Tuesday, June 14, 2011

चलो न मिटते पद चिन्हों पर अपने रस्ते आप बनाओ- भगवती प्रसाद दीक्षित उर्फ़ घोड़ेवाला

http://web.archive.org/web/20140331065625/http://hindini.com/fursatiya/archives/2091

चलो न मिटते पद चिन्हों पर अपने रस्ते आप बनाओ- भगवती प्रसाद दीक्षित उर्फ़ घोड़ेवाला

भगवती प्रसाद दीक्षित
  1. कानपुर मे एक प्रत्याशी हुआ करते थे (थे नही है भाई) भगवती प्रसाद दीक्षित। लोग इनको घोड़ेवाला दीक्षित कहा करते थे, ये घोड़े पर घूमा करते थे। चुनाव चाहे मोहल्ले का हो, या फिर राष्ट्रपति का, हर जगह नामांकन करते थे। जाहिर है, हर जगह हारते थे, लेकिन इनकी सभाओं मे भीड़ सबसे ज्यादा हुआ करती थी। काफी मजाकिया किस्म के भाषण हुआ करते थे इनके। कानपुर मे ऐसा कोई नही जिसने घोड़े वाले दीक्षित के बारे मे ना सुना हो।- जीतेन्द्र चौधरी।
  2. जब लड़का सरकारी नौकरी में आता है तो घर वाले कहते हैं क्या फायदा ऐसी नौकरी का जिसमे ऊपरी कमाई न हो। वही लड़का जब बाद में घूस लेते हुये पकड़ा जाता है तो कहते हैं हाथ बचाकर काम करना चाहिये था। मतलब सब चाहते हैं लड्डू फूटे चूरा होय ,हम भी खायें तुम भी खाओ।- भगवती प्रसाद दीक्षित- घोड़े वाला
भगवती प्रसाद दीक्षित कानपुर में तो घोड़े वाला के नाम से ही मशहूर हैं। कुछ अखबार उनके लिये राबिनहुड आफ़ इंडिया लिखते। कुछ डान्क्विजोड आफ़ इंडिया। राबिनहुड के बारे में तो सुन रखा था कि कोई भले मन वाला डाकू था जो अमीरों को लूटकर गरीबों का भला करता था। डानक्विकजोड के बारे में बाद में जाना कि वह एक प्रसिद्ध उपन्यास का पात्र है जो कि अकेले ही दुनिया का भला करने के लिये अपने घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ता है।
दीक्षितजी शहर में होने वाले हर लोकसभा हर चुनाव लड़ते। निर्दलीय। हर चुनाव हारते। जमानत जब्त होती। लेकिन अगला चुनाव फ़िर लड़ते।
कानपुर से होने वाले लोकसभा के चुनाव के अतिरिक्त वे रायबरेली से भी चुनाव लड़ते। राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़े।
चुनाव प्रचार के लिये और उसके अलावा भी ज्यादातर दीक्षितजी घोड़े पर ही चलते। सर पर हैट। फ़्रेंचकट दाढ़ी। हाथ में भोंपू वाला माइक। कुल जमा यही साधन थे उनके चुनाव लड़ने के।
लगभग हर चुनाव में उनका चुनाव भाषण एक सा ही रहता था। लेकिन आम जनता उसको इत्मिनान से सुनती थी। हर चौराहे पर वे जाते। घोड़े पर बैठे वे भाषण देते। कुछ सवाल-जबाब होते। इसके बाद वे अगले चौराहे की तरफ़ चल देते। पब्लिक उनका इंतजार करती। वे अपने लिये वोट कम मांगते जनता को यह ज्यादा बताते थे कि जनता कैसे लोगों को चुनकर भेजती है। उनकी बोले गये कुछ डायलाग याद आ रहे हैं:

  1. जब लड़का सरकारी नौकरी में आता है तो घर वाले कहते हैं क्या फायदा ऐसी नौकरी का जिसमे ऊपरी कमाई न हो। वही लड़का जब बाद में घूस लेते हुये पकड़ा जाता है तो कहते हैं हाथ बचाकर काम करना चाहिये था। मतलब सब चाहते हैं लड्डू फूटे चूरा होय ,हम भी खायें तुम भी खाओ।
  2. आगे की मोर्चे हमको आवाज दे रहे हैं। कोई गलत काम करने से पहले सोचो कि आगे की पीढियां सवाल करेंगी कि अब्बा जान -अब्बा जान यू हैव बिट्रेड द कन्ट्री(आपने देश के साथ धोखा किया है)
  3. देश में आज लल्लू, जगधर छाये हुये हैं। ये जनता को धोखा दे रहे हैं। जनता सब समझती है लेकिन कुछ बोलती नहीं है। इसीलिये ये जनता को लूट रहे हैं।
  4. चुनाव में आदमी नहीं पैसा जीतता है। नोट से वोट खरीदे जाते हैं। जब तक देश में घोड़ेवाले की तरह के आम आदमी के चुनाव जीतने के हालात नहीं बनते तब तक देश की हालत नहीं सुधर सकती।
दीक्षित जी की पार्टी के दो स्थायी सदस्य थे। एक वे खुद दूसरा उनका घोड़ा। वे कहते कि अगर वे चुनाव जीते तो घोड़े के साथ लोकसभा में जायेंगे। लोग पूछते कि लोकसभा में उनका घोड़ा कैसे रहेगा! इसपर वे जबाब देते:


जिस संसद में सवा पाँच सौ गधे जा सकते है वहां मेरा एक घोड़ा क्यों नही रह सकता है!

कानपुर से चुनाव लड़ने के अलावा दीक्षित जी हर उस जगह से चुनाव लड़ते जहां से इंदिरा जी चुनाव लड़तीं। सन अस्सी में इंदिरा जी चिकमंगलूर से चुनाव लड़ीं थीं। दीक्षित जी वहां भी चुनाव लड़ने गये। अपने साथ घोड़ा नहीं ले जा पाये। बाकी धज वही रही। वहां की बोली-बानी से बिल्कुल अन्जान दीक्षितजी वोटों के मामले में वहां के अट्ठाइस प्रत्याशियों में छ्ठे स्थान पर रहे।
27 अप्रैल, 1929 को इटावा में जन्में दीक्षित जी कानपुर में पढ़े-लिखे। पहले हरसहाय इंटर कालेज में और फ़िर डी.ए.वी. कालेज में पढ़े। इसके बाद नगर पालिका कानपुर में अफ़सर हो गये गये। चालीस-पचास मातहतों का अफ़सर घोड़े पर चलता। कई लोगों की गड़बड़ियां उजागर की। लोग उनके खिलाफ़ हो गये। दबाब पड़े होंगे। कुछ कार्यवाहियां भी।
बताते हैं कि एकदिन वे तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्ता जी की सभा में अपने घोड़े पर सवार होकर पहुंच गये। मुख्यमंत्री को संबोधित करते हुये कि उनके चारो तरफ़ बेईमान बैठे हैं। चापलूस और भ्रष्ट लोग उनको घेर हुये हैं।
इसके फ़ौरन बाद दीक्षितजी को निलंबित और फ़िर बर्खास्त करके पागलखाने में बंद कर दिया गया। घोड़ा मवेशी खाने में।
इस घटना को दीक्षितजी तफ़सील से बताते हुये जानकारी देते हैं- बाद में पागलखाने के डाक्टर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा- इनका कॊई स्क्रू ढीला नहीं है।
चुनावों के दौरान दीक्षितजी इस घटना का उल्लेख करते हुये कहते थे- देश में कोई भी चुनाव लड़ने के लिये जरूरी है कि कन्डीडेट पागल/दीवालिया न हो। मेरे पास पागल न होने का प्रमाण पत्र है। बाकी प्रत्याशियों की भी दिमागी जांच होने के बाद ही उनकी उम्मीदवारी स्वीकार की जानी चाहिये।
बहुत दिन से दीक्षितजी से मिलने की बात सोच रहा था। इस इतवार को पता करके मिलने गये। सीसामऊ में हरसहाय जगदम्बा सहाय कालेज के पास रहते हैं। कालबेल बजायी तो दीक्षितजी नीचे आये। खड़े-खड़े ही बातें हुई।
बयासी साल से भी ज्यादा उमर के हो चुके दीक्षित जी की आवाज में अभी भी दम है! बातचीत के दौरान उन्होंने कहा/सुनाया:
तू स्वयं विधाता है हे मानव
अंतर में विश्वास जगाओ।
चलो न मिटते पद चिन्हों पर
अपने रस्ते आप बनाओ।
समसामयिक राजनीति और अण्णा हजारे तथा बाबा रामदेव के अनशन के बारे में मैंने उनके विचार जानने चाहे तो उन्होंने कहा -जो ये कर रहे हैं वो घोड़ेवाले ने बहुत पहले किया। लेकिन तब किसी ने घोड़ेवाले का साथ नहीं दिया। जनता सब जानती है लेकिन बोलती नहीं है। जब वह जागरूक हो जायेगी और अपने हक के लिये लड़ने लगेगी तो हालात बदलेंगे।
दीक्षितजी का कहना है कि उन्होंने कोशिश की। सफ़लता और असफ़लता की गिनती नहीं की। धारा के विपरीत चलने की कोशिश की। उन्होंने सुनाया:
मेरे हमराह बनो
मैंने एक शमा जलाई है हवाओं के खिलाफ़।
चलते समय उन्होंने फ़िर मिलने और विस्तार से बातचीत करने की बात कही। बोले- फ़िर मिलेंगे स्वामी और बात करेंगे।
हमने पूछा -आपने हमको स्वामी क्यों कहा?
वे बोले- हम सबको स्वामी कहते हैं। मैं मानता हूं कि हर आदमी बिगड़ा हुआ परमात्मा होता है। हम सब बिगड़े हुये परमात्मा होते हैं। जब हम लोग यह बात समझ जायेंगे और अपने को पहचान लेंगे तो सब ठीक हो जायेगा।
दीक्षितजी की पार्टी का दूसरा स्थायी सदस्य उनका घोड़ा अब ऊपर जा चुका है। वे अकेले हैं। एकला चलो रे का नारा बुलंद करते हुये चुनाव लड़ने वाले दीक्षितजी अब चुनाव नहीं लड़ते। उनका लाखों रुपया अभी मिलना बकाया है उनके विभाग से। पता नहीं मिलेगा भी या नहीं। एक साधारण से मकान की ऊपर की मंजिल में रहने वाले हमारे शहर के ये बुजुर्गवार उमर से भले बुजुर्ग हो गये हैं लेकिन जोश जवानों को भी मात देने वाला है। वे कहते हैं:


उभरेंगे एक बार फ़िर दिल के बलबले
माना कि बुझ गये हैं गमें जिन्दगी से हम।

लौटते समय और अभी भी उनकी कही बात अभी भी याद कर रहा हूं:
तू स्वयं विधाता है हे मानव
अंतर में विश्वास जगाओ।
चलो न मिटते पद चिन्हों पर
अपने रस्ते आप बनाओ।
अपडेट: ऊपर का फ़ोटो पत्रकार शम्भूनाथ शुक्लजी की फ़ेसबुक वाल से साभार!

और अंत में

अपनी आदत , चुप रहते हैं,
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
आंसू नहीं छलकने देंगे
ऐसी कसम उठा रखी है
होंठ नहीं दाबे दांतों से
हमने चीख दबा रखी है।
माथे पर पत्थर सहते हैं,
छाती पर खंजर सहते हैं
पर कहते पूनम को पूनम
मावस को मावस कहते हैं।
अपनी आदत , चुप रहते हैं,
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
हमने तो खुद्दार जिंदगी के
माने इतने ही माने
जितनी गहरी चोट अधर पर
उतनी ही गहरी मुस्कानें।
फ़ाके वाले दिन को, पावन
एकादशी समझते हैं
पर मुखिया की देहरी पर
जाकर आदाब नहीं कहते हैं।
अपनी आदत , चुप रहते हैं,
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
हम स्वर हैं झोपड़पट्टी के
रंगमहल के राग नहीं हैं
आत्मकथा बागी लहरों की
गंधर्वों के फ़ाग नहीं हैं।
हम चिराग हैं, रात-रात भर
दुनिया की खातिर जलते हैं
अपनी तो धारा उलटी है
धारा में मुर्दे बहते हैं।
अपनी आदत , चुप रहते हैं,
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
-शिवओम ‘अम्बर’
फ़र्रुखाबाद

51 responses to “चलो न मिटते पद चिन्हों पर अपने रस्ते आप बनाओ- भगवती प्रसाद दीक्षित उर्फ़ घोड़ेवाला”

48 responses to “चलो न मिटते पद चिन्हों पर अपने रस्ते आप बनाओ- भगवती प्रसाद दीक्षित उर्फ़ घोड़ेवाला”

  1. Nishant
    हाय! क्या आदमी है!
    वाकई आदमी है!
    चलते हैं, स्वामी! नौकरी बजाएं.
  2. बेढब व्यक्तित्व
    बड़े बेढब व्यक्तित्व हैं, दीक्षित जी । मेरा उनसे यहीं रायबरेली में मिलना हो चुका है, जब मैं इन्टरमीडियेट में पढ़ा करता था । तब इतनी वैचारिक परिक्वता नहीं थी कि उनसे सवाल ज़वाब करता । बाद में अपने कानपुर प्रवास के दौरान मैंनें उन्हें खोजने की कोजने कई बार कोशिश की…. पर अफ़सोस दिल गड्ढे में कि आप जैसा गाइड न मिला । दीक्षित जी मीडिया ( प्रिंट मीडिया ) को आकर्षित तो करते थे, पर उन्हें मीडिया मैनेज़मेन्ट का भान नहीं था… जो किसी भी ऎरै गैरे को बाँस की फ़ुनगी पर पर चढ़ा सकता है । या कहिये कि उन्होंने इसकी परवाह ही नहीं की ।
    आपने अच्छा याद दिलाया, दीक्षित जी व्यक्तित्व अध्ययन के लिये एक विशिष्ट चरित्र हैं ।

    मैं उनका शत शत आभार मानता हूँ कि कम से कम उनके बहाने आप अपनी माँद से तो निकले ।
    बेढब व्यक्तित्व की हालिया प्रविष्टी..एक अस्वीकृत रचनाMy ComLuv Profile
  3. sanjay jha
    मतलब सब चाहते हैं लड्डू फूटे चूरा होय ,हम भी खायें तुम भी खाओ।- भगवती प्रसाद
    ………………ये तो कुशल भविस्यवक्ता हुए जो ९९% लोगों की मनह-स्थिति उवाचे…..
    जिस संसद में सवा पाँच सौ गधे जा सकते है वहां मेरा एक घोड़ा क्यों नही रह सकता है!..
    ……………. ये तो सोने से भी खरी बात कह दी…………….
    आप हमें पसंद हैं…………..सो आपकी पसंद हम्में बहुत्तई पसंद हुई……………………………
    प्रणाम.
  4. सोनल रस्तोगी
    अनूप जी, आज तो मन मोह लिया आपने एक तो दीक्षित जी के बारे में लिखा जो बहुत प्रेरणादायक है साथ में अम्बर जी की रचना …. अम्बर जी से बहुत अच्छे संस्मरण जुड़े है कभी फुर्सत में सुनाउंगी
  5. ashish shrivastava
    यही विडंबना है देश की , “चुनाव में आदमी नहीं पैसा जीतता है। नोट से वोट खरीदे जाते हैं। जब तक देश में घोड़ेवाले की तरह के आम आदमी के चुनाव जीतने के हालात नहीं बनते तब तक देश की हालत नहीं सुधर सकती।”
    इनके किस्से हमने जबलपुर में भी सुन रखे है ,आपने परिचय करा दिया ,धन्यवाद् …..
    आशीष श्रीवास्तव
  6. Jitu
    भगवती प्रसाद जी, एक ऐसी शख्सियत है जिनको कानपुर में लगभग हर कोई जानता है| मुझे याद है की मैंने भगवती प्रसाद दीक्षितजी की लगभग सभी चुनावी सभाएं सुनी थी| उनकी दमदार आवाज़ और बेहद लाजवाब तर्क, ऊपर से हास्य व्यंग्य का तड़का मजा आ जाता था. मै भी हरसहाय कालेज का पढ़ा हुआ हूँ, अक्सर इनके पास चला जाया करता था, इनके विचार सुनकर काफी ऊर्जा मिलती थी.
    ईश्वर उनको दीर्घायु प्रदान करे और उनके अच्छे स्वास्थ्य की शुभकामनाओ के साथ |
    उनका अनुज
    -जीतू
  7. Ashish
    हाय -हाय न किच-किच ,
    भगवती प्रसाद दीक्षित |
    इस नारे के साथ अवतरित हुए दीक्षित जी को बचपन से देखा ,
    बचपन में हम दौड़ कर जाते और ज्यादातर बच्चों का हुजूम उनके साथ शोर मचाता चलता तो वह बच्चों को घुड़क देते जहाँ भी जाते बच्चे बदल जाते पर उनका अंदाज़ नहीं |
    जब भी बड़ों को उनके बारे में बात करते सुना तो अधिकांशतः लोग झक्की कहते थे पर इस सबके उपरांत भी उनकी संघर्ष क्षमता अजायब सी ….. उम्र के इस पड़ाव पर उनसे सहानुभूति……..
  8. प्राइमरी के मास्साब
    बचपन में हर चुनावी समय में अखबारों में भगवती प्रसाद दीक्षित @ घोड़े वाले को सुनता रहा हूँ …….आपके सहारे कुछ और मालूम हुआ |
    प्राइमरी के मास्साब की हालिया प्रविष्टी..क्या है एजुकेशन My ComLuv Profile
  9. arvind mishra
    तभी तो कहें इत्ते दिन से कहाँ थे….इस जोरदार इंटरव्यू के फिराक में थे …अपने समय के सनसनी हुआ करते थे दीक्षित जी ,,
    उन्होंने विपक्ष की गरिमा ऊँची रखी-प्रतीकात्मक चुनाव भी लड़े..जीवन को सार्थक किया ..
    अच्छा लगा अब फुरसत में उनका एक और फ़ुरसतिया से मिलना …
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..विज्ञान गल्प और अपराध कथाओं के जाने माने उर्दू लेखक इज़हार असर-विनम्र श्रद्धांजलि My ComLuv Profile
  10. सुशील बाकलीवाल
    इनके कभी दीदार तो नहीं हुए किन्तु इनका नाम बखूबी अच्छे से परिचय में रहा है । एक तो मेरे बडे भाई कानपुर में नयागंज में एक मुद्दत से रहते रहे हैं उनसे मिलने जाने के दौरान चलते चुनाव में और दूसरे ये चुनाव क्षेत्र बदल-बदलकर चुनाव लडते रहते थे, इन्दिरा गांधी के खिलाफ खडे होते थे इसलिये समाचार-पत्रों में चुनावों के मौसम में वैसे ही छाये रहते थे जैसे कि उस जमाने में राजनारायण । ऐसे भूले-बिसरे व्यक्तित्व से परिचय करवाने हेतु आभार सहित…
  11. मीनाक्षी
    हर आदमी बिगड़ा हुआ परमात्मा होता है। हम सब बिगड़े हुये परमात्मा होते हैं। जब हम लोग यह बात समझ जायेंगे और अपने को पहचान लेंगे तो सब ठीक हो जायेगा। —- दीक्षितजी की इस बात ने आशा का संचार कर दिया…
  12. वंदना अवस्थी दुबे
    अच्छा लगता है ऐसे जोशीले व्यक्तित्व से मिलना, या उनके बारे में पढना.
    आंसू नहीं छलकने देंगे
    ऐसी कसम उठा रखी है
    होंठ नहीं दाबे दांतों से
    हमने चीख दबा रखी है।
    बहुत सुन्दर कविता है. आभार जोशी जी के माध्यम से जिजीविषा बढाने के लिए. :)
  13. इस्मत ज़ैदी
    इतने दिनों के बाद आई लेकिन बहुत ख़ूबसूरत पोस्ट मिली पढ़ने के लिए
    इस जानकारी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ,,ये वो लोग हैं जो सच में इंसान हैं
    कानपुर के इस ‘इंसान ‘ को मेरा प्रणाम
    हमने तो ख़ुद्दार जिंदगी के
    माने इतने ही माने
    जितनी गहरी चोट अधर पर
    उतनी ही गहरी मुस्कानें।
    बेहद उम्दा नज़्म की बेहतरीन पंक्तियाँ !!
    इन पंक्तियों के भाव मन को स्पर्श करते हैं ,,इन्हें पढ़ कर मशहूर शायर स्व.वमिक़ जौनपुरी का ये शेर याद आता है
    ‘जहाँ चोट खाना वहीँ मुस्कुराना
    मगर इस अदा से की रो दे ज़माना ‘
    इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई और धन्यवाद
  14. घनश्‍याम मौर्य
    मेरे पिताजी इनके बारे में बताया करते थे, हालांकि मुझे इन महाशय का नाम नहीं पता था। आपने इनके बारे में विस्‍तार से जानकारी देकर बहुत अच्‍छा काम किया है। इनके बारे में पढ़कर काका जोगिन्‍दर सिंह धरतीपकड़ की याद आ गयी।
    घनश्‍याम मौर्य की हालिया प्रविष्टी..बन्‍दर का पंजा – डब्‍ल्‍यू डब्‍ल्‍यू जैकब्‍स की विश्‍वप्रसिद्ध हॉरर स्‍टोरीMy ComLuv Profile
  15. ASHISH RAI
    घोड़े वाले दीक्षित जी का चुनावी भाषण सुना तो है . किसी दिन मुलाकात करते है सिसमाऊ जाकर .
  16. संजय @ मो सम कौन?
    स्वामी,
    दीक्षितजी से परिचय करवाने के लिये आभार। इससे पहले हर चुनाव लड़ने वाले के तौर पर धरतीपकड़ जी के बारे में ही सुन रखा था। दीक्षितजी की बातों में दम है। सच्चा आदमी झक्की ही कहलाता है। गधों-घोड़ों वाली बात हो, पागल न होने के सर्टिफ़िकेट वाली बात हो या फ़िर स्वामी-परमात्मा वाली बात, सच एकदम सटीक लगीं।
    यह पोस्ट बहुत पसंद आई, अंत तक। और अंत में, गज़बे-गज़ब।
    संजय @ मो सम कौन? की हालिया प्रविष्टी..Banks of BharatBharat that is India क्षोभास्य-My ComLuv Profile
  17. shikha varshney
    बड़ा दिलचस्प व्यक्तित्व है.हिन्दुस्तान के हर कोने में ऐसे हीरो हैं घोड़े वाले, फिर पता नहीं क्यों संसद में बैठाने को गधे ही मिलते हैं जनता को .
    तो यह था राज आपके गायब रहने का .बढ़िया इंटरव्यू लिया है.
    shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..शेक्सपियर के शहर के अनपढ़ बच्चेMy ComLuv Profile
  18. Abhishek
    बहुत सही स्वामीजी. आगे फिर मिल के आइये…
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..मॉडल बनाम मॉडलMy ComLuv Profile
  19. भारतीय नागरिक
    घोड़े वाले और धरती पकड़ दोनों का ही बहुत नाम है. व्यक्तित्व तो शानदार है ही. लेख भी उतना ही रोचक, साथ में दिये गये शे’र और कविता. कुल मिलाकर बहुत उम्दा पोस्ट.
    भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..एक प्राचीन कथाMy ComLuv Profile
  20. देवेन्द्र पाण्डेय
    आईने को झाड़-पोंछ कर सबके सामने रख दिखा दिया
    हाय !
    कोई अपनी सूरत देखना ही नहीं चाहता !
    सभी आईने की बदहाली से हैरान हैं।
  21. Monali
    चलिए कोई तो है जो खुद को आजाद समझता है इस देश में… वर्ना तो हम सब ही गधो को अपने ऊपर सवारी करवा रहे हैं :)
  22. Kajal Kumar
    भगवान करे कोई तिलिस्म फूटे अौर इनका
    सारा बक़ाया इन्हें मिल जाए. आमीन.
  23. amrendra nath tripathi
    स्थानीयता के गढ़े हुये चरित्र हैं ये ! स्थान इन्हें विशिष्ट पहचान देता है! सच कहूँ तो ये धुन के पक्के पराजयातीत होते हैं, इनसे हार भी हारी होती है।
    बहुत नीक लाग पढ़ि के ! भित्तर तक छहरन चढ़ि है! अउर अंतिम कै गितवा मोहि लिहिस, बधाई!!
  24. dhirusingh
    हमारे यहा के काका जुगेन्द्र सिंह भी ऎसे ही व्यक्तित्व थे . उन्होने भी चुंगी से ले कर राष्ट्रपति का चुनाव लडकर हारा . उनका कहना था जीते नरक को जायेंगे हारे हरि के द्वार
    dhirusingh की हालिया प्रविष्टी..मुफ्ते माल दिले बेरहमMy ComLuv Profile
  25. vijay gaur
    एक दिलचस्प और प्रेरक इंसान से परिचित कराने का शुक्रिया।
    vijay gaur की हालिया प्रविष्टी..सपने में भी जागने का आग्रहMy ComLuv Profile
  26. प्रवीण पाण्डेय
    कभी आपके शब्द दुनिया भी पहचानेगी,
    बहुत बिगड़ चुका होगा, जब तक ये जानेगी।
  27. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    “… जब तक देश में घोड़ेवाले की तरह के आम आदमी के चुनाव जीतने के हालात नहीं बनते तब तक देश की हालत नहीं सुधर सकती।”
    बिल्कुल सही कहा। जय हो।
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..नयी कहानी – मोहन बाबूMy ComLuv Profile
  28. Shiv Kumar Mishra
    दीक्षित जी से मिलवाने के लिए धन्यवाद. बढ़िया व्यक्तित्व से मिलना हमेशा ही अच्छा लगेगा. उनकी चुनाव लड़ने की बात पर जोगिन्दर सिंह धरतीपकड़ जी की याद आ गई.
    दीक्षित जी पर एक और पोस्ट लिखिए. उनसे एक बार फिर मिलिए. पढ़कर अच्छा लगेगा.
  29. Sanjeet Tripathi
    वाह, क्या पर्सनालिटी हैं। मुझे लगता है दीक्षित जी को पागल कहने वालों के दिमागी संतुलन का चेकअप पहले होना चाहिए…
    शुक्रिया उनसे मिलवाने के लिए।
  30. अल्पना
    माननीय दीक्षित जी का व्यक्तित्व बेहद रोचक है .
    ——
    अंत में दी गयी शिवोम अम्बर जी की कविता पसंद आई,
    आभार
    अल्पना की हालिया प्रविष्टी..आगे भी जाने न तू बिना संगीतMy ComLuv Profile
  31. अल्पना
    @ये कैसी थम्बनेल तस्वीर आती है!हर बार वही ~!
    अल्पना की हालिया प्रविष्टी..आगे भी जाने न तू बिना संगीतMy ComLuv Profile
  32. सतीश सक्सेना
    जय हो स्वामी जी …..
  33. Anonymous
    अपनी आदत , चुप रहते हैं,
    या फिर बहुत खरा कहते हैं।
    हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
    अपनी आदत भी कुछ ऐसी है इसलिए हम सबसे कट के रहते है ,आनी वाली हर आफत से जरा जरा बच के रहते है ,आनंद ही आनंद ,बहुत खूबसूरत पोस्ट ,
    जब लड़का सरकारी नौकरी में आता है तो घर वाले कहते हैं क्या फायदा ऐसी नौकरी का जिसमे ऊपरी कमाई न हो। वही लड़का जब बाद में घूस लेते हुये पकड़ा जाता है तो कहते हैं हाथ बचाकर काम करना चाहिये था। मतलब सब चाहते हैं लड्डू फूटे चूरा होय ,हम भी खायें तुम भी खाओ।- भगवती प्रसाद दीक्षित- घोड़े वाला
    ये लोग जो हर बात को अपने तराजू में तोलते है ,बहुत बढ़िया
  34. jyotisingh
    अपनी आदत , चुप रहते हैं,
    या फिर बहुत खरा कहते हैं।
    हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
    अपनी आदत भी कुछ ऐसी है इसलिए हम सबसे कट के रहते है ,आनी वाली हर आफत से जरा जरा बच के रहते है ,आनंद ही आनंद ,बहुत खूबसूरत पोस्ट ,
    जब लड़का सरकारी नौकरी में आता है तो घर वाले कहते हैं क्या फायदा ऐसी नौकरी का जिसमे ऊपरी कमाई न हो। वही लड़का जब बाद में घूस लेते हुये पकड़ा जाता है तो कहते हैं हाथ बचाकर काम करना चाहिये था। मतलब सब चाहते हैं लड्डू फूटे चूरा होय ,हम भी खायें तुम भी खाओ।- भगवती प्रसाद दीक्षित- घोड़े वाला
    ये लोग जो हर बात को अपने तराजू में तोलते है ,बहुत बढ़िया
  35. Gaurav Srivastava
    देश में आज लल्लू, जगधर छाये हुये हैं। ये जनता को धोखा दे रहे हैं। जनता सब समझती है लेकिन कुछ बोलती नहीं है। इसीलिये ये जनता को लूट रहे हैं।
    जिस संसद में सवा पाँच सौ गधे जा सकते है वहां मेरा एक घोड़ा क्यों नही रह सकता है!
    बात तो बहुत सही कही है
    आंसू नहीं छलकने देंगे
    ऐसी कसम उठा रखी है
    होंठ नहीं दाबे दांतों से
    हमने चीख दबा रखी है।
    बेचारी जनता और क्या कर भी क्या सकती है .
    आपकी पोस्ट का हमेशा इंतजार रहता है .
  36. dr.anurag
    कुछ लोग जिंदगी अपने तरीके से जीते है ..चाहे किसी भी सदी में पैदा हुए हो…..अखबारों में उनके बारे में पढ़ा तो करते थे बचपन में ….खैर बकोल निशांत “क्या आदमी है ”
    dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..वो क्या कहते थे तुम जिसे प्यार !My ComLuv Profile
  37. संतोष त्रिवेदी
    इनके बारे में बचपन से सुनता रहा हूँ.हमारे जिले (रायबरेली) से भी चुनाव लड़ते थे.ऐसे लोगों को याद करने का वक़्त इस ज़माने के पास नहीं है,आपने यह कष्ट उठाया,धन्यवाद !
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..छात्रों में नशाखोरी !My ComLuv Profile
  38. Vivek Jain
    बहुत बढिया आलेख,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
    Vivek Jain की हालिया प्रविष्टी..जहां तक हो सका हमने तुम्हें परदा कराया हैMy ComLuv Profile
  39. eswami
    बहुत अच्छा लगा पढ कर.. हट कर है!
    eswami की हालिया प्रविष्टी..पेश-ए-खिदमत है ‘हर्बल माल’– स्व नुसरत की एक विरली कव्वाली!My ComLuv Profile
  40. Poonam
    इस लेख को पढ़ते पढ़ते मैंने पापा से पूछा तो…वो भी शुरू होगये दीक्षित जी के बारे में बताने..लगभग यही सारी बातें एक एक करके जो आपने आगे वर्णित की..और इस हिसाब से उनका घर मेरे घर के पास ही है. इसके पहले तक मुझे इनके बारे में नहीं पता था.अच्छा लगा जानकर…और थोडा अफ़सोस भी..की दीक्षित जी ने जो तब किया ऐसा करने का उचित समय आने में शायद काफी समय लग गया…आज के दौर में ऐसा कोई नेतृत्व सामने आये तो उसकी आवाज काफी उपर तक सुनी जा सकती है क्यूंकि लोग थोडा अधिक जागे हुए हैं.या कह सकते हैं कुछ माहोल ही ऐसा बना हुआ है.और अपना मीडिया भी कभी-२ अच्छा काम करता है.
    Poonam की हालिया प्रविष्टी..एक दुआ अपने लिएMy ComLuv Profile
  41. चंद्र मौलेश्वर
    अब न वो दिल्ली की गलियां रही न वो राजनीति के गलियारे।
    अव न वो घोडेवाले दिक्षित रहे और न वो घंटे वाले घरतीपकड :)
  42. Arvind Chaturvedi
    आनन्द आ गया दीक्षित जी पर आपका लेख पढ़कर.
    बचपन की यादें ताज़ा हो आईं. अनेक चुनावों में दीक्षित जी और उनके घोडे के दर्शन हुआ करते थे. फूलबागं के चौराहे पर या गणेश उद्यान के मैदान में अक्सर दीक्षित जी दिख जाते थे. हम बच्चे उनके पीछे लग लेते थे. कभी कभी तो वह बच्चों के ही सम्बोधित करने लगते. कहते थे बात गांठ बान्ध लो,जब बड़े हो जाओ तो हमीं को वोट देना. हम तब भी लड़ेंगे.
    बाद में मित्रों से सुना था कि एक लोकसभा के चुनाव में वह नम्बर दो पर भी रहे. तब ही यह नारा ‘हाय हाय ना किच किच ,भगवती प्रसाद दीक्षित” चला था.
    धन्यवाद.
    Arvind Chaturvedi की हालिया प्रविष्टी..अमरीका में भारतीयम- एक बार फिरMy ComLuv Profile
  43. Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
    दीक्षितजी से मिलकर बहुत अच्छा लगा। हमारा वोट पक्का समझिये। उनके बारे में पहले कभी पढा था लेकिन उनके सिद्धांतों के बारे में इतनी जानकारी नहीं थी
    Smart Indian – स्मार्ट इंडियन की हालिया प्रविष्टी..शहीदों को तो बख्श दो – भाग 1. भूमिकाMy ComLuv Profile
  44. kamlesh mohabe
    मतलब सब चाहते हैं लड्डू फूटे चूरा होय ,हम भी खायें तुम भी खाओ।- भगवती प्रसाद
    ………………ये तो कुशल भविस्यवक्ता हुए जो ९९% लोगों की मनह-स्थिति उवाचे…..
    जिस संसद में सवा पाँच सौ गधे जा सकते है वहां मेरा एक घोड़ा क्यों नही रह सकता है!..
    ……………. ये तो सोने से भी खरी बात कह दी…………
    यही विडंबना है देश की , “चुनाव में आदमी नहीं पैसा जीतता है। नोट से वोट खरीदे जाते हैं। जब तक देश में घोड़ेवाले की तरह के आम आदमी के चुनाव जीतने के हालात नहीं बनते तब तक देश की हालत नहीं सुधर सकती।”
    इनके किस्से हमने मुलताई में भी सुन रखे है ,आपने परिचय करा दिया ,धन्यवाद् …..
    कमलेश मोहबे
  45. राहुल सिंह
    एक प्रसंग याद आता है कि नेपाल नरेश के महल में हमारे राष्‍ट्रपति गए थे, दीक्षित जी भी नरेश से मिलने जा पहुंचे और कहलाया कि भारत का राष्‍ट्रपति आया है, अंदर जीता हुआ और बाहर हारा हुआ. घोड़ावाले का संदर्भ बार-बार प्रासंगिक होता रहेगा.
    राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..नायकMy ComLuv Profile
  46. अमिताभ त्रिपाठी
    ’घोड़ेवाला’ का घोड़े सहित दर्शन का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ था। मुझे आश्चर्य होता था कि सामान्य से कम कद काठी का आदमी इतने ऊँचे घोड़े पर कैसे बैठ्ता होगा। कौतूहलवश सुनने वालों की भीड़ में मैं भी शामिल हो जाता था। समाचारों के अनुसार एक बार राष्ट्रपति के चुनाव में ख़र्च निूकालने लिये अपना घोड़ा भी बेच दिया था। बाद में शायद उन्होने दूसरा घोड़ा ख़रीदा। लेकिन इस चुनाव लड़ने की विचित्र सनक के अतिरिक्त, दीक्षित जी अन्य किसी सामाजिक कार्य के लिये विशेष चर्चा में नहीं आये।
    अमिताभ त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..श्रृंगार-गीतMy ComLuv Profile
  47. Gyan Pandey
    हाय, घोड़ा तो ऊपर गया, गधे कब ऊपर जायेंगे!
    Gyan Pandey की हालिया प्रविष्टी..गंगा तीरे बयानीMy ComLuv Profile
  48. Anonymous
    फ्रेंच कट दाढ़ी
    हाथ मैं बिगुल
    अंग्रेजो के ज़माने की hat
    घुड़सवारी वाले बूट्स
    पतलून के पायचा खुसे हुए
    “स्वामी” प्रिय संबोधन
    slight लिस्प इन स्पीच
    एक अलग व्यक्तित्व

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