Friday, November 21, 2008

ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती

http://web.archive.org/web/20140419213612/http://hindini.com/fursatiya/archives/545

35 responses to “ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती”

  1. Satish Pancham
    हुर्रे….एकदमै फुरसतिया लेख। बहुत उम्दा ।
  2. VIVEK SINGH
    बोले तो फुरसतिया ब्राण्ड टाइमपास . झकास लिखेले हो . हमारे गुरु को भी लपेट लिया . बेचारे कल वहाँ लपेटे गए , आज यहाँ .
  3. Tarun
    Tanki pe charkar tippanibaaj nazae aayen, to Phir wahan hume bhi bulaya jay
    muktak bare shabdaar rahe, pehli baar hi pari hongi is terah ki kuch lines.
    bakiya to sabhi mast hai,
  4. Tarun
    connection ka to pata nahi lekin tippani karke daali to connection try karne wali jaroor dikh gayi ;) jo abhi tak gayab thi
  5. seema gupta
    चांद लंगड़ा रहा था हम बोले ई कैसे, कैसे हुआ,
    तेरी चांदनी किधर गयी ये पलस्तर क्यों हुआ?
    बोला पूछो न भैया डाक्टर के यहां मिला अंधेरा ,
    थोड़ी पी के टहल रहे थे उनके आंगन गिरे मुंहभरा!
    ha ha ha ha ha ha ha chand ko aap he pilaa sktyn hain, or kise ke bus ka ye kaam to hai nahee…….wonderful writing..enjoyed each word..
    regards
  6. ताऊ रामपुरिया
    चांद लंगड़ा रहा था हम बोले ई कैसे, कैसे हुआ,
    तेरी चांदनी किधर गयी ये पलस्तर क्यों हुआ?
    शुक्लजी कुछ भी कहिये , सुबह सुबह चोला मस्त हो गया आपकी पोस्ट पढ़ कर ! अभ दो तीन बार और आकर पढेंगे ! बहुत धन्यवाद !
  7. कविता वाचक्नवी
    जमाए रहिए।
    तुक्तक पर भारी –
    फ़ुरसतिया होगा पहला कवि,
    चिरकुटई से उपजा होगा गान!
    सो, अब जल्दी से उस गान की पोडकास्टिंग करवा लीजिए। सब सुनने का आनंद लें।
  8. समीर लाल
    आशा करता हूँ अब टिप्पणियों की संख्या तसल्ली देगी और आप टंकी पर चढनें का मनोरथ त्यागेंगे.
    कविता के नाम पर फुरसती कलम काफी लचक के चली.. :) मजा आया चाल देखकर.
  9. कुश
    बड़ी ख़ालजयी पोस्ट लिख डाली है आपने.. मेरा मन भी वही कर रहा है जो उस महान राजा का कर रहा था..
  10. संजय बेंगाणी
    एकीदम फुरसतियाई पोस्ट….बाकि हम कवि तो है नहीं…… :)
  11. VIVEK SINGH
    आपने फोटू हमारे टिपियाने के बाद लगाया, इसलिए उसके लिए अलग से टिप्पणी है जी. पसंद आगई . आपका भी टंकी पर चढने का मन करता है जानकर खुश होंगे वे लोग, जो पहले एकाध बार टंकी की सैर कर चुके हैं . छोटा मुहँ बडी बात : आपके ब्लॉग पर टिप्पणी करके लगता है जैसे आपने इसे प्रकाशित करके हम पर एहसान किया हो . अगर टिप्पणी तुरंत प्रकाशित होजाय तो क्या कहना .
  12. paramjitbali
    फुरसतिया जी,सही शीर्षक दिया है”ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती” यह हाल सभी का है।रही टिप्पणी की बात तो चिन्ता ना करें और टंकी पर चड़ने की जरूरत भी नही है।आप बहुत बढिया लिखते हैं। बस इन्तजार करीए-”वो सुबह कभी तो आएगी….जब जनता खूब टिपियाएगी…..”
  13. Debashish
    आप क्यों चढ़े टंकी भैयाजी, आपकी पोस्ट पर टिप्पणी करने में कोई कंजूसी नहीं कर सकता :) छान पोस्ट!
  14. रवि
    आप तो पोस्ट पे पोस्ट लिक्खो. तसल्ली तो हम पाठकवा के पास है ना! ढेर तसल्ली.
  15. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    टंकी पर चढ़ने की नौबत आ रही है?! आखिर हम पहले ही कर रहे थे हम जैसे शरीफों से मौज न लीजिये। शरीफ की आह बहुत लगती है! :-)
  16. Shiv Kumar Mishra
    बहुत शानदार!
    अर्थ सलाहकार दुर्योधन की डायरी का ‘अर्थ’ ही तो निकाल रहा था. यही कारण है कि दुरजोधन के बारे में जानता है और अर्थ के बारे में नहीं.
    “वैसे तो कवित विवेक एक नहीं मोरेहु”…
    त झाल कवि ‘वियोगी’ की तरह कवितवा ठेलें का एक ठो?
  17. Abhishek Ojha
    इन फुरसतिया ब्रांड चार-चार लाइनों के आगे सब फीके हैं !
  18. विनय प्रजापति
    आप तो ब्लागरों में सबसे आगे हो फिर तसल्ली अपना रस्ता कैसे भटक गयी!
  19. tara chandra gupta
    mai to kahata hoon is bar “tasalli” ko hi mariye.
  20. डा. अमर कुमार
    वाह, आनन्दम आनन्दम.. बड़ि मौज़दार पोस्ट है, अनूप भाई !
    यह अपने दिमाग के सोचे ( शौचे ) वाला डब्बा साफसुथरा रक्खे वालों के लिये नहीं, बल्कि हम जैसे ज़बरद्स्ती के लेखक विचारक चिंतक ठेलक-पेलक घोंचू मानुष के लिये नसीहत पोस्ट है !
    वाह, आनन्दम आनन्दम, उल्टे पंडिताइन इस पोस्ट की तुक भिड़ा रहीं हैं, ” तारीफ़ करूँ क्या उसकी.. जिसने इन्हें बनाया ! ” सच्ची फ़ुरसत में बनाये गये होगे, तभी फ़ुरसतिया मार्का ब्लाग ढालना मुश्किल है ! वाह, आनन्दम आनन्दम.. वैसे मुझे तो इसके पीछे छिपा दर्द भी दिख रहा है सो, साधुवाद !

  21. सागर नाहर
    हम तो तुक्‍तक और चार लाईनां पढ़ कर ही मुस्कुरा रहे हैं, ठेठ नीचे आते आते टंकी पर चढ़ने के राज का पर्दाफाश भी कर दिया।
    बढ़िया है
  22. anita kumar
    हाले-दिन सुनाना है,मुआ कनेक्शन नहीं मिलता
    हमें तो फ़ुरसत रहती है,उनका नेटवर्क बिजी रहता है
    रोना चाहते हैं तेरी याद में ,जी भर के सनम हम
    सारा मेकअप बिगड़ जायेगा, बस इसका डर लगता है।
    ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती,
    लोग पढ़ते हैं टिप्पणी नहीं मिलती,
    इस ब्लाग दशा से उबरने का उपाय बतायें
    टंकी पर चढ़ जायें, मनचाही टिप्पणियां पायें।
    वाह वाह!
    वैसे टंकी पर चढ़े तो तसल्ली को साथ ले जाना अच्छा साथ रहेगा, पता नहीं कितने पल का प्रोग्राम हो टंकी पर। अब टंकी पर चढ़ ही रहे हो तो , लगे हाथ अनुराग जी का भी काम कर देना और चांद को भी ऊपर टांग आना…।
  23. मसिजीवी
    डिलर्निंग…यानि ज्ञानसफाई। वाह क्‍या ईजाद है।
    उम्‍मीद है कि हम अगर इसका इस्‍तेमाल क्‍लास में करें तो आप किसी रायल्‍टी की मांग नहीं करेंगे।
  24. फुरसतियाजी, कृपया भूल सुधारें!
    [...] ठीक वैसे ही कल फुरसतियाजी की एक पोस्ट हिट हो गई – [...]
  25. eswami
    मेरी प्रतिक्रिया यहां है!
  26. राज भाटिया
    गाय बोली बैल से, “क्यों छेड़ते हो भाई
    जानते हो, कहते हैं सब मुझे माई?”
    बैल बोला धत्त रे
    मारूंगा दुलत्त रे
    मैं भी चौपाया हूं, और तू भी है चौपाई
    अरे सांड भी तो चोपाया है, फ़िर गाय उसे क्या बोलेगी??
    अगर हंसना है ओर खुन बढाना है तो आप का लेख जरुर पढना चाहिये.
    धन्यवाद
  27. neeraj
    खूब लिखे हो भाई…तुक्तक, मुक्तक और चौपाई…हम को सारी समझ में आई…ही ही ही ही…
    नीरज
  28. दीपक
    कर लो दुनिया मुठ्ठी मे ब्लाग लिखो चुटकी मे !!
    वैधानिक चेतावनी : ब्लागिंग राईटिंग इज इंजेरीयश फ़ार रीडर ॥
  29. Vivek Kesarwani
    भाई अनूप जी, तुत्तक, चौपाई और कविताओं की ऑडियो पॉडकास्ट सुनने को मिल जाए तो और मज़ा आ जाए, फ़िर तो इत्ता टिपियाये जायेंगे की…. आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हु. शानदार लेख, अच्छा लगा
  30. anupam agrawal
    कल चाँद फ़िर आया था ,बड़े गुस्से में था ,
    कह रहा था कि ये फुरसतिया जी को समझाइये कि मुझे ‘मुआ’और ‘लंगडा ‘ क्यों कह रहे हैं .जरा सा गिर गया तो ये ढिंढोरा पीट दिए .
    अभी मै हर तरफ़ लफ़ड़े , भाई-भाई में झगड़े नहीं करा रहा हूँ वरना मुझे ऊपर से कभी कोई लाइन कभी कोई लाइन दिखाई दे रही है मै टिप्पणी में बता दूंगा .उदाहरणार्थ ;
    ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती
    इनसे निपटने का क्या तो क्या करें?
    देख लो कहीं कुछ फ़साना न हो जाये
    सारा मेकअप बिगड़ जायेगा, बस इसका डर लगता है।
  31. प्रवीण त्रिवेदी-प्राइमरी का मास्टर
    # ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती,
    लोग पढ़ते हैं टिप्पणी नहीं मिलती,
    इस ब्लाग दशा से उबरने का उपाय बतायें
    टंकी पर चढ़ जायें, मनचाही टिप्पणियां पायें।
  32. प्रवीण त्रिवेदी-प्राइमरी का मास्टर
    # चांद लंगड़ा रहा था हम बोले ई कैसे, कैसे हुआ,
    तेरी चांदनी किधर गयी ये पलस्तर क्यों हुआ?
    बोला पूछो न भैया डाक्टर के यहां मिला अंधेरा ,
    थोड़ी पी के टहल रहे थे उनके आंगन गिरे मुंहभरा!
  33. anupam agrawal
    सर और एक बात ;
    आप ने बताया था ये देख लें शायद अच्छा लगे .
    त्रिवेणी :एक विधा
    मैंने उसे पढ़ा .
    आप ने बहुत बदिया ज्ञान दिया है .
    इजाज़त हो तो हम भी एक कोशिश कर लें ;
    रात भर चाँद ने छटा भी दी दिखला
    सुबह का सूरज मचल कर निकला
    किसको सुंदर कहें किसको नाराज़ करें
  34. E-Guru Rajeev
    :)
  35. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती [...]

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Tuesday, November 18, 2008

कविता,गिरगिट और समय

http://web.archive.org/web/20140419213031/http://hindini.com/fursatiya/archives/555

38 responses to “कविता,गिरगिट और समय”

  1. दिनेशराय द्विवेदी
    बड़ा ही खतरनाक सवाल पूछा है आप ने। इसे ढका ही रहने दें तो अच्छा है। अनेक कविराजों की कुर्सियाँ हिल जाएंगी, धराशाही न हो जाएँ?
  2. anil pusadkar
    ठीक कह रहे है अनूप जी,आदमी अपने हिसाब से उपमाए बनाता है और फ़िर उसका इस्तेमाल भी अपने हिसाब से ही करता है।गिरगिट का अपनी जान बचाने के लिये रंग बदलना धोका है और आदमी का किसी की लुटिया डूबाने के लिये रंग बदलना भी वही।बहादुर लोगो को शेर कहा जाता है मगर डिस्कवरी चैनल देखो तो शेर राजा कभी भैसे से लात तो कभी जंगली कुत्तो से मात खाते नज़र आते है।वैसे गिरगिट का फ़ेवर करके आपने मेनका गांधी के लिये नया आईडिया तैय्यार कर दिया है। वैसे बचपन से ही हमने भी कभी गधे कभी घोडे और कभी-कभी सुअर का खिताब जीत कर उन नीरिह जानवरो पर अन्याय किया है ।एकाध बार उन पर और लोमडी की चालाकी और सबसे अहम कुत्ते की वफ़ादारी पर भी नज़र डालियेगा,वफ़ादार इंसानो का भी तो भला करिये। हां एक बात ज़रुर है नीरज जी की कविता वाकई बेहतरीन है,इसमे कोई शक नही।
  3. ताऊ रामपुरिया
    मुझे लगता है कि दुनिया की तमाम कवितायें अल्पविराम, पूर्णविराम का सही प्रयोग न जानने वालों की अक्षमता के नमूने हैं। व्याकरण की जानकारी के अभाव में लोग शब्दों कॊ ऊपर-नीचे सजाते रहे। लोगों के पास इफ़रात में कागज रहा होगा।
    शुक्ल जी क्या कोट करे और क्या छोडे ? ५ बार कापी कर लिया और फ़िर मिटा दिया ! आपका ये पूरा आलेख ही मुझे तो सटीक कविता लग रहा है ! हालांकी मुझे समझ और पात्रता तो नही है पर मैं तो इसे उत्कृष्ट रचना कहूंगा ! बहुत बधाई और शुभकामनाएं !
  4. कविता वाचक्नवी
    हे राम। क्या से क्या हो गया, … कविता से गिरगिट… उस से फ़ौज… फ़ौज से जंगल-पत्ते, … और फिर ओबामा …..अन्त में आलू… । कहाँ से इतना तत्वदर्शी चिन्तन लाते हैं? मैं ऐसी कल्पना तो क्या इस कल्पना की कल्पना भी नहीं कर पाऊँ।
    अब रही “आपका क्या विचार है? आपै कुछ बताओ कि कविता क्या है?”
    अभी नींद आ रही है इसलिए इतना ही समझ आ रहा है कि अपने तईं कविता तो मैं ही स्वयं हूँ।
    नींद हो ले तो तब दिमाग चले शायद, तब प्रश्न पर विचार हो।
  5. VIVEK SINGH
    मेरे विचार से तो वडनेरकर जी की अदालत में मामला ले जाया जाय . जैसे गंध का सुगंध और दुर्गंध होता है ऐसे ही धोखा का सुधोखा और कुधोखा या दुधोखा कुछ होता है क्या ? अथवा होने की संभावना हो सकती है क्या ?
  6. गिरगिट (जो कभी रंग बदलता था)
    कवियों और शायरों ने हमें समझ क्या रखा है? हमारी तुलना इंसान से कर रहे हैं! हम इसके विरोध में आज से ही रंग बदलना बंद करते हैं. फिर देखते हैं कि कवितायें कैसे लिखेंगे ये कविगण.
    अपने विरोध के प्रथम चरण में हम उद्देश्य है कि दुनियाँ में कविता लिखने में कमी आए. कम से कम साढ़े नौ प्रतिशत की कमी.
    दुनियाँ के सारे गिरगिट एक हों.
    इन्कलाब जिंदाबाद
  7. seema gupta
    काश कि गिरगिट भी एक ब्लाग लिख सकता तो अपनी आवाज उठाता -दुनिया के सारे गिरगिटों एक हो। शायद अपनी कोई सभा बुलाता। अपना ग्रुप ब्लाग बनाता। इंसान द्वारा अपने ऊपर किये जा रहे अत्याचारों का बखान करते हुये इंसान से बराबरी की मांग करता। इतना तो वह करवा ही लेता कि मौका परस्त लोगों से हमारा कोई संबंध नहीं है।
    “ha ha ha ha ha ha kya sujav diya hai aapne, kya parvee kree hai girgit kee apne, wah chlo kise ko to girgit pr dya aaye…great”
    regards
  8. Dr.Anurag
    एक अच्छा पढने वाला ही एक अच्छा लिख सकता है…..जिस पाश की कविता लोग रोज ब्लॉग पे डालते है शायद कुछ लोग उसे बकवास कह दे …फ़िर भी अच्छा लिखा अक्सर पढ़ा जाता है….जावेद अख्तर गर फिल्मी गीत लिखते है तो “तरकश ” में उनका निहायत ही जुदा रूप नजर आता है …गुलज़ार ,अमृता प्रीतम ,परवीन शाकिर …का एक अलग अंदाज है वे उर्दू के कवि है ….पर जिनकी उर्दू हिन्दी वालो को समझ आती है…..आप उन्हें शायर कहे या कवि….पढ़ा जाना महतवपूर्ण है …४ साल पहले तक …मुझे ख़ुद नही मालूम था की त्रिवेणी क्या है …हाइकू किस बला का नाम है ….पढ़ना इसलिए जरूरी है ..कोई भी विधा ख़राब नही होती है लिखने वाला ख़राब होता है……नया ज्ञानोदय ,कथादेश ,हंस में कई कहानिया इतनी रद्दी ओर बकवास होती है की इस भरम से भी बाहर आ गए की छपने वाले ही अच्छे लेखक होते है…बस सबके taste की बात है …मुनव्वर राणा को उर्दू जमात के लोग शायर नही मानते ..पर मुशायरे में उनसे भीड़ जुटी है .उनकी किताबे हिन्दुस्तान में भी उतनी ही बिकती है जितनी पकिस्तान में ….माँ पर लिखी उनकी शायरी को इन्टरनेट पर लाखो बार सर्च किया गया है…..चेतन भगत पर हिन्दी लेखक नाक भौं सिकोड़ लेगे पर शायद उनकी किताब की रोयल्टी कितनी होगी वे भी जानते है…..यानी सब कुछ गड-मड है …..जब से ब्लॉग आया है …तबसे हर आदमी पेंटर ,डॉ ,कवि ,लेखक बन रहा है…कभी ऐड्स के रोगी को ठीक करने के दावे होते है …तो जो कविता लिख रहा है उसे कविता लिखने दीजिये ……मस्त रहिये
  9. Zakir Ali 'Rajneesh'
    कविता एक ऐसी भडास है, जिसे हर कवि दूसरे पर उलीचता है, पर वह दूसरे की कविता सुनने से हरदम बचता है।
    यह हमारे एक मित्र का कथन है, जो बेचारे थे तो कवि, पर अब नहीं रहे। मेरा मतलब अब कवि नहीं रहे। कवियों ने उन्हें इतना झेलाया कि उन्हें कविता से ही नफरत हो गयी है।
    वैसे आपका विवेचन लाजवाब है।
  10. Abhishek Ojha
    कविता के बारे मैं हम क्या जानें ! बस इत्ता जान गए की गिरगिट के साथ बड़ा अन्याय हुआ है. गिरगिट ही क्यों ऐसा कई जानवरों के साथ हुआ है… उल्लू, गदहा, कुत्ता … . काश आन्दोलन कर पाते बेचारे :-)
  11. rachna
    ठग्गू के लड्डू
    नहीं रह गयी हैं अब कविता
    कि फुर्सत मे गप से खा जाओ
    ग्लोबल हो चली हैं कविता
    सो गले मे भी अटकती हैं
    हल्के शब्दों से भारी कविता
    उफ़ इतनी अभद्रता !!
    आंसू भरी होती तो पोछते !!!
    आह भरी होती तो समझाते !!!!
    लब नयन नक्श होते तो निहारते !!!!!!!!
    फुर्सत मे चिंतन से कविता और कवि
    पर चिरकुटाई मंथन करते हैं जो
    कविता को न समझे हैं ना समझ सकेगे वो !!!!
    गिरगिट की तरह रंग नहीं बदली है कविता
    कविता थी कविता हैं और कविता रहेगी कविता
  12. झाल कवि 'वियोगी'
    गया समय जब ठग्गू के लड्डू थी कविता
    हाथ बढाया मुंह में रखा और गल गई
    लोकल कवियों ने अब उसे बनाया ग्लोबल
    अब खाओ तो पता चले कि जीभ जल गई
    गया ज़माना पहले जब मीठी लगती थी
    अब कविता का मीठापन है एक छलावा
    हरी मिर्च सी तीखी और इमली सी खट्टी
    थोड़ा चख कर देखो तो होगा पछतावा
    कवि-कवियित्री जो भी कुछ रचकर देते हैं
    उसमें नख और नयननक्श का गया ज़माना
    अब बस उसमें आजादी है, और लहू है
    जैसे कहती संभलो, मेरे पास न आना
    थोड़ी फुरसत और निकालो, कविता लिख दो
    आधी भी होगी तो भी वो चल जायेगी
    चिरकुटई का रंग चढ़ा हो या बेरंगी
    जैसी भी हो, जहाँ कहीं हो, ढल जायेगी
    लेकिन क्या उम्मीद करें हम फुरसतिया से
    उनकी क्या औकात लिखें और ठेलें कविता
    वो तो बस बैठे-ठाले खींचें कवियों को
    वो कवि जो हैं बहा रहे कविता की सरिता
    वो सरिता जो सनी हुई कीचड़, मिट्टी से
    जिसमें भाषा का हो जाता तीया-पांचा
    जिसमें देखें छंदों को दम घुटकर मरते
    जिसमें रखा रहता उसकी मौत का सांचा
  13. kanchan
    pahale ye bataiye ki ye Neeraj Ji ne aur aap ne jis sunder se jeev ki fotoo laga rakhi hai, ye sach me Girgit hai kya…??? aisa indradhanushi Girgit hamane to nahi dekha abhi tak…!!!! :( ham log to jis girgit ko dekh kar apane dant chhupa lete the vo bada ghinahaa sa prani tha..!
    doosari baat kyo hamari blogging band karavaana chahate hai.n??? hamnae aap ka kya bigada hai..??? are le de kar kavita hi to aisi chhej hai jise ham likh pate hai.n us par aise bahas shuru kara de.nge, to ham jo 2 mahine me ek baar khush hote hai tiipadiya.n padh ke vo bhi hamare hath se chala jayega…!:( :(
  14. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    जय हो फुरसत (फुरसतिया) की। उनके सत्संग से गिरगिट के दिन बहुरे!
    नोट : हम इत्ती जयजयकार इसलिये कर रहे हैं – कभी हमारे लिये भी लिख दें वे और झाल कवि वियोगी जन्नाटेदार कवितायें!
  15. VIVEK SINGH
    झाल कवि मत बनो वियोगी , कविता मरी नहीं है , अनूप शुक्ला लाख डराएं कविता डरी नहीं है . ये तो हमने तुक मिलाई . दर असल अनूप जी को तो खुद कविता से प्यार है .
  16. Shiv Kumar Mishra
    अनुराग जी की बात से सहमत. मानव-मन की भावनाओं को अगर कविता में व्यक्त किया जा सके तो उससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता. हाँ, गद्य याद रखना मुश्किल होता है. लेकिन कविता याद रह जाती है. दर्शन दोनों में रहता है. इसलिए हमें तो कविता से बहुत प्यार है.
  17. दीपक
    यदि आलु कि किमत मंदी के करण बढ कर १० रु किलो भी मान ले तब भी आलोक जी ने सारे ब्लाग की कविता को पचास रुपये मे बेचने का ऐलान कर दिया और आपने अपने ब्लाग में उनका क्लोजब विज्ञापन टांग दिया ॥इससे बढिया ये ना होगा कि हम रोज अपनी कविता पढे और उबकर सो जायें ॥हा हा हा हा
    कंपनी का सारा प्राफ़िट अमेरीका के शेयर मार्केट मे झोक के आयें हमारे कुवैती धन्ना सेठ जैसे ही हमे पल भर की फ़ुरसत देंगे !!हम इसके विरोध मे पोस्ट लिखेंगे !!
    आवाज बुलंद रहे
    बाकि काम बंद रहे !! हा हा हा
  18. राज भाटिया
    भाई इधर आज क्या हो रहा है ? बहुत शोर आ रहा था देखा तो आप सब थे,्लेकिन मुझे तो इन भाई साहिब की बात उचित लगी….पता नहीं क्या है कविता लेकिन आलोक पुराणिक का कहना है कि अगर ओबामा उसके लिये पांच किलो आलू न खरीद के लाया तो वे ब्लाग जगत की सारी कवितायें उसको पढ़वायेंगे।
  19. डा. अमर कुमार
    डा. अनुराग ने मेरे कहने के लिये कुछ छोड़ा हो,
    तो वह विवेक ने पूरी कर ही दी..
    मेरे मत उन्हीं टिप्पणियों में निहित हैं
    मेरा कविता से गहन नाता है
    पठनोपरांत दिल को छूते हुये किसी गद्य का शीर्षक याद रह जाये, तो ठीक
    जबकि ऎसी किसी कविता की पंक्तियाँ वर्षों याद रहती हैं
    और अपरोक्ष रूप से हमारे व्यक्तित्व व निर्णय क्षमता को प्रभावित करती रहती हैं

    हाँ, ब्लागजगत पर दिखने वाली कविताओं में कुछेक ही प्रभावित कर पायी हैं,
    क्योंकि वह ताऊ फ़ारमूले से तैयार की हुई सी लगती हैं ।
    शेष यत्र कुशलम तत्रास्तु

  20. neeraj
    प्रभु…अब क्या कहें? हम तो बहुत ही प्रसिद्द हो गए हैं…पूछिए काहे? अरे भाई हमारा नाम जो हो गया है…ससुरे गिरगिट का इतना ना हुआ हो जितना हमारा हो गया है…हम बहुत खुश भी हो गए हैं? फ़िर पूछिए काहे? अरे भाई सीधी सी बात है जिस कवि की रचना का सार्वजनिक मंथन हो वो खुश नहीं होगा क्या…ब्लॉग जगत के सब दुरंधर आप की पोस्ट के जरिये हमें जान गए हैं…कभी पहचान भी जायेंगे…आप तो लिखते रहिये…
    नीरज
    गिरगिट का चित्र है ये कंचन जी इसे हम नेट से ही उडाये हैं…और जानकारी के लिए बता दें की हमने दुनिया के प्रत्येक गिरगिट से माफ़ी भी मांग ली है…आख़िर कौन गिरगिट अपनी तुलना इंसान नाम के प्राणी से करना चाहेगा…???
  21. सतीश सक्सेना
    आज की कविता और कवियों पर बहुत बढ़िया लेख , मज़ा आ गया अनूप भाई ! आज हर लेखक के हाथ में है कि वह कविता लिखने से शुरू करे या लेख ! इन कवियों पर राकेश खंडेलवाल जैसे सौम्य कवियों की झुंझलाहट का नमूना देखिये !
    सड़े हुए अंडे की चाहत
    गले टमाटर की अकुलाहट
    फ़टे हुए जूते चप्पल की माला के असली अधिकारी
    हे नवयुग के कवि, तेरी ही कविता हो तुझ पर बलिहारी
    तूने जो लिख दी कविता वह नहीं समझ में बिलकुल आई
    “खुद का लिखा खुदा ही समझे” की परंपरा के अनुयायी
    तूने पढ़ी हुई हर कविता पर अपना अधिकार जताया
    रश्क हुआ गर्दभराजों को, जब तूने आवाज़ उठाई
  22. anupam agrawal
    गिरगिट और कविता दोनों के ऊपर सजता
    आपका अहसास भी यूं साथ साथ बजता
    पूछते हो विचार मेरा और क्या है कविता
    कम हों विचार/रचना तो और कहें कविता
  23. anita kumar
    मजेदार विश्लेश्ण्। एक बार फ़िर हंसी हंसी में आप बहुत गहरी बात कह गये। सही सुझाव कि नये प्रतीकों का प्रयोग होना चाहिए। हाइकू कविताओं की तरह हाइकू गध्य भी लिखे जा सकते हैं वो भी लोगों को बरसों याद रहेगें।
  24. varsha
    जै पूरी बहस बहुते मज़ेदार है
  25. neeraj
    झाल कवि वियोगी जी की चरण रज कहीं से मिल जाए तो अनूप जी भिजवा देना मैं उसे अपनी कलम को लगा कर महान कवियों की श्रेणी में शामिल हो जाऊंगा…क्या कवि है झाल महाशय…शायद उन्हीं के लिए लिखा गया है…वियोगी होगा कोई कवि आह से उपजा होगा गान…उन्हें मेरा दंडवत प्रणाम….जब तक ऐसे विलक्षण कवि रहेंगे…. भारत भूमि पर कविता का परचम हमेशा फेहराता मिलेगा…साधू साधू…
    नीरज
  26. GIRISH BILLORE
    behad gaharee baat
  27. ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती
    [...] मजाक में लिखी पिछली पोस्ट में बहुत मजाक हो गया। कुछ साथियों ने [...]
  28. Debashish
    अकवियों की दुखती रग पर आपने हाथ ज़रा तेज़ रख दिया ;)
  29. anil kant
    ab kya kahein …sab log pahle hi bahut kuchh bol chuke hain
  30. धूप-छांव में बुने गये अनुबन्धों का क्या होगा : चिट्ठा चर्चा
    [...] हुईं। इस पर मैंने कभी तथाकथित रूप से विचार करते हुये लिखा था: दुनिया की तमाम कवितायें [...]
  31. Puja Upadhyay
    बाप रे! अनूप जी आपका लेख पढ़ कर मैं त कविता करना ही भूल गयी…परिभाषा कहाँ से लाऊं…बहुत कठिन सवाल पूछा है आपने. ये अच्छी बात नहीं है…अच्छा खासा व्यंग्य चल रहा था…अंत मे ऐसे थोड़े हड़काते हैं.
    पार्शियल मेमोरी लॉस और शोर्ट टर्म मेमोरी लॉस दोनों हो गया है. कुछ याद आएगा तो बताएँगे.
    (इन ’शब्द युग्मों” को रोमन में इसलिये नहीं लिखा क्योंकि स्पेलिंग में हमारा हाथ जाड़े के कारण थोड़ा सिकुड़ा हुआ है बोले तो तंग है) :) :)
    Puja Upadhyay की हालिया प्रविष्टी..सो माय लव- यू गेम
  32. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] कविता,गिरगिट और समय [...]
  33. see this site
    Which is where web-based can a licensed psyciatrist content pieces (or web sites) so they can developed into well-known?
  34. AOBOTE bearing
    I’d need to speak to you here. Which isn’t something Which i do! I adore to reading a post that ought to get people to believe. Also, thank you for permitting me to comment!
  35. wikipedia reference
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