Friday, October 28, 2011

जब भी मुझे वो प्यार से बर्फ़ी खिलाता है

उनकी बात का लब्बोलुआब तो एक ही था,
कामा-फ़ुलस्टाप पर वे घंटों बहस करते रहे।

जब भी मुझे वो प्यार से बर्फ़ी खिलाता है,
उस दिन और दिनों से ज्यादा ही सताता है।

मियां अब तो तुम वीआईपी हो गये हो
बेवकूफ़ियां जरा कुछ ज्यादा किया करो।

-कट्टा कानपुरी

कल उजालों के गीत बहुत गाये गये!

असल में अंधेरे की अपनी कोई औकात नहीं होती,
इसकी पैदाइश तो उजालों में जूतालात से होती है।

कम रोशनी ज्यादा से भन्नाई सी रहती है,
अंधेरों में आपस में कोई दुश्मनी नहीं हो्ती।

जरा सा जुगनू भी चमकने लगता है अंधेरे में,
ये अंधेरे का बड़प्पन नहीं तो और क्या है जी!

कल उजालों के गीत बहुत गाये गये!
इसी बहाने गरीब अंधेरे निपटाये गये।

अंधेरे ने रोशनी से जरा सी छेड़छाड़ की,
उजाले ने रपटा लिया उसे बहुत दूर तक!


-कट्टा कानपुरी
 

दीपावली की फ़ुलझड़ियां

http://web.archive.org/web/20140419214523/http://hindini.com/fursatiya/archives/2309

दीपावली की फ़ुलझड़ियां

दीवाली
दीवाली की शुरुआत होते ही शु्भकामनाओं की वर्षा होने लगी। हमारा मोबाइल, कम्प्यूटर और मेल बाक्स शुभकामना वर्षा से तरबतर होने लगे।
मीटिंग-सीटिंग में होते रहने के कारण हमारा मोबाइल अक्सर ’कम्पन मुद्रा’(वाइव्रेशन मोड) में रहता है। कोई नया शुभकामना संदेश आते ही मोबाइल बेचारा मलेरिया बुखार के रोगी सा थरथराने लगता। हम उस पर चमड़े का कवर भी चढ़ा के रखे लेकिन उस बेचारे के थरथराहट कम नहीं हुई।
मोबाइल कुछ दिन पहले ही लिया गया था इसलिये तमाम दोस्तों/परिचितों के नाम-नम्बर उसमें हैं नही। ऐसे कई संदेशे आये। कुछ समझदार लोगों ने अपने संदेशे में ही अपना नाम लिख दिया था जैसे व्यवहार देते समय कुछ लोग लिफ़ाफ़े के साथ-साथ नोटों के ऊपर भी नाम-पता डाल देते हैं ताकि सनद रहे। ऐसे संदेश कुछ ज्यादा भले लगे। पहचानने में दिक्कत नहीं हुई। उनको उसी श्रद्धा से प्रति शुभकामनायें दे दी गयीं।
समस्या उनके साथ थी जिनमें केवल फ़ोन नम्बर थे और शुभकामनायें थीं। उनमें से भी कुछ के तो तेवर और भाषा ऐसी थी कि किसी दूसरे नाम से भी भेजते तब भी हम पहचान लेते कि शुभकामनायें किसकी हैं।
असल समस्या उन संदेशों के साथ थी जो बिना नाम के थे और जिनके तेवर भी मेसेज सेंटर वाले थे। मेसेज सेंटर वाले संदेश, जो जगह-जगह फ़ार्वर्ड किये जाते हैं, रैलियों में भाग लेने वाले स्वयंसेवकों सरीखे होते हैं। ऐसे स्वयं सेवक किसी भी पार्टी की रैली में खप जाते हैं। ऐसे ही मेसेज सेंटर वाले संदेशे भी किसी भी मोबाइल से प्रकट होकर आपके मोबाइल में प्रवेश कर सकते हैं। आपका कोई मित्र जिसे आप प्यार में बौढ़म मानते हैं ज्ञान का संदेशा भेज सकता है। आपका कोई ज्ञानी मित्र निरी बेवकूफ़ी की बात कर सकता है। मेसेज सेंटर ’समझ का समतली करण’ करने में सहायता करते हैं। बौढ़म और ज्ञानी को एक मंच पर लाने का प्रयास करते हैं। कुछ उसी तरह जैसे माफ़िया और जनसेवक एक ही मंच से जनता की भलाई की बात करते हैं।
एक संदेशा रात को बारह बजे करीब आया। उसमें लिखा था:
“तीन लोग आपका नम्बर मांग रहे थे। मैंने नहीं दिया। पर आपके घर का पता दे दिया है। वो दीवाली पर आयेंगे। उनके नाम हैं- सुख, शांति, समृद्धि।”अब बताओ भला रात बारह बजे जब आप खा-पीकर मीठे सपने देखने का प्लान बनाकर सोने की तैयारी कर रहे हों और कोई आ जाये तो आपके क्या हाल होंगे। इसका अंदाजा वही लगा सकता है जिसको ऐसे हालातों में ’ई कौन आ टपका के इत्ती रात गये’ का भाव मन में धरे प्रकटत: ’आइये-आइये अंदर आइये आराम से बैठिये। आप फ़्रेस हो लें तब तक चाय बनवाते हैं।’ कहने के पराक्रम का अनुभव है। ऐसा अप्रत्यासित अतिथि घर के जिस सदस्य के भी हवाले से आता है वह बेचारा कुछ समय के लिये घर के बाकी सदस्यों के लिये संयुक्त अपराधी बन जाता है। गरदन झुक जाती है। मुंह से भावावेश और अपराधबोध के दोहरे हल्ले के चलते बोल नहीं फ़ूटता। बहरहाल हमने अपने दोस्त को जबाब भेजा- हां आ गये हैं। अब बताओ रात बारह बजे उनको चाय-वाय पिलाकर खाना-वाना खिलाना पड़ेगा। सुख, शांति और समृद्धि में खलल पड़ेगा कि नहीं। :)
शुभकामना संदेशों के चलते बहुत सारा झूठ भी बोला जाता है। कई लोगों का संदेश आपके पास पहले आ जाता है। आपको लगता है कि आप संदेशों की रेस में पिट गये। आप सोचते हैं कि आप फोन करके आगे हो जायेंगे। लेकिन हो नहीं पाता। इस बीच उनका फ़ोन भी आ जाता है। आप तय नहीं कर पाते कि कौन से बहाने से शर्मिंदगी कम की जाये। आधा समय यह बताने में चला जाता है कि हम बस फ़ोन करने ही वाले थे लेकिन आपका आ गया (बड़े वो हैं आप भी) :) । शुभकामनायें इधर-उधर हो जाती हैं। सफ़ाई देते समय बीतता है। फोन धरते ही सीको बम भी फ़ूटता है – हम सुबह से ही कह रहे थे फ़ोन कर लो लेकिन तुमको समझ में आये तब न! :)
शुभकामनाओं का सौंदर्यशास्त्र अद्भुत है। आजकल घरों में कई फ़ोन होते हैं। पता चला आप एक शुभकामना से निपट रहे होते हैं तब तक दूसरी भन्नाने लगती है। दूसरी को पकड़ते हैं तब तक तीसरी अवतरित हो जाती है। तीसरी से रूबरू होते हैं तब तक चौथी हाजिर हो जाती है। ऐसे में आप एक को होल्ड में करके दूसरे को बोल्ड करने की कोशिश करते हैं तब तक तीसरे का फोन कट जाता है। ऐसे में फोन का कटना बड़ा सुकूनदेह लगता है। अगर हैप्पी वगैरह हो चुका है तो डबल सुकून होता है। वर्ना आपको फ़िर फोन मिलाकर एक्चुअली फ़ोन कट गया था , आवाज साफ़ नहीं आ रही थी या फ़िर इसी घराने के और सच तफ़सील से बोलने पड़ते हैं। शुभकामना युद्द बड़ा कौशल पूर्ण होता जाता है।
समस्या तब होती है जब फोन पर आप किसी से बात करते हैं और बूझ नहीं पाते कि उधर से बोल कौन रहा है। उधर वाले की अनौपचारिक अबे-तबे आपको संकुचित करती है और आप अगले से पूछ भी नहीं पाते कि आप कौन बोल रहे हैं। ऐसे में आप आवाज साफ़ नहीं नहीं आ रही है। जरा जोर से बोलो यार! अच्छा मैं मिलाता हूं घराने के डायलाग बोलते हुये अगले की शिनाख्त करने की कोशिश करते हैं।
इसी तामझाम में पूरा त्योहार बीत जाता है। आप अगले त्यौहार के शुभकामना युद्द की पक्की तैयारी करने का मन बनाते हैं तब तक कुछ और गड़बड़ हो जाती है। :)

कुछ सस्ते शेर


  1. असल में अंधेरे की अपनी कोई औकात नहीं होती,
    इसकी पैदाइश तो उजालों में जूतालात से होती है।
  2. कम रोशनी ज्यादा से भन्नाई सी रहती है,
    अंधेरों में आपस में कोई दुश्मनी नहीं हो्ती।
  3. जरा सा जुगनू भी चमकने लगता है अंधेरे में,
    ये अंधेरे का बड़प्पन नहीं तो और क्या है जी!
  4. कल उजालों के गीत बहुत गाये गये!
    इसी बहाने गरीब अंधेरे निपटाये गये।
  5. अंधेरे ने रोशनी से जरा सी छेड़छाड़ की,
    उजाले ने रपटा लिया उसे बहुत दूर तक!
  6. उजाले ने रात भर अंधेरे की जमकर कुटम्मस की,
    रोशनी थरथराती रही अंधेरे के बारे में सोचते हुये।
  7. दीवाली पर अंधेरे के खिलाफ़ वारंट निकल गया,
    वो दुबका रहा रात भर जलते दिये की आड़ में।

20 responses to “दीपावली की फ़ुलझड़ियां”

  1. देवेन्द्र पाण्डेय
    “तीन लोग आपका नम्बर मांग रहे थे। मैंने नहीं दिया। पर आपके घर का पता दे दिया है। वो दीवाली पर आयेंगे। उनके नाम हैं- सुख, शांति, समृद्धि”
    …यह मैसेज तो मेरे में भी आया था! मैं तभी से इनकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ..मिठाई सिठाई लेकर….! कानपुर चले गये ? मैने मैसेज भेजने वाले को कोसा भी था … “दारू वाले के काहे रोक लेहला?”
  2. देवेन्द्र पाण्डेय
    शेर अच्छे हैं। सस्ते हैं तो एक-एक किलो भेज दिये होते सभी ब्लॉगरों को दिवाली गिफ्ट में।
  3. sanjay jha
    बिलम्वित उपहार(पोस्ट) के लिए बिलम्वित(टिपण्णी) शुभ:कामनाएं………………….
    ये कैसा सस्ते शेर’ हैं जी………..कांख गए पढ़ते-पढ़ते………
    प्रणाम.
  4. पूजा उपाध्याय
    पोस्ट आते ही ब्लॉग पर एकदम फुलझड़ी छूटने लगी…दिवाली धमाका टाइप पोस्ट है. पढ़ के कहीं मन में लड्डू फूटें, कहीं हंसी की फुहार…
    सस्ते शेर तो कमाल के हैं, इनका रेट क्या चल रहा है आजकल? थोक में लेना है थोड़ा ठीक से मोल-मोलई कर दीजिए.
    पूजा उपाध्याय की हालिया प्रविष्टी..वो सारे शब्द तुम्हारे हैं
  5. Gyandutt Pandey
    सच कहा है – यह वास्तव में शुभकामनाओं के आतंकवाद का युग है!
    Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..कार्तिक अमावस की सांझ
  6. प्रवीण पाण्डेय
    आपकी पोस्ट पढ़ अब हम भी छाटने बैठते हैं, सारे के सारे।
  7. संगीता पुरी
    त्‍यौहारों में दूसरों को शुभकामनाएं देने का प्रचलन जितनी तेजी से बढ रहा है .. वास्‍तविक जीवन में दूसरों के प्रति शुभ कामना की भावना में उतनी ही कमी आ रही है !!
  8. काजल कुमार
    दिवाली तो फिर ठीक, असली मज़ा तो नए साल पर आता है… लोग यूं शुभकामना संदेश भेजते हैं मानो पाने वाले के लिए ये वाला नया साल ज़िंदगी में पहली बार आया हो :)
  9. Abhishek
    फ़ोन वाली सारी समस्याएँ बड़ी बारीकी से धर लिया है आपने :) मलेरिया वाला कांसेप्ट तो गजब है !
    मैंने उस दिन कहा- फेसबुक, मेलबॉक्स हर जगह तो दिवाली मन ली अब क्या घर में भी मनाना जरूरी है.
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..टाटा की भोलभो (पटना ७)
  10. shikha varshney
    कंपन मुद्रा ….हा हा हा….क्या शब्द ढूंढ निकाला है.शुभकामनाओं से लेकर सस्ते शेरों तक पूरी पोस्ट मस्त.
    shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..इतिहास की धरोहर "रोम"..
  11. धीरेन्द्र पाण्डेय
    बताओ अब शेर भी सस्ते हो गए | इन्फ्लेशन इतनी हाई और शेर सस्ते बहुत बेइंसाफी है
  12. Dr.ManojMishra
    आपके शेर -सवाशेर हैं,आभार.
  13. मनोज कुमार
    एगो सन्देशा हमहूं बारहे बजे रात में भेजे थे। मगर उत्तर आते-आते दोसर दिन का बारह बज गया था।
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..अंग्रेज़ों के दिल का नासूर
  14. चंदन कुमार मिश्र
    ई लेख तो सचमुच सस्ता सा लगा…वैसे हम बिना कुछ कहेंगे मानेंगे थोड़े…जब कोई कहे गुड मार्निंग(मुझे तो पसन्द नहीं), कहिए दस किलो गुड, मार्निंग मत कहिए…ओइसहीं ई हैप्पी का झंझट है, हर बार बोरा में कस के लोग दे जाते हैं…
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..जेपी ही गायब थे आडवाणी की यात्रा में, हाँ…नीतीशायण चालू रही
  15. arvind mishra
    जबर्दस्त:)
    तीनों देवियाँ आखिरकार मेरे यहाँ आ स्थायी तौर पर ठहर गयी हैं!
    अप्रत्यासित को अप्रत्याशित कर दें बाकी सब ठीक है
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..पैतृक आवास पर मनाई दीवाली ..शुरू हुई बाल रामलीला!
  16. वाणी गीत
    इन संदेशों की सबसे बड़ी खूबी यही है कि जिसे आप अपने लिए समझकर आनंदित होते हैं, उन संदेशों से आपसे पहले करोडो प्रसन्न हो चुके होते हैं …
    अँधेरे उजाले की फुलझड़ियाँ चमकदार रही !
  17. वन्दना अवस्थी दुबे
    ’समझ का समतली करण’ :) :) :)
    बढ़िया है.
    “ऐसा अप्रत्यासित अतिथि घर के जिस सदस्य के भी हवाले से आता है वह बेचारा कुछ समय के लिये घर के बाकी सदस्यों के लिये संयुक्त अपराधी बन जाता है।”
    कमाल का भाव-सम्प्रेषण !!!! एकदम ऐसा ही होता है :)
    “कई लोगों का संदेश आपके पास पहले आ जाता है। आपको लगता है कि आप संदेशों की रेस में पिट गये।” :)
    त्यौहार के पहले ही सन्देश भेजने वाले, असल में अपनी बचत कर रहे होते हैं :) क्योंकि मोबाइल कंपनी उस दिन भेजे जाने वाले संदेशों पर अतिरिक्त पैसा काटने का फरमान जारी कर चुकी होती है :) :)
    शेर वाकई सस्ते हैं :) :) :)
    दीपावली की शुभकामनाएं :D :D
    वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..क्या होगा अंजाम मेरे देश का….
  18. Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
    कम रोशनी ज्यादा से भन्नाई सी रहती है,
    अंधेरों में आपस में कोई दुश्मनी नहीं हो्ती।
    वाह, वाह!
    दीपावली की फ़ुलझड़ियां और होली के रंग यूँ ही बिखरें, नीचे के लिंक देखकर याद आया कि, भैया एक तमंचा हमहुँ दिलाय द्यो, का है कि असॉल्ट राइफ़ल नेक गरुवी है।
  19. संतोष त्रिवेदी
    प्रति शुभकामना के बारे में नई जानकारी मिली गोया शुभकामनाएँ भी बदला लेती हैं या उल्टा होती हैं.इसके लिए जवाबी शुभकामना तनी जादा ठीक न रहता ?
    शुभकामना-प्रोग्राम की शुरुआत हमने भी जल्द करी थी,ताकि आपके पास देने का टोटा न पड़ जाए बाद में ! वैसे ये काम अब हमने समेट लिए हैं ,पहले बहुत हुधुदते थे अब जिसका आ जाता है अधिकतर उसी को तुरतै निपटा देते हैं !
    इन शेरों में तो कुछ असली के भी हैं !!
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..साहित्य का लाल नहीं रहा !
  20. फ़ुरसतिया-पुराने लेख

Sunday, October 23, 2011

तेरे बच्चे खुश रहें,कवि न बनें

कवि ने आशीष मांगा जनता का खुले मन से,
वे भी मन से बोले तेरे बच्चे खुश रहें,कवि न बनें ।

मसखरों ने मिलकर कवि के खिलाफ़ मुकदमा ठोंका है,
उनकी नकल करके वो उनका धंधा खराब करता है ।

-कट्टा कानपुरी

Thursday, October 20, 2011

…एक ब्लागर की डायरी

http://web.archive.org/web/20140419215736/http://hindini.com/fursatiya/archives/2271

…एक ब्लागर की डायरी

ब्लॉग
कल एक नामचीन ब्लागर ने अपनी डायरी के कुछ अंश मुझे मेल किये। हमने उनसे पूछा कि डायरियां तो महान लोग लिखते हैं । आप डायरी क्यों लिखते हैं। उन्होंने कहा कि समय का कुछ पता नहीं कि कौन कब महान बन जाये। और जब कोई महान बन जाता है तो उसके किये-धरे से ज्यादा उसकी डायरियों के भाव होते हैं। इसलिये आदमी चाहे कुछ करे-धरे भले ही न लेकिन उसको डायरी लिखते रहना चाहिये। उन्होंने और भी तमाम बातें कहीं लेकिन वो सब हमारी व्यक्तिगत बाते हैं। फ़िलहाल तो आप उनकी डायरी के अंश देखिये:
  1. कई दिनों से कुछ लिखा नहीं गया है। कई आधे-अधूरे लेख लिखकर पूरे नहीं किये। हर बार अच्छा लिखने की कोशिश करने लगते हैं। बस्स यह देखते ही खुन्दक आ जाती है। ब्लागिंग और अच्छा लिखने की कोशिश में अन्ना जी और भ्रष्टाचार का आंकड़ा है। फ़िर क्या -लेख मिटा दिये गये।
  2. कई आइडिये दिमाग में उछल-कूद मचाये हुये हैं। हर आइडिया अपने को दूसरे से बेहतर बताता है। हर आइडिया कहता है हम पर अमल करो। उनमें आपस में धक्का-मुक्की तक भी हो जाती है अक्सर। एक आध बार तो मारपीट तक होते-होते बची। कभी-कभी लगता है कि आइडिये न हो गये तरह-तरह के लोकपाल बिल हो गये। हर एक अपने को दूसरे से बेहतर बताता रहता है।
  3. कल एक मित्र पूछने लगे -ब्लाग जगत इतना सूना-सूना क्यों है भाई। कहीं कोई लफ़ड़ा नहीं न कोई बवाल। ऐसे-कैसे चलेगा जी। आप ही कुछ करिये। हमने कहा कि आजकल थोड़ा व्यस्त हैं। फ़ुरसत मिलते ही कोशिश करेंगे। वे यह कहकर चले गये -अब आपसे कुछ होता नहीं, हमें ही कुछ करना पड़ेगा।
  4. कल तीन-चार ठो कवितायें टाइप कीं। पोस्ट करने चले तो दुबारा पढ़ने लगे। पता चला कि सबका तो कोई न कोई अर्थ निकल रहा था। फ़िर हमने उनको पोस्ट नहीं किया। मिटा दिया। दुर….. ऐसी कविता क्या लिखना जिसका कोई मतलब निकल आये। इससे अच्छा तो भाईचारा और देशभक्ति के बारे में ही कुछ लिख-लिखा दिया जाये।
  5. भाईसाहब बता रहे थे कि उनकी दो-तीन टिप्पणियां बंधक बना ली हैं किसी ब्लागर नें। टिप्पणियों के पास जो मोबाइल था वो स्विच आफ़ आ रहा है। वे अपनी मासूम टिप्पणियों की याद कर-करके दुखी हो रहे थे- जाने किस हाल में होंगी वे बेचारी भूखी-प्यासी- मॉडरेशन के इंतजार में हमने उनको समझाया कि भाई सुख-दुख जीवन के एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। लेकिन वे शोले वाले सिक्के का उदाहरण देकर दुखी होते रहे कि लेकिन उसमें तो एक ही पहलू था। अब उनको कौन समझाये कि सिनेमा और जिन्दगी में फ़र्क होता है।

  6. अनुवाद और अपनी समझ की ताकत का अन्दाजा मुझे तब हुआ जब एक बहुत बड़े विदेशी कवि की अनुदित अनूदित (अनुवादित) रचनायें पढ़ीं। अनुवाद पढ़ने के बाद जो समझ आया उससे लगा कि इनको इत्ता बड़ा कवि काहे के लिये माना जाता है भाई! इससे अच्छा तो हमारे कई दोस्त लिख लेते हैं। उनको भी नोबेल-फ़ोबेल प्राइज नहीं तो कम से कम साहित्त-फ़ाहित्त कंपनी का इनाम इनाम-फ़िनाम मिलना चाहिये।
  7. सुबह उठे तो देखा सूरज डबल प्रमोशन पाकर किसी मलाईदार पोस्ट के अफ़सर सा चमक रहा था। कोई बता रहा था कि रात भर मेहनत की है उसने यह पोस्ट पाने के लिये। अब लेन-देन की बात तो खुदा जाने।
  8. भ्रष्टाचार पर बढ़ती परेशानी को देखते हुये गुरुजी ने आज सलाह दी कि भ्रष्टाचार से मुक्ति का तात्कालिक उपाय तो आध्यात्मिक हो जाना है। खाने-पीने के बाद आध्यात्मिक चिंतन करने से भ्रष्टाचार की पीड़ा कम होगी। इस पर किसी ने पूछा- लेकिन गुरुजी वे लोग क्या करेंगे जिनको भ्रष्टाचार के चलते खाने-पीने तक के लाले पड़े हुये हैं। इस पर गुरु जी ने मुस्कराते हुये कहा कि उनका कोई अनुयायी ऐसा नहीं है जिसे खाने-पीने के लाले पड़े हैं! अंतत: इस बात पर सहमति बन ही गयी कि आध्यात्म भ्रष्टाचार से मुक्ति का तुरंता उपाय है (शर्ते लागू हैं के नियम के साथ)
  9. कल फ़ेसबुक पर मैंने सब्जीमंडी से दो गोभी के फ़ूल के फोटो लगाकर पूछा कि बताओ इनमें से कौन सा खरीदूं। बड़ा खराब लगा कि उस स्टेटस को लाइक बहुतों ने किया लेकिन सलाह किसी ने नहीं दी। अंत में मैंने अपने कुछ दोस्तों से फोन करके अपनी राय बताने के लिये कहा। जब मामला फ़ाइनल हुआ और मैंने उनमें से एक खरीदने के लिये सब्जी वाले से कहा तब तक पता चला कि वे दोनों बिक चुके थे।
  10. नयी हिंदी राजभाषा नीति का फ़ायदा यह होगा अब कोई टोंकने वाला नहीं होगा कि ये सही लिखा है वो गलत लिखा है। जिस हिंदी शब्द की वर्तनी समझ नहीं आयेगी उस ’वर्ड’ को ’देवनागरी’ में लिख के डाल देंगे। कोई कुछ कहेगा तो कह देंगे राजभाषा नीति का अनुपालन कर रहे हैं आई मीन फ़ालो कर रहे हैं।
  11. कल एक टिप्पणी में मैंने टिप्पणी करने के साथ स्माइली लगा दी तो ब्लागर ने फोन करके हमको हड़काया – क्या मुझे बेवकूफ़ समझ रखा कि मैं यह भी नहीं समझ पाउंगा कि यह टिप्पणी में बात मजाक में कही गयी है। खबरदार जो फ़िर कभी आगे से मेरे ब्लाग पर कमेंट करते हुये स्माइली लगाया। स्माइली वाले मजाक मुझे पसंद नहीं। :)
इसके पहले की और डायरियां पढ़ने के लिये यहां और यहां देखें।
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43 responses to “…एक ब्लागर की डायरी”

  1. डॉ0 मानवी मौर्य
    मजाक में डायरी और डायरी में मजाक। पढ़कर मजा आ गया।
  2. Abhishek
    अर्थ वाली कविता, विदेशी कवी की कविता और गोभी माने ४, ६ और ९ सबसे मस्त :)
    स्माइली पर हड़काया तो नहीं जाऊँगा ?
  3. प्रवीण पाण्डेय
    मन की कशमकश को उजागर करती यह डायरी।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..आनन्द मनाओ हिन्दी री
  4. आशीष श्रीवास्तव
    भ्रष्टाचार से मुक्ति का तात्कालिक उपाय तो आध्यात्मिक हो जाना है।
    ये है जी गहरी बात , मज़ा आ गया :) :) :D
    आपको तो स्माईली वाला मजाक पसंद है ना ??
    –आशीष श्रीवास्तव
  5. भुवनेश शर्मा
    बहुत बढि़या डायरी…पढ़वाने के लिए शुक्रिया
    हिन्‍दी कॉमेडी
    भुवनेश शर्मा की हालिया प्रविष्टी..Now Tweet in Hindi
  6. ashish
    इ डायरी त हम नाही लिखत हूँ . बाकी त चकाचक (सौजन्य से श्री अनूप शुक्ल ) हैए है .
    ashish की हालिया प्रविष्टी..ओ दशकन्धर
  7. eklavya
    मोजिया पोस्ट पे बमचक टिपण्णी आती रहे तो ब्लाग-स्लाग हरियाया रहता है, और ……………………पढने के बाद लिखते हैं
    प्रणाम.
  8. arvind mishra
    वो फेसबुक-गोभी प्रकरण मजेदार है ……
    अब आप सरीखे लोग वर्तनी की गलतियां करेगें तो कैसे चलेगा ?
    दो गलतियां जो पहले भी आप करते रहे हैं मगर कभी टोका नहीं ,फिर फिर हुयी हैं तो अब टोक रहा हूँ !
    अनुदित =अनूदित
    नोबल =नोबेल
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..फूली फूली चुन लिए काल्हि हमारी बार ….एक नए सदर्भ में …!
  9. देवेन्द्र पाण्डेय
    …अभी-अभी खबर आई है कि कट्टा कानपुरी अपनी भूली डायरी क्रोध में ढूंढ रहा है…भलाई चाहते हैं लौटा दें।
    ..इस्माइल लगाने नहीं आता लगा हुआ मानिए।
    …मस्त करती पोस्ट है। आनंद ही आनंद।
  10. चंदन कुमार मिश्र
    हाँ तो सुनिए कि क्या कहने वाले थे…चलिए सच बोल देता हूँ (इसका मतलब ये न निकाला जाय कि हमेशा झूठ बोलता हूँ)…यह लेख पढ़ना शुरू किया तब खयाल आया…थोड़ा बुरा शब्द, नहीं नहीं अर्थ, हो सकता है…आप एक बहुत दुष्ट ब्लागर हैं…क्योंकि एक लेख में लाकर पाँच-दस लेख पढ़वा देते हैं……और हाँ, ब्लाग जगत शान्त कैसे हो सकता है…http://hindibharat.blogspot.com/2011/10/blog-post_3725.html और इसके पहले वाले लेख पर जाइए, सन्नाटा नहीं है भाई, झन्नाटा है…
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूँ…
  11. सलिल वर्मा
    भरसक आपको खोज रहा था वो और आप लुकायेल चल रहे थे कि पकड़ कर कहीं ईनाम-वीनाम न दे दे!! अब ऐसे डायरियों के पन्ने आप छापेंगे और कहेंगे कि दूसरे के हैं तो लोग आपको ढूँढते ही फिरेंगे!! बस इतना ख्याल रहे कि कहीं लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड (राजभाषा नियम/अधिनियम का अनुपालन करते हुए) न दे दें!!!
    सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..बाद मरने के मेरे
  12. आशीष 'झालिया नरेश' विज्ञान विश्व वाले
    “कल फ़ेसबुक पर मैंने सब्जीमंडी से दो गोभी के फ़ूल के फोटो लगाकर पूछा कि बताओ इनमें से कौन सा खरीदूं। बड़ा खराब लगा कि उस स्टेटस को लाइक बहुतों ने किया लेकिन सलाह किसी ने नहीं दी। अंत में मैंने अपने कुछ दोस्तों से फोन करके अपनी राय बताने के लिये कहा। जब मामला फ़ाइनल हुआ और मैंने उनमें से एक खरीदने के लिये सब्जी वाले से कहा तब तक पता चला कि वे दोनों बिक चुके थे!”
    क्या कहने !
    आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..समय के बारे मे जानने योग्य कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
  13. arvind mishra
    फ़ुरसतिया जी अड़े हम इसलिए रहे कि हमारे पास अड़े रहने का पर्याप्त दानापानी और मसाला था ..बहरहाल आपकी यह पोस्ट क्वचिद पर लिंकित भई है पधारें !
  14. Anonymous
    आपने भौतिक विज्ञानं के मूलभूत सिधान्तो का प्रयोग जिस तरह स्थिती
    के अवलोकन में किया है वह आपकी रचना को निखारता है और गतिमान बनाता है
    आपकी इस लेखनी का आनद वो लोग एक ऊँचे धरातल पर और विस्तृत दृष्टि से ले सकते हैं जिन्होंने
    गोपाल talkies मैं ईमानदारी और साहस से आभासी लाइन में लगकर हिट फिल्मो के ticket आज से तक़रीबन ३५ साल पहले ख़रीदे हों.
    वहां मांग तो ऊँची थी और आपूर्ति का दोहन उसे और ऊँचा कर देता था. लिहाज़ा अनुभव आपकी रचना में दी गयी भीड़ की मानसिकता से बहुआयामी था.
  15. सोमेश सक्सेना
    बहुत दिनों के बाद इधर आया हूँ। अच्छा लगा पढ़कर। आपकी पिछली डायरियाँ भी पढ़ीँ हैं। गो इस बार व्यंग्य का तेवर कुछ कम है पर कुछ मौलिक विचार भी पढ़ने को मिले।
    साधुवाद…!
  16. संतोष त्रिवेदी
    डायरी अपनी मानने मा कउनो मनाही रही का ? बहनजी के खिलाफ़ भी कुछ नहीं था, जिससे परेशानी होती.
    बैटन-बैटन में आपने फेसबुक पर तीखा हमला किया है पर ख़ुद उसमें चालू शेर ठेलते रहते हैं.अब उनको भी लाइक न करें तो भी मुसीबत ! वैसे गोभी-प्रसंग बहुतै मौलिक और धाँसू रहा !
    डायरियाँ हम भी कभी लिखते थे ,पर मेरी तरह गुमनाम हो जाने की आशंका से उनको आराम दे दिया है !
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..अच्छा लगता था !
  17. संतोष त्रिवेदी
    *बैटन- बैटन को “बातों-बातों” समझा और पढ़ा जाये !
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..अच्छा लगता था !
  18. मनोज कुमार
    अब हमहूं लिखने लगे हैं डायरी, आजे से। कहीं महान बन गये त डायरी के न होने का मलाल न रहे। सबसे पहले लिखे कि आज फ़ुरसतिया पर पोस्ट पढ़ के एक ठो टिप्पणी लिखे। वह यह था “……”
    फिर लिखा हुआ को मिटा दिए। बड़ा आसानी सबको समझ में आ जाता ऊ टिप्पणी । वह टिप्पणी भी क्या टिप्पणी जो सबको बुझाइए गया।
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..आभार आपका !
  19. Shikha Varshney
    क्या बात है ,क्या बात है ,क्या बात है…लो जी स्मायाली बचा लिए हम.
    Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..गट्ठे भावनाओं के
  20. eklavya
    लगभग सारे लिंक पर दुबारा गया……….पूरा पढने से पहले ही मन प्रतिक्रिया के लिए हुरकने लगा…….हमने, मन को घुरका ………. कहा इत्ता न फरको………..महान बनने के जित्ते गुण अपने गिनाये……….बारह आने तो मिलता ही है ………….वक़्त है सब्र करने का सारी प्रतिक्रिया अगली पीढ़ी के लिए छोरो………….और महान बन लो……
    प्रणाम.
  21. Gyandutt Pandey
    जेब मैं पईसा हो तो दोनो ही फूल खरीद लेना चाहिये – गोभी का।
    एक भक्षणार्थ और दूसरा पोस्ट लिखनार्थ!
    ———–
    बकिया मिसिर जी का हिन्दी सेवा अभियान देख कर मन भर आया है। बड़े ब्लॉगर को हिज्जे की गलती करनी नहीं चाहिये। कहीं की हो तो तो बताना जरूर चाहिये।
    किसी बड़े ब्लॉगर को वर्तनी की गलती करने का अधिकार नहीं है। वह मात्र हमारे जैसे कैजुअल्स का अधिकार है।
    Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..हाथों से मछली बीनते बच्चे
  22. कविता वाचक्नवी
    वह डायरी लेखक ब्लॉगर आप ही तो नहीं ? :)
    कविता वाचक्नवी की हालिया प्रविष्टी..सरोज-स्मृति
  23. चंदन कुमार मिश्र
    बवाल तो शुरू करने वाले के हाथ में हैं…अब देखिए कोलम्बसवे को…खोजा कुछ…मिला कुछ…जरूरी दोनों था…और वैसे भी बवाली तो एक वाक्य से पूरे ब्लाग जगत को हिला के डुला के, गिरा के रख सकता है…नमूना आप खुद देख सकते हैं…हो भी सकते हैं…इस डायरी के अनुसार…
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूँ…
  24. राजेन्द्र स्वर्णकार : rajendraswarnkar
    :)
    राजेन्द्र स्वर्णकार : rajendraswarnkar की हालिया प्रविष्टी..वहां अश्आर मैं बेशक़ बहुत तल्ख़ी में कहता हूं
  25. sangeeta swarup
    कल तीन-चार ठो कवितायें टाइप कीं। पोस्ट करने चले तो दुबारा पढ़ने लगे। पता चला कि सबका तो कोई न कोई अर्थ निकल रहा था। फ़िर हमने उनको पोस्ट नहीं किया। मिटा दिया। दुर….. ऐसी कविता क्या लिखना जिसका कोई मतलब निकल आये। इससे अच्छा तो भाईचारा और देशभक्ति के बारे में ही कुछ लिख-लिखा दिया जाये।
    सही है जिस कविता का अर्थ न समझ आए वो ही असल में कविता होती है … अब स्माइली लगाएं या न लगाएं यह सोच रहे हैं ..
    sangeeta swarup की हालिया प्रविष्टी..किसे अर्पण करूँ ?
  26. संगीता पुरी
    और जब कोई महान बन जाता है तो उसके किये-धरे से ज्यादा उसकी डायरियों के भाव होते हैं। इसलिये आदमी चाहे कुछ करे-धरे भले ही न लेकिन उसको डायरी लिखते रहना चाहिये।
    शुरू कर रही हूं डायरी लिखना .. इंटरनेट की दुनिया सचमुच निराली ही है !!
  27. aradhana
    सोच रहे हैं कि हम भी डायरी लिखने लग जाएँ :)
    स्माइली देखकर ये अंदाजा ना लगा लीजियेगा कि टिप्पणी मजाक में की गयी है.
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..दिल्ली पुस्तक मेले से लौटकर
  28. शिव कुमार मिश्र
    मस्त.
    ब्लॉगर की डायरी ही बच जायेगी. बाकी डायरियां कहीं दिखाई नहीं देंगी.
    बर्तन की गलती पर कुछ नहीं कहूँगा:-)
  29. dr. ashok kumar shukla
    रोचक है आपको बहुत दिन बाद dhund पाया हु
    इन. रोचक लेखों ke liye बार बार लौटूंगा.
  30. Alpana
    लेख पढ़ चुके ..
    एक साथ कई मुद्दे उठाये गए हैं लेकिन किस -किस पर लिखें टिप्पणी में …समझ नहीं आया..

    आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
  31. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] …एक ब्लागर की डायरी [...]