"अगर आदमी ध्यान से सोचे तो हर घटना का , चाहे वह कितनी ही अप्रिय क्यों न हो, आशापूर्ण पहलू भी होता है।
यह सुनकर रेम्बर्त ने गुस्ताखी से अपने कन्धे सिकोड़े और बाहर निकल आया।
दोनों शहर के केंद्र में पहुंच गए थे।
"यह निहायत अहमकाना बात है न डॉक्टर! दरअसल मैंने अखबारों के लिए लेख लिखने के लिए दुनिया में जन्म नहीं लिया था। मेरा ख्याल है किसी औरत के साथ जिंदगी बसर करने के लिए मैं पैदा हुआ हूँ। यह तर्क संगत बात है न ?"
रियो ने सतर्कता से उत्तर दिया कि सम्भव है रेम्बर्त की बात में सच्चाई हो।"
ऊपर उद्धरत बातचीत अल्वेयर कामू के प्रसिद्द उपन्यास प्लेग के दो पात्रों की है।
ओरान शहर में प्लेग फैल जाती है। रेम्बर्त संयोगवश ओरान में आया था। प्लेग महामारी से बचाव के लिए शहर के फाटक बंद कर दिए गए। लोगों का आना-जाना रुक गया।
रेमबर्त शहर से बाहर जाने के लिए छटपटाने लगा। उसकी प्रेमिका उसका इंतजार कर रही थी। लेकिन शहर के फाटक बंद थे। कोई बाहर नहीं जा सकता था।
रेम्बर्त ने हर सम्भव कोशिश की निकलने की। उच्चाधिकारियों से मिला। जोर-जुगाड़ लगाया। डॉ रियो से अनुरोध किया कि उसे प्लेग के कीटाणु न होने का प्रमाणपत्र दे ताकि वह उसे दिखाकर निकल सके। रियो ने मना कर यह कहते हुए:
"मैं तुम्हे सर्टिफिकेट नहीं दे सकता, क्योंकि मुझे यह नहीं मालूम कि तुम्हारे अंदर इस बीमारी के कीटाणु नहीं है। और अगर मुझे मालूम होता तो भी मैं इस बात की गारंटी कैसे दे सकता हूँ कि मेरे यहाँ से निकलकर प्रीफेक्ट के दफ्तर तक पहुँचने के बीच तुम्हें इस बीमारी की छूत नहीं लग जायेगी।"
रेम्बर्त हर तरह से अपने को सही ठहराने की कोशिश करते हुए निकलने की कोशिश करता है। असफल होता है। इस बीच वह डॉक्टर रियो के सम्पर्क में रहते हुए शहर से निकलने की कोशिशें करता रहता है।
डॉक्टर रियो आपदाग्रस्त लोगों के इलाज में लगा रहता है। रेम्बर्त शहर से निकलने की फिराक में। इस सिलसिले में वह गेट पर तैनात लोगों से जोड़-तोड़ कर निकलने की कोशिश में रहता है। उसको अपनी प्रेमिका से मिलने की उतावली है।
रेम्बर्त को पता चलता है कि डॉक्टर रियो की बीबी शहर से करीब 100 मील दूर एक सेनिटोरियम में है।
अगले दिन तड़के ही रेम्बर्त ने डॉक्टर को फोन किया। "जब तक मैं शहर से निकलने का कोई तरीका नहीं निकाल लेता , क्या तब तक तुम मुझे अपने साथ काम करने दोगे?"
कुछ देर की खामोशी के बाद जबाब सुनाई दिया , "जरूर, रेमबर्त! धन्यवाद।"
इसके बाद रेम्बर्त डॉक्टर रियो के साथ काम करने लगा। शहर से निकलने की कोशिश भी जारी रहीं।
एक दिन रेम्बर्त का शहर से बाहर निकलने का जुगाड़ बन गया। उसका शहर से जाना तय हो गया। वह रियो और तारो से विदा लेकर गया। रेम्बर्त की जगह नई टीम बन गई।
जिस रात रेम्बर्त को जाना है उसी शाम वह वापस आकर डॉक्टर रियो से मिलता है। आगे की बात :
"रेम्बर्त बोला , "डॉक्टर , मैं शहर छोड़कर नहीं जा रहा। मैं तुम्हारे पास रहना चाहता हूँ।"
तारो बिना हिले-डुले कार चलाता रहा। लगता था कि रियो अपनी थकान से छुटकारा पाने में असमर्थ था।
"और ----'उसका' क्या होगा?" रियो की आवाज बड़ी मुश्किल से सुनाई दे रही थी।
रेम्बर्त ने जबाब दिया कि उसने सारे मामले पर बड़ी गम्भीरता से सोच-विचार किया है। उसके विचार तो नहीं बदले लेकिन अगर वह चला गया तो उसे अपने पर शरम आएगी, जिसकी वजह से अपनी प्रियतमा के साथ उसका सम्बन्ध और भी पेचीदा हो जायेगा।
इस बार और अधिक उत्साह दिखाते हुए रियो ने कहा कि यह निरी बकबास है। अगर कोई अपने सुख को ज्यादा पसन्द करता है तो इसमें उसे शरम नहीं महसूस करनी चाहिए।
" यह तो सही है," रेम्बर्त ने जबाब दिया, "लेकिन जब सब दुखी हों तो सिर्फ अपना सुख हासिल करने में शरम महसूस हो सकती है।"
तारो ने, जो अभी तक खामोश रहा था, पीछे मुड़कर देखे बगैर कहा कि अगर रेम्बर्त दूसरे लोगों के दुख में हिस्सा बटाने की इच्छा रखता है तो उसके पास फिर अपने सुख के लिए कोई समय नहीं बचेगा। इसलिए दोनों रास्ते में से उसे एक चुनना ही पड़ेगा।
"बात यह नहीं है," रेम्बर्त ने फिर कहा।" अब तक मैं हमेशा अपने को इस शहर में एक अजनबी- सा महसूस करता था। और मुझे ऐसा लगता था कि आप लोगों से मेरा कोई रिश्ता नहीं है। लेकिन अब मैंने अपनी आंखों से जो कुछ देखा है, इसके बाद मैं जान गया हूँ कि मैं चाहूं या न चाहूं मैं यहीं का हूँ। प्लेग से लड़ना सबका फर्ज है।""
इसके बाद रेम्बर्त शहर छोड़कर भागने के प्रयास छोड़ देता है। डॉक्टर रियो की टीम से जुड़कर प्लेग रोगियों की सेवा में जुट जाता है। एक दिन ऐसा भी आता है जब शहर में प्लेग खत्म हो जाती है और सड़कों पर मरते हुए चूहों की जगह बिल्लियां दिखने लगती हैं।
पिछली सदी में हुई प्लेग महामारी पर केंद्रित यह उपन्यास पढ़ते हुए आज कोरोना की विभीषिका के समाचार छाए हुए हैं। तमाम लोग इस बीमारी से ग्रस्त हैं। असमय विदा हो रहे हैं।
यह विवरण एक पराये शहर के पत्रकार की एक अजनबी शहर के लोगों की पीड़ा से जुड़कर वहां के लोगो की सेवा करने की भावना का है।
आज जब हमारा समाज इस विभीषिका से जूझ रहा है तब समय यह देखने का भी है कि हम अपने समाज से कितने जुड़े हैं। हमारे अंदर डॉक्टर रियो और पत्रकार रेम्बर्त के कितने अंश बचे हैं।
डॉक्टर रियो और रेम्बर्त प्लेग से लड़े थे। आज कोरोना फैला है। कोरोना से लड़ना हमारा फर्ज है।
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