दीवाली की शुरुआत होते ही शु्भकामनाओं की वर्षा होने लगी। हमारा
मोबाइल, कम्प्यूटर और मेल बाक्स शुभकामना वर्षा से तरबतर होने लगे।
मीटिंग-सीटिंग में होते रहने के कारण हमारा मोबाइल अक्सर ’कम्पन
मुद्रा’(वाइव्रेशन मोड) में रहता है। कोई नया शुभकामना संदेश आते ही मोबाइल
बेचारा मलेरिया बुखार के रोगी सा थरथराने लगता। हम उस पर चमड़े का कवर भी
चढ़ा के रखे लेकिन उस बेचारे के थरथराहट कम नहीं हुई।
मोबाइल कुछ दिन पहले ही लिया गया था इसलिये तमाम दोस्तों/परिचितों के
नाम-नम्बर उसमें हैं नही। ऐसे कई संदेशे आये। कुछ समझदार लोगों ने अपने
संदेशे में ही अपना नाम लिख दिया था जैसे व्यवहार देते समय कुछ लोग लिफ़ाफ़े
के साथ-साथ नोटों के ऊपर भी नाम-पता डाल देते हैं ताकि सनद रहे। ऐसे संदेश
कुछ ज्यादा भले लगे। पहचानने में दिक्कत नहीं हुई। उनको उसी श्रद्धा से
प्रति शुभकामनायें दे दी गयीं।
समस्या उनके साथ थी जिनमें केवल फ़ोन नम्बर थे और शुभकामनायें थीं। उनमें
से भी कुछ के तो तेवर और भाषा ऐसी थी कि किसी दूसरे नाम से भी भेजते तब भी
हम पहचान लेते कि शुभकामनायें किसकी हैं।
असल समस्या उन संदेशों के साथ थी जो बिना नाम के थे और जिनके तेवर भी
मेसेज सेंटर वाले थे। मेसेज सेंटर वाले संदेश, जो जगह-जगह फ़ार्वर्ड किये
जाते हैं, रैलियों में भाग लेने वाले स्वयंसेवकों सरीखे होते हैं। ऐसे
स्वयं सेवक किसी भी पार्टी की रैली में खप जाते हैं। ऐसे ही मेसेज सेंटर
वाले संदेशे भी किसी भी मोबाइल से प्रकट होकर आपके मोबाइल में प्रवेश कर
सकते हैं। आपका कोई मित्र जिसे आप प्यार में बौढ़म मानते हैं ज्ञान का
संदेशा भेज सकता है। आपका कोई ज्ञानी मित्र निरी बेवकूफ़ी की बात कर सकता
है। मेसेज सेंटर ’
समझ का समतली करण’ करने में सहायता
करते हैं। बौढ़म और ज्ञानी को एक मंच पर लाने का प्रयास करते हैं। कुछ उसी
तरह जैसे माफ़िया और जनसेवक एक ही मंच से जनता की भलाई की बात करते हैं।
एक संदेशा रात को बारह बजे करीब आया। उसमें लिखा था:
“तीन लोग आपका नम्बर मांग रहे थे। मैंने नहीं दिया। पर आपके घर का
पता दे दिया है। वो दीवाली पर आयेंगे। उनके नाम हैं- सुख, शांति, समृद्धि।”अब
बताओ भला रात बारह बजे जब आप खा-पीकर मीठे सपने देखने का प्लान बनाकर सोने
की तैयारी कर रहे हों और कोई आ जाये तो आपके क्या हाल होंगे। इसका अंदाजा
वही लगा सकता है जिसको ऐसे हालातों में ’
ई कौन आ टपका के इत्ती रात गये’ का भाव मन में धरे प्रकटत: ’
आइये-आइये अंदर आइये आराम से बैठिये। आप फ़्रेस हो लें तब तक चाय बनवाते हैं।’
कहने के पराक्रम का अनुभव है। ऐसा अप्रत्यासित अतिथि घर के जिस सदस्य के
भी हवाले से आता है वह बेचारा कुछ समय के लिये घर के बाकी सदस्यों के लिये
संयुक्त अपराधी बन जाता है। गरदन झुक जाती है। मुंह से भावावेश और अपराधबोध
के दोहरे हल्ले के चलते बोल नहीं फ़ूटता। बहरहाल हमने अपने दोस्त को जबाब
भेजा-
हां आ गये हैं। अब बताओ रात बारह बजे उनको चाय-वाय पिलाकर खाना-वाना खिलाना पड़ेगा। सुख, शांति और समृद्धि में खलल पड़ेगा कि नहीं।
शुभकामना संदेशों के चलते बहुत सारा झूठ भी बोला जाता है। कई लोगों का
संदेश आपके पास पहले आ जाता है। आपको लगता है कि आप संदेशों की रेस में पिट
गये। आप सोचते हैं कि आप फोन करके आगे हो जायेंगे। लेकिन हो नहीं पाता।
इस बीच उनका फ़ोन भी आ जाता है। आप तय नहीं कर पाते कि कौन से बहाने से
शर्मिंदगी कम की जाये। आधा समय यह बताने में चला जाता है कि हम बस फ़ोन करने
ही वाले थे लेकिन आपका आ गया (बड़े वो हैं आप भी)
। शुभकामनायें इधर-उधर हो जाती हैं। सफ़ाई देते समय बीतता है। फोन धरते ही
सीको बम भी फ़ूटता है – हम सुबह से ही कह रहे थे फ़ोन कर लो लेकिन तुमको समझ
में आये तब न!
शुभकामनाओं का सौंदर्यशास्त्र अद्भुत है। आजकल घरों में कई फ़ोन होते
हैं। पता चला आप एक शुभकामना से निपट रहे होते हैं तब तक दूसरी भन्नाने
लगती है। दूसरी को पकड़ते हैं तब तक तीसरी अवतरित हो जाती है। तीसरी से
रूबरू होते हैं तब तक चौथी हाजिर हो जाती है। ऐसे में आप एक को होल्ड में
करके दूसरे को बोल्ड करने की कोशिश करते हैं तब तक तीसरे का फोन कट जाता
है। ऐसे में फोन का कटना बड़ा सुकूनदेह लगता है। अगर हैप्पी वगैरह हो चुका
है तो डबल सुकून होता है। वर्ना आपको फ़िर फोन मिलाकर
एक्चुअली फ़ोन कट गया था ,
आवाज साफ़ नहीं आ रही थी या फ़िर इसी घराने के और सच तफ़सील से बोलने पड़ते हैं। शुभकामना युद्द बड़ा कौशल पूर्ण होता जाता है।
समस्या तब होती है जब फोन पर आप किसी से बात करते हैं और बूझ नहीं पाते
कि उधर से बोल कौन रहा है। उधर वाले की अनौपचारिक अबे-तबे आपको संकुचित
करती है और आप अगले से पूछ भी नहीं पाते कि आप कौन बोल रहे हैं। ऐसे में आप
आवाज साफ़ नहीं नहीं आ रही है। जरा जोर से बोलो यार! अच्छा मैं मिलाता हूं
घराने के डायलाग बोलते हुये अगले की शिनाख्त करने की कोशिश करते हैं।
इसी तामझाम में पूरा त्योहार बीत जाता है। आप अगले त्यौहार के शुभकामना
युद्द की पक्की तैयारी करने का मन बनाते हैं तब तक कुछ और गड़बड़ हो जाती है।
कुछ सस्ते शेर
- असल में अंधेरे की अपनी कोई औकात नहीं होती,
इसकी पैदाइश तो उजालों में जूतालात से होती है।
- कम रोशनी ज्यादा से भन्नाई सी रहती है,
अंधेरों में आपस में कोई दुश्मनी नहीं हो्ती।
- जरा सा जुगनू भी चमकने लगता है अंधेरे में,
ये अंधेरे का बड़प्पन नहीं तो और क्या है जी!
- कल उजालों के गीत बहुत गाये गये!
इसी बहाने गरीब अंधेरे निपटाये गये।
- अंधेरे ने रोशनी से जरा सी छेड़छाड़ की,
उजाले ने रपटा लिया उसे बहुत दूर तक!
- उजाले ने रात भर अंधेरे की जमकर कुटम्मस की,
रोशनी थरथराती रही अंधेरे के बारे में सोचते हुये।
- दीवाली पर अंधेरे के खिलाफ़ वारंट निकल गया,
वो दुबका रहा रात भर जलते दिये की आड़ में।
…यह मैसेज तो मेरे में भी आया था! मैं तभी से इनकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ..मिठाई सिठाई लेकर….! कानपुर चले गये ? मैने मैसेज भेजने वाले को कोसा भी था … “दारू वाले के काहे रोक लेहला?”
ये कैसा सस्ते शेर’ हैं जी………..कांख गए पढ़ते-पढ़ते………
प्रणाम.
सस्ते शेर तो कमाल के हैं, इनका रेट क्या चल रहा है आजकल? थोक में लेना है थोड़ा ठीक से मोल-मोलई कर दीजिए.
पूजा उपाध्याय की हालिया प्रविष्टी..वो सारे शब्द तुम्हारे हैं
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..कार्तिक अमावस की सांझ
मैंने उस दिन कहा- फेसबुक, मेलबॉक्स हर जगह तो दिवाली मन ली अब क्या घर में भी मनाना जरूरी है.
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..टाटा की भोलभो (पटना ७)
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..इतिहास की धरोहर "रोम"..
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..अंग्रेज़ों के दिल का नासूर
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..जेपी ही गायब थे आडवाणी की यात्रा में, हाँ…नीतीशायण चालू रही
तीनों देवियाँ आखिरकार मेरे यहाँ आ स्थायी तौर पर ठहर गयी हैं!
अप्रत्यासित को अप्रत्याशित कर दें बाकी सब ठीक है
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..पैतृक आवास पर मनाई दीवाली ..शुरू हुई बाल रामलीला!
अँधेरे उजाले की फुलझड़ियाँ चमकदार रही !
बढ़िया है.
“ऐसा अप्रत्यासित अतिथि घर के जिस सदस्य के भी हवाले से आता है वह बेचारा कुछ समय के लिये घर के बाकी सदस्यों के लिये संयुक्त अपराधी बन जाता है।”
कमाल का भाव-सम्प्रेषण !!!! एकदम ऐसा ही होता है
“कई लोगों का संदेश आपके पास पहले आ जाता है। आपको लगता है कि आप संदेशों की रेस में पिट गये।”
त्यौहार के पहले ही सन्देश भेजने वाले, असल में अपनी बचत कर रहे होते हैं क्योंकि मोबाइल कंपनी उस दिन भेजे जाने वाले संदेशों पर अतिरिक्त पैसा काटने का फरमान जारी कर चुकी होती है
शेर वाकई सस्ते हैं
दीपावली की शुभकामनाएं
वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..क्या होगा अंजाम मेरे देश का….
अंधेरों में आपस में कोई दुश्मनी नहीं हो्ती।
वाह, वाह!
दीपावली की फ़ुलझड़ियां और होली के रंग यूँ ही बिखरें, नीचे के लिंक देखकर याद आया कि, भैया एक तमंचा हमहुँ दिलाय द्यो, का है कि असॉल्ट राइफ़ल नेक गरुवी है।
शुभकामना-प्रोग्राम की शुरुआत हमने भी जल्द करी थी,ताकि आपके पास देने का टोटा न पड़ जाए बाद में ! वैसे ये काम अब हमने समेट लिए हैं ,पहले बहुत हुधुदते थे अब जिसका आ जाता है अधिकतर उसी को तुरतै निपटा देते हैं !
इन शेरों में तो कुछ असली के भी हैं !!
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..साहित्य का लाल नहीं रहा !