और अंतत: किताब तैयार ही हो गयी -झाड़े रहो कलट्टरगंज। इस साल की तीसरी किताब। कल छापाखाना में गई किताब। इसके पहले ’सूरज की मिस्ड कॉल’ और ’आलोक पुराणिक- व्यंग्य का एटीएम’ तैयार हो ही गयी थी। सूरज की मिस्ड कॉल तो छप भी गयी है। छापेखाने से निकल चुकी है। जिन लोगों ने आर्डर की होगी उन तक पहुंचेगी आहिस्ते-आहिस्ते - जाड़े में गुनगुनी धूप की तरह। गुनगुनी धूप से याद आई यह बात:
"तुम्हारी याद
गुनगुनी धूप सी पसरी है
मेरे चारो तरफ़।
गुनगुनी धूप सी पसरी है
मेरे चारो तरफ़।
कोहरा तुम्हारी अनुपस्थिति की तरह
उदासी सा फ़ैला है।
उदासी सा फ़ैला है।
धीरे-धीरे
धूप फ़ैलती जा रही है
कोहरा छंटता जा रहा है।"
धूप फ़ैलती जा रही है
कोहरा छंटता जा रहा है।"
किताब पहुंचने तक धूप एकदम बालिग होकर खूबसूरत हो जायेगी।
अब इस किताब का नाम ’ झाड़े रहो कलट्टरगंज’ रखने के पीछे का कारण भी जान लीजिये:
"किताब का नाम ’झाड़े रहो कलट्टरगंज’ रखा गया। यह नारा कनपुरिया मस्ती का पर्याय है। कभी ’भारत का मैनचेस्टर’ कहलाने वाला शहर कुली-कबाडियों के शहर में बदलते हुये अब देश के सबसे प्रदूषित आधुनिक शहरों में शामिल होने को बेताब है। लेकिन इस सबसे बेपरवाह मस्ती की अंतर्धारा शहर की हवाओं में लगातार बहती रहती है। अपने शहर के इस बेलौस फ़क्कड़ मिजाज से जुड़ने की ललक और लालच के चलते ही इस किताब का नाम - ’झाड़े रहो कलट्टरगंज’ रखा गया। जिस भी पूर्वज ने यह मस्ती भरा नारा इजाद किया हो उसकी याद को नमन करते हुये उसके प्रति आभार व्यक्त करता हूं।"
किताब का कवर पेज Kush ने बनाया है। बहुत कोशिश के बावजूद कवर पेज में कुश साइकिल न घुसा सके। वह फ़िर कभी। बहुत जल्दी ही किसी किताब में आयेगी।
किताब की भूमिका लिखने का काम किया Alok Puranik ने। उन्होंने मौके का फ़ायदा उठाते हुये मौज ले ली अनूप शुक्ल से:
"अनूप शुक्ल बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं। वृतांत लेखन गजब करते हैं, कैमरे के साथ प्रयोग खूब किये हैं। अफसर भी हैं और उसके बावजूद इंसान भी बने हुए हैं। उत्साही और उत्सुक विकट हैं, मंगल ग्रह पर साइकिल से चलेंगे-ऐसा प्रस्ताव कोई उन्हे मजाक में भी दे दे, तो शाम को साइकिल लेकर घर आ जायें कि चलो बता हुई थी ना चलो मंगल की तरफ। ऐसा इंसान व्यंग्य लेखन खूब कर सकता है औऱ जम के कर सकता है। वहां असल में क्या हो रहा है, यह देखने की उत्सुकता-यह व्यंग्यकार को बहुत कच्चा माल दिलाती है। अनूप शुक्ल साइकिल रोककर नदी के किनारे के उस कोने में चले जाते हैं, जहां बालक जुआ खेल रहे होते हैं और एक बालिका बालकों को डपट रही होती है-क्यों बे बड़ा दांव क्यों नहीं लगाते। अनूप शुक्ल किसी रेहड़ी पर फल बेचनेवाले की जिंदगी में पूरा झांकने की सामर्थ्य रखते हैं। मानवीय चरित्र को कई कोणों से परखने में उनकी गहरी रुचि है।"
अपन ने भी फ़ौरन बदला चुकाते हुये किताब का समर्पित कर दी उनको यह लिखते हुये:
"व्यंग्य के अखाड़े के सबसे तगड़े पहलवान
व्यवस्थित आवारा , बहुधंधी फ़ोकसकर्ता
आलोक पुराणिक के लिये
जो हमेशा नित नये प्रयोग करते हुये
यह बताते और जताते रहते हैं कि
सिर्फ काम ही समय की छलनी की पार ले जाता है।"
व्यवस्थित आवारा , बहुधंधी फ़ोकसकर्ता
आलोक पुराणिक के लिये
जो हमेशा नित नये प्रयोग करते हुये
यह बताते और जताते रहते हैं कि
सिर्फ काम ही समय की छलनी की पार ले जाता है।"
बाकी जो है किताब में है। किताब मंगाने के लिये इस कड़ी पर पहुंचिये।
1. http://rujhaanpublications.com/pr…/jhaade-raho-kalattarganj/
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सूरज की मिस्ड कॉल मंगाने के लिये इधर क्लिकियाइये
आलोक पुराणिक - व्यंग्य का एटीएम पाने के लिये इधर आइये
व्यंग्य का एटीएम और सूरज की मिस्ड कॉल का काम्बो पैक इधर पाइये।
4. http://rujhaanpublications.com/…/combo-offer-suraj-ki-miss…/
सभी किताबें पुस्तक मेले में रुझान प्रकाशन के स्टॉल पर उपलब्ध रहेंगी।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10213325772312273