सूरज भाई पेड़ों के पीछे से उजाले की सप्लाई कर रहे हैं |
आज भी ऐसा ही हुआ। लेकिन निकल ही लिए। जब निकले तो सोचा किधर जाएँ। चूंकि देर हो गयी थी इसलिए पहला पड़ाव फैक्ट्री के सामने की चाय की दुकान रही।
चाय की दुकान पर दो नौजवान मिले। सामने वीएफजे स्टेडियम से टहलकर आया था एक। दूसरा शायद सीधा घर से चला आ रहा था। दूसरे ने चाय के लिये आर्डर दिया और सिगरेट लेने के लिए बगल की दुकान की तरफ़ लपका। पहले ने टोंका, सुबह-सुबह सिगरेट? उसके एतराज करने तक वह सुलगा चुका था। पहले ने चाय के लिये मना कर दिया कहते हुए-'अब्बी पीकर आये हैं घर से।'
पता चला कि दूसरा जवान ठेकेदारी का काम करता है। पहले दिन में कई पैकेट पी जाता था सिगरेट। अब दिन में 3-4 सिगरेट सुलगती हैं। उम्र के साथ कम होती जा रही है। पता यह भी चला कि नींद न आने की समस्या है उसको। देर तक नहीं आता, फिर देर तक सोता है।
पहला युवक कम्प्यूटर का काम करता है। लेनोवो कंप्यूटर आजकल बताया 22 हजार तक में आ रहा है। हमने बताया कि हमने 2004 में कॉम्पैक का लैपटाप 84 हजार में लिया था। अभी भी टनाटन चल रहा है। वो बोला-' उस समय आप यंग रहे होंगे। नई चीज खरीदने का उत्साह रहा होगा।'
मतलब उस युवा की नजर में अब हम युवा न रहे। 'मार्गदर्शक मंडल' के आइटम हो गए। मन किया कि उसको परसाई घराने की यौवन की परिभाषा सुना दें:
"यौवन सिर्फ काले बालों का नाम नहीं है।यौवन नविन भाव, नवीन विचार ग्रहण करने की तत्परता का नाम है; यौवन लीक से बच निकलने की इच्छा का नाम है। और सबसे ऊपर बेहिचक बेबकूफी करने का नाम यौवन है।"
प्रतापगढ़ निवासी हैं दोनों उम्र 80 के करीब |
चाय पीकर देखा सूरज भाई पेड़ों की आड़ से रोशनी की सर्च लाइट मार रहे थे। सड़क की दांयी और दिखे सूरज। भाई। मन किया उनको दक्षिणपंथी कह दें। लेकिन फिर नहीं कहा। कोई राजनीति का आरोप लगा देगा लफड़ा होगा।
बायां और दायां अब इतना राजनैतिक हो गया है कि बोलते हुए लगता है राजनीति की गली में घुस रहे हैं। क्या पता कल को कोई बाएं और दायें को भी राजनीतिक विचार धारा से जोड़ते हुए बताये--चौराहे से 'कम्युनिष्ट गली' में मुड़ जाइयेगा वहीं 'बुर्जुआ कोने' पर पहला ही मकान है अपना।
पुलिया पर एक बुजुर्ग मिले। बताये पुलिस विभाग से रिटायर हुये थे 94 में। प्रतापगढ़ के रहने वाले। वायरलेस विभाग में काम करते थे। कंचनपुर में उस समय घर ले लिये थे। फिर यहीं बस गए।
कई जगह सर्विस किये हैं मिश्रा जी। इंदौर, जगदलपुर, भोपाल, जबलपुर। बस्तर के बारे में बताया -'कुछ नहीं बदला वहां। औरतें अभी भी खड़े-खड़े पेशाब करती हैं। आदिवासी लोगों का ईसाईकरण हो रहा है।'
उम्र के अस्सीवें साल में पहुंचे मिश्र जी का स्वास्थ्य अभी भी टनाटन लग रहा था। कहा तो बोले- 'अब कमजोरी लगती है। डायबिटीज़ है 20 साल से। परहेज करते हैं पर उठने-बैठने में तकलीफ होने लगी है। पर जब रिटायर हुए थे तब एक भी बाल सफेद नहीँ हुआ था। बल्कि हमारे अधिकारी बोले, मिश्रा जी हमारे हाथ में होता तो हम आपको दुबारा नौकरी पर रख लेते।'
उसी समय जीसीएफ से रिटायर एक और साथी आ गए वहां। पता चला कि वो भी प्रतापगढ़ के रहने वाले हैं।प्रतापगढ़ से रामफल की बात चली। वह भी प्रतापगढ़ के रहने वाले थे। मिश्रा जी ने बताया-'उस दिन जब हम वोट डाल कर आये तो घर के बाहर ही बैठा था। पसीना-पसीना हो रहा था। और खत्म हो गया। जब भी बात होती थी कहता था, बाबूजी बाजार बहुत टाइट चल रहा है।'
छिउलिया (टेसू) होली के लिए तैयार |
साइकिल से हमको चलते देखकर बहुत ख़ुशी जाहिर की मिश्र जी ने। बोले-'अब लोग चलते नहीं साइकिल से। हमारा बस चले तो साईकल को कम्पलसरी सवारी कर दें।'
मेस की तरफ लौटते हुए देखा कि सामने पेड़ में लाल रंग के फूल खिले हुए थे। कायनात अपने को होली के लिए तैयार कर रही है। यहां लोग इसको छिउलिया कहते हैं।
अभी जब हम यह लिख रहे थे तो सूरज भाई बाहर से हमको लिखते और चाय पीते देख रहे थे। हमको अकेले चाय पीते देखकर अंदर घुस आये और भन्नाते हुए बोले-' अकेले-अकेले चाय पी रहे हो।' हम कुछ जबाब दें तब तक वो थर्मस की चाय कप में उड़ेलकर साथ में पीने लगे। चाय पीते ही उनकी भन्नाहट गायब हो गयी और मुस्कान उनके चेहरे पर फ़ैल गयी।
लगा अब सही में सुबह हो गयी।
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आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बच्चों का नैसर्गिक विकास होने दें - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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