आजकल यात्रा संस्मरण पढ़े जा रहे हैं। असगर वजाहत जी की किताब 'उम्र भर सफर में रहा'। कल उनके यात्रा संस्मरण के कुछ किस्से पढ़े। किस्से पढ़ते हुए तेहरान यात्रा के कुछ वीडियो देखें। देश दुनिया घूमते हुए कई युवा अपने वीडियो यूट्यूब पर अपलोड करते रहते हैं। ऐसे ही एक घुमक्कड़ युवा के वीडियो देखकर लगा घूमने निकल पड़े। घूमें और घुमाई के बारे में लिखें। वीडियो बनाए। अपलोड करें।
आगे जब घूमने जाएंगे तब जाएंगे। फिलहाल तो पुरानी घुमक्कड़ी की
यादें अक्सर हाथ पकड़कर टोंक देती हैं कहते हुए -'हमारे बारे में कब लिखोगे।' कइयों के हाल तो 'ऑंखड़ियाँ झाई पड़ी फेसबुक निहारि-निहारि' सरीखी हो गयी है।
इन यादों में लेह-लद्दाख, अमेरिका, नेपाल, फिर अमेरिका और महाबलीपुरम, पांडिचेरी के कई किस्से हैं। इसके अलावा और भी तमाम फुटकर यात्राओं की बातें। कायदे से लिखने के चक्कर में बकायदे की लिखाई भी रह जाती है।
बहरहाल सबसे ताजी याद पांडिचेरी की। पांडिचेरी के कुछ किस्से पहले लिख चुके हैं। पांडिचेरी में होटल का जुगाड़ हो जाने के बाद निश्चित होकर खाना खाया। शाम को घूमने निकले। शहर घूमने के बाद वापस समुद्र किनारे लौट आये। होटल के पास। एक जगह बैठ गए। समुद्र की लहरों और आसपास के लोगों को देखने लगे।
पास ही एक लड़का-लड़की दोस्त बैठे थे। थोड़ी देर बाद बातचीत शुरु हो गयी उनसे। लड़की दिल्ली की थी और बालक कश्मीर का। दोनों पढ़ने के सिलसिले में पांडिचेरी आये थे। यहाँ मिले। दोस्ती हुई। मिलना-जुलना शुरू हुआ। उस दिन शाम को साथ घूमने आए थे।
दोनों के पढ़ाई के विषय अलग-अलग हैं। लेकिन दोस्ती के लिए विषय एक होना जरूरी भी नहीं। दोस्ती अपने आप में एक विषय है।
लड़की और लड़के के घर परिवार के बारे में जानकारी लेने के साथ काफी देर बात हुई। विवरण भूल गया। उसी दिन लिखा होता या नोट्स बनाये होता तो अच्छा रहता। बहरहाल।
लड़के को हमने कश्मीर यात्रा के बारे में बताया और कई यादें साझा की। उसने हमसे पूछा -'कश्मीर हमको कैसा लगा?' हमने कश्मीर की तारीफ की तो वह खुश हो गया। उसने पूछा-'फिर कश्मीर को लोग बुरा क्यों कहते हैं?'
यह सवाल मुझसे कश्मीर के तमाम लोगों ने, जिनमें युवा लोग सबसे ज्यादा हैं, पूछा -'कश्मीर को लोग बुरा क्यों कहते हैं?' कश्मीर के युवा इस बारे में बहुत सम्वेदनशील हैं। उनको।लगता है कि कश्मीर की गलत छवि लोगों के सामने पेश की जाती है।
काफी देर बाद हम लोग चलने को हुए। साथ में फोटो ली गयी। अंधेरा हो गया था। कई प्रयासों के बाद एक साफ फोटो आई। हम होटल की तरफ चले आये।
होटल के रास्ते में एक जगह स्टेज सजा था। पोस्टर लगे थे फैशन परेड के। लेकिन स्टेज पर कोई था नहीं। हम बाद में आने की सोच कर चल दिये।
होटल के पास ही एक उडुपी रेस्तरां में खाना खाया। खाने के बाद टहलते हुए उस जगह आये जहां फैशन परेड का स्टेज था। फैशन परेड शुरू हो चुकी थी। लड़के-लड़कियों की फैशन परेड। लड़के-लड़कियां स्टेज पर आकर अपना परिचय दे रहे थे। अधिकतर स्थानीय भाषा में, कुछ अंग्रेजी में और कुछ मिली-जुली भाषा। अंग्रेजी में बोलने वाले वाले बच्चों में ज्यादातर का 'मुंह तंग था अंग्रेजी में।' लेकिन कोशिश कर रहे थे। एक बच्ची ने तो तीन बार कोशिश की। अटक गई। फिर शुरू से परिचय दिया अपना। फिर अटक गई। आखिर में अपनी स्थानीय भाषा में , शायद तमिल, अपना परिचय दिया।
परिचय के बाद स्टेज पर और भी गतिविधियों के बाद रैंप वॉक हुआ। लड़के-लड़कियां बारी-बारी से मटकते, इठलाते स्टेज से चलते हुए आगे तक आते और स्टाइल मारते हुए थोड़ा रुककर वापस चलते हुए लौट जाते।
बाद में उन बच्चों में से कुछ को प्रथम, द्वितीय , तृतीय के साथ और भी कई सम्मानों से नवाजने की घोषणा हुईं। समुद्र किनारे कुर्सियों पर बैठी भीड़ ने ताली बजाकर उनका स्वागत किया।
समुद्र किनारे फैशन परेड देखने का यह मेरा पहला अनुभव था। फैशन परेड में भाग लेते बच्चे स्कूल, कालेज के बच्चे थे। इनमें से कोई अभी प्रसिद्ध नहीं हुआ था। लेकिन क्या पता कल को इनमें से ही कोई प्रसिद्ध मॉडल , कलाकार बन जाये और अपनी यादों में पांडिचेरी के इस फैशन शो का जिक्र करे।
जहां फैशन शो हो रहा था वहां महात्मा गांधी जी की विशाल मूर्ति लगी थी। गांधी जी सामने से बच्चों को अपना हुनर दिखाते हुए देखते होंगे और अपने समय की यादों को याद करते हुए न जाने किन ख्यालों में गुम हो जाते होंगे।
होटल लौटते हुए समुद्र किनारे सामान बेचती हुई महिलाएं भी दिखीं। छोटे-छोटे प्लास्टिक के खिलौने जिनमें लाइट की व्यवस्था थी। एक महिला ने तो चमकता हुआ सींग अपने सर पर लगा रखा था। बाजार अपने करतब न जाने किन-किन तरीको से दिखाता है।
कुछ देर समुद्र किनारे के नजारे देखते हुए अपन होटल लौट आये।
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