22.04.2005
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"मैं एक बदतमीज, बदकलाम, बदजबान, बदनसीब , बदमिजाज बूढा बनता जा रहा हूं। लेकिन अब मैं अपना तौर तरीका बदल नहीं सकता, लाख कोशिश करूं तब भी नहीं। मुझे अपने गुस्से और गम को काम में ढालते रहना चाहिये, अपने किरदार और व्यवहार में नहीं। जैसा जीता-सोचता हूं, करीब-करीब वैसा ही लिखता हूं, जैसा लिखता हूं करीब-करीब वैसा ही जीता -सोचता हूं।
अब पढना कम कर देना चाहिये- एक तो इसलिये कि आंखें थक जाती हैं और एक इसलिये कि अब पढने से कोई फ़ायदा होता नजर आता है, न कोई खास लुत्फ़ मिलता। पढा हुआ पहले भी याद कम ही रहता था, अब और कम। अब हर क्षण खीझ को, हर अनुभव की आंच को हर ख्याल की खाक को , हर सांस की सुरसुराहट को, हर दर्द के धुयें को दर्ज करते रहना चाहिये। लेकिन क्यों?"
ये बातें प्रख्यात लेखक कृष्ण बलदेव वैद ने आज से 14 साल पहले अपनी डायरी ( किताब का शीर्षक अब्र क्या चीज है? हवा क्या है?) में लिखीं थीं। उस समय वे 67 साल की उमर के थे। आज वे 91 के होंगे। उनकी दो किताबें पढी हैं मैंने (1) एक नौकरानी की डायरी (2) नर-नारी। दोनों शुरु करने के बाद पूरी खत्म करके ही छोड़ी। ऐसा कम होता है आजकल। किताबें , एक से एक बेहतरीन , बेस्टसेलर किताबें या तो शुरु ही नहीं होतीं या फ़िर अधूरी छूट जाती हैं। पढने की क्षमता कम , बहुत कम हो गयी है। जैसे कम्प्यूटर की मेमोरी भरने के बाद कम्प्यूटर हैंग करने लगता है कुछ वैसा ही। किताबें पढते समय दिमाग हैंग कर जाता है। किताब उठाकर रख देते हैं।
लेकिन किताबें इकट्ठा करने का जुनून बरकरार है। तमाम अलाय-बलाय से बचाती हैं किताबें।
पिछले दिनों मनोहर श्याम जोशी पर लिखी प्रभात रंजन की किताब हमजाद बोहेमियन मंगवाई। उसके साथ और कई किताबें मंगवा लीं। कुछ मित्रों ने लिस्ट के बारे में पूछा था। हमने सोचा बतायें लेकिन फ़िर लगा कि फ़िर तो पहले जी तमाम किताबों के बारे में भी बताना चाहिये। लेकिन अब सोचते हैं कि अभी इस बार की किताबों के बारे में बतायें। क्या पता किसी का मन आ जाये किताब पढने का। जैसे हमजाद बोहेमियन का जिक्र पढकर निर्मल गुप्त जी ने उसे मंगवाया और पढकर ही छोड़ पाये उसे।
1. हमजाद बोहेमियन - प्रभात रंजन
2.अब्र क्या चीज है? हवा क्या है?- कृष्ण बलदेव वैद
3.जांच जारी है- आरिफ़ा एविस
4.ढाक के तीन पात- मलय जैन
5.औघड़ -नीलोत्पल मृणाल
6.इनरलाइन पास - उमेश पंत
7.हमसफ़र एवरेस्ट - नीरज मुशाफ़िर
8.पैडल-पैडल - नीरज मुशाफ़िर
9.चिरकुट दास चिन्गारी- वसीम अकरम
10. भली लड़कियां बुरी लड़कियां- अनु सिंह चौधरी
11.मैं बोनसाई अपने समय का - रामशरण जोशी
12. पर्यावरण के पाठ साक्षात्कार -अनुपम मिश्र
13.एक किशोरी की डायरी अने फ़्रांक - अनुवादक प्रभात रंजन
14. पालतू बोहेमियन -प्रभात रंजन
15. सच प्यार और थोड़ी सी शरारत -खुशवन्त सिंह
16.उच्च शिक्षा का अंडरवर्ड- जवाहर चौधरी
17. बारिश, धुंआ और दोस्त- प्रियदर्शन
इसके पहले की मंगाई और अब तक अनपढी , अधपढी किताबों की सूची बनायेंगे तो शाम हो जायेगी। इन किताबों हमारे समय के बेहतरीन लेखकों में सुमार लेखकों की बेहतरीन मानी जानी वाली किताबें भी हैं। ज्ञान चतुर्वेदी जी की किताब पागलखाना और रसूल हमजातोव की मेरा दागिस्तान बहुत दिनों तक बैग में साथ लिये दफ़्तर आते-जाते रहे। यात्राओं में भी साथ रखे।
पागलखाना का सफ़र पेज 73 पहुंचा है। सबसे ताजी जगह जो अंडरलाइन की है वह यह है:
"बाजार में आजकल भ्रम डिस्काउंट रेट पर मिल जाता और नाक बड़े ऊंचे भाव पर बिक जाया करती है। लोग नाक बेच देते हैं और भ्रम लगाये घूमते हैं।"
पेज 73 से 270 तक का सफ़र देखिये कब तय होता है। होने को तो एक दिन में तय हो सकता है लेकिन देखिये। फ़िलहाल तो सामने हैं किताबें।