Tuesday, November 14, 2023

39 साल पुराना शुभकामना पत्र



दीवाली के मौक़े पर सैकड़ों मित्रों की शुभकामनाएँ मिली। हमने भी भेजीं। कुछेक मित्रों को छोड़कर लगभग सभी ने डिज़ाइनर ग्रीटिंग कार्ड भेजे। एक से एक खूबसूरत चित्र और मनभावन संदेश। कुछ के संदेश बाद में भी मिले। भूल हुए होंगे देना पहले।
हम भी भूल गये होंगे कुछ मित्रों को शुभकामनाएँ देना। ऐसे सभी मित्रों को फिर से दीपावली की शुभकामनाएँ। जिनको लगता है दीपावली तो तो बीत गई उनको बता दें कि हमारी दीवाली नीरज जी वाली है जिसमें वो लिखते हैं :
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग,
ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
अब अंधेरे के पास कोई जीपीएस तो है नहीं न गूगल मैप जो अंधेरी गली से निकल कर रास्ता खोज लेगा।
ग्रीटिंग कार्ड की बात इसलिए कि आज हमारे कॉलेज के सीनियर Anil Srivastava जी ने दीवाली के मौक़े पर मेरे द्वारा उनको भेजा गये ग्रीटिंग कार्ड की फ़ोटो भेजी। पोस्टकार्ड पर बना हुआ ग्रीटिंग कार्ड। शायद स्केच पेन से बनाया था। दिये का स्केच और साथ में फ़्रॉस्ट की प्रसिद्ध कविता पंक्ति :
Woods are lovely dark and deep
But I have promises to keep
And miles to go before I sleep
And miles to go before I sleep.
ये कविता पंक्तियाँ नेहरू जी की पसंदीदा थीं। (संयोग से आज नेहरू जी का जन्मदिन भी है)हमने उस समय क्यों लिखा था याद नहीं। शायद अनिल सर को या ख़ुद की हौसला आफ़ज़ाई के लिए।
यह बात 1984 की दीवाली की है। हम बीई फ़ाइनल ईयर में थे। अनिल सर एमई कर रहे थे। उनके साथ के तमाम दोस्त किसी न किसी नौकरी में जा चुके थे। वे अकेले रह गये थे। पहली बार हम लोग एक ही विंग में रहने के कारण संपर्क में आये थे। देर देर तक बातें -मुलाक़ातें होती थीं। उस समय के साथ के हुबहू बयान करना मुश्किल है। लेकिन आज 39 साल पहले का यह कार्ड देखकर अनगिनत यादों के दरीचे खुल गये। कार्ड देखते ही फ़ौरन फ़ोन मिलाया अनिल सर को तमाम नई पुरानी यादें ताज़ा हुईं।
ग्रीटिंग कार्ड देखकर याद आया किं पहले अपने मित्रों को पत्र लिखने का बहुत शौक़ था मुझे। लंबे-लंबे पत्र लिखते थे। लोग भी जबाब लिखते थे। आज भी मन करता है कभी मित्रों को पत्र लिखें। लेकिन अब शायद पोस्ट कार्ड का चलन भी बंद हो गया।
मित्रों के पतों की जगह उनके फ़ोन नंबरों ने ले ली है।
39 साल पहले भेजा यह ग्रीटिंग कार्ड देखकर लगा कि दो दिन पहले भेजी गई और पाई गई शुभकामनाएँ जो ह्वाट्सऐप या अन्य माध्यमों से आईं -गई वो क्या चालीस साल बाद इसी तरह सुरक्षित रह सकेंगी जैसे यह कार्ड में भेजी शुभकामनाएँ। क्या पता तब तक व्हाटसप और सोशल मीडिया के रूप इतने बदल जायें कि संदेश खोजे न मिलें। पढ़े न जायें।
आगे की बात आगे की देखी जाएगी अभी तो तय किया है कि मित्रों को कभी -कभी पत्र लिखने का सिलसिला फिर से शुरू किया जाये। देखते हैं अमल में कितना आता है। क्या आपको भी पत्र लिखना अच्छा लगता है?

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Friday, November 10, 2023

सोशल मीडिया की रीच

 




अक्सर मित्र लोग अपनी पोस्ट की रीच कम हो जाने की बात करते हैं। इसके लिए सोशल मीडिया को कोसते हैं। चिंता व्यक्त करते हैं कि पाठक कम हो गए, टिप्पणी नहीं आती, लाइक नहीं मिल रहे।
सहज भाव है यह। पाठक कम होना, टिप्पणी कम मिलना, लाइक कम होना सोशल मीडिया में नियमित लिखने वालों को और कभी-कभी भी लिखने वालों को खराब लगता है।
जहां तक रीच कम होने की बात है तो हमको लगता है कि सोशल मीडिया इसका प्रयोग करने वालों के लिए सोशल है। इसको चलाने वालों के लिए यह कमाई का साधन है। कमाई बढाने के लिए तरह-तरह के जुगाड़ अपनाता है मीडिया। उसको इस बात से मतलब नहीं कि आपकी पोस्ट कितनी अच्छी है, कितनी समाजोपयोगी है। जिस भी तरह की पोस्टों से देखने वाले बढ़ेंगे उनको बढ़ावा देगा।
फेसबुक पर ही पहले मित्रों की तमाम पोस्टें एक के बाद एक दिखती थीं। अब उनकी जगह स्पॉन्सर्ड पोस्ट, विज्ञापन दिखते हैं। सजेस्टेड पोस्ट दिखती हैं। स्पॉन्सर्ड पोस्ट और विज्ञापन से पैसा मिलता है। सजेस्टेड पोस्ट खाता धारक की रुचि पर आधारित होती हैं।
फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया के हाल अब अखबार सरीखे हो गए हैं जिनमें कभी पहले पेज की शुरुआत प्रमुख खबरों से होती थी। उनकी जगह अब पहले, दूसरे, तीसरे पेज तक भी खबरों की हिम्मत नहीं होती जो छप जाएं। पूरे-पूरे पेज विज्ञापनों से भरे हैं। हर जगह बाजार का हल्ला है, समाचार चुपचाप कहीं अंदर छिपा है। बाजार ही आजकल प्रमुख समाचार है।
तो मुझे तो यही लगता है कि हमारी पोस्ट कम पढ़ी जा रही है तो इसका कारण पैसा कमाऊ पोस्टों का हमसे पहले पेश किया जाना है। यही सोशल मीडिया संचालकों के लिए फायदे का आधार है।
कुछ मित्रों का मानना है कि पोस्ट्स को मित्रों को टैग करना इससे मुकाबले का उपाय है। सही है। सौ-पचास मित्रों को टैग करेंगे तो वो हमारी पोस्ट फौरन देख लेंगे। शर्मा-शर्मी टिपिया भी देंगे। लेकिन वह सब मुंह देखी बात होगी।
अपनी हर पोस्ट को टैग करके पढ़वाने की कोशिश ऐसी ही लगती है मुझे मानो किसी ट्रेन को पकड़ने के लिए लपकते इंसान का कुर्ता घसीटकर हम कहें -'ये कविता अभी-कभी लिखे हैं। जरा सुनकर तारीफ तो करिए जरा। ट्रेन फिर पकड़ लीजिएगा।'
मुझे लगता है कि अगर लोग हमारी लिखाई पसंद करते हैं तो वो देर-सबेर पढ़ेंगे ही। अपने दोस्तों को टैग करना मतलब उनका ध्यान जबरियन अपनी तरफ खींचना। यह जबर्दस्ती का मसला कवि सम्मलेन/मुशायरों में कवियों/शायरों की उस अदा की तरह है जिसमें लोग जबरियन श्रोताओं से तवज्जो चाहते हैं, ताली लूटते हैं।
हम अपने जिन मित्रों का लिखा पढ़ना पसंद करते हैं उनको खोज कर पढ़ते हैं। छूट जाता है तो बाद में पढ़ते हैं। कुछ बहुत अच्छा पढ़ने में देर होती है तो अफसोस भी करते हैं कि देर हो गई पढ़ने में।
टिप्पणी/लाइक कम होने का कारण यह भी है कि आजकल नेट पर चमक-दमक और उलझावों का सैलाब आया है। यह दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। रील है, स्टोरी है, फ़ारवर्डेड सन्देश हैं, गुडमार्निंग है, सुप्रभात है। नित नए बनते ग्रुप हैं। आप अच्छे भले बैठे हैं, पता लगा आपको किसी ग्रुप में शामिल कर लिया गया। आप देओ हाज़िरी दिन रात।
लोगों के पास समय की कमी बहुत बड़ा कारण है टिप्पणी, लाइक कम होने का। अपन दिन भर ऑनलाइन भले रहते हों लेकिन लिखने-पढ़ने के लिए हद से हद घण्टे-दो घण्टे मिल पाते हैं। इतने में कुछ ही मित्रों का लिखा पढ़ पाते हैं। बहुत कम पर टिप्पणी कर पाते हैं। टिप्पणी के जबाब तो और भी कम , देना चाहते हुए हुए भी , बहुत कम दे पाते हैं। लाइक अलबत्ता जरूर कर देते हैं दिल वाले निशान के साथ। लाइक।किया मतलब पढ़ लिया।
कहने का मतलब यह कि अपन ऐसा सोचते हैं कि यह मुफ्त की सुविधा है। यह सुविधा कैसी मिलेगी, कितनी मिलेगी यह देने वाले की मर्जी और फायदे से तय होगी। एक बहुत बड़े बाजार में मुफ्त की ठेलिया लगाने का मौका मिलने जैसी बात है(फिलहाल यही सूझ रहा) यह अभिव्यक्ति की सुविधा। इससे यह आशा रखना कि यह हमें मुफ्त में प्रोत्साहित करेगा, खाम ख्याली होगी।
इसलिए मेरा तो यही मानना है कि लिखते-पढ़ते रहें। पढ़ने लायक लिखेंगे तो पाठक जरूर आएंगे। पढ़ेंगे भी देर सबेर।
बहुत ज्यादा तारीफ और लाइक मिलने से यह गलतफहमी भी हो सकती है कि अपन बहुत अच्छे लेखक हैं। इस गलतफहमी बचना बहुत जरूरी है।
यह हमने अपने समझाने के लिए लिखा। हो सकता है आप इससे अलग सोचते हों।

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Tuesday, November 07, 2023

सपने में सैर और किताबों में दीमक



आजकल घूमना-फिरना स्थगित है। सुबह सोचते हैं शाम को निकलेंगे, शाम को बात सुबह पर टल जाती है। बहाने ठोस और तार्किक रहते हैं तो ज्यादा अफसोस नहीं होता। लेकिन लगता तो है कि निठल्ले हो गए एकदम। जाहिल भी लिख देते लेकिन मन नहीं किया। छोड़ दिया।
तर्क ऐसा जुगाड़ है जिससे इंसान अपना बड़ा से बड़ा अपराध सही ठहरा लेता है। लाखों लोगों की हत्याओं को सही ठहराकर चैन से रह लेता है।
जो काम जगते में नहीं किया वो कल सोते में हुआ। सपने में देखा कि कहीं घूमने निकले हैं। पैदल। थक गए तो किसी सवारी की खोज करने लगे। मिली नहीं। चलते रहे। फिर कोई स्कूटर वाला दिखा। उससे लिफ्ट मांगी। कहा -'जहां तक जा रहे हो छोड़ देना।'
स्कूटर की पीछे सीट पर बैठ गए। वो अपने घर ले गया। बोला -'चाय पीकर जाओ।' हम थोड़ी देर रुके लेकिन चाय पी नहीं। चले आये। फिर इधर-उधर टहलते हुए घर आ गए। रास्ते में क्रासिंग भी मिली। बंद थी। कुछ देर बाद खुली। क्रासिंग खुलने पर लोग ऐसे भागे जैसे किसी बक्से में रखी किताबों में लगी हुई दीमक किताबें खोलने पर बिलबिला कर भागती हैं।
किताब में दीमक वाली बात मतलब बिम्ब आने का कारण यह रहा कि परसों देखा कि बक्से में रखी कई किताबों पर दीमकों ने हमला बोल दिया। गत्ते का बक्सा चाट गईं। फिर किताबें भी। कोई किताब आधी, कोई चौथाई। किसी किताब में बस घुसी ही थी लेकिन उनको खाना शुरू नहीं किया था। कुछ किताबों में तो घुसीं भी लेकिन शायद उनको खाने की हिम्मत नहीं हुई।
इससे कहा जा सकता है कि कुछ किताबें इतनी गरिष्ठ या अपठनीय होती हैं कि उनको दीमक तक नहीं खाती। यह भी हो सकता है कि कुछ दीमकें पढ़ी लिखी होती हों और वे किताबों को पढ़कर ही खाती हों। अपठनीय किताबों को छोड़ देती हों।
बहरहाल किताबों को अब धूप दिखा रहे हैं। जितनी बची हैं कोशिश कर रहे हैं उससे ज्यादा न खराब हों। इन किताबों में कुछ मित्रों द्वारा भेंट की हुई किताबें भी थीं। उनकी खुद की लिखी हुई। कुछ तो इतनी जर्जर हो गईं थीं कि उनको जलाना पड़ा। अफसोस और सुकून दोनों एक साथ हुए। अफसोस किताब जलने का, सुकून उनसे मुक्त होने का।
इतना लिखने के बाद सोच रहे हैं कि सपने में स्कूटर पर लिफ्ट देने वाले को धन्यवाद बोलना भूल ही गए थे, चाय के लिए मना करने पर उसकी घरैतिन को कैसा लगा होगा, दीमक के बारे में लिखने से वो बुरा तो नहीं मानेंगी।
पोस्ट के साथ दीमक़ खाई किताबों की फोटो लगाने के लिए फोटो खींचा था लेकिन लगाया नहीं। यह सोचकर कि दीमक़ बिना कपड़े पहने किताब पर सन बाथ टाइप ले रही है, उसकी फोटो लेकर फेसबुक पर पोस्ट करना उनकी निजता का उल्लंघन होगा।
अलबत्ता जूतों के फ़ोटो लगा रहे हैं । यह भी सोच रहे हैं कि सपने में कौन से जूते पहनकर गये थे। आप कुछ अंदाज़ा लगाकर बताएँ।

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