दीवाली के मौक़े पर सैकड़ों मित्रों की शुभकामनाएँ मिली। हमने भी भेजीं। कुछेक मित्रों को छोड़कर लगभग सभी ने डिज़ाइनर ग्रीटिंग कार्ड भेजे। एक से एक खूबसूरत चित्र और मनभावन संदेश। कुछ के संदेश बाद में भी मिले। भूल हुए होंगे देना पहले।
हम भी भूल गये होंगे कुछ मित्रों को शुभकामनाएँ देना। ऐसे सभी मित्रों को फिर से दीपावली की शुभकामनाएँ। जिनको लगता है दीपावली तो तो बीत गई उनको बता दें कि हमारी दीवाली नीरज जी वाली है जिसमें वो लिखते हैं :
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग,
ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
अब अंधेरे के पास कोई जीपीएस तो है नहीं न गूगल मैप जो अंधेरी गली से निकल कर रास्ता खोज लेगा।
ग्रीटिंग कार्ड की बात इसलिए कि आज हमारे कॉलेज के सीनियर Anil Srivastava जी ने दीवाली के मौक़े पर मेरे द्वारा उनको भेजा गये ग्रीटिंग कार्ड की फ़ोटो भेजी। पोस्टकार्ड पर बना हुआ ग्रीटिंग कार्ड। शायद स्केच पेन से बनाया था। दिये का स्केच और साथ में फ़्रॉस्ट की प्रसिद्ध कविता पंक्ति :
Woods are lovely dark and deep
But I have promises to keep
And miles to go before I sleep
And miles to go before I sleep.
ये कविता पंक्तियाँ नेहरू जी की पसंदीदा थीं। (संयोग से आज नेहरू जी का जन्मदिन भी है)हमने उस समय क्यों लिखा था याद नहीं। शायद अनिल सर को या ख़ुद की हौसला आफ़ज़ाई के लिए।
यह बात 1984 की दीवाली की है। हम बीई फ़ाइनल ईयर में थे। अनिल सर एमई कर रहे थे। उनके साथ के तमाम दोस्त किसी न किसी नौकरी में जा चुके थे। वे अकेले रह गये थे। पहली बार हम लोग एक ही विंग में रहने के कारण संपर्क में आये थे। देर देर तक बातें -मुलाक़ातें होती थीं। उस समय के साथ के हुबहू बयान करना मुश्किल है। लेकिन आज 39 साल पहले का यह कार्ड देखकर अनगिनत यादों के दरीचे खुल गये। कार्ड देखते ही फ़ौरन फ़ोन मिलाया अनिल सर को तमाम नई पुरानी यादें ताज़ा हुईं।
ग्रीटिंग कार्ड देखकर याद आया किं पहले अपने मित्रों को पत्र लिखने का बहुत शौक़ था मुझे। लंबे-लंबे पत्र लिखते थे। लोग भी जबाब लिखते थे। आज भी मन करता है कभी मित्रों को पत्र लिखें। लेकिन अब शायद पोस्ट कार्ड का चलन भी बंद हो गया।
मित्रों के पतों की जगह उनके फ़ोन नंबरों ने ले ली है।
39 साल पहले भेजा यह ग्रीटिंग कार्ड देखकर लगा कि दो दिन पहले भेजी गई और पाई गई शुभकामनाएँ जो ह्वाट्सऐप या अन्य माध्यमों से आईं -गई वो क्या चालीस साल बाद इसी तरह सुरक्षित रह सकेंगी जैसे यह कार्ड में भेजी शुभकामनाएँ। क्या पता तब तक व्हाटसप और सोशल मीडिया के रूप इतने बदल जायें कि संदेश खोजे न मिलें। पढ़े न जायें।
आगे की बात आगे की देखी जाएगी अभी तो तय किया है कि मित्रों को कभी -कभी पत्र लिखने का सिलसिला फिर से शुरू किया जाये। देखते हैं अमल में कितना आता है। क्या आपको भी पत्र लिखना अच्छा लगता है?
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