http://web.archive.org/web/20140420082345/http://hindini.com/fursatiya/archives/4694
देश का भविष्य कक्षा के बाहर
By फ़ुरसतिया on August 31, 2013
बच्चे
का नाम शिवम है। पिता का नाम छोटे। मां का नाम पता नहीं। वो बूढ़ा माता की
बिटिया है। बूढ़ा माता का भी कोई नाम है कि नहीं पता नहीं। एक सामान्य बात
है। अपने यहां मां लोगों के नाम नहीं होते। मां के नाम कवितायें होती हैं।
शेर होते हैं। शायरी होती है। नाम नहीं होते। नाम से लय बिगड़ती है, कविता,
शेर और समाज की भी।
बच्चा कक्षा पांच में पढ़ता है। उसको स्कॉलरशिप मिलनी है। उसके लिये फ़ार्म भरवाने आया है। मां साथ में है। बच्चा दस साल कुछ महीने का है। बताता नहीं तो यही लगता कि अभी कक्षा एक-दो में होगा। पहले स्कूल में ही वजीफ़ा मिल जाता था। अब सरकार सीधे खाते में देगी। सरकार अब किसी पर भरोसा नहीं कर पाती। वजीफ़ा सीधे खाते में भेजेगी। सीधे खाते में भेजने से वजीफ़ा पाने वाले को भी आसानी होगी। लेकिन बच्चे की मां झल्ला रही है। कह रही है- पहिले सीधे मिल जाति रहैं। अब जानै कौन-कौन झमेला!
बच्चा स्कूल छोड़कर फ़ार्म भरने के लिये इधर-उधर घूम रहा है। स्कूल वालों ने फ़ार्म थमा दिये हैं। भराकर लाओ। धीरे-धीरे स्कूल वाले भी अनपढ होते जा रहे हैं।
फ़ार्म भरने के लिये नाम, कक्षा के अलावा और कोई विवरण पता नहीं न बच्चे को न उसकी मां को। बच्चा पांचवीं में पढ़ता है। उसको अपनी जन्मतिथि नहीं पता। घर का पता नहीं पता। उसको कुछ नहीं पता अपने नाम के सिवाय। साथ के सब कागज प्लास्टिक के थैले से उलटने के बाद भी विवरण नहीं मिलते। वे लौट जाते हैं। अगले दिन आयेंगे सब ’कागज’ लेकर। वजीफ़े के लिये बैंक का खाता खुलना जरूरी है।
आज बच्चा फ़िर अपनी अम्मा के साथ सब कागज लेकर आता है। अभिभावक की जगह पर पिता के अलावा कोई और नाम है। पता चला नाना हैं। वजीफ़े के तीन सौ महीने मिलने हैं। खाता खुलने का फ़ार्म सब अंग्रेजी में है। कुछ कालम भरने के लिये मैं अपने बैंक वाले भाईसाहब से पूछता हूं। फ़ार्म भरते हुये और भी बातें होती रहती हैं।
सरनेम पर पता चलता है कि कुरील हैं। बच्चे की मां बताती है- कुरील लिखत हन, चमार जाति है।
मैं बैंक फ़ार्म में केवल बच्चे का नाम और पिता का नाम भरता हूं।
पांचवी में पढ़ने वाले शिवम से मैं पहाड़े सुनाने के लिये कहता हूं। सुना नहीं पाता। नाम लिख लेता है। बताता है कोचिंग पढ़ने जाता है। आज ज्यादातर बच्चे दो जगह पढ़ते हैं। दो तरह के स्कूल हो गये हैं। एक स्कूल में नाम लिखाने, वजीफ़ा, मिड डे मील, लैपटॉप और डिग्री वगैरह के लिये। दूसरा पढ़ने के लिये। सफ़ल होने के लिये दोनों में जाना अनिवार्य होता जा रहा है।
बता रही हैं बच्चे की मां कि शिवम का एडमिशन उसकी मौसी ने कराया था। मौसी मतलब उसकी छोटी बहन। आई.टी.आई. की थी वो। घर में आने वाले एक लड़के के साथ भागकर शादी कर ली। घर वालों ने पुलिस में रिपोर्ट की। लड़की बालिग थी। उसने कहा उसने अपनी मर्जी से शादी की। घर वालों ने कचहरी में ही लड़की और उसके पति को बहुत मारा। लड़की से सम्बन्ध खतम कर लिये। लड़की उनके लिये मर गयी। अपनी मर्जी से शादी करने वाली लड़कियों की नियति ही होती है घर वालों के लिये मर जाना।
लड़की घर वालों के लिये मर भले गयी हो लेकिन उसकी बातें याद आती हैं घर वालों को। फ़ार्म भराने आयी लड़के की मां बताती है- वो यहिते कहिके गयी है कि बबुआ पढ़ाई न छ्वाड़ेव। खूब पढ़ेव।
हमने पूछा कि अपनी मर्जी से शादी कर ली तो कौन गुनाह किया? लड़के की मां बताती है -“बिरादरी में नाक कट गयी। बता के करती तो धूमधाम से शादी करते। भाग के करी तो इज्जत चली गयी। फ़ार्म भरने के बहाने चली गयी।”
बताते हुये मुझे अपनी चचेरी बहन याद आ गयी। वो अपनी मर्जी से एक लड़के से शादी करना चाहती थी। इस कारण उसने कई लड़कों से शादी मना कर दी। घर वालों को जब पता चला तब सब एकदम अड़ गये कि शादी उस लड़के से तो नहीं करेंगे। बहन भी अड़ गयी- शादी उसी से करेंगे। आखिर में उसकी मर्जी से शादी की व्यवस्था हुई। पिता और उसके समर्थ भाई शादी में नहीं शामिल हुये। उनके लिये लड़की मर चुकी है। किसी के लिये भले वह मर चुकी हो लेकिन फ़िलहाल वह अपने पति के साथ खुश है।
यह पोस्ट लिखते हुये बच्चा दुबारा आया फ़ार्म दिखाने। उसकी फोटू खींची। ऊपर उसी की फ़ोटो है। मोबाइल में दिखाने पर बताया कि टेड़ी है। फ़िर दूसरी खैंची। अब वो बैंक जा रहा है। फ़ार्म जमा करने। वजीफ़े के लिये स्कूल छोड़ा बच्चे ने दो दिन। कैसे पहाड़े याद कर पायेगा? आज हालांकि वह कुछ सहज था। बारह तक पहाड़े भी सुनाये। आगे नहीं आते।
पूछने पर बच्चा मां, नानी और मौसी के नाम भी बताता है। नाम तो सबके होते हैं। लेकिन हम उनको भूल जाते हैं। भूलते क्या , याद ही नहीं करते। जरूरत ही नहीं पड़ती।
टी.वी. पर गिरफ़्तारी से भागते आशाराम, पकड़े गये भटकल, गिरते रुपये और संसद में अमर्यादित बहस के किस्से आ रहे हैं। एक चैनल करीना और सैफ़ की मोहब्बत के किस्से बयान कर रहा है।
मन किया कि बच्चे से पूछे कि इस सब के बारे में उसको क्या जानकारी है। लेकिन बच्चे के चेहरे पसरी मजबूरी और जिम्मेदारी के भाव देखकर सहम गया मन।
ये बच्चा हमारे देश का भविष्य है। देश का भविष्य वजीफ़े के लिये कक्षा छोड़कर बैंक, स्कूल और इधर-उधर भटक रहा है।
अपन भी सब निर्लिप्त भाव से लिखते हुये पूछ रहे हैं -आपका क्या कहना है इस मसले में।
बच्चा कक्षा पांच में पढ़ता है। उसको स्कॉलरशिप मिलनी है। उसके लिये फ़ार्म भरवाने आया है। मां साथ में है। बच्चा दस साल कुछ महीने का है। बताता नहीं तो यही लगता कि अभी कक्षा एक-दो में होगा। पहले स्कूल में ही वजीफ़ा मिल जाता था। अब सरकार सीधे खाते में देगी। सरकार अब किसी पर भरोसा नहीं कर पाती। वजीफ़ा सीधे खाते में भेजेगी। सीधे खाते में भेजने से वजीफ़ा पाने वाले को भी आसानी होगी। लेकिन बच्चे की मां झल्ला रही है। कह रही है- पहिले सीधे मिल जाति रहैं। अब जानै कौन-कौन झमेला!
बच्चा स्कूल छोड़कर फ़ार्म भरने के लिये इधर-उधर घूम रहा है। स्कूल वालों ने फ़ार्म थमा दिये हैं। भराकर लाओ। धीरे-धीरे स्कूल वाले भी अनपढ होते जा रहे हैं।
फ़ार्म भरने के लिये नाम, कक्षा के अलावा और कोई विवरण पता नहीं न बच्चे को न उसकी मां को। बच्चा पांचवीं में पढ़ता है। उसको अपनी जन्मतिथि नहीं पता। घर का पता नहीं पता। उसको कुछ नहीं पता अपने नाम के सिवाय। साथ के सब कागज प्लास्टिक के थैले से उलटने के बाद भी विवरण नहीं मिलते। वे लौट जाते हैं। अगले दिन आयेंगे सब ’कागज’ लेकर। वजीफ़े के लिये बैंक का खाता खुलना जरूरी है।
आज बच्चा फ़िर अपनी अम्मा के साथ सब कागज लेकर आता है। अभिभावक की जगह पर पिता के अलावा कोई और नाम है। पता चला नाना हैं। वजीफ़े के तीन सौ महीने मिलने हैं। खाता खुलने का फ़ार्म सब अंग्रेजी में है। कुछ कालम भरने के लिये मैं अपने बैंक वाले भाईसाहब से पूछता हूं। फ़ार्म भरते हुये और भी बातें होती रहती हैं।
सरनेम पर पता चलता है कि कुरील हैं। बच्चे की मां बताती है- कुरील लिखत हन, चमार जाति है।
मैं बैंक फ़ार्म में केवल बच्चे का नाम और पिता का नाम भरता हूं।
पांचवी में पढ़ने वाले शिवम से मैं पहाड़े सुनाने के लिये कहता हूं। सुना नहीं पाता। नाम लिख लेता है। बताता है कोचिंग पढ़ने जाता है। आज ज्यादातर बच्चे दो जगह पढ़ते हैं। दो तरह के स्कूल हो गये हैं। एक स्कूल में नाम लिखाने, वजीफ़ा, मिड डे मील, लैपटॉप और डिग्री वगैरह के लिये। दूसरा पढ़ने के लिये। सफ़ल होने के लिये दोनों में जाना अनिवार्य होता जा रहा है।
बता रही हैं बच्चे की मां कि शिवम का एडमिशन उसकी मौसी ने कराया था। मौसी मतलब उसकी छोटी बहन। आई.टी.आई. की थी वो। घर में आने वाले एक लड़के के साथ भागकर शादी कर ली। घर वालों ने पुलिस में रिपोर्ट की। लड़की बालिग थी। उसने कहा उसने अपनी मर्जी से शादी की। घर वालों ने कचहरी में ही लड़की और उसके पति को बहुत मारा। लड़की से सम्बन्ध खतम कर लिये। लड़की उनके लिये मर गयी। अपनी मर्जी से शादी करने वाली लड़कियों की नियति ही होती है घर वालों के लिये मर जाना।
लड़की घर वालों के लिये मर भले गयी हो लेकिन उसकी बातें याद आती हैं घर वालों को। फ़ार्म भराने आयी लड़के की मां बताती है- वो यहिते कहिके गयी है कि बबुआ पढ़ाई न छ्वाड़ेव। खूब पढ़ेव।
हमने पूछा कि अपनी मर्जी से शादी कर ली तो कौन गुनाह किया? लड़के की मां बताती है -“बिरादरी में नाक कट गयी। बता के करती तो धूमधाम से शादी करते। भाग के करी तो इज्जत चली गयी। फ़ार्म भरने के बहाने चली गयी।”
बताते हुये मुझे अपनी चचेरी बहन याद आ गयी। वो अपनी मर्जी से एक लड़के से शादी करना चाहती थी। इस कारण उसने कई लड़कों से शादी मना कर दी। घर वालों को जब पता चला तब सब एकदम अड़ गये कि शादी उस लड़के से तो नहीं करेंगे। बहन भी अड़ गयी- शादी उसी से करेंगे। आखिर में उसकी मर्जी से शादी की व्यवस्था हुई। पिता और उसके समर्थ भाई शादी में नहीं शामिल हुये। उनके लिये लड़की मर चुकी है। किसी के लिये भले वह मर चुकी हो लेकिन फ़िलहाल वह अपने पति के साथ खुश है।
यह पोस्ट लिखते हुये बच्चा दुबारा आया फ़ार्म दिखाने। उसकी फोटू खींची। ऊपर उसी की फ़ोटो है। मोबाइल में दिखाने पर बताया कि टेड़ी है। फ़िर दूसरी खैंची। अब वो बैंक जा रहा है। फ़ार्म जमा करने। वजीफ़े के लिये स्कूल छोड़ा बच्चे ने दो दिन। कैसे पहाड़े याद कर पायेगा? आज हालांकि वह कुछ सहज था। बारह तक पहाड़े भी सुनाये। आगे नहीं आते।
पूछने पर बच्चा मां, नानी और मौसी के नाम भी बताता है। नाम तो सबके होते हैं। लेकिन हम उनको भूल जाते हैं। भूलते क्या , याद ही नहीं करते। जरूरत ही नहीं पड़ती।
टी.वी. पर गिरफ़्तारी से भागते आशाराम, पकड़े गये भटकल, गिरते रुपये और संसद में अमर्यादित बहस के किस्से आ रहे हैं। एक चैनल करीना और सैफ़ की मोहब्बत के किस्से बयान कर रहा है।
मन किया कि बच्चे से पूछे कि इस सब के बारे में उसको क्या जानकारी है। लेकिन बच्चे के चेहरे पसरी मजबूरी और जिम्मेदारी के भाव देखकर सहम गया मन।
ये बच्चा हमारे देश का भविष्य है। देश का भविष्य वजीफ़े के लिये कक्षा छोड़कर बैंक, स्कूल और इधर-उधर भटक रहा है।
अपन भी सब निर्लिप्त भाव से लिखते हुये पूछ रहे हैं -आपका क्या कहना है इस मसले में।
Posted in बस यूं ही | 12 Responses
विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..म्यूचयल फ़ंड में डाइरेक्ट या रेग्यूलर प्लॉन किसमें निवेश करें ?(Where to Invest Mutual fund Direct or Regular plan)
archanachaoji की हालिया प्रविष्टी..अगर हम ठान लें मन में …..
Kajal Kumar की हालिया प्रविष्टी..कार्टून :- सो रहे थे क्या ?
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..पर्यटन – एक शैली
वे भी दिन थे,जब चलने पर,धरती कांपा करती थी,
मगर आज,वो जान न दिखती,बस्ती के सरदारों में ! -सतीश सक्सेना
कट्टा कानपुरी असली वाले की हालिया प्रविष्टी..हमने हाथ लगाकर देखा,ठंडक है, अंगारों में -सतीश सक्सेना
कभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/