उठ जाग मुसाफिर भोर भई, सड़क पर जगते लोग । |
सुबह टहलने निकले। पप्पू की दुकान खुल चुकी थी। भगौने में चाय चढ़ी थी। उबलने में देर थी। बन गयी होती तो रुकते शायद।
सामने से अलसाया सांड चला आ रहा था। नींद में चलते हुए आदमी की तरह इधर-उधर होते हुए बगल से निकल गया।
एक आदमी लपकता हुआ सड़क पर अखबार पढ़ते चला जा रहा था। बगल से कुछ देर साथ गुजरते हुए अखबार में खबर दिखी-'बीपीएल परिवारों को मुफ्त रोडवेज सफर।' एक करोड़ परिवारों के मजे।
आगे चलते हुए उस आदमी ने अखबार एक ठेलिये पर रख दिया। हमने पूछा तो बोला - 'सब खबरें बांच चुके। इसलिए रख दिया।' ठेलिया के पास खड़े होकर हमने भी कुछ खबरें बाँची। बांचकर अखबार अगले के लिए धर दिया।
नदी की सड़क पार करती नाव |
एक झोपड़ी के बाहर एक बच्ची गोद में बच्चे को लिए खिला रही यही। पालिथीन के पैकेट से नमकीन लंबी डंडी जैसी नमकीन खिलाती जा रही थी। दूसरी झोपड़ी के पास कुछ लोग आग ताप रहे थे। एक बच्ची झाड़ू लगा रही थी। थोड़ी-थोड़ी देर में ढीली होती झाड़ू को सड़क पर पटककर कसती जा रही थी। मन किया उसका वीडियो बनाकर केजरीवाल को भेज दें। शायद उनको सीख मिले की झाड़ू को कैसा कसकर रखा जाता है।
आगे सड़क पर लोग उठ रहे थे। जागते हुए अंगड़ाई ले रहे थे। एक आदमी रोड़ी के ढेर पर बैठा दातुन कर रहा था। देखते-देखते एक दूसरा आदमी तेजी से झोपड़ी से निकलकर आया और सड़क पर नाक छिड़ककर वापस चला गया।
गंगा किनारे बने घरों के पास से नीचे उतरे। एक बच्ची दूसरी बच्ची को डांटते हुए संभाल रही थी। दूसरी बच्ची वहीं प्लास्टिक के टब की तलहटी तक पहुंचे पानी को हाथ से छूते हुए मुंह धो रही थी।
नीचे गंगा किनारे चलते हुए सूरज भाई को देखा। गुडमार्निंग हुई। सूरज भाई गंगा में उतरकर नहा रहे थे। जिस जगह नहा रहे थे वह जगह आंखों को चौंधिया रही थी। आगे एक जगह सूर्य चालीसा का पन्ना फटा हुआ रेत पर पड़ा था। सूर्य चालीसा पर सूरज की किरणें कबड्डी खेल रहीं थीं।
लौटते हुए सड़क किनारे गोबर के कंडे दिखे। यह ईंधन के रूप में न जाने कब से इस्तेमाल किये जा रहे हैं। एक आदमी गाय दुह रहा था। दूध दुहने के बाद उसने गाय के पीछे के पांव खोल दिये। गाय भी पूंछ हिलाकर इधर-उधर टहलने लगी।
लौटते में गुप्ता जी मिले। खटिया पर बैठे। उनका बेटा बगल में सो रहा था। बताया कि आंख अब ठीक है। सफेद वाला चश्मा लगना है अब।
एक साइकिल वाला पहिया खोलकर पंचर बनाने में जुट गया था।
एक जगह बाप बेटा खेल रहे थे। बच्चा अपने हाथ की उंगलियां मुंह में घुसाए चूस रहा था। बाप ईंट गारे का काम करता है।
पीछे एक बुजुर्ग जागकर बैठ गए थे। एक महिला उनके लिए चाय और एक कागज में रोटी लपेटकर लाई। पता चला यहीं सोते हैं। एक दुकान वाला 300 रुपये और दूसरा 200 रुपये माहिने देते हैं। 200 रुपये घर से नाश्ता भी लाते हैं। देवता जैसे हैं इनके लिए।
200 रुपये , एक समय नाश्ता और अच्छा व्यवहार किसी के लिए किसी को देवता बना सकता है।
इसके अलावा संजय नगर में कई बच्चों को पढ़ाने जाते थे। 30-40 बच्चों तक को पढ़ाते थे। 100 से 200 तक मिल जाते थे। अब कई दिन से जा नहीं पाए। तबियत खराब है। डॉक्टर ने किडनी बताई है। चलना मुश्किल । पास के सुलभ शौचालय तक जाने के लिए रिक्शा करना पड़ता है। 5 रुपये लगते हैं।
हरदोई के रहने वाले हैं बुजुर्गवार। चुन्नीलाल सविता नाम है। दो बच्चे हैं। छोटे ने इंटरकास्ट किया है। वह अपनी माँ को मानता है। बड़ा बाप को मानता है। लेकिन उसका दिमाग खराब है। अपसेट हो गया।
पत्नी शुक्लागंज में रहती है। लेकिन उसने छोड़ दिया चुन्नीलाल को। 12 साल हो गए अलग रहते। एक दिन गए किसी के साथ। बोला चलो मास्टर साहब हम ले चलते हैं। घण्टे भर बैठे रहे घर के बाहर। लेकिन पत्नी ने लौटा दिया। अनपढ़ है पत्नी। चुन्नीलाल 12 पास हैं।
किडनी की आयुर्वेदिक दवा करते हैं। सब पैसे खतम हो गए हैं। अब जाएंगे अस्पताल कमला देवी। बहुत बातें हैं सुनाने को उनके पास। हर आदमी के पास तमाम कुछ होता है सुनाने के लिए । सुनने वाला मिलते ही आदमी खुलता जाता है।
देर हो रही थी दफ्तर के लिए। लौट आये। घर में वही अखबार मिला। रूप की रानी रही नहीं यह खबर सबसे पहले थी। फिर रमानाथ अवस्थी की कविता याद आई:
आज आप हैं हम हैं लेकिन
कल कहां होंगे कह नहीं सकते
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।
कल कहां होंगे कह नहीं सकते
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।
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