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यह फोटो हमारे मित्र Rajeev Sharma ने भेजते हुए अपन से मजे लिए -'अगर इस फोटो में (डॉ शुक्ला का) इश्तहार न होता तो यह इमारत लन्दन में किसी जगह की इमारत लगती।'
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आज अमर शहीद पंडित रामप्रसाद बिस्मिल का जन्मदिन है। उनकी याद को नमन करते हुए उनके जीवन से जुड़े किस्से यहां पेश हैं। कैसी विषम परिस्थियों में जिये हमारे क्रांतिकारी।
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इस मां के संकट के उन दिनों को बिस्मिल की बहन श्रीमती शास्त्री देवी के शब्दों में देखिए-"पिताजी की हालत दुख से खराब हुई। तब विद्यार्थी जी पन्द्रह रुपये मासिक खर्च देने लगे। उससे कुछ गुजर चलती रही। फिर विद्यार्थी जी भी शहीद हो गए। मुझे भी बहन से ज्यादा समझते थे। समय-समय पर खर्चा भेजते थे। माता-पिता, दादा, भाई, दो गाय थीं। रहने के लिए हरगोविंद ने एक टूटा-फूटा मकान बता दिया था, उसमें गुजर करने लगे। वर्षा में बहुत मुसीबत उठानी पड़ी। फिर पांच सौ रुपये पंडित जवाहरलाल जी ने भेजे। तब माता जी ने कहा कि कुछ जगह ले लो। इस तरह के दुख से तो बचें।
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इंसान के व्यक्तित्व का एक हिस्सा होता है जो हमेशा प्रेम को अस्वीकार करता है। यह वह हिस्सा होता है जो नष्ट होना चाहता है। ऐसे हिस्से को हमेशा अनदेखा/माफ किया जाना
आजकल खबरों में सच और झूठ , अफवाह और वास्तविकता इस कदर घुली मिली है कि असलियत पता नहीं चलती। लुटने वाला चोर साबित हो रहा है, जिसको जुतियाया जाना चाहिए उसकी जय बोली जा रही है। यह सब क्या है -'हमारे एक मित्र भन्नाते हुए बोले।'
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*किसी शहर से परिचित होने के लिए शायद सबसे आसान तरीका यह है कि यह जानने की कोशिश की जाए कि उसमें रहने वाले लोग किस तरह काम करते हैं, किस तरह प्यार और मुहब्बत करते हैं और किस तरह मरते हैं।
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मेरी तमाम ऐसी 'रचनाएं' भी हैं, जो मैं अपने मानस पटल पर ही लिखकर खुश हो गया, कागज पर उतारी नहीं। एक जमाना था कि इस तरह सोची हुई रचनाएं भी बोलकर सुना डालता था। खैर, अब तो आलम यह है कि बात करते-करते यह भी भूल जाता हूँ कि बात किस प्रसंग से शुरू की थी और उसे किस ओर ले जाना चाहता था। जो रचनाएं मैंने शुरू भी कीं, उनमें से भी ढेरों ऐसी हैं , जिन्हें मेरी अन्य व्यस्तताओं ने या मेरे भीतर बैठे आलोचक ने पूरा होने ही नहीं दिया।
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आज ज्योति त्रिपाठी रुचि द्वारा लिखा उपन्यास रुप्पू पढा। पेज नम्बर 7 से 160 तक पूरा उपन्यास एक सिटिंग में पढ़ गये। बहुत दिन बाद ऐसा हुआ कि कोई किताब एक दिन में पढ़ ली जाए। वरना पिछले कई महीनों से ऐसा होता आ रहा है कि एक से एक अच्छी मानी जाने वाली किताबें जितनी तेजी से शुरू हुई उतनी ही तेजी से, बिना पूरी पढ़े गए, उनकी जगह दूसरी किताबें आती गयीं।
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