कंमेंटियाने की ज़िद ना करो… « बस यूँ ही निट्ठल्ला
    [...] माठा निकल जायेगा ( मुहावरों पर शोधरत अनूप शुक्ल क्या इस पर प्रकाश डालेंगे ? यह बस एक [...]
  7. प्रवीण पाण्डेय
    जब पूरी विचार प्रक्रिया प्रस्तुत कर दी जाये बिना सेंसर के तो लगता है कि क्या समेटें, क्या छोड़े । मन की गलियों में घुमा लाये । मन तो दुष्ट है, दिन भर लन्तरानी ।
    इस सबके बाद भी हम एक बिन्दु पकड़ के बैठ गये हैं और आराधना जी का प्रश्न पुनः उठा रहे हैं ।
    जब कुछ नहीं था तो उत्तर इतना लम्बा और पहाड़ी रास्तों की तरह घुमावदार क्यों दिये ?
  8. amrendra nath tripathi
    सोचिये भारतीय न्याय व्यवस्था की हकीकत को मनुष्येतर भी इतना महसूस
    करते हैं !
    टाट और मखमल का विश्लेषण बढियां रहा !
    कहावतों की मौजिया-उत्पत्ति-प्रक्रिया भी अच्छी लग रही है .. नयनसुख के साथ तो यही
    हुआ होगा ! नयनसुख के भी अपने तर्क निकाल दिए आपने ! :)
    आपको पढ़ते हुए भारतेन्दुयुगीन प्रताप नारायण मिश्र की याद आती है , मौजियाने का
    कुछ वैसा ही तरीका .. यह सिर्फ संयोग नहीं है कि आप दोनों लोग कानपुर से ताल्लुक रखते हैं !
    .
    कहावतों की आपूर्ति ( चाहें तो आउट-सोर्सिंग कह लें ) मेज पर रखे कागज़ पर हो गयी ! आभार !
  9. aradhana "mukti"
    आप खुरपेंची तो हैं, पर अच्छे वाले. मैंने जो लिखा था टिप्पणी में, इसमें मेरी गलती नहीं है. आजकल लोग इतना व्यंग्य लिख रहे हैं कि सीधी-सादी बात में भी “कुछ ज़रूर होगा” की बू आने लगती है.
    कई नई बातें जानने को मिलीं इस पोस्ट से-
    -पहली बात तो आप सहिष्णु हैं…अपने ऊपर हुये कटाक्ष पर भी पोस्ट लिख डालते हैं.
    -दूसरी बात आप कभी छछून्दर से नहीं मिले, वो बदबूदार होती है, ये आपको किसी विशेषज्ञ ने बताया है.
    -छछून्दर को आपने नहीं देखा पर आपको ये मालूम है कि उसका सिर धड़कता है. वैसे ये बात नई पता चली हमें.
    -बहुत से मुहावरे एक जगह पर मिले और उनकी नयी-नयी व्याख्याएँ भी.
    -हमारा मीडिया किस प्रकार का व्यवहार करता है ये भी पता चला, वन्दना जी को तो मज़ा आ गया इस बात पर.
    -ये भी पता लगा कि डियो-टेल्कम आदि का कान्सेप्ट इन्सान नाम के प्राणी ने छछून्दर से लिया है, पर छछून्दर पढ़ी-लिखी न होने के कारण मुकदमा नहीं कर सकी.
    और भी बहुत सी बातें पता चलीं…सबसे बढ़कर कि आपकी पिछली पोस्ट अभिधा में थी…और ये वाली भी शायद…ही ही ही ही
    @ amrendra nath tripathi और एक बात अमरेन्द्र से, प्रताप नारायण मिश्र शायद उन्नाव के थे…उनका गाँव उन्नाव जिले के बैजे गाँव में था शायद.
  10. amrendra nath tripathi
    @ मुक्ति जी .
    ” प्रताप नारायण मिश्र जी उन्नाव जिले के अंतर्गत बैजे गाँव निवासी, कात्यायन गोत्रीय, कान्यकुब्ज ब्राहृमण पं. संकटादीन
    के पुत्र थे। बड़े होने पर वह पिता के साथ कानपुर में रहने लगे और अक्षरारंभ के पश्चात् उनसे ही ज्योतिष पढ़ने लगे। ” [ विकि-स्रोत ]
    ……….. आपने सही गाँव बताया हुजूर का .. पर ”ताल्लुक” शब्द तो व्यापक स्फीति में है .. जैसा आप भी जानती हैं कि मिश्र जी ने
    ”ब्राह्मण” कानपुर से ही निकाली थी जिसके लिए ये बहुचर्चित हुए .. कर्मभूमि तो कानपुर थी न ! ताल्लुक से मेरा अभिप्राय इतना भर
    ही था .. आपके ध्यानाकर्षण कराने का सुफल यह रहा कि इसी बहाने मैं प्रताप जी पर कुछ ठहरा .. आभार ..
  11. Prashant(PD)
    ओह! बढ़िया है.. कुछ कुछ लिखते हुए इत्ता कुछ लिख जाते हैं!!
    गजब्बे का कमाल है..
  12. हिमांशु
    क्या-क्या पसन्द करें यहाँ !
    आपका लिखा पसन्द, आपका कहा पसन्द, आपकी मौज पसन्द, फुरसतिया स्टाइल पसन्द, आपकी मौजूँ स्माइल पसन्द !
    आपकी पसन्द भी पसन्द !
    माहेश्वर जी का गीत लिखकर तो रिझा गये आप !
    आभार !
  13. जि‍तेन्‍द्र भगत
    पहले से कुछ सोचकर नहीं लिखता। बस एकाध लाइन लिखकर शुरु करते हैं। शुरुआत करते ही मन कल्पना की फ़टफ़टिया पर सवार होकर दौड़ने लगता है। फ़ट-फ़ट,फ़ट-फ़ट, धक-धक,धक-धक ! एवरेज एक लीटर में मनचाहे किलोमीटर!
    इससे तो आप फुरसति‍या नहीं, फटफटि‍या और धकधकि‍या साबि‍त हुए न :)
  14. Abhishek
    इसी में एक और पोस्ट निकल आई :) और ये कम पगार वाले तो गजबे हैं, पर कैपिटा इनकम बढ़ने के साथ मुहावरे कम होते जायेंगे मतलब…
  15. शरद कोकास
    बढ़िया शोध है ।
  16. अर्कजेश
    सौ प्रतिशत स्‍वस्‍थ सुपाच्‍य मनोरंजन , लगभग हर पोस्‍ट में
  17. समीर लाल
    बेहतरीन आलेख.. माहेश्वर प्रसाद तिवारी जी की रचना पसंद आई.
  18. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] …आंख के अन्धे नाम नयनसुख [...]

Saturday, April 24, 2010

…चींटी चढ़ी पहाड़ पर

http://web.archive.org/web/20140419213754/http://hindini.com/fursatiya/archives/1360

28 responses to “…चींटी चढ़ी पहाड़ पर”

  1. विनोद कुमार पांडेय
    बहुत बढ़िया अनूप जी आपने तो चीटी,उसकी खुशी और छछूंदर सभी को ले कर कहावत की बढ़िया विवेचना कर डाली..रोचक और मजेदार प्रस्तुति….बढ़िया लगा..धन्यवाद अनूप जी
  2. Shiv Kumar Mishra
    धन्य हुए हम बांचकर. साहित्यकार/लेखक अगर भौतिकी के ‘इलास्टिसिटी’ चैप्टर को अभी तक नहीं भूला है तो इसकी वजह से लेखन में बरक्कत ही बरक्कत है.
    बहुत मज़ा आया पढ़कर. अद्भुत कम्बीनेशन है ये लेखन और इंजीनियरिंग का.
  3. संजय बेंगाणी
    बहुत दिनों बाद फुरसत में पढ़ने लायक “छोटा-सा” लिखा है :)
    ले बेट्टा हमारे लिये तो कूड़ा है लेकिन तेरे लिये ऐश का सामान। यह सही कहा जी.
    मजा आया…
  4. aradhana "mukti"
    आज तो हम घूम गये ये लेख पढ़कर…सीधे-सीधे चींटी और छछून्दर की बात तो कर नहीं रहे आप…इत्ते सीधे तो हैं नहीं…और पीछे वाली बात क्या है ये मेरी समझ में आ नहीं रहा…क्योंकि हम इत्ते टेढ़े नहीं हैं…हमें सीधी-सादी बाते समझ में आती है…मामला क्या है????
    वैसे जो भी है…मज़ा तो बहुत आया पढ़कर हमेशा की तरह…पता नहीं मैं इतनी लम्बी पोस्ट एक साँस में कैसे पढ़ जाती हूँ?
  5. Om Arya
    मुझे तो चींटी के तेल छुछुंदर के सर पे उड़ेलने के पीछे छुछुंदर की हीं साजिश लगती है…और पूरे आलेख में पेट्रोल की बू आ रही है
  6. वन्दना अवस्थी दुबे
    ” चीटी चढ़ी पहाड़ पर, सर पर लादे नौ मन तेल,
    मिली छ्छूंदर एक वहां, उसके सर पर दिया उड़ेल।”
    क्या कमाल का दोहा (?) है. अभी तक आप प्रकृति का मानवीकरण करते रहे हैं अब जीव-जन्तुओं का भी?
    “चीटी को पता है कि छछूदर को तेल बहुत पसंद है। जैसे ही मौका मिलता है वह अपने सर पर तेल मल लेती है।”
    ऐसा वर्णन है न कि मुझे तो सामने ही छछूंदर तेल मलती दिखाई दे रही है :)
    “यह सब बातें ऐसी हैं जो कि कोई आकर कह जाता है और हम बुरा भी नहीं मान पाते। हमको पता है कि उनको यह बोलना है और हमको यह सुनना है।”
    कहां-कहां कटाक्ष करते हैं, किस-किस के बहाने…..
    “ले बेट्टा हमारे लिये तो कूड़ा है लेकिन तेरे लिये ऐश का सामान। ले जा ऐश कर। बदले में हमें चाहिये नहीं लेकिन तुझको हराम का माल न लगे इसलिये अपने हाथ का सारा मैल (पैसा) हमको भेज दे।”
    शानदार पोस्ट!
  7. Prashant(PD)
    Nice.. ;)
  8. Shiv Kumar Mishra
    Very Nice.
  9. प्रवीण पाण्डेय
    जो हुआ है, होना था,
    भार न उसको ढोना था ।
    चींटी-छछूँदर वृतान्त,
    सबके लिये सुखान्त ।
  10. जि‍तेन्‍द्र भगत
    मुहावरों का मजेदार वि‍श्‍लेषण:)
  11. ई-स्वामी
    बहुत आनन्द आया पढ कर! .. :)
  12. abhay tiwari
    maharaj ki jai ho!
  13. anitakumar
    इसको कहते हैं चाइनीस नूडलस्…॥क्या सच में यूं ही कुछ मुहावरे और चींटी देख के मन में हलचल उठी और पोस्ट बन गयी या इस पोस्ट के बहाने बात कुछ और कही गयी है जो हमें दिखाई नहीं दी। प्रकृति और जीव जंतुओं का मानवीकरण करना आप के बायें हाथ का खेल है( दायें हाथ का पता नहीं) उस का आनंद तो हमने उठाया ही पर कटाक्ष का भी मजा आ गया
  14. Dr.Manoj Mishra
    चीटी और छछूदर के बहानें अच्छी और रोचक पोस्ट.
  15. Manoj Kumar
    जैसा लक्ष्‍य रखेंगे वैसे लक्षण स्‍वत: आयेंगे।
  16. काजल कुमार
    अहा ! चींटी पर भी यूं हाथीनुमा पोस्ट लिखी जा सकती है…मुझे पता न था :)
  17. pankaj upadhyay
    बस अभी अभी चींटी ज्ञान की प्राप्ति हुयी है.. उसी को सहेज रहे है..
  18. Abhishek
    very very… nice :)
    three dots means continued ;)
  19. Abhishek
    नौ मन तेल और चींटी वाला कंसेप्ट तो मुझे फंडामेंटली गलत लगा लेकिन अब कवि की बात समझ में आ जाए तो कवि काहे का परसाईजी ने ऐसे थोड़े ना कहा है :)
  20. ePandit
    आज के लेख का प्रसंग थोड़ा समझ न आया, शायद हम टच में नहीं हैं।
  21. dr anurag
    कानपूर वालो…..किसने बन्दूक बेचने वाली दूकान पे बैठा दिया आपको……एक ठो किताब लिख लेते तो ……झकास लेखन…..एक दम झकास
  22. amrendra nath tripathi
    .
    चींटी बड़ी तेलवाही है , छछूदर की तेलुवाई करा रही है ..
    .
    @ जैसे कि विदेशी जैसे ही भारत आते हैं वैसे ही आते ही वे बयान जारी कर देते हैं…
    सही कह रहे हैं , बुश से लेकर अदने तक सब यही कहते हैं … सोचता हूँ कि कभी ओसामा
    अगर किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष बन गया तो वह भी रवायतन यही करेगा न !
    .
    @ ले बेट्टा हमारे लिये तो कूड़ा है लेकिन तेरे लिये ऐश का सामान।
    यही होता है , सच्चाई भी है , विदेशों में जो ( विकसित देश में ) कुछ सामान एक बार बिगड़ने
    के बाद ”थर्ड वर्ड कंट्रीज” लायक मानकर फेंक दिए जाते हैं .. और हम उपकृत से
    ”योर मैजेस्त्री’ का घोष करने लगते है .. यह बात वास्तु ही नहीं विचार राशि के लिए भी सच है
    जब वहाँ ”प्रतीकवाद” बासी पड़ गया तब यहाँ के लोगों से उसे हांथो-हाँथ ले लिया ..
    .
    नौ मन तेल जुहाने पर राधा – नाच न हो पाने की चर्चा होती है
    तो भला चींटी काहे न इतराए इतना पाकर ..
    छींटे का आगमन और देर तक गुल खिलाता तो और मजा आता ..
    हाँ, अतिश्योक्ति साहित्य का सच है , इसे कौन झूंठ कहेगा —
    ” जा दिन जनम भयो ऊदल कै , धरती धंसी अढ़ाई हाँथ ! ”
    .
    हर बार की तरह इसबार का मौजियाना अच्छा लगा .. आभार ..
  23. Alpana
    हिंदी का ज्ञान ,मुहावरों की खान,
    करें व्याखान,चढ़ कर मचान[ले कर के बाण],
    ‘सुनने- पढने ‘ का सामान ,
    आईये फुरसतिया श्रीमान!
    -एक बेतुकी चार लाईना नज़र की है!
    –चींटी जी और छछूंदरजी के मानवीकरण की छटा दर्शनीय तो है ही!
    अद्भुत दर्शन हुए…चमेली के तेल की दुर्गन्ध यहाँ तक आ रही है!मुहावरे बदल देने चाहिये.
    डीयो/ perfume की बात होनी चाहिये..तेल तो सब गायब हो गए,सर में अब कौन लगता है ?
    छुछुंदर भी नहीं लगाते होंगे..पूछ कर देखीये!
    –गुड चाट कर खाने की बात भी बड़ी सामयिक है .मंहगाई है भाई!
    वैसे …चीनी के दाने को चाटने की बात कही होती तो कहानी में थ्रिल बढ़ जाता !
    आभार!
  24. अमर

    चींटीं, तेल, छछूँदर इत्यादि की जानकारियों पर इतना अतुलनीय अधिकार रखने वाले देवाधिदेव फ़ुरसतिया !
    तेल के माप का मानक नौ-मन पर जाकर क्यों ठहरता है ? एहिका भी विवेचित करैं, एहि मूढ़ को यह दिव्य ज्ञान प्राप्त करवै की इच्छा है ।

  25. हिमांशु
    आराधना जी की बात दोहराऊँगा…”पता नहीं मैं इतनी लम्बी पोस्ट एक साँस में कैसे पढ़ जाता हूँ?”
    हम सबके मानक धरे रह जाते हैं, आप लिख कर किनारे खड़े मुसकाते, मौज लिए जाते हैं ! प्रणम्य !
  26. समीर लाल
    उलट दिया है इसलिए बला टाला गया मामला तो नहीं लगता…
    मस्त!
  27. …आंख के अन्धे नाम नयनसुख
    [...] पिछली पोस्ट में कुछ साथियों ने बताया कि उनको उसके पीछे की बात पता नहीं है। आराधनाजी ने तो लिखा भी: आज तो हम घूम गये ये लेख पढ़कर…सीधे-सीधे चींटी और छछून्दर की बात तो कर नहीं रहे आप…इत्ते सीधे तो हैं नहीं…और पीछे वाली बात क्या है ये मेरी समझ में आ नहीं रहा…क्योंकि हम इत्ते टेढ़े नहीं हैं…हमें सीधी-सादी बाते समझ में आती है…मामला क्या है???? [...]
  28. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] …चींटी चढ़ी पहाड़ पर [...]