Saturday, June 29, 2013

’नो इंट्री ज़ोन’ में फ़ंसा ट्रक

http://web.archive.org/web/20140420082134/http://hindini.com/fursatiya/archives/4448
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’नो इंट्री ज़ोन’ में फ़ंसा ट्रक

ट्रक ट्रक नो इंट्री ज़ोन में फ़ंसा है। बीस मिनट पहले आ गया होता हो धक्काड़े से निकल जाता।
पक्का “दुर्घटना से देर भली वाले” सिद्धांत पर अमल करने में हुई दुर्घटना है यह। इस्पीड में निकल जाता तो शहर के अंदर होता अब तक।
खुदाई खिदमतगार की तरह एक चेहरा लपकता हुआ आता है। दूसरे मददगारों को धकेलकर पीछे करते हुये। मदद के काम में भी गलाकाट प्रतियोगिता का माहौल है आजकल। जरा सा चूके नहीं कि मदद का मौका हाथ से निकल जाता है।
’नो इंट्री ज़ोन’ है इधर। आधा घंटा पहले आते। निकल जाती गाड़ी। अब तो रात भर रुकना पड़ेगा। नौ बजे रात खुलेगा। -मददगार ने अपराध बताया।
अरे सड़क इत्ती खराब थी। इस्पीड ही नहीं मिली। -ड्राइवर ने बचाव की कोशिश की।
लेकिन अपराध साबित होकर रहा। जुर्माना सेटल होने लगा।
तीन सौ पुलिस वाले को देने पड़ेंगे। दो सौ हमको। माल पहुंचवा देंगे। दोपहर तक ट्रक खाली हो जायेगा। नहीं तो शाम को खुलेगी नो इंट्री। कल संडे की छुट्टी है। सोमवार को उतरेगा माल। दो दिन बरबाद होंगे। पड़े रहोगे बाईपास पर। खिदमतगार ने घूस का अर्थशास्त्र बताया- दो दिन की देरी से पांच सौ की घूस भली।

पूछने पर पता चला कि वह गाइड था। नो इंट्री गाइड। नो इंट्री में फ़ंसे ट्रक को गंतव्य तक पहुंचवाता है। रास्ता बताता है। समय बचाता है। देश के विकास में सहायक होता है।
मोलभाव करने पर उसने मजबूरियां गिनानी शुरु कीं। स्कूल खुल गये हैं। सड़कों पर पानी है। कई जगह धंस गयी हैं। दूसरे रास्ते ले जाना होगा।
स्कूल खुलने पर ’नो इंट्री’ पर दलाली बढ़ जाती है। नक्सली स्कूल उड़ाने के पक्ष में दलील दे सकते हैं- स्कूल उड़ाकर हम घूस के मौके कम करते हैं।
बरसात में दलाली के साथ बारिश सरचार्ज भी जुड़ जाता है। इंद्र भगवान के खाता ऑडिटर को जब पता चलेगा तो आपत्ति दर्ज करेगा- नाके पर वसूला हुआ ’बारिश सरचार्ज’ का पैसा किधर गया। ’बारिश सरचार्ज घोटाले’ का हल्ला मचेगा देवलोक के मीडिया में। इंद्र भगवान की सरकार खतरे में पड़ जायेगी। उनको भी मीडिया मैनेजमेंट करना पड़ेगा। विज्ञापन देकर सब रफ़ा-दफ़ा करना होगा।
आखिर में ड्राइवर और गाइड में कुछ सम्मानजनक समझौता हो गया होगा और सूचना आती है कि सामान पहुंच गया। अनलोडिंग जारी है।
अपन को लगता है कि ये अपने देश का विकास और खुशहाली का ट्रक भी कहीं ’नो इंट्री ज़ोन’ में फ़ंसा है। तमाम तरह के गाइड उनसे सौदा कर रहे हैं। अपनी गाइड की फ़ीस वसूल करने के लिये मोल-भाव कर रहे हैं। हर जगह सौदा पटा रहा है विकास का ड्राइवर। हर जगह मोलभाव हो रहा है। हर नाके पर देरी हो रही है। ’ नो इंट्री ज़ोन’ पर खर्चा बढ़ता जा रहा है। ठीहे तक पहुंचाने की गारंटी लेने वाले ’गाइड’ बढते जा रहे हैं। हर गाइड अपनी फ़ीस वसूल करके ट्रक अगले नाके तक पहुंचा देता है। अगले नाके पर भी वही ’नो इंट्री ज़ोन’ बोर्ड मिलता है। गाइड सहायता करता है। आगे बढ़ाता है।
जिन लोगों को ट्रक के नाके में फ़ंसे होने की बात पता है वे अपने-अपने इलाके के नाके में पहुंचते हैं। अपने हिस्से की खुशहाली और विकास ट्रक से लूट जाते हैं। पता नहीं ट्रक कब तक बस्ती तक पहुंचे। हर जगह उसको रास्ता दिखाने वाले ’गाइड’ तैनात हैं। इन गाइडों का लोकपाल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकते क्योंकि ये सरकारी कर्मचारी नहीं हैं। असरकारी गाइड हैं। इनको नौकरी से बर्खास्त भी नहीं किया जा सकता है क्योंकि ये स्वचयनित हैं। खुदाई खिदमतगार हैं। जहां मन आता है ’नो इंट्री ’ का बोर्ड लगा देते हैं। गंतव्य तक पहुंचने का रास्ता बताने लगते हैं। फ़ीस वसूलते हैं।
अब तो विकास और खुशहाली के ट्रक ड्राइवर को ’नो इंट्री ज़ोन’ के गाइड की आदत पड़ गयी है। जहां गाइड नहीं मिलता उसका जी धुकपुकाने लगता है। वह घबराहट दूर करने के लिये हनुमान चालीसा पढ़ने लगता है:
“होत न आज्ञा बिनु पैसा रे”
बिना पैसे के कोई भी आदेश नहीं होता है रे। किसी भी ’नो इंट्री ज़ोन’ से आगे मूवमेंट के लिये की आज्ञा के लिये ’गाइड फ़ीस’ का भुगतान करना जरूरी है।
क्या पता उत्तराखंड को भेजे गये राहत सामग्री के ट्रक भी किसी ’नो इंट्री ज़ोन’ में खड़े हों।

8 responses to “’नो इंट्री ज़ोन’ में फ़ंसा ट्रक”

  1. कट्टा कानपुरी असली वाले
    आपकी गाडी, चकाचक चल रही है !
    किसकी गाडी फिर नो एंट्री में फंसी है
    कट्टा कानपुरी असली वाले की हालिया प्रविष्टी..हिमालय, को समझते,उम्र गुज़र जायेगी – सतीश सक्सेना
  2. dr parveen chopra
    बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देने वाला आलेख… मेरी भी यही कामना है कि उत्तराखंड में राहत सामग्री ले जाता हुआ कोई ट्रक इस तरह की नो-एंट्री पर न खड़ा हो……………….वहां लोग इंतज़ार कर रहे हैं खाने का, पीने का, पहचने का……
    dr parveen chopra की हालिया प्रविष्टी..कुदरत का इंसाफ
  3. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    विचित्र का गजब चित्र खीचते हैं.
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..औरतों को पूरा बदल देना चाहते हैं चेतन भगत
  4. arvind mishra
    सच है हर जगहं नो इंट्री की तख्तियां हैं
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..वे पिछड़े हैं जो ब्लागिंग तक ही सिमटे हैं!
  5. प्रवीण पाण्डेय
    रोक लगा कर मोल भाव का जमाना…
  6. mahendra mishra
    “”इन गाइडों का लोकपाल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकते क्योंकि ये सरकारी कर्मचारी नहीं हैं। असरकारी गाइड हैं। इनको नौकरी से बर्खास्त भी नहीं किया जा सकता है क्योंकि ये स्वचयनित हैं। खुदाई खिदमतगार हैं। जहां मन आता है ’नो इंट्री ’ का बोर्ड लगा देते हैं। गंतव्य तक पहुंचने का रास्ता बताने लगते हैं। फ़ीस वसूलते हैं….”"”
    बहुत ही सटीक सामयिक विचारणीय मुद्दा …
  7. देवांशु निगम
    :) :) :)
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..च से बन्नच और छ से पिच्चकल्ली
  8. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] ’नो इंट्री ज़ोन’ में फ़ंसा ट्रक [...]

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Saturday, June 22, 2013

तबाही की जिम्मेदारी

http://web.archive.org/web/20140402080546/http://hindini.com/fursatiya/archives/4429

तबाही की जिम्मेदारी

Floodबाढ़ से भयंकर तबाही हुई है. अनगिनत लोग मारे गये. हजारों बेघरवार हुये. करोंडो का नुकसान हुआ. भयंकर त्रासदी है.
मंत्री जी आपदा पर बयान देने के लिये तैयार हो रहे हैं. अफ़सर उनको समझा रहे हैं. मंत्री उनसे सवाल-जबाब कर रहे हैं. आप भी सुनिये जरा :
क्या लफ़ड़ा हुआ है जरा समझाइये मुझे. बयान देना है. इसके बाद विदेश जाने की तैयारी करनी है.
कुछ नहीं साहब जरा बाढ़ आयी है.हर साल आती रहती है. तबाही भी होती रहती है. कुछ लोग मरे हैं. हर साल मरते हैं. लेकिन इस बार कुछ ज्यादा हो गये. घर बहे हैं. हर बार बहते हैं. इस बार कुछ ज्यादा बह गये. तमाम लोग लापता हैं . वही है. नेचरल कैलेमिटी मतलब प्राकृतिक आपदा. – अफ़सर ने विस्तार से समझाया.
अच्छा, अच्छा. बारिश के मौसम में तो ऐसा होता ही है. हर साल होता है. तो क्या इसके लिये बयान भी देना पड़ेगा? -मंत्री जी ने पूछा.
दे दीजिये.बयान देना अच्छा ही है. वर्ना कोई दूसरा दे देगा तो सारा कवरेज वो लूट लेगा.
ये सही है. बयान अगर गड़बड़ हुआ तो खंडन करने का भी मौका भी मिलता है. क्या चोचले हैं मीडिया के वाह! अच्छा बताइये ये त्रासदी की जिम्मेदारी किस पर डालनी है, पाकिस्तान पर या लश्करे तैयबा पर.
अरे साहब पाकिस्तान पर नहीं.ये कोई बम धमाका थोड़ी है? पाकिस्तान को तो आतंकवाद के लिये जिम्मेदार ठहराया जाता है.
तो फ़िर यहां चीन को जिम्मेदार ठहराना है? चीन आजकल बहुत गड़बड़ कर रहा है. ससुरे तंबू ताने रहे यहां कित्ते दिन.
न साहब चीन को तो जब उधर ब्रह्मपुत्र में बाढ़ आयेगी तब जिम्मेदारी देनी होगी. यह तो आपदा है, प्राकृतिक आपदा है. इसके लिये पृकति को दोष देना होगा या फ़िर इंसान के लालच को. पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं हम. उसी का नतीजा है यह बाढ़. -अफ़सर कायदे से समझा रहा है.
Flood2यार कभी-कभी लगता है कि विपक्ष में होते तो कित्ता अच्छा रहता. सारी जिम्मेदारी सरकार पर लादकर मस्त हो जाते. रोज सरकार को कोसते रहते. हल्ला मचाते रहते. सरकार में होना भी कित्ता आफ़त है. कोई ऐसा जुगाड़ होना चाहिये जिससे आपदा के समय सरकार से अलग हो जायें. सरकार मोबाइल के कनेक्शन सरीखी होती तो कित्ता अच्छा होता. कठिनाई के मौके पर स्विच आफ़ कर लेते. -मंत्री जी के चेहरे पर आपदा के समय सरकार में होने का दुख पसरा था.
अब क्या कर सकते हैं साहब. सरकार में होने का कुछ तो नुकसान उठाना ही पड़ेगा. वैसे चाहें तो आप भगवान की लीला भी बता सकते हैं इसे.- एक आस्तिक चेले ने सुझाया.
अरे भगवान का खुद घर उजड़ गया. उनको दोष देना ठीक नहीं होगा. बेचारे खुद दुखी होंगे.
इत्ते में एक मीडिया वाले ने मंत्री जी के मुंह के सामने माइक सटा दिया और उनको कोसते हुये सा इस पर उनकी प्रतिक्रिया पूछने लगा.
मंत्री जी ने आपदा पर दुख प्रकट करते हुये सरकार की तरफ़ से राहत की घोषणा कर दी.
आप इस आपदा के पीछे किसको जिम्मेदार मानते हैं. क्या आपकोअ नहीं लगता कि सरकार की इसमें पूरी जिम्मेदारी है– मीडियावाला सरकार के पीछे पड़ गया.
देखिये -सरकार इसमें क्या कर सकती है. सरकार ने कानून बनाये हैं. लोग उसका पालन नहीं करते, प्रकृति को नुकसान पहुंचाते हैं तो तबाही होगी ही.
अरे – आप ऐसा कैसे कह सकते हैं. सरकार के अलावा और कौन इसका जिम्मेदार हो सकता है. सरकार जिम्मेदारी लेने के लिये ही तो चुनी जाती है.सरकार अगर जिम्मेदारी तक नहीं ले सकती है तो फ़िर किसके लिये है सरकार. – संवाददाता के तेवर से लग रहा था कि वह विरोधी पार्टी का प्रवक्ता है और किसी मीडिया वाले का माइक छीन कर मंत्री जी से उलझ गया है.
देखिये जिम्मेदारी से हम कभी घबराते नहीं. लेकिन अभी जिम्मेदारी की बात करना जल्दबाजी होगी. फ़िलहाल राहत हमारी प्राथमिकता है. जिम्मेदारी की बात के लिये कमेटी बन जायेगी. तय करती रहेगी जिम्मेदारी आराम से.
आगे की बातचीत अधूरी रह गयी. मंत्री जी को विदेश यात्रा की तैयारी भी करनी है.जिम्मेदारी तय नहीं हो पायी.
चैनल पर कामर्शियल ब्रेक के विज्ञापन शुरु हो गये हैं.

15 responses to “तबाही की जिम्मेदारी”

  1. प्रवीण पाण्डेय
    अब तक बचाने की भावनात्मक समाचार आ रहे हैं।
  2. sanjay jha
    लीजिये साहब ‘इस त्रासदी’ की जिम्मेवारी हम्मै ले लेते हैं ………
    प्रणाम.
  3. देवेन्द्र बेचैन आत्मा
    बढ़िया है।
  4. arvind mishra
    लिख तो आप सहिये लिख रहे हैं मगर इस समय कुछ सुझा नहिये रहा है -इतने लोग मरे और कितने ही जीवन और मौत से जूझ रहे हैं ! दिमाग कुंद है ….यिहीं खातिर ई व्यंगवा सुझाते नईखे !
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..काश कोई कृष्ण आज भी होता!
  5. Dr. Monica Sharrma
    क्या कहें ..? दुखद घड़ी है हम सबके लिए
    Dr. Monica Sharrma की हालिया प्रविष्टी..शब्दों का साथ खोजते विचार
  6. Vibha Rani Shrivastava
    सच्चाई ब्यान करती अभिव्यक्ति पर क्या कहूँ
  7. Yashwant Mathur
    आपने लिखा….हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए आज 27/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिए एक नज़र ….
    धन्यवाद!
  8. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] तबाही की जिम्मेदारी [...]
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Thursday, June 20, 2013

बाढ की रिपोर्टिंग के तरीके

http://web.archive.org/web/20140420082056/http://hindini.com/fursatiya/archives/4421

बाढ की रिपोर्टिंग के तरीके

flood1चैनल गुरु अपने चेलों को बाढ़ की रिपोर्टिंग के तरीके सिखा रहे हैं. वे बता रहे हैं:
किसी भी अन्य न्यूज की तरह चैनलों के लिये बाढ़ भी एक सूचना है. एक घटना है. एक उत्पाद है. अगर कहीं बाढ़ आती है तो अपन को यह देखना है कि कितने प्रभावी तरीके से इसको कवर करते हैं.
सबसे पहले तो यह समझिये कि बाढ़ की गरिमा उसकी भयावहता है में है. जित्ता भयानक दिखाया जा सकता है उतनी ही सफ़ल प्रभावी उसकी रिपोर्टिंग है. इसके लिये कई तरीके हैं. बेस्ट तो ये होगा कि आप लाइव रिपोर्टिंग करिये. सीधे चट्टान, पत्थर, पेड़ तेजी से गिरते दिखाइये, पानी हरहराता हुआ दिखाइये, पेड़ पर लटके लोग दिखाइये, सड़क के बीच भरे पानी में जाते हुये लोग दिखाइये. उनके चेहरे पर फ़ोकस करिये अगर वे डरे, सहमें से दिख सकें, दिखाइये.लोगों को बोलते हुये दिखाइये. किसी की पूरी बात नहीं. बस इत्ता दिखाइये जिससे कि लगे वे फ़ंसे हैं, डरे हैं, भयभीत है. सब तरफ़ भय का संचार कीजिये. आसपास का सब कुछ जल मग्न दिखाइये. हो सके तो दिखाइये कि बाढ़ के पहले वहां इत्ती इमारतें थीं, बाढ में सब डूब गया यह दिखाइये. दोनों फोटुओं को अगर-बगल रखकर चलाइये. कन्ट्रास्ट ज्यादा इफ़ेक्टिव होता है.
इसके बाद फ़ौरन सरकारी अमले को कोसने के काम में लग जाइये. बाढ़ रात को आई. सरकार अभी तक सो रही है. एकाध मंत्री के गैरजिम्मेदाराना बयान दिखा दीजिये. कुछ न हो तो यह बताइये कि बाढ़ के बारे में जिले में कोई सूचना देने वाला नहीं है. सरकार को जित्ता कोसियेगा उत्ता ही ज्यादा विज्ञापन मिलने की गुंजाइश बनेगी.
अगर आपके पास अपने दिखाने के लिये सीन न हों तो दूसरे चैनल से मार लीजिये. न मिले तो अपनी ही दो- तीन साल पुरानी फुटेज लगाकर लाइव बताइए. शर्माइये नहीं, रिपोर्टिंग और शरम साथ-साथ नहीं चल सकते. विदेशों में आई बाढ़ का हवाला दीजिये और बताइये कि वहां सरकार कित्ती जल्दी निपट लेती है बाढ़ से. लेकिन अगर सरकार से विज्ञापन मिल गये हों या मिलने का वायदा मिल गया हो तो इसी सीन को दूसरी तरह से दिखाइये कि अमेरिका में नागरिक नौ दिन तक फ़ंसे रहे लेकिन अपने यहां की नब्बे घंटे में ही निकालने का काम शुरु हो गया. इसी तरह के कई कन्ट्रास्ट निकाले जा सकते हैं.
चैनल से लोग चाहे जैसे खबर सुनायें लेकिन फ़ील्ड से रिपोर्टिंग करने वाले लोग ऐसे लगें जैसे वे खुद बाढ़ में फ़ंसे हैं. थोड़ा बहदवास और चिल्लाते हुये रिपोर्टर का अच्छा असर पड़ता है. अगर बाढ़ के साथ बारिश हो रही हो तो रेनकोट में भीगते हुये कैमरा मोमिया में लपेटे हुये कमेंट्री करते दिखायें. चैनल में ऐसे भी लोग रख सकते हैं जो दर्शकों को डांटते हुये रिपोर्टिंग करे जिससे दर्शक सहम जायें और अपराध बोध में डूब जाये कि हम यहां घरों में बैठे बाढ़ को तमाशे की तरह देख रहे हैं.
शाम को प्राइम टाइम पर बाढ चर्चा करिये. एक ठो पर्यावरणविद, एक ठो सामाजिक कार्यकर्ता,एक बाढ़ पीडित और एक पत्रकार को बैठाकर चर्चा करिये. सब मिलकर पर्यावरण चर्चा करते हुये एक बार फ़िर से तय करिये कि अगर हमने प्रकृति से छेडछाड़ नहीं रोकी तो ऐसे ही बरबाद होते रहेंगे. चर्चा के बीच में सुबह-शाम तक दिखाये सीन फ़िर-फ़िर चलाते रहिये. कोई घपले-घोटाले की खबर आये तो उसको इंटरटेन मत करिये. बता दीजिये कि बाढ कवरेज में बिजी हैं अभी. बहुत कोई हल्ला मचाये तो नीचे वाली पट्टी में चला दीजिये. बाढ़ से फ़ोकस मत शिफ़्ट कीजिये.पूरे चैनल को बाढग्रस्त कर दीजिये. फ़ोकस बहुत जरूरी है. बाढ़ की रिपोर्टिंग करें तो पूरा बाढ़ में डूब जायें.
दो-तीन दिन दनादन इसी तरह बाढ़ की रिपोर्टिंग करते रहिये. लोग एकरस रिपोर्टिंग की खबरें देखकर ऊबने न लगें इसके लिये वैरियेशन दिखाइये. एकाध प्रसिद्ध खिलाड़ी, एक्टर,नेता के बाढ़ में फ़ंसने, निकलने के किस्से दिखाइये.
इस बीच सरकार एक्शन में आ जायेगी. उसके एक्शन दिखाइये. सरकारी सहायता के किस्से दिखाइये. सरकार ने इस बीच राहत की घोषणा कर दी हो तो उसके बारे में बताइये. अगर आपके चैनल को राहत मिल गयी हो तो कायदे से दिखाइये. न मिली हो राहत की खिल्ली उड़ाइये. मंत्री को खाते हुये और जनता को भूख से बिल्लाते दिखाइये. दिल से नहीं दिमाग से काम लीजिये. अपनी स्ट्रेटजी बनाइये. खबर एक उत्पाद है. खबर को भुनाइये.
इसके बाद लोगों के बचने के किस्से दिखाइये. मुसीबत में कैसे लोग सहायक बने बताइये. ईश्वर के चमत्कार गिनाइये. बचे हुये लोगों को मुस्कराते हुये, अपनों से गले लगकर मिलते हुये दिखाइये.
ये तो हमने कुछ तरीके बताये. इनके अलावा आप जब रिपोर्टिंग करेंगे तो खुद आपको नये-नये तरीके निकालेंगे. आपको अपना दिमाग खुला रखना है और हमेशा याद रखना है कि खबर एक उत्पाद है. खबर को भुनाने की कला ही आपको सफ़ल मीडियाकर्मी बनाती है.
बाढ़ से रिपोर्टिंग सीखने की क्लास पूरी हो गयी. गुरुजी अगली कक्षा से निकल लिये. बच्चे अगले पीरियड के इंतजार में कामर्शियल ब्रेक की तरह चहक रहे हैं. अगला पीरियड में ’घपले-घोटाले की रिपोर्टिंग’ के गुर सिखाये जायेंगे.

21 responses to “बाढ की रिपोर्टिंग के तरीके”

  1. vineet kumar
    पूरी वर्कशॉप का खांका धर दिया आपने, चैनल में कहा भले ही न जाए पर होता ऐसा ही है
  2. Dr. Monica Sharrma
    कुछ ऐसा ही होता भी है …दुःख दर्द बेचने में माहिर हो चले हैं ये
  3. सतीश सक्सेना
    आप फिट हो गुरु इस धंधे के लिए ..
  4. shikha varshney
    एक मीडिया स्कूल खोल लिया जाए अब तो :)
    shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..गृह विज्ञान ..किसके लिए ?
  5. arvind mishra
    साबित हुआ व्यंगकार का व्यंगकार होता है -मानवीय पीड़ा ,सहानुभूति और घोर विभीषिका को भी उसका दिमाग व्यंग में बदलता रहता है!
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..भई यह पितृ दिवस ही है पितृ विसर्जन दिवस नहीं!
  6. arvind mishra
    २४ गुने ७ का व्यंगकार!
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..भई यह पितृ दिवस ही है पितृ विसर्जन दिवस नहीं!
  7. देवांशु निगम
    कित्ता सही है ये तो नहीं पता, पर खबर है की किसी चैनल ने कहीं और की फोटो अपने यहाँ की बता के चला दी और फिर माफी भी मांग ली !!!
    इस पर कुछ प्रकाश डालें गुरु जी !!!!
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..इतिहास में डुबकी और बिजली का टोका !!!
  8. Blog Bulletin
    ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन गूगल की नई योजना “प्रोजेक्ट लून”….ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
  9. प्रवीण पाण्डेय
    आप ही महाविद्यालय खोल लीजिये, बहुत चैनल और खुलने वाले हैं।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..जो है, सो है
  10. kavita verma
    बहुत बढ़िया रही वर्कशॉप बहुत कुछ सीखा …
    kavita verma की हालिया प्रविष्टी..धुंधलका
  11. Anonymous
    भगीरथ भाई ,
    आपने कमाल का चित्रण किया है . यही तो हो रहा है , मगर अब कुछ अच्छा कम भी हो रहा है . वैसे भी सभी चैनल कमर्शियल हैं , उन्हें तो यह सब करना ही है , भौपूं की तरह . बहहाल साधुवाद .
  12. Gyandutt Pandey
    ब्लॉगिंग का यही नफा है – आप किसी भी फील्ड के फटे में टांग अड़ा कर नसीहत दे सकते हैं! :-)
    Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉग की प्रासंगिकता बनाम अभिव्यक्ति की भंगुरता
  13. Anonymous
    चैनल गुरुओं के चेलों को या तो जन्‍मजात ये महारत हासि‍ल है या लगता है कि‍ गुरू ही trainers par excellence हैं
  14. Ratan Singh Shekhawat
    वाह ! शानदार !
    पत्रकारिता के छात्रों के लिए नायाब !
    Ratan Singh Shekhawat की हालिया प्रविष्टी..सामंतवाद : आलोचना का असर कहाँ ?
  15. Kajal Kumar
    मैं ज़ि‍म्‍मेदारी लेता हूं, ऊपर का कमेंट मेरा है, जो बि‍ना मुंडी के छप गया :(
    Kajal Kumar की हालिया प्रविष्टी..कार्टून :- रूपया गि‍रा ढप्‍प से
    1. समीर लाल
      जिम्मेदार इंसान!! :)
      समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..हरे सपने…एक कहानी..मेरी आवाज़ में..
  16. समीर लाल
    सन्नाट दिया धर के!!
    समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..हरे सपने…एक कहानी..मेरी आवाज़ में..
  17. Monika Jain
    Speechless
    Monika Jain की हालिया प्रविष्टी..Poem on Karma in Hindi
  18. Kush
    उस बाढ़ का तो पता नहीं लेकिन आपके लेखन की बाढ़ में डूबे रहने का अपना मज़ा है.. बहुत जबरजस्त लिखा है… हमारे गुरूजी को भी पसंद आया लगता है.. :)
  19. समीर लाल "टिप्पणीकार"
    सन्नाट!! :) महा गुरुदेव!!
    समीर लाल “टिप्पणीकार” की हालिया प्रविष्टी..पहाड़ के उस पार….इस बार मेरी आवाज़ में
  20. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] बाढ की रिपोर्टिंग के तरीके [...]